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किस वन का फूल है वह

kis wan ka phool hai wo

अनुवाद : सच्चिदानंद दास

गुरु महांति

गुरु महांति

किस वन का फूल है वह

गुरु महांति

और अधिकगुरु महांति

    1

    फिर भी चलते रहने का

    मतलब है अनेक!

    जैसे भेड़ का है

    अपनी जमात से परिचय,

    या कोई त्रिया का अपनी सहेली और

    गाँव के स्नानघाट से।

    कीर्त्तन मंडप पर लाल कपड़ा, चंदोबा और

    मृदंग पर थाप लगाते—

    राधिका की नाईं

    कृष्णगुण गाते मगन हो जाएँगें।

    स्मृति तो एक किंवदंती है,

    कदंब पुष्प की महक,

    हल्की लहर तटिनी की

    चमकती रूपहली मछली—

    ज्योत्स्ना के लंबे जाल में।

    विस्तीर्ण मैदान में

    स्मृति फिर पड़ोस की नई दुल्हन की—

    धीमी चाल, महीन आवाज़

    तीखे नैन, दोधारी अलता।

    वह एक ख़याली मन,

    शीत के अंतिम दोपहर पत्ता झाड़कर

    देह छूते मंद बयार का पहला स्पंदन—

    यादें फिर पुराने घर की छाया की।

    पितरों की वेदिका कौड़ियाँ,

    शादी की टूटी वेदी—

    मौत के बाद

    छूट जाती है तमाम प्रशस्ति।

    अथवा, वह कौन-सा एक अरण्य,

    सड़क या संकरी पगडंडी।

    पहले पहाड़ी घेरा, अंत में पहाड़

    उसके बीच में अंधेरी सुरंग का अश्लील अँधेरा।

    बूढ़ी राक्षसी का घेरा—

    जवान जहाँ भेड़ बनता है

    सूरज को देख पूरब में;

    और बनता है वीर्यवान—

    उगने पर अँधेरा।

    याद उसी अँधेरे जंगल के—

    पूँछ पटकते महाबल की;

    जलती आँखों की आग

    भालू का काटना,

    सफ़ेद खरगोश की कुलाँचे—

    और तमाम नन्ही चिड़ियों की

    खिचिर-मिचिर।

    2

    यादें—

    उस अरण्य की सीमा में

    बादलों का सागर,

    तूफ़ान का समारोह और

    केकी का नृत्य, प्रणय याचना।

    अरण्य की कँटीली झाड़ियाँ,

    महाद्रुम, नन्ही झरना।

    झरने के किनारे-किनारे

    साँप और बाघ का भय—

    खरगोश की ममता

    और लाजवंती लता।

    हाथों के इशारे से

    आँखें मटकाता है

    झरने के पार नीलकमल,

    नितांत अकेला।

    स्मृति मेरी दाढ़ी बन लंबी हुई,

    पक भी जाती है—

    आँखों में मेरी मोतियाबिंद;

    थुरथुर चाल

    लाठी का सहारा—

    दोहरी चादर।

    मन के तहखाने में पर

    पूषी मेरी आती नहीं नज़र,

    सुनती है बस उसकी

    ममताभरी आवाज़!

    किसी वन के

    अनजाने फूल की महक-सी

    पहाड़ से उतर

    जब घर लौटता हूँ चोट लेकर।

    स्रोत :
    • पुस्तक : समकालीन ओड़िआ कविता (पृष्ठ 29)
    • संपादक : सत्य महापात्र
    • रचनाकार : गुरु महांति
    • प्रकाशन : भारतीय साहित्य केंद्र
    • संस्करण : 2013
    हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

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    ‘हिन्दवी डिक्शनरी’ हिंदी और हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों के शब्दों का व्यापक संग्रह है। इसमें अंगिका, अवधी, कन्नौजी, कुमाउँनी, गढ़वाली, बघेली, बज्जिका, बुंदेली, ब्रज, भोजपुरी, मगही, मैथिली और मालवी शामिल हैं। इस शब्दकोश में शब्दों के विस्तृत अर्थ, पर्यायवाची, विलोम, कहावतें और मुहावरे उपलब्ध हैं।

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