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घंटा

ghanta

हरि मृदुल

और अधिकहरि मृदुल

    आजकल मुझे सपने में

    एक भारी-भरकम घंटा दिखाई देता है

    टँगा हुआ

    ठीक-ठीक वैसा ही

    जैसा बंदर की तरह उछलकर

    एक मंदिर में बजाया करता था बचपन में

    देखता हूँ कि यह भारी घंटा

    अब काफ़ी नीचे झुक आया है

    इतना कि इसे कोई बच्चा भी बजा सकता है

    लगातार

    मैं इसी कारण चिंता में पड़ जाता हूँ

    लेकिन थोड़ी देर बाद फिर जाने क्यों

    ख़ुद ही घंटा बजाने का उपक्रम करने लगता हूँ

    आश्चर्य कि हवा में हाथ लहरा भर जाता है बस

    टन्न की आवाज़ नहीं होती

    मैं घंटे पर एक गहरी नज़र फिर से डालता हूँ तो

    चौंक जाता हूँ कि यह तो बिना जीभ का

    एक भयावह पोपला मुँह है

    जो किसी को भी लील लेने को तत्पर लगता है

    चीख़ पड़ता हूँ मैं

    चीख़ सुनकर आस-पास खड़े लोग

    ज़ोर-ज़ोर से हँसने लगते हैं

    फिर उनमें से एक आदमी

    बड़ा-सा हथौड़ा थमा देता है मुझे

    अब मैं विस्मित हूँ

    मेरी समझ में नहीं आता कि क्या करूँ

    तब वह मेरे हाथ से हथौड़ा छीन अट्टहास के साथ घंटा बजाता

    चला जाता है टन्न... टन्न... टन्न...

    हर आवाज़ विस्फ़ोट-सी

    जाने क्यों मुझे आजकल यह घंटा

    बड़ी ही अजीबोग़रीब मुद्रा में

    बार-बार दिखाई देने लगा है सपने में

    स्रोत :
    • रचनाकार : हरि मृदुल
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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