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केन के पुल पर शाम

ken ke pul par sham

केशव तिवारी

केशव तिवारी

केन के पुल पर शाम

केशव तिवारी

और अधिककेशव तिवारी

    रोज़ की तरह ही समय से कुछ लेट

    गुज़रेगी कानपुर-अद्धा पैसेंजर

    बालू से भरे हुए ट्रक रह-रहकर

    बग़ल बने पुल को हिलाते गुज़रेंगे

    सिकुड़ती-सूखती केन

    लगभग ढह चुका भूरागढ़ का दुर्ग

    क़िले के प्राचीर के नीचे नटवीर की समाधि

    जिसने एक बादशाह की लड़की से प्रेम करने की

    की थी हिम्मत

    आज भी मकर संक्रांति में यहाँ लगता है

    आशिक़ों का मेला

    वहीं पर अपने अच्छे-बुरे दिनों को याद करते हम—

    देखेंगे एक-दूसरे को उदास आँखों से

    बारिश वाली शाम

    बादलों से भरी शाम

    जब बंबेसुर पहाड़ी से झाकेगा चाँद

    हम भीगते हुए देखेंगे उसे होकर बेसुध

    फिर एक दिन ऐसा भी आएगा

    इसी कानपुर-अद्धा से

    पुल, नदी, क़िला, बारिश के चाँद

    और नटवीर की समाधि को छोड़कर

    हम निकल जाएँगे

    नए ठिकानों की ओर

    नए ठिकानों में जूझते-बिखरते

    जब आएगी इनकी याद

    तो इतना तो सोचेंगे ही

    कि हम तुम सही

    कोई तो होगा वहाँ

    यह सब देखते हुए

    स्रोत :
    • रचनाकार : केशव तिवारी
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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