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फ़िलवक़्त तन कर खड़ा मेरा देश और मैं...

filvaqt tan kar khaDa mera desh aur main. . .

अनुवाद : सुरेश सलिल

एमे सेज़ायर

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एमे सेज़ायर

फ़िलवक़्त तन कर खड़ा मेरा देश और मैं...

एमे सेज़ायर

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    फ़िलवक़्त, हवा में तन्नाये बालों की तरह, तनकर खड़ा मेरा देश और

    मैं, मेरे छोटे-छोटे हाथ उसकी विशाल मुट्ठी में और हमारी ताक़त हमारे

    अपने भीतर कहीं, बल्कि उसके बाहर एक आवाज़ में, जो रात के बाद

    तक बेधती रहती है और उसे सुनने वाले एक इलहामी बर्र के डंक को

    पसंद करते हैं। और वह आवाज़ एलान करती है कि यूरोप सदियों से

    हमारे भीतर जाने कितनी तरह के झूठ और विपत्तियाँ ठूँसता रहा है,

    इसी वजह से यह सच नहीं है कि :

    आदमी का काम ख़त्म हो गया

    दुनिया में हमें करने को अब कुछ नहीं है

    हम दुनिया के परजीवी हैं

    हमारा काम उसके साथ क़दमताल करना-भर है।

    आदमी का काम तो ठीक इस वक़्त शुरू हो रहा है

    बाक़ी है अभी उसे अपने जोश के चारों कोनों पर

    हरेक क़िस्म की कड़ी पाबंदी को फ़तह करना।

    ख़ूबसूरती, दिमाग़ और ताक़त पर किसी भी नस्ल या जाति की

    इजारेदारी नहीं है

    विजय के सभागार में सभी के लिए जगह है

    हमें अब मालूम है

    कि सूरज ज़मीन के उस टुकड़े को, जिसे सिर्फ़ हमने ही चुना है,

    रोशन करता हुआ, ज़मीन के गोले के चारों ओर घूमता है।

    कि हर सितारा हमारे ही हुक्म से आसमान से ज़मीन पर गिरता है

    अब मुझे पता चला कि अग्निपरीक्षा क्या होती है: मेरा देश मेरे पैतृक

    'बंबरास' का 'रात्रि-बरछा' है। अगर उसके आगे चूज़े का ख़ून पेश

    किया जाए, तो वह झिझकेगा और उसका कठिन-कठोर फल पीछे हट

    जाएगा, उसके मिज़ाज को चाहिए आदमी का ख़ून, आदमी की चर्बी,

    आदमी का जिगर, आदमी का दिल, कि चूज़ों का ख़ून।

    इसलिए मुझे भी अपने मुल्क के लिए खजूर की गुठलियों की नहीं,

    मरदाना ख़ून प्रवाहित करते आदमियों के दिलों की तलाश है, ताकि वे

    आदमी विशाल ऐंचे-बैंचे फाटक के रास्ते चाँदी मढ़े शहरों में दाख़िल

    हो सकें; मेरी आँखें मेरे अपने मुल्क की एकड़ों ऱकबा ज़मीन बुहार

    देती हैं और मैं ज़ख़्मों को, दुर्लभ प्रजातियों की भाँति, एक के ऊपर एक

    जमा करते हुए, एक क़िस्म की ख़ुशी से भरकर, उनकी गिनती करता हूँ

    और हिसाब-किताब अचानक प्रकट हुई और नई-नई ढाली गई घृणित

    हुकूमत द्वारा लगातार लंबा कर दिया जाता है।

    ऐसे लोग हैं जो कभी इस क्लेश से मुक्त नहीं हो पाते कि उन्हें ईश्वर के

    जैसा बनाने के बजाय शैतान के जैसा बनाया गया है, ऐसे भी लोग हैं

    जो सोचते हैं कि नीग्रो होना दूसरे दरजे का किरानी होने जैसा है, तरक़्क़ी

    की किसी भी उम्मीद के बिना; बेहतर चीज़ों का इंतज़ार-भर करते

    रहना, और ऐसे भी लोग, जिन्होंने अपने ख़ुद के आगे हार मान ली है,

    और ऐसे भी जो अपने ख़ुद के भीतर एक गहरे गर्त के किसी कोने में

    दुबके रहते हैं, और ऐसे भी लोग, जो यूरोप से मुख़ातिब होकर कहते

    हैं: 'देखिए, आपके ही जैसे कौशल से मुझे पॉलिश चमकाना

    और कोर्निश बजाना आता है, आपकी ही तरह में सलाम कर सकता हूँ,

    किसी भी मानी में आपसे अलग क़िस्म का नहीं हूँ: मेरी काली चमड़ी

    पर जाइए; इसे तो सूरज की तपिश ने झुलसाया है।'

    नीग्रो दल्ला है और नीग्रो सैनिक है: सारे ज़ेब्रा अपने जिस्म अपने एक

    ख़ास अंदाज़ में झटकारते हैं, ताकि उनकी धारियाँ ताज़ा दूध के झाग में

    उतर जाएँ, और इस सबके दरमियान मैं कहता हूँ हुर्रा! मेरा दादा मर

    रहा है। हुर्रा! थोड़ी-थोड़ी करके पुरानी नीग्रो-चेतना लाश में तब्दील

    हो रही है। इससे कोई इंकार नहीं, कि वह एक अच्छा हब्शी था, गोरे

    कहते हैं कि वह एक अच्छा हब्शी था, सचमुच एक अच्छा हब्शी,

    अपने अच्छे मालिक का अच्छा नीग्रो।

    और मैं कहता हूँ हुर्रा!

    वह एक बहुत अच्छा हब्शी था।

    कंगाली ने उसे आगे और पीछे से ख़ूब थुरा। उन्होंने उसके बोदे मग़ज़

    में यह भावना भर दी, कि वह अपनी बदक़िस्मती पर कभी पार नहीं पा

    पाएगा, कि उसका अपनी नियति पर कोई वश नहीं है; कि एक बेदर्द

    मालिक ने उसकी कूल्हे की बनावट में सभी अगले जन्मों की पाबंदियाँ

    दर्ज कर दी हैं। अपने को एक अच्छा हब्शी साबित करने के लिए

    अपनी कूढ़मग़ज़ी में ईमानदारीपूर्वक यक़ीन लाना होगा और क़िस्मत के

    उस लेख के नकेल डालने की गुस्ताख़ी को कभी पास नहीं फटकने

    देना होगा।

    वह एक बहुत अच्छा हब्शी था

    और उसे नहीं सूझा कि बेस्वाद ईख के सिवा कोई और चीज़ भी कभी

    वह गोड़, खोद और काट सकता है

    वह एक बहुत अच्छा हब्शी था।

    और उन्होंने उसकी ओर पत्थर फेंके, ज़ंग खाए लोहे के टुकड़े, टूटी

    बोतलों के सिरे, लेकिन वे पत्थर, ही वे ज़ंग खाए लोहे के

    टुकड़े, ही टूटी बोतलों के सिरे

    धरती के इस ढेले के ख़ुदा के ख़ामोश वक़्त

    और हमारे ज़ख़्मों के मीठे शहद पर भिनभिनाती मक्खियों के झुंड पर

    बरसती चाबुक।

    मैं कहता हूँ हुर्रा! ज़्यादा से ज़्यादा पुरानी नीग्रो-चेतना लाश में

    तब्दील हो रही है

    खुला दिगंत पीछे खिसक आया है और तना हुआ है

    चिथड़ा बादलों के बीच बिजली की एक कौंध :

    ग़ुलामों से लदा जहाज़ बेसाख़्ता फट रहा है... उसका मरोड़े मारता पेट

    गड़गड़ाहट के साथ बज रहा है

    समुद्र के इस दोग़ला दुधमुहे का लदान किसी ज़ालिम टेपवर्म की तरह

    उसकी अँतड़ियों को कुतरे डाल रहा है

    कोई भी चीज़ उसकी गड़गड़ाती अँतड़ियों की धमकी को दबा नहीं सकती

    बेकार है गिन्नियों से फूले बटुए-जैसे हवा-भरे पालों का उल्लास

    बेकार हैं पुलिसिया जंगी जहाज़ों की अनिवार्य और ख़तरनाक

    मूर्खताओं की सहमति से चली जाने वाली चालें

    बेकार है जहाज़ के कप्तान द्वारा सबसे अड़ियल हब्शी को पीरमान के

    डंडे पर लटकाकर फाँसी देना, या पानी में फिंकवा देना, या

    अपने ख़ूँख़ार कुत्तों के आगे फिंकवा देना।

    अपने फटे हुए ख़ून में

    तले प्याज़ जैसी गंध छोड़ रहे हैं हब्शी

    आज़ादी का तीता स्वाद पहचान रहे हैं

    और वे, हब्शी, अपने पैरों पर खड़े हैं

    घेरा डाले बैठे हब्शी

    सहसा अपने पैरों पर

    अपने पैरों पर मालख़ाने में

    अपने पैरों पर केबिन में

    अपने पैरों पर डेक के ऊपर

    अपने पैरों पर झंझा में

    अपने पैरों पर सूरज की धूप में

    अपने पैरों पर स्वभाव में अपने पैरों पर

    और

    आज़ाद

    अपने पैरों पर, और किसी बात का ग़म नहीं

    आज़ाद समुद्र के सीने पर और बे-सरो-सामाँ

    पहलू बदलते हुए और भरपूर बहते हुए यहाँ-वहाँ

    आश्चर्यजनक रूप से

    अपने पैरों पर

    अपने पैरों पर साज-सामान वाले तले में

    अपने पैरों पर पतवार थामे हुए

    अपने पैरों पर कुतुबनुमा के क़रीब

    अपने पैरों पर नक़्शे के सामने

    अपने पैरों पर तारों की छाँव में

    अपने पैरों पर

    और

    आज़ाद

    और साफ़-शफ़्फ़ाफ़ जहाज़ हार मानती लहरों पर बेख़ौफ़ आगे

    बढ़ता हुआ।

    स्रोत :
    • पुस्तक : रोशनी की खिड़कियाँ (पृष्ठ 264)
    • रचनाकार : एमे सेज़ायर
    • प्रकाशन : मेधा बुक्स
    • संस्करण : 2003

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