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बच्चों, डरने की ज़रूरत नहीं

bachchon, Darne ki zarurat nahin

अनुवाद : सुरेश सलिल

निकोला वाप्त्सारोव

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निकोला वाप्त्सारोव

बच्चों, डरने की ज़रूरत नहीं

निकोला वाप्त्सारोव

और अधिकनिकोला वाप्त्सारोव

    हम हालाँकि भोर से शाम तक

    खटते और पसीना-पसीना होते हैं;

    पेट भरने के लिए

    रोटी कम है, बच्चों,

    ज़रूरत से बहुत ज़्यादा कम।

    और तुम्हारे चेहरों पर पहले से ही

    आँसुओं की लीकें उभरी हुई हैं

    और तुम्हारी चमकविहीन आँखें

    कुछ कहती हुई—कुछ सुनती हुई—

    इतनी फैली-फटी

    दर्द और दुख से उमड़ती आँखें

    भूख के त्रास से चीख़ती हैं;

    रोटी!

    रोटी!

    रोटी!

    सुनो, मेरे नन्हे-मुन्नो,

    मेरे बच्चों, सुनो,

    आज वैसा ही है

    जैसा कल था

    लिहाज़ा, चूँकि हमारे पास रोटी नहीं है,

    ही कुछ और

    मैं अब पालूँगा तुम्हें

    भरोसे पर—विश्वास पर।

    ऐसे दिन आएँगे

    जब हम वक़्त की नदियों को उपयोग में लाएँगे,

    दिवसों की बरसात को

    कंकरीट से ढली बाँहों में रोकेंगे।

    हम उसे पीठ नहीं दिखाने देंगे।

    हम नदियों की लगाम कसेंगे

    और कहेंगे :

    'इधर चलो !'

    और वे हमारा हुक्म बजाएँगी।

    तब हमारे पास रोटी होगी,

    मेरे नन्हे-मुन्नो,

    हाँ, तब हमारे पास रोटी होगी!

    और तुम्हारी आँखें ख़ुशी से खिल उठेंगी।

    अगर हमारे लिए रोटी होगी

    तो तुम्हारे लिए भी होगी।

    और अगर तुम्हारे लिए होगी

    तो लाखों-लाख लोगों को भूख से छुटकारा मिलेगा।

    और तब ज़िंदगी एक महान ख़ुशी बन जाएगी।

    और पस्ती के दिन बहुत दूर भाग जाएँगे।

    गाएँगे हम,

    हाँ हम गाएँगे, वैसे ही

    जैसे हम करते हैं काम,

    गाएँगे गीत आदमी के यश की ख़ुशी के।

    और जब मैं ख़ुद भी बूढ़ा हो जाऊँगा

    अपनी खिड़की से निहारा करूँगा

    दूर-दूर तक फैला रास्ता,

    मैं निहारा करूँगा

    खट्पट्-खट्पट् क़दमताल करते हुए

    तुम्हारा आना।

    और विस्मय ख़ुशी से भरकर

    धीरे से फुसफुसाऊँगा :

    'ओऽऽ, कितनी सुंदर है यह दुनिया!'

    हाँ, इसी तरह वक़्त बदलेगा

    इसी तरह बदलेंगे हालात,

    लेकिन आज रोटी की कमी है

    और तुम्हारी माँओं की छातियाँ सूखी हुई हैं।

    शिकायत से फ़ायदा क्या भला?

    हम शिकायत का शब्द ज़बान पर नहीं लाएँगे।

    फ़िलहाल एक गहरे और ज़ालिम दुख से

    हम बेजार हैं,

    तुम्हारा 'आज'

    हमारे लिए एक पोशीदा क़िस्म के

    अफ़सोस की वजह बन रहा है।

    लेकिन,

    बच्चों, डरने की ज़रूरत नहीं

    आने वाले कल से।

    स्रोत :
    • पुस्तक : रोशनी की खिड़कियाँ (पृष्ठ 242)
    • रचनाकार : निकोला वाप्त्सारोव
    • प्रकाशन : मेधा बुक्स
    • संस्करण : 2003

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