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बदलते रंग

badalte rang

मुकेश कुमार सिन्हा

और अधिकमुकेश कुमार सिन्हा

    मृत्यु कभी कठिन नहीं होती

    होती है कठिनतम वो सोच

    कि कहीं मर गया तो?

    इस 'तो' में समाहित है न, कितना दर्द।

    महसूस कर पाया पिछले सप्ताह।

    हमने सुना है, कोई, कभी

    मरा था, सामान्य बुखार से ही

    पर वो मरा भी तो निश्चिंतता के साथ

    क्योंकि उसे था विश्वास

    अंतिम पलों तक कि

    बुखार तो बस परेशान ही करेगा

    पर, मृत्यु आई चुपके से, उसका वरण करने

    जाना कहाँ रुक पाया है कभी

    अब बात करता हूँ मुद्दे की

    आख़िर एक सामान्य व्यक्ति

    मुद्दे से इतर भटक के जाए क्यों कहीं

    पिछले शनिच्चर की बात है

    ख़ूब कोशिश रहती है इन दिनों

    इस कठिनतम दौर में

    रहे कोशिश बचाव की

    मास्क की, हैंड वाश की, सोशल डिस्टेंसिंग की

    यहाँ तक कि सेल्फ़ एसेसमेंट और

    'आरोग्य सेतु' एप के स्टेटस पर भी

    रखी जाती है नज़र।

    हाँ तो इस बीते शनिच्चर ने रंग दिखाया

    आरोग्य के हरे रंग के स्टेटस ने

    परिवर्तित हो कर भूरे रंग में

    तरेरते हुए आँख बस इतना बताया कि

    आपके संक्रमण का जोख़िम उच्च है

    आप कोरोना संक्रमित के जद में आए

    पिछले दिनों।

    एप्प के बदलते रंग के साथ

    बदलता चला गया चेहरे का रंग

    गुलाबी, लाल और नीला

    पहले मुस्कुराया, बेवक़ूफ़ कहीं का

    फिर विस्मय के साथ सोचते हुए

    हुआ चेहरा रक्तिम

    कि कब कैसे क्यों कोई ऐसे पास आया

    और फिर नीला हुआ माथा

    उफ, अब कैसे, क्या करूँ

    कितने प्रश्नों को समेटे रखते हैं हम

    मुस्कुराहट उड़ी

    उड़ गई नींद

    मनोवैज्ञानिक तनाव को समेटे

    कभी मुस्कुराए कभी आभासी रूप से

    धुएँ में उड़ाई परेशानी।

    पर धड़कनों ने बताया अभी मरे नहीं

    जीते रहो... दर्द को समेटे हुए।

    ख़ुश भी हुए, बेशक थी हँसी खोखली

    जब किसी ने कहा

    ये ऐप है झूठा

    कैसे बताएगा संक्रमण, सोचो जरा।

    तब तब, बस कह पाए

    कि तुम्हारे मुँह में घी शक्कर।

    लेकिन कहाँ उतार पाए

    डर का केंचुल।

    हल्की ख़राश तक ने किया और परेशान

    घंटे दो घंटे में

    थर्मामीटर से मापते रहे तापमान

    बेशक ख़ुद में महसूसते रहे ताप

    पर नहीं विस्तार पाता था पारा

    चैन और बेचैनी से गुंथी रस्सी से

    सी-सॉ करते

    होते रहे हलकान।

    एक ऑफ़िस मित्र ने दी सलाह

    बता कर रखो अपनी

    वो वसीयत, जिसमें है रजिस्टर्ड

    ढेरों स्नेह और मंगलकामनाओं की थाती।

    रह कर कमरे में आइसोलेट

    जीते रहे, कुछ ऑक्सीजन

    और मर जाने के बाद की कल्पनाओं को

    एक मित्र ने आईक्यू आजमाया फिर बताया

    संक्रमण का असर होता है

    छठवें दिन।

    समय बीता

    हर नए दिन में नज़र ठहरती

    एप के रंग पर

    पर, उसने तो जैसे कह दिया

    मेरे वाला ब्राउन, है सबसे बेस्ट।

    उफ सपने भी हो गए

    धूल-धूसरित भूरे, बेशक थी चाहत

    हरियाली की।

    सप्ताह बीता ऐसा जैसे बीता एक जन्म

    फिर वही, खुली नींद तो

    सबसे पहले मन ने कहा, देखूँ आरोग्य स्टेटस

    पर एकाएक हुई गले में जलन

    और सिहर गया पूरा बदन

    आज तो असर ले ही आया कोरोना

    उफ सवेरे सवेरे गर्म पानी का किया सेवन

    चिंता की धनक तैर रही थी माथे पर

    क्या करूँ, क्या करूँ

    करते करते, चाहते चाहते

    खोल चुका था आरोग्य एप

    इस्स, हरियर रंग की हुई फुहार

    और बस...

    ज़िंदगी का मनोविज्ञान ऐसा

    कि रंगों के परिवर्तन मात्र ने भर दी ज़िंदगी

    साँसे हो गई स्थिर

    मन हो गया सतरंगी...!

    स्रोत :
    • रचनाकार : मुकेश कुमार सिन्हा
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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