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अस्पष्टता में

aspashtta mein

उज्ज्वल शुक्ल

उज्ज्वल शुक्ल

अस्पष्टता में

उज्ज्वल शुक्ल

और अधिकउज्ज्वल शुक्ल

    बारिश अपनी बूँद तोड़े बिना बरस रही है

    वह एक पत्ते को छेदते बह जाती है

    बारिश ने अपना सामान्य धर्म तोड़ दिया

    एक भ्रम यह कि खूँटी पर शर्ट टँगी है

    और किताब मेज़ पर है

    रहा होगा कोई मेरी मेज़ की जगह बिस्तर रखकर

    खूँटी में एक किलो आम टाँगकर

    यह वास्तविकता मेरे साथ है कि

    कहीं मेरे बग़ल मेरा अतीत लेटा हो

    गाँव में एक बूढ़े को भूलने की बीमारी है

    वह भूल गया है—

    उसने आठ दशक बिता दिए

    वह नवें दशक में है

    एकमात्र स्मृति

    कि उसकी पत्नी सामने वाले कुएँ में

    कुछ वर्ष पहले मर गई थी

    विस्मृति में एक अस्पष्ट स्मृति के निशान

    कितने ख़तरनाक

    इस नदी को नदी कहना

    रेगिस्तान कहना

    थकान को मात्र प्यास से जोड़ना

    जैसे नदी को रेगिस्तान ढूँढ़ता है

    एक जोड़ी जूता दरवाज़े पर है

    अभी भी कोई घर में होगा ढूँढ़ लो

    एक सीलन माथे तक चढ़ गई है

    ख़राब हैंडराइटिंग से नफ़रत उम्र भर रही

    और बिना शक्ल देखे

    प्रेम होने की उम्मीद अभी बाक़ी है

    एक क्रूर मज़ाक़ रही है ख़ूबसूरती भी

    आत्मा झाँकने जैसा कुछ नहीं होता शायद

    आँखों में झाँकना

    पहाड़ झाँकना या कुआँ झाँकना नहीं है

    कोई नहीं देगा धक्का तुम्हें

    रतजगी आँखें सूखा कुआँ हैं

    और इसके सामने एक अस्पष्टता

    और एक बोर्ड—

    अपनी ज़िम्मेदारी पर अंदर जाएँ

    नौकरी से घर जाता इंसान

    बैग टाँगे अपने दोस्त को ताकता एक लड़का

    सड़क और फुटपाथ के बीच

    बारिश के पानी बराबर दूरी है

    दोनों की अस्पष्ट परछाइयाँ

    इन्हें उलझते देखता मैं

    मुझे लगता है

    मैं नीले आसमान में सफ़ेद बादल टाँगे

    एक बैकग्राउंड मात्र हूँ

    और यह तस्वीर अभी गिरकर टूट जाएगी

    हालाँकि सब एक नियम से हो रहा है

    सूरज पूरब से पश्चिम जाएगा

    रात को सप्तर्षि आएँगे

    एक दिन सौरमंडल ब्लैकहोल में जाएगा

    ऊर्जा को उत्पन्न किया जा सकता है

    नष्ट

    सिकंदर के मक़बरे को ढूँढ़ता इतिहासकार

    सँजो रहा है सभ्यता

    एक बड़े समुदाय में कवि हँस रहा है—

    अपवाद-सा

    तमाम सर्जन चीड़-फाड़कर

    अपवादों की व्याख्या करते हुए चले गए

    छोड़ गए हैं एक गंध मारती लाश

    लाल बत्ती पर खड़ा मैं

    नियम से रास्ता पार करता हूँ

    सफ़ेद बादल काले होने लगे हैं

    अभी तस्वीर और गाढ़ी होगी

    और अस्पष्ट होगी।

    स्रोत :
    • रचनाकार : उज्ज्वल शुक्ल
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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