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अपने को देखना चाहता हूँ

apne ko dekhana chahta hoon

चंद्रकांत देवताले

चंद्रकांत देवताले

अपने को देखना चाहता हूँ

चंद्रकांत देवताले

और अधिकचंद्रकांत देवताले

    मैं अपने को खाते हुए देखना चाहता हूँ

    किस जानवर या परिंदे की तरह खाता हूँ मैं

    मिट्ठू जैसी हरी मिर्च कुतरता है

    या बंदर गड़ाता है भुट्टे पर दाँत

    या साँड़ जैसे मुँह मारता है छबड़े पर

    मैं अपने को सोए हुए देखना चाहता हूँ

    माँद में रीछ की तरह

    मछली पानी में सोती होती जैसे

    मैं धुँध में सोया हुआ हूँ

    हँस रहा हूँ नींद में

    मैं सपने में पतंग उड़ाते बच्चे की तरह सोया

    अपने को देखना चाहता हूँ

    मैं अपने को गिरते हुए देखना चाहता हूँ

    जैसे खाई में गिरती है आवाज़

    जैसे पंख धरती पर

    जैसे सेंटर फ़ॉरवर्ड गिर जाता है हॉकी समेत

    ऐन गोल के सामने

    मैं गिरकर दुनिया भर से माफ़ी माँगने की तरह

    अपने को गिरते हुए देखना चाहता हूँ

    मैं अपने को लड़ते हुए देखना चाहता हूँ

    नेक और कमज़ोर आदमी जिस तरह एक दिन

    चाक़ू खुपस ही देता है फ़रेबी मालिक के सीने में

    जैसे बेटा माँ से लड़ता है

    और छिपकर ज़ार-ज़ार आँसू बहाता है

    जैसे अपनी प्रियतम से लड़ते हैं

    और फिर से लड़ते हैं प्रेम बनाने के लिए

    मैं अपने को साँप से लड़ते नेवले की तरह

    लड़ते हुए देखना चाहता हूँ

    मैं अपने को डूबते हुए देखना चाहता हूँ

    पानी की सतह के ऊपर बचे सिर्फ़ अपने दोनों हाथों के

    इशारों से तट पर बैठे मज़े में सुनना चाहता हूँ

    मुझे मत बचाओ

    कोई मुझे मत बचाओ

    आते हुए अपने को देखना संभव नहीं था

    मैं अपने को जाते हुए देखना चाहता हूँ

    जैसे कोई सुई की आँख से देखे कबूतर की अंतिम उड़ान

    और कहे अब नहीं है अदृश्य हो गया कबूतर

    पर हाँ दिखाई दे रही है उड़ान

    मैं अपनी इस बची उड़ान की छाया को देखते हुए

    अपने को देखना चाहता हूँ।

    स्रोत :
    • पुस्तक : जहाँ थोड़ा-सा सूर्योदय होगा (पृष्ठ 218)
    • रचनाकार : चंद्रकांत देवताले
    • प्रकाशन : संवाद प्रकाशन
    • संस्करण : 2008

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