कोविड-19 की दूसरी लहर के उपरांत...
अब पानी बरसेगा तो
सड़कों पर मटियाली नालियों में दुःख भी बहेंगे
घर ही नहीं
भीगेंगे भीतर के सन्नाटे भी
बूँदें ज़मीन पर ही नहीं इस्तेमाल की हुई चीज़ों पर भी पड़ेंगी
धीमे-धीमे धरती की महक ढँक लेगी फ़ॉर्मल्डिहाइड की तीखी गंध
घनघोर ऐसा होगा की मुर्दागाड़ियाँ भी भीगती होंगी चुपचाप अस्पतालों के अहातों में
टप-टप टपकेंगी पीड़ाएँ छतों की दरारों से
जल-ध्वनियों के बीच ध्वनित होंगी कही-अनकही बातें
किसी कसक का सिरा मिलेगा-छूटेगा
दूर से देखी हुई लपटें रह-रहकर कौंधेंगी पानी के परदे पर
सहेज दी गई दवाइयों से निकलेंगे नयनाभिराम बरसाती कीड़े
सूने बिस्तरों पर उग आएगी असभ्य घास-अनाम फूल
टहकेगी-ख़ामोशी-सीलेगी
जब पानी बरसेगा तुम तैयार रहना दुःख के स्वीकार के लिए
अवसाद को निभाना पूरी शिद्दत के साथ-पीड़ा से परहेज़ मत करना
कच्चे आँगन में हरियाने देना विक्षोभ को
ग़ुस्से के चमकीले-सतरंगी साँपों को निकलने देना—कुचलना मत
इस बारिश अपने दुःखों के लायक़ बनना
सहेज लेना उन्हें अब यह उम्र भर की लड़ाई है।
- रचनाकार : सौम्य मालवीय
- प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
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