पीर मन के सँवारत
peer man ke sanvarat
पीर मन के सँवारत उमर हो गइल
अब त सपना सँचे के हुनर हो गइल
जे भइल, हमरा आँतर के भीतर भइल
कइसे तोहरा, ए यारे, खबर हो गइल
नेह के एगो झिंटिकी रहे बस गिरल
मन के कुअँना में लहरेलहर हो गइल
गाँव बा, एगो असरा रहल हऽ, मगर
अब त सुनलीं ह, ऊहो शहर हो गइल
बात मन के खुलासा निकल ना सकल
बा कहे में गजल कुछ कसर हो गइल
- पुस्तक : खुद के तलाशत (पृष्ठ 22)
- रचनाकार : जगन्नाथ
- प्रकाशन : भोजपुरी साहित्य प्रतिष्ठान, पटना
- संस्करण : 2015
Additional information available
Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.
About this sher
rare Unpublished content
This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.