सकुचि न रहियै स्याम सुनि
sakuchi na rahiyai syam suni
सकुचि न रहियै स्याम सुनि, ए सतरौहैं बैन।
देत रचौंहौं चित्त कहे, नेह-नैचौ हैं नैन॥
हे श्याम, आप मेरी अंतरंग सखी के रोषयुक्त वचनों से क्रोधित न हों और न उससे मिलने में कोई संकोच करें। वह तो केवल विनोद में मान किए बैठी है। उसका मान वास्तविक नहीं है। इसका सबसे बड़ा प्रमाण यह है कि उसके स्नेह से चंचल हुए नेत्र उसके हृदय में आपके प्रति जो असीमित अनुराग है, उसे व्यक्त कर रहे हैं।
- पुस्तक : बिहारी सतसई (पृष्ठ 212)
- संपादक : हरिचरण शर्मा
- रचनाकार : बिहारी
- प्रकाशन : श्याम प्रकाशन, जयपुर
- संस्करण : 2007
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