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ओशो अपनी पुस्तकों के विषय में

मेरे पिता वर्ष में कम से कम तीन या चार बार बंबई जाया करते थे और वह सभी बच्चों से पूछा करते थे, “तुम अपने लिए क्या पसंद करोगे?” वह मुझसे भी पूछा करते, “अगर तुम को किसी वस्तु की आवश्यकता हो तो मैं उसको लिख सकता हूँ और बंबई से ला सकता हूँ।”

मैंने कभी कुछ लाने के लिए नहीं कहा। एक बार मैंने कहा, “मैं केवल यह चाहता हूँ कि आप और अधिक मानवीय, पितापन से कम भरे हुए, अधिक मैत्रीपूर्ण, कम अधिनायकवादी, अधिक लोकतांत्रिक, होकर वापस लौटिए। जब लौट कर आएँ तो मेरे लिए अधिक स्वतंत्रता लेकर आइएगा।”

उन्होंने कहा—“लेकिन बाज़ार में यह वस्तुएँ उपलब्ध नहीं हैं।”

मैंने कहा—“मुझको पता है। ये बाज़ार में उपलब्ध नहीं हैं, लेकिन ये ही वे चीज़ें हैं जिनको मैं पसंद करूँगा। ज़रा-सी और स्वतंत्रता, कुछ कम आदेश, कुछ कम आज्ञाएँ और थोड़ा-सा सम्मान।”

कभी किसी बच्चे ने सम्मान नहीं माँगा था। तुम खिलौनों, मिठाइयों, कपड़ों, साइकिल जैसी ही वस्तुओं की माँग क्यों नहीं करते हो? वे तुम को मिल जाती, लेकिन ये वास्तविक चीज़ें नहीं है, जो तुम्हारा जीवन आनंदित करने जा रही हों।

मैंने उनसे धन केवल तभी माँगा, जब मैं पुस्तकें ख़रीदना चाहता था। मैंने कभी किसी और वस्तु के लिए धन नहीं माँगा। मैंने उनसे कहा—“जब मैं पुस्तकों के लिए धन माँगुँ तो बेहतर है कि आप मुझको धन दें।”

उन्होंने पूछा—“क्या अभिप्राय है तुम्हारा?”

मैंने कहा—“मेरा अभिप्राय बस यह है कि यदि आप मुझको यह धन नहीं देते हैं तो मुझको इसे चुराना पड़ेगा। मैं चोर बनना तो नहीं चाहता लेकिन यदि आप मुझको बाध्य करते हैं तो कोई उपाय नहीं है। आप जानते हैं कि मेरे पास धन नहीं है। मुझको उन पुस्तकों की आवश्यकता है और मैं उन्हें ख़रीदने जा रहा हूँ, इसलिए यदि मुझको धन नहीं दिया जाएगा, तो मैं उसे ले लूँगा। अपने मन में यह बात स्मरण कर लें कि वह आप थे, जिसने मुझको चोरी करने के लिए बाध्य किया था।”

उन्होंने कहा—“चोरी करने की आवश्यकता नहीं है। तुम को जब कभी धन की आवश्यकता हो तुम बस आओ और उसे ले लो।”

मैंने कहा—“आप आश्वस्त रहें कि यह केवल पुस्तकों के लिए है।” 
लेकिन आश्वस्त होने की आवश्यकता नहीं थी, क्योंकि वह घर में मेरे बढ़ते हुए पुस्तकालय को देख रहे थे। 

धीरे-धीरे घर में मेरी पुस्तकों के अतिरिक्त किसी और वस्तु के लिए स्थान ही नहीं बचा। 

और मेरे पिता ने कहा—“पहले हमारे घर में एक पुस्तकालय था, अब पुस्तकालय में हमारा घर है। हम सभी को पुस्तकों को ख़याल रखना पड़ता है। यदि तुम्हारी किसी पुस्तक के साथ कुछ गड़बड़ हो जाती है, तो तुम इतना शोर मचाते हो, इतना उपद्रव कर डालते हो कि प्रत्येक व्यक्ति तुम्हारी पुस्तकों से भयभीत है। वे हर कहीं हैं; तुम उनसे टकराने से बच नहीं सकते हो। और यहाँ पर छोटे बच्चे है...”

मैंने कहा—“छोटे बच्चे मेरे लिए कोई समस्या नहीं हैं। समस्या हैं बड़े बच्चे। छोटे बच्चों का मैं इतना सम्मान करता हूँ कि वह मेरी पुस्तकों की रक्षा करते हैं।”

यह मेरे घर में देखे जाने वाली विचित्र बात थी। मुझसे छोटे भाई और बहनें, कभी जब मैं घर में नहीं होता था तो मेरी पुस्तकों की सुरक्षा करते थे। कोई मेरी पुस्तकें छू भी नहीं सकता था। वे उनको साफ़ करते थे और उनको सही स्थान पर रख दिया करते थे। भले ही मैंने उनको कहीं रख दिया हो। इसलिए जब कभी मुझ को किसी पुस्तक की आवश्यकता आती थी, वह मुझे मिल जाती थी। 

यह एक आसान मामला था क्योंकि मैं उनके प्रति इतना सम्मानपूर्ण था और वे मेरे प्रति अपना सम्मान—सिवाय इसके कि वे मेरी पुस्तकों के प्रति सम्मानपूर्ण हो जाएँ—किसी और ढंग से व्यक्त कर भी नहीं सकते थे।

मैंने कहा—“वास्तविक समस्या बड़े बच्चे हैं। मेरे चाचा लोग, मेरी चाचियाँ, मेरे पिता की बहनें, मेरे पिता के जीजा लोग—ये लोग थे जो समस्या थे। मैं नहीं चाहता कि कोई मेरी पुस्तकों पर निशान लगाए, मेरी पुस्तकों में अंडरलाइन करे। ये लोग यही किए चले जाते हैं। मुझ को इस ख़याल से ही घृणा थी कि कोई व्यक्ति मेरी पुस्तकों में अंडरलाइन करे।

मेरे पिता के एक जीजाजी प्रोफ़ेसर थे, इसलिए उनमें पुस्तकों में अंडरलाइन करने की आदत होनी ही थी। उनको इतनी सारी सुंदर पुस्तकें मिल गई थी, इसलिए जब कभी वह आया करते तो मेरी पुस्तकों पर टिप्पणियाँ लिख देते थे। मुझको उन्हें बताना पड़ता था कि यह न केवल असभ्यतापूर्ण है, ग़लत आचरण है, बल्कि इससे यह भी प्रदर्शित होता है कि आपके पास किस भाँति का मन है।

मैं पुस्तकालय से पुस्तक लाकर पढ़ना नहीं चाहता था। मैं पुस्तकालयों से लाकर पुस्तकें नहीं पढ़ता हूँ। बस इसी कारण से कि वे अंडरलाइन की हुईं, चिह्नित की गई होती हैं। किसी और व्यक्ति ने किसी बात पर बल दिया हुआ है। मैं ऐसा नहीं चाहता हूँ, क्योंकि आपके जाने बिना वह उस बात पर दिया हुआ बल, आपके मन में प्रविष्टि हो जाता है। 

यदि आप कोई पुस्तक पढ़ रहे हैं और कोई बात लाल रंग से अंडरलाइन है तो यह पंक्ति एक अलग प्रभाव छोड़ती है। आपने पूरा पृष्ठ पढ़ लिया है, लेकिन वह पंक्ति अलग प्रभाव डालती है। यह आपके मन पर एक भिन्न प्रकार की छाप छोड़ जाती है।

मुझ को किसी और द्वारा अंडरलाइन, चिह्नित पुस्तक पढ़ने से अरुचि है। मेरे लिए यह बस उसी प्रकार से है, जैसे कोई वेश्या के पास जा रहा हो। एक वेश्या उस स्त्री के अतिरिक्त और कुछ भी नहीं है जिसे अंडरलाइन और चिह्नित कर दिया गया हो। उसके प्रत्येक स्थान पर विभिन्न लोगों द्वारा भिन्न -भिन्न भाषाओं में टिप्पणियाँ लिख दी जाती हैं। आप एक अनछुई स्त्री चाहेंगे, किसी और के द्वारा रेखांकित की हुई नहीं।

मेरे लिए कोई पुस्तक मात्र एक पुस्तक नहीं है। यह एक प्रेम-संबंध है। यदि आप किसी पुस्तक पर अंडरलाइन कर देते हैं तो आपको उसका मूल्य चुकाना पड़ेगा और उसे ले जाना होगा। फिर मैं उस पुस्तक को यहाँ पर रखना नहीं चाहता हूँ, क्योंकि एक गंदी मछली सारे तालाब को गंदा कर देती है। मैं वेश्या बन चुकी पुस्तक को रखना नहीं चाहता—इसको ले लें।

वह बहुत क्रोधित हो गए, क्योंकि वह मेरी बात समझ न सके। मैंने कहा—“आप मुझे नहीं समझते हैं, क्योंकि आप मुझको नहीं जानते हैं। आप ज़रा मेरे पिता से बात करें।”

और मेरे पिता ने उनसे कहा—“यह आपका दोष है। आपने उसकी पुस्तक में रेखाएँ क्यों खींच दीं! आपने उसकी पुस्तक में टिप्पणी क्यों लिख दी। इससे आपका कौन-सा उद्देश्य पूरा हो गया, क्योंकि पुस्तक तो उसी के पुस्तकालय में रहेगी। पहली बात यह कि आपने उससे अनुमति कभी नहीं माँगी—कि आप उसकी पुस्तक पढ़ना चाहते थे।”

यदि यह उसकी चीज़ है, तो यहाँ उसकी अनुमति के बिना कुछ नहीं होता, क्योंकि यदि आप उसकी चीज़ बिना अनुमति लिए ले लेते हैं, तो वह प्रत्येक व्यक्ति की वस्तुएँ बिना अनुमति के ले जाना आरंभ कर देता है। इससे परेशानी निर्मित हो जाती है। अभी उस दिन मेरे एक मित्र ट्रेन पकड़ने जा रहे थे और वह उसका सूटकेस लेकर चला गया...

मेरे पिता के मित्र पगलाए जा रहे थे—“मेरा सूटकेस कहाँ है?”

मैंने कहा—“मुझे पता है कि वह कहाँ है, लेकिन आपके सूटकेस के भीतर मेरी पुस्तकों में से एक पुस्तक है। मुझ को आपके सूटकेस में कोई रुचि नहीं है। मैं तो बस अपनी पुस्तकों में से एक पुस्तक बचाने का प्रयास कर रहा हूँ।”

मैंने कहा—“उसे खोलो। देखो!” 
लेकिन वह हिचकिचा रहे थे, क्योंकि उन्होंने पुस्तक चुराई थी। उनके सूटकेस में पुस्तक मिल गई।

मैंने कहा—“अब आप अर्थदंड जमा कीजिए, क्योंकि यह असभ्यतापूर्ण है। आप यहाँ पर एक अतिथि थे; हमने आप का सम्मान किया, हमने आपकी सेवा की। हमने आपके लिए सब कुछ किया—आपने एक ग़रीब लड़के की पुस्तक चुरा ली, जिसके पास कोई पैसा नहीं है। एक ऐसा लड़का जिसे अपने पिता को धमकाना पड़ा कि यदि आप मुझे पैसे नहीं देंगे तो मैं चोरी करने जा रहा हूँ।” 

“फिर पूछिएगा मत कि मैंने ऐसा क्यों किया है? क्योंकि तब जहाँ कहीं से मैं चुरा सका, मैं चोरी कर लूँगा।”

ये पुस्तकें सस्ती नहीं हैं और आपने बस इसको अपने सूटकेस में रख लिया। आप मेरी आँखों में धूल नहीं झोंक सकते। मैं जब अपने कमरे में प्रवेश करता हूँ तो मैं जान लेता हूँ कि मेरी सभी पुस्तकें वहाँ पर है या नहीं, कोई ग़ायब तो नहीं है।

मेरे पिता ने मेरी पुस्तक में अंडरलाइन करने वाले प्रोफ़ेसर से कहा—“उसके साथ वैसा कभी मत कीजिएगा। यह पुस्तक ले जाइए और इसके स्थान पर इसकी नई प्रति लाकर रख दीजिएगा।”

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