इंग्लैंड में लोगों की घुमने की प्रवृत्ति इतनी प्रबल है कि लगता है, जैसे ये घूमने के पीछे पागल है। हर शनिवार को अपना घर छोड़कर ये सौ-पचास मील दूर अकेले, दुकेले या परिवार के साथ कहीं-न-कहीं भाग ही जाते हैं। साल में एक दो बार दो-दो तीन-तीन सप्ताह की यात्रा भी करते हैं। जो जहाँ जाता है वहाँ से वहाँ के चित्रों के पोस्टकार्ड अपने मित्रों को भेजता है, जो मित्रों द्वारा बड़ी शान और अभिमान के साथ रखे जाते हैं और मित्रता के क़ीमती चिन्ह समझे जाते हैं।
जो धनी हैं और जिनके पास मोटर है, वे मोटर के साथ दौड़ने वाला एक घर भी ख़रीदते हैं। वह दो पहियों पर चलने वाला बढ़िया कमरा होता है और सजा-सजाया ख़रीदा जाता है। सजावट में एक पलंग, दो कुर्सीयाँ, रसोईघर के सारे बर्तन, अलमारी, चित्र आदि होते हैं। मोटर के पीछे इसे जोड़ लेते हैं और सड़कें यहाँ बढ़िया होने के कारण मोटर इसे आराम से खींचती रहती है। कहीं चले गए, किसी खुली जगह में मोटर इसे आराम से खींचती रहती है। कहीं चले गए, किसी खुली जगह में मोटर खड़ी कर दी, पकाया-खाया, घूमे-तैरे, धूप में लेटे, रात को कमरे में सोए और छुट्टी समाप्त होते ही कामपर दौड़ पड़े। इंग्लैंड की किसी भी ख़ूबसूरत और खुली जगह में ऐसे बीस-तीस मोटर के साथ चलनेवाले कमरे खड़े देखे जा सकते हैं।
जिनके पास अधिक पैसे हैं वे फ़्रांस, जर्मनी, स्विट्जरलैंड, अमेरीका आदि की यात्रा करते हैं। जिनके पास नही है वे धीरे-धीरे पैसे इकट्ठा करते हैं और ऐसी यात्राएँ करते हैं। बड़ी यात्राएँ, बड़ी उम्र के लोग ही करते हैं, क्योंकि उस समय आमदनी अधिक हो जाती है। जवानी में या प्रारंभ करने पर तो लोग चार-पाँच पौंड ही प्रति सप्ताह पाते हैं, जिसमें केवल गुज़र-बसर का सामान इकट्ठा किया जा सकता है।
यहाँ घूमने की जगहों में ‘स्टेट फोर्ड ऑन एवन’ भी अच्छा समझा जाता है, जहाँ शेक्सपीयर पैदा हुए थे। यह जगह देखने इस देश के लोग तो जाते ही हैं, विदेश के लोग भी बहुत जाते हैं। मैंने सोचा प्राकृतिक चिकित्सकों से तो मिल ही रहा हूँ, क्यों न मैं शेक्सपीयर का स्थान भबी देख आऊँ।
एडिनबरा से लौट रहा था। वहाँ से स्टेट फोर्ड का टिकट दो पौंड में ख़रीदा। गाड़ी सुबह साढ़े दस बजे चली और स्टेट फोर्ड साढ़े चार बजे पहुँच गई। स्टेट फोर्ड कोकी पच्चीस हज़ार की आबादी का गाँव है। गाँव इसे नही कहना चाहिए, क्योंकि गाँव कहते ही अपने यहाँ के झोपड़े, कच्ची सड़कें, लाई-गट्टे की हलवाई की दुकान सामने आ जाती है। इसे बंबई की छोटी नक़ल कहा जा सकता है। बल्कि सडकों की सफ़ाई, बाहर की सजावट के हिसाब से उससे भी बढ़िया।
यात्री के लिए यहाँ एक और बड़ी सुविधा है-वह है रहने का स्थान। हिंदुस्तान में तो धर्मशाला होती है, यहाँ ऐसी कोई चीज़ नही है, पर रहने की जगह यहाँ आसानी से मिल जाती है। होटल तो जगह-जगह बहुत से होते ही हैं, उससे भीं ज़्यादा होते हैं बेड एंड प्रेरफांट स्टेसेज सोने का कमरा और सुबह नाश्ता देने वाली जगहे। वह एक अच्छा घर होता है, जिसे महिलाएँ ही चलाती है, जिन्हें गृहस्वामिनी रहते हैं। ये जगह ज़्यादा ज्ञात और होटलों से काफ़ी लंबी होती है। घर में दस-बारह कमरे रहते हैं। तीन-चार गृहस्वामीनीं अपने लिए रखती हैं, शेष भाड़े पर चलाती रहती हैं। स्टेशन से उतरते ही मैंने स्टेशन के एक कर्मचारी से पूछा “यहाँ नज़दीक कोई रहने की जगह बता सकेंगे”
“यह देखिए चौराहा, वहाँ ऐसे कई घर हैं। तीन मिनट में आप वहाँ पैदल चलकर पहुँच जाएँगे।
मुझे नज़दीक जगह इसलिए चाहिए थी कि सामान यहाँ ख़ुद ढोना पड़ता है। कुली नही मिलता और थोड़ी देर के लिए टैक्सी लेना फ़िज़ूल ख़र्ची लगती है। मेरा बैग आठ-दस सेर का था। और वह भी मुझे ढोते अखर रहा था। कभी बैग इस हाथ में लेता, कभी उसमे। मैंने दरवाज़े पर पहुँच कर घंटी बजाई। एक महिला आ उपस्थित हुई।” मुझे एक रात के लिए जगह चाहिए।’’
“दुःख है कि आज मेरे पास कोई कमरा नही है।’’ दूसरे घर गया, तीसरे घर गया और चौथे घर जाने पर भी जब यही उत्तर मिला तो मुझे लगा कि ये गृहदेवियाँ मेरे काले रंग से भड़क रही है। तो क्या मुझे यहाँ रहने रहने की जगह नही मिलेगी? ज़रा अवसाद-सा आया तभी एक पुलिसमैन दिखाई दिया। पुलिसमैन यहाँ बड़ा सहायक होता है। उसे देखते ही मैं समझ गया कि अगर उसे अपनी कठिनाई बताऊ तो वह मेरी कठिनाई दूर होने पर ही मेरा साथ छोड़ेगा। उससे जगहों के पते माँगे। उसने कहा, “यह बगल में ही तो है। यहाँ पूछ देखिए, अन्यथा दूसरे मोड़पर पाँच-सात घर और है।” उस बगल की जगह में मुझे एक कमरा मिल गया।
गृहदेवी वाली, “देखिए, कमरे के किराए और नाश्ते के 15 शिलिंग (अर्थात दस रुपए) होंगे। मैं इसीलिए बता रही हूँ कि सुबह आप बिल देते वक़्त झगड़ा न करें। आपके देश का एक युवक इसी विषय पर मुझसे झगड़ पड़ा था।’’
“आप दाम तो बहुत वाज़िब बता रही है, पर मैं नाश्ता आपसे नही लूँगा। मैं केवल फल-दूध लेता हूँ।’’
“मैं आपको फल-फूल दूँगी, आपको ताज़े फल तो नही, मुरब्बा ज़रूर मिलेगा, पर आप नाश्ता ले या न लें, ख़र्च यही होगा।’’
“आप नाश्ते की चिंता न करें, मैं आपको 15 शिलिंग ही दूँगा, मुझे आप कल सुबह एक पौंड दूध वाली चार बोतले दें और हो तो दो पौंड दूध अभी चाहिए।’’
उस बुढ़ियाने मुझे दो पौंड दूध की एक बोतल तुरंत लाकर दे दी और कमरा दिखाने ले चली। मुझे एडिनबरा में साढ़े सात शिलिंग से केवल कमरा मिला था, लंदन में 12 शिलिंग में कमरा और नाश्ता, पर वह कमरा एक छोटी-सी रेशम की बड़ी ही कलापूर्ण हल्की रज़ाई थी, नहानघर और पख़ाना भी बहुत बढ़िया था। इस्तेमाल के लिए दो सुंदर स्वच्छ मोटे तौलिए, साबुन की नई बट्टी भी थी। मैंने कमरे में सामान रखा, हाथ-मुहँ धोया, कुछ फल खाए, एक पौंड दूध पीया, कंधे पर कैमरा लटकाया और नीचे इन देवीजी की सेवा में फिर हाज़िर हुआ, “शेक्सपीयर के जन्मगृह का पता बता सकें तो बड़ी कृपा होगी।’’
“अगले चौराहे से बढिए, पहले मोड़ पर दाहिनी तरफ़ मुडिए, फिर जो चीरास्ता आए, उससे पूरब दिशा को जाइए। सौ गज पर शेक्सपीयर का जन्म गृह है।’’
“कितने मिनट में मैं वहाँ चलकर पहुँच जाऊँगा?”
“अगर रास्ता भूले नही तो चार-पाँच मिनट में।’’
मैं चल पड़ा और पाँच मिनट में उस गृह के दरवाज़े पर था। दस बारह यात्री और थे, जो खिडकियों से घर में झाँक रहे थे। इस समय सात बजे थे और घर बंद हो गया था। घर दर्शनार्थ सुबह नौ बजे से शाम को सात बजे तक खुला रहता है। शाम के सात बजे थे, पर दिन था। मैंने घर का और घर की सड़क चित्र लिया। फ़ोटो यहाँ शाम को आठ बजे तक मज़े में लिया जा सकता है, सूर्य दस बजे डूबता है, अत रोशनी आठ बजे तक ठीक फ़ोटो के लायक होती है। कई यात्रियों से बात की और एक के साथ शेक्सपीयर मेमोरियल थियेटर की ओर बढ़ चला। जिस युवक से मैं बात कर रहा था, वह ऑस्ट्रेलिया का था और दो दिनों से यहाँ था। उसने बड़े मित्रभाव से बात की और थियेटर के नज़दीक मुझे पहुँचा कर वापस चला गया। उसे 8 बजे की ट्रेन से लंदन जाना था।
थियेटर स्टेट फोर्ड ग्राम के मध्य में एक पार्क-बेनक्राफ्ट गार्डन्स में है। इस पार्क क बीच से एवन नदी बहती है। पार्क से ही नदी को पार करने के लिए पक्का पुल है। नदी के किनारे यह अमरीकी डिज़ाइन का बढ़िया थियेटर अधिकतर अमरीका के दानियों के धन से 1632 में बना था। नदी के पार से देखने पर यह बड़ा ही भव्य लगता है। सारी कारीगरी ईंटो को सजाने की है। कहीं कोर-कटाव या महराव नही है।
इसके अंदर दर्शकों और अभिनेताओं की सुख-सुविधा का बड़ा ध्यान रखा गया है। खेल यहाँ कभी-कभी होते हैं-बाहर से शौकीनों की टोली या व्यापारिक थिएट्रिकल कंपनियाँ यहाँ खेल दिखाकर अपने को धन्य मानती है।
इस समय खेल हो रहा था और एक घंटा पहले शुरू हो चुका था, पर टिकट तो कल के लिए भी नही मिला, एक सप्ताह की सारी बुकिंग हो चुकी थी। किसी तरह कल का टिकट लिया जा सकता था, पर मैं तो कल शाम को चार बजे स्टेट फोर्ड छोड़ देने वाला था, थियेटर की तस्वीर तो खींची ही। नदी में बत्तख तैर रही थी उनकी तस्वीर ली नदी में तैरते और नाव खेते लोगों की ली और दो-तीन बाग़ के फलों के भी खींचे।
इसी पार्क में जहाँ एक ओर थियेटर है, दूसरी ओर ऊँचे चबूतरे पर शेक्सपीयर की मूर्ति स्थापित की गई है। चबूतरे के चारों ओर शेक्सपीयर के नाटकों के चार विशेष पात्रों 1-बे फ़ास्ट 2-प्रिंस हॉल 3-हैमलेट 4-लेडी मेकबेथ की मूर्तियाँ हैं। लेडी मेकबर्थ की स्मृति देखते ही बनती है। वह हत्या कर चुकी है और शेक्सपीयर वहाँ तावे दार डर से खडी कराह रही है। मूर्तियों का क्या कहना मूर्तियाँ बड़ी जानदार बनाई हैं। ये चारों मूर्तियाँ चार शेक्सपीयर की मूर्ति बनाने में बारह वर्ष लगे थे। ये बनी थी पेरिस में और बनवाई थी गोवड ने। इन्होने ये मूर्तियाँ इस गाँव को 1888 में भेंट की थी और कुछ दिन बाद ही ये लोगों के दर्शनार्थ इस पार्क में स्थापित कर दी गई थी। जिस चबूतरे पर शेक्सपीयर की मूर्ति रखी हुई है उसके चारों पार्श्वों पर शेक्सपीयर की चार कविताएँ खुदी हुई हैं। निम्नलिखित कविता यहाँ मुझे बहुत जँची—
Life’s but a walking shadow,
That shuts and poets a poor prayer
His hour up on the stage
And then is heard no more
जीवन एक चलती फिरती छाया है। यह ग़रीब की प्रार्थना के समान है। छाया का अस्तित्व कहाँ है? यह तो सूर्य से संबद्ध है और कुछ समय के लिए ही संसार रुपी रंग-मंच पर दौड़-धूप करती, अभिनय करती, देखी जा सकती है। अभिनय समाप्त हो जाता है, छाया मिट जाती है और साथ ही इसका अस्तित्व भी समाप्त हो जाता है।
इस अमर नाटककार के स्मृति-स्तंभ पर जीवन, संसार और अभिनय का यह विश्लेषण मुझे बहुत भाया। मै इसके चारों ओर देख कर घूमता रहा, मूर्तियों की मुखमुद्रा को परखता रहा, फिर थोडा स्टेट फोर्ड की सड़कों पर घूमा। सड़कें पाँच-चार ही हैं। थोड़ी ही देर में सारे गाँव ओर सड़कों का भूगोल समझ में आ गया और मैं अपने स्थान पर रात के नौ बजे लौट आया।
सुबह दस बजे नहा-धोकर तथा नाश्ता कर मैं शेक्सपीयर का जन्म-गृह देखने पहुँचा। इस समय यह घर दर्शनार्थियों से भरा हुआ था। इस घर के चारो तरफ़ नए घर बन गए है, उनकी सजावट भी नई ही है, पर शेक्सपीयर के जन्म-गृह को उसके पुराने रूप में ही रखने की कोशिश की गई है। इस घर के ऊपर के एक कमरे शेक्सपीयर सन 1564 की 23 वी अप्रैल को पैदा हुए थे। नीचे के कमरे में इनके पिता दुकान करते थे और ऊपर ये लोग रहते थे। यह घर उनके पिता के बाद कई हाथों में गया पर सन 1847 में शेक्सपीयर मेमोरियल ट्रस्ट ने इसे ख़रीद लिया। जिस कमरे में शेक्सपीयर पैदा हुए थे उसमे एक चारपाई है, बिस्तर लगा है, बगल में जमीन पर एक काठ का खटोला रखा है, कुर्सी है, चिरागदान है, पर इसका यह अर्थ नहीं है कि इसी खटोले पर शेक्सपीयर खेले थे। उनका तो पुराना कुछ प्राप्त हुआ ही नहीं, पर ये चीज़ें हैं उनके ही समय की ओर इसलिए इकट्ठी की गई हैं कि दर्शनार्थियो को ज्ञात हो सके कि उस समय ऐसी ही चीज़ें व्यवहार में आती थी। इसी तरह चीज़ों से रसोईघर भी सजाया गया है, जिसमें बर्तनों के आलावा स्टूल, संदूक, सुराही, अलमारी वग़ैरह भी है। दुसरे कमरे में शेक्सपीयर के लिखे पत्र, उस समय का स्टेट फोर्ड गाँव का चित्र आदि हैं। एक अलमारी में तमग़े हैं, जो सन 1730 से 1916 तक लोगों ने बनवाकर अच्छे अभिनेताओं को दिए थे। सभी तमग़ों पर शेक्सपीयर की आकृति बनी हुई है।
सभी चीज़ें और वह घर बड़े करीने से रखा गया है। हर कमरे में हर वस्तु के संबंध में बताने वाला नियुक्त है, जो दर्शक के हर प्रश्न का उत्तर देता है और हर चीज़ के समझने में सहायक होता है।
घर के पीछे बाग है और वह भी ठीक उसी तरह रखा गया है, जिस तरह शेक्सपीयर के समय में रहा होगा।
इस घर से थोड़ी दूर पर शेक्सपीयर की दोहित्री का घर है। इस घर में शेक्सपीयर अपने अंतिम दिनों में रहे थे और सन 1616 में मरे थे। इसकी बहुत सी चीज़ें उसी समय की है। उनकी दोहित्री और उसके पति का चित्र भी है। घर में शेक्सपीयर के समय के इंग्लैंड का दर्शन कराने वाली बहुत सी चीज़ें रखी हैं, जिन्हें देखकर शेक्सपीयर के विद्यार्थी को शेक्सपीयर को समझने में बड़ी सहायता मिलती है।
सन 1630 में शेक्सपीयर वर्ष प्लेस ट्रस्ट ने यह घर भी ख़रीद लिया, जिसमें शेक्सपीयर की माँ रहती थी। वह एक बड़े किसान की लड़की थी। और उनके सात बहने थी। यह घर स्टेट फोर्ट से लगभग दस मील की दूरी पर है। इसे दिखाने के लिए बस सर्विस है। घर पुराने समय के किसान का है और इसमें बहुत से फेर बदल नहीं हुआ है। घर में घर का रसोईघर और रहने के कमरे उसी समय की चीज़ों से सजाये गए हैं और घर के पिछवाड़े एक बड़ा अहाता है। बीच में पानी का पुराना नल है। आहाते के चारो ओर पशु रखने, चारा और घास इकट्ठा करने की कोठरिया हैं। एक कमरा ऐसा भी है जिसमें सात सौ से अधिक कबूतरों के जोड़े पलते थे। पिछवाड़े का यह भाग उस समय की गाँव की चीज़ों का नुमाइशघर बना दिया गया है और उसमे आटा पीसने की चक्की किसानी के औज़ार खेल का सामान अपराधी को सजा देने के काम आने वाली चीज़ें, उस समय के रईसों की फिटन, कमरतोड़ साईकिल, दूध दुहने, दही ज़माने, मक्खन निकालने के बर्तन, तरह तरह के हल, हसियाँ, काटने निराने के खुरपे, लुहार की भाथी, उसके काम में आने वाले औज़ार आदि इकट्ठे किए गए हैं। इनमे बहुत सी चीज़ों का वर्णन शेक्सपीयर के नाटकों में आया है, अत: इन चीज़ों को देखना शेक्सपीयर के विद्यार्थी के लिए बहुत उपयोगी है।
शेक्सपीयर की यादगार में प्रतिवर्ष यहाँ बर्मिघम विश्वविद्यालय की ओर से जुलाई और अगस्त के पाँच सप्ताहों में शेक्सपीयर पर बड़े बड़े विद्वानों के बीस पचीस भाषण कराए जाते हैं और 23 अप्रैल को प्रतिवर्ष कवि का जन्मदिन मानने के लिए संसार के देशों से प्रतिनिधि इकट्ठे होते हैं।
मैंने लंदन आकर इलाहाबाद म्यूज़ियम क्यूरेटर अपने मित्र श्री सतीशचंद्र काला को ये बातें सुनाई तो वह दंग रह गए। कहने लगे बनारस का जिला इलाहाबाद म्यूज़ियम के मातहत है। मैं बनारस जिले में श्रीप्रेमचंद्र का जन्मग्रह देखने गया था। वह गिरने की अवस्था में है। मैंने सरकार को रिपोर्ट दी कि उस घर की रक्षा होनी चाहिए, पर कोई सुनवाई अबतक नहीं हुई। सरकार ने उस घर पर केवल एक तख़्ती लगवा दी है, जिस पर लिखा है—प्रेमचंद इस घर में पैदा हुए थे। और इस इमारत के ऊपर यही बात अँग्रेज़ी में लिख दी गई है। मैं श्री काला साहब से ये बातें सुनकर अपने को अपराधी अनुभव करने लगा। मैं हज़ारों मील की यात्रा कर शेक्सपीयर का स्थान तो देखने आ गया, पर उन प्रेमचंद के, जिनके उपन्यास पढकर मैंने हिंदी सीखी, जिनके उपन्यास भारत एक ग्रामवासियों का ह्रदय समझने में मेरे सहायक हुए, जिनके पात्र सूरदास को मैंने कई बार मन ही मन प्रणाम किया है जन्मग्रह की तीर्थयात्रा मैंने अभीतक नहीं की। सरकार तो जनता की ही प्रतिनिधि होती है। जैसी जनता होती है वैसी ही सरकार उसे मिलती है। जिस दिन जनता अपने साहित्यकों का सम्मान करना सीख जाएगी उस दिन कोई साहित्यकार भूखो मरेगा और न सरकार ही उसकी उपेक्षा कर सकेगी।
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grihadewi wali, “dekhiye, kamre ke kiraye aur nashte ke 15 shiling (arthat das rupae) honge main isiliye bata rahi hoon ki subah aap bil dete waqt jhagDa na karen aapke desh ka ek yuwak isi wishay par mujhse jhagaD paDa tha ’’
“ap dam to bahut wazib bata rahi hai, par main nashta aapse nahi lunga main kewal phal doodh leta hoon ’’
“main aapko phal phool dungi, aapko taze phal to nahi, murabba zarur milega, par aap nashta le ya na len, kharch yahi hoga ’’
“ap nashte ki chinta na karen, main aapko 15 shiling hi dunga, mujhe aap kal subah ek paunD doodh wali chaar botle den aur ho to do paunD doodh abhi chahiye ’’
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“agle chaurahe se baDhiye, pahle moD par dahini taraf muDiye, phir jo chirasta aaye, usse purab disha ko jaiye sau gaj par shekspiyar ka janm grih hai ’’
“kitne minat mein main wahan chalkar pahunch jaunga?”
“agar rasta bhule nahi to chaar panch minat mein ’’
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life’s but a walking shadow,
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jiwan ek chalti phirti chhaya hai ye gharib ki pararthna ke saman hai chhaya ka astitw kahan hai? ye to surya se sambaddh hai aur kuch samay ke liye hi sansar rupi rang manch par dauD dhoop karti, abhinay karti, dekhi ja sakti hai abhinay samapt ho jata hai, chhaya mit jati hai aur sath hi iska astitw bhi samapt ho jata hai
is amar natakkar ke smriti stambh par jiwan, sansar aur abhinay ka ye wishleshan mujhe bahut bhaya mai iske charon or dekh kar ghumta raha, murtiyon ki mukhmudra ko parakhta raha, phir thoDa state phorD ki saDkon par ghuma saDken panch chaar hi hain thoDi hi der mein sare ganw or saDkon ka bhugol samajh mein aa gaya aur main apne sthan par raat ke nau baje laut aaya
subah das baje nha dhokar tatha nashta kar main shekspiyar ka janm grih dekhne pahuncha is samay ye ghar darshnarthiyon se bhara hua tha is ghar ke charo taraf nae ghar ban gaye hai, unki sajawat bhi nai hi hai, par shekspiyar ke janm grih ko uske purane roop mein hi rakhne ki koshish ki gai hai is ghar ke upar ke ek kamre shekspiyar san 1564 ki 23 wi april ko paida hue the niche ke kamre mein inke pita dukan karte the aur upar ye log rahte the ye ghar unke pita ke baad kai hathon mein gaya par san 1847 mein shekspiyar memoriyal trast ne ise kharid liya jis kamre mein shekspiyar paida hue the usme ek charpai hai, bistar laga hai, bagal mein jamin par ek kath ka khatola rakha hai, kursi hai, chiragadan hai, par iska ye arth nahin hai ki isi khatole par shekspiyar khele the unka to purana kuch prapt hua hi nahin, par ye chizen hain unke hi samay ki or isliye ikatthi ki gai hain ki darshnarthiyo ko gyat ho sake ki us samay aisi hi chizen wywahar mein aati thi isi tarah chizon se rasoighar bhi sajaya gaya hai, jismen bartnon ke alawa stool, sanduk, surahi, almari waghairah bhi hai dusre kamre mein shekspiyar ke likhe patr, us samay ka state phorD ganw ka chitr aadi hain ek almari mein tamghe hain, jo san 1730 se 1916 tak logon ne banwakar achchhe abhinetaon ko diye the sabhi tamghon par shekspiyar ki akriti bani hui hai
sabhi chizen aur wo ghar baDe karine se rakha gaya hai har kamre mein har wastu ke sambandh mein batane wala niyukt hai, jo darshak ke har parashn ka uttar deta hai aur har cheez ke samajhne mein sahayak hota hai
ghar ke pichhe bag hai aur wo bhi theek usi tarah rakha gaya hai, jis tarah shekspiyar ke samay mein raha hoga
is ghar se thoDi door par shekspiyar ki dohitri ka ghar hai is ghar mein shekspiyar apne antim dinon mein rahe the aur san 1616 mein mare the iski bahut si chizen usi samay ki hai unki dohitri aur uske pati ka chitr bhi hai ghar mein shekspiyar ke samay ke inglainD ka darshan karane wali bahut si chizen rakhi hain, jinhen dekhkar shekspiyar ke widyarthi ko shekspiyar ko samajhne mein baDi sahayata milti hai
san 1630 mein shekspiyar warsh ples trast ne ye ghar bhi kharid liya, jismen shekspiyar ki man rahti thi wo ek baDe kisan ki laDki thi aur unke sat bahne thi ye ghar state phort se lagbhag das meel ki duri par hai ise dikhane ke liye bus serwice hai ghar purane samay ke kisan ka hai aur ismen bahut se pher badal nahin hua hai ghar mein ghar ka rasoighar aur rahne ke kamre usi samay ki chizon se sajaye gaye hain aur ghar ke pichhwaDe ek baDa ahata hai beech mein pani ka purana nal hai ahate ke charo or pashu rakhne, chara aur ghas ikattha karne ki kothariya hain ek kamra aisa bhi hai jismen sat sau se adhik kabutron ke joDe palte the pichhwaDe ka ye bhag us samay ki ganw ki chizon ka numaishghar bana diya gaya hai aur usme aata pisne ki chakki kisani ke auzar khel ka saman apradhi ko saja dene ke kaam aane wali chizen, us samay ke raison ki phitan, kamartoD saikil, doodh duhne, dahi zamane, makkhan nikalne ke bartan, tarah tarah ke hal, hasiyan, katne nirane ke khurpe, luhar ki bhathi, uske kaam mein aane wale auzar aadi ikatthe kiye gaye hain inme bahut si chizon ka warnan shekspiyar ke natkon mein aaya hai, atah in chizon ko dekhana shekspiyar ke widyarthi ke liye bahut upyogi hai
shekspiyar ki yadgar mein pratiwarsh yahan barmigham wishwawidyalay ki or se julai aur august ke panch saptahon mein shekspiyar par baDe baDe widwanon ke bees pachis bhashan karaye jate hain aur 23 april ko pratiwarsh kawi ka janmdin manne ke liye sansar ke deshon se pratinidhi ikatthe hote hain
mainne landan aakar allahabad myuziyam kyuretar apne mitr shri satishchandr kala ko ye baten sunai to wo dang rah gaye kahne lage banaras ka jila allahabad myuziyam ke matahat hai main banaras jile mein shripremchandr ka janmagrah dekhne gaya tha wo girne ki awastha mein hai mainne sarkar ko report di ki us ghar ki rakhsha honi chahiye, par koi sunwai abtak nahin hui sarkar ne us ghar par kewal ek takhti lagwa di hai, jis par likha hai—premchandr is ghar mein paida hue the aur is imarat ke upar yahi baat angrezi mein likh di gai hai main shri kala sahab se ye baten sunkar apne ko apradhi anubhaw karne laga main hazaron meel ki yatra kar shekspiyar ka sthan to dekhne aa gaya, par un premchand ke, jinke upanyas paDhkar mainne hindi sikhi, jinke upanyas bharat ek gramwasiyon ka hrday samajhne mein mere sahayak hue, jinke patr surdas ko mainne kai bar man hi man parnam kiya hai janmagrah ki tirthyatra mainne abhitak nahin ki sarkar to janta ki hi pratinidhi hoti hai jaisi janta hoti hai waisi hi sarkar use milti hai jis din janta apne sahitykon ka samman karna seekh jayegi us din koi sahityakar bhukho marega aur na sarkar hi uski upeksha kar sakegi
inglainD mein logon ki ghumne ki prawrtti itni prabal hai ki lagta hai, jaise ye ghumne ke pichhe pagal hai har shaniwar ko apna ghar chhoDkar ye sau pachas meel door akele, dukele ya pariwar ke sath kahin na kahin bhag hi jate hain sal mein ek do bar do do teen teen saptah ki yatra bhi karte hain jo jahan jata hai wahan se wahan ke chitron ke postakarD apne mitron ko bhejta hai, jo mitron dwara baDi shan aur abhiman ke sath rakhe jate hain aur mitrata ke qimti chinh samjhe jate hain
jo dhani hain aur jinke pas motor hai, we motor ke sath dauDne wala ek ghar bhi kharidte hain wo do pahiyon par chalne wala baDhiya kamra hota hai aur saja sajaya kharida jata hai sajawat mein ek palang, do kursiyan, rasoighar ke sare bartan, almari, chitr aadi hote hain motor ke pichhe ise joD lete hain aur saDke yahan baDhiya hone ke karan motor ise aram se khinchti rahti hai kahin chale gaye, kisi khuli jagah mein motor ise aram se khinchti rahti hai kahin chale gaye, kisi khuli jagah mein motor khaDi kar di, pakaya khaya, ghume taire, dhoop mein lete, raat ko kamre mein soe aur chhutti samapt hote hi kampar dauD paDe inglainD ki kisi bhi khubsurat aur khuli jagah mein aise bees tees motor ke sath chalnewale kamre khaDe dekhe ja sakte hain
jinke pas adhik paise hain we frans, jarmni, switjarlainD, amerika, aadi ki yatra karte hain jinke pas nahi hai we dhire dhire paise ikattha karte hain aur aisi yatrayen karte hain baDi yatrayen, baDi umr ke log hi karte hain, kyonki us samay amdani adhik ho jati hai jawani mein ya prarambh karne par to log chaar panch paunD hi prati saptah pate hain, jismen kewal guzar basar ka saman ikattha kiya ja sakta hai
yahan ghumne ki jaghon mein ‘state phorD on ewan’ bhi achchha samjha jata hai, jahan shekspiyar paida hue the ye jagah dekhne is desh ke log to jate hi hain, widesh ke log bhi bahut jate hain mainne socha prakritik chikitskon se to mil hi raha hoon, kyon na main shekspiyar ka sthan bhabi dekh aun
eDinawra se laut raha tha wahan se state phorD ka ticket do paunD mein kharida gaDi subah saDhe das baje chali aur state phorD saDhe chaar baje pahunch gai state phorD koki pachchis hazar ki abadi ka ganw hai ganw ise nahi kahna chahiye, kyonki ganw kahte hi apne yahan ke jhopDe, kachchi saDken, lai gatte ki halwai ki dukan samne aa jati hai ise bambai ki chhoti naqal kaha ja sakta hai balki saDkon ki safai, bahar ki sajawat ke hisab se usse bhi baDhiya
yatri ke liye yahan ek aur baDi suwidha hai wo hai rahne ka sthan hindustan mein to dharmshala hoti hai, yahan aisi koi cheez nahi hai, par rahne ki jagah yahan asani se mil jati hai hotel to jagah jagah bahut se hote hi hain, usse bheen zyada hote hain bed enD prerphant stesej sone ka kamra aur subah nashta dene wali jaghe wo ek achchha ghar hota hai, jise mahilayen hi chalati hai, jinhen grihaswamini rahte hain ye jagah zyada gyat aur hotlon se kafi lambi hoti hai ghar mein das barah kamre rahte hain teen chaar grihaswaminin apne liye rakhti hain, shesh bhaDe par chalati rahti hain station se utarte hi mainne station ke ek karmachari se puchha “yahan nazdik koi rahne ki jagah bata sakenge”
“yah dekhiye chauraha, wahan aise kai ghar hain teen minat mein aap wahan paidal chalkar pahunch jayenge
mujhe nazdik jagah isliye chahiye thi ki saman yahan khu Dhona paDta hai kuli nahi milta aur thoDi der ke liye taxi lena fizul kharchi lagti hai mera bag aath das ser ka tha aur wo bhi mujhe Dhote akhar raha tha kabhi bag is hath mein leta, kabhi usme mainne darwaze par pahunch kar ghanti bajai ek mahila aa upasthit hui ” mujhe ek raat ke liye jagah chahiye ’’
“duःkh hai ki aaj mere pas koi kamra nahi hai ’’ dusre ghar gaya, tisre ghar gaya aur chauthe ghar jane par bhi jab yahi uttar mila to mujhe laga ki ye grihdewiyan mere kale rang se bhaDak rahi hai to kya mujhe yahan rahne rahne ki jagah nahi milegi? zara awsad sa aaya tabhi ek pulismain dikhai diya pulismain yahan baDa sahayak hota hai use dekhte hi main samajh gaya ki agar use apni kathinai batau to wo meri kathinai door hone par hi mera sath chhoDega usse jaghon ke pate mange usne kaha, “yah bagal mein hi to hai yahan poochh dekhiye, anyatha dusre moDpar panch sat ghar aur hai ” us bagal ki jagah mein mujhe ek kamra mil gaya
grihadewi wali, “dekhiye, kamre ke kiraye aur nashte ke 15 shiling (arthat das rupae) honge main isiliye bata rahi hoon ki subah aap bil dete waqt jhagDa na karen aapke desh ka ek yuwak isi wishay par mujhse jhagaD paDa tha ’’
“ap dam to bahut wazib bata rahi hai, par main nashta aapse nahi lunga main kewal phal doodh leta hoon ’’
“main aapko phal phool dungi, aapko taze phal to nahi, murabba zarur milega, par aap nashta le ya na len, kharch yahi hoga ’’
“ap nashte ki chinta na karen, main aapko 15 shiling hi dunga, mujhe aap kal subah ek paunD doodh wali chaar botle den aur ho to do paunD doodh abhi chahiye ’’
us buDhiyane mujhe do paunD doodh ki ek botal turant lakar de di aur kamra dikhane le chali mujhe eDinawra mein saDhe sat shiling se kewal kamra mila tha, landan mein 12 shiling mein kamra aur nashta, par wo kamra ek chhoti si resham ki baDi hi kalapurn halki razai thi, nahanaghar aur pakhana bhi bahut baDhiya tha istemal ke liye do sundar swachchh mote tauliye, sabun ki nai batti bhi thi mainne kamre mein saman rakha, hath muhan dhoya, kuch phal khaye, ek paunD doodh piya, kandhe par camera latkaya aur niche in dewiji ki sewa mein phir hazir hua, “shekspiyar ke janmgrih ka pata bata saken to baDi kripa hogi ’’
“agle chaurahe se baDhiye, pahle moD par dahini taraf muDiye, phir jo chirasta aaye, usse purab disha ko jaiye sau gaj par shekspiyar ka janm grih hai ’’
“kitne minat mein main wahan chalkar pahunch jaunga?”
“agar rasta bhule nahi to chaar panch minat mein ’’
main chal paDa aur panch minat mein us grih ke darwaze par tha das barah yatri aur the, jo khiDakiyon se ghar mein jhank rahe the is samay sat baje the aur ghar band ho gaya tha ghar darshanarth subah nau baje se sham ko sat baje tak khula rahta hai sham ke sat baje the, par din tha mainne ghar ka aur ghar ki saDak chitr liya photo yahan sham ko aath baje tak maze mein liya ja sakta hai, surya das baje Dubta hai, at roshni aath baje tak theek photo ke layak hoti hai kai yatriyon se baat ki aur ek ke sath shekspiyar memoriyal thiyetar ki or baDh chala jis yuwak se main baat kar raha tha, wo ऑstreliya ka tha aur do dinon se yahan tha usne baDe mitrabhaw se baat ki aur thiyetar ke nazdik mujhe pahuncha kar wapas chala gaya use 8 baje ki train se landan jana tha
thiyetar state phorD gram ke madhya mein ek park benakrapht garDans mein hai is park k beech se ewan nadi bahti hai park se hi nadi ko par karne ke liye pakka pul hai nadi ke kinare ye americi design ka baDhiya thiyetar adhiktar america ke daniyon ke dhan se 1632 mein bana tha nadi ke par se dekhne par ye baDa hi bhawy lagta hai sari karigari into ko sajane ki hai kahin kor kataw ya mahraw nahi hai
iske andar darshkon aur abhinetaon ki sukh suwidha ka baDa dhyan rakha gaya hai khel yahan kabhi kabhi hote hain bahar se shaukinon ki toli ya wyaparik thiyetrikal kampaniyan yahan khel dikhakar apne ko dhany manti hai
is samay khel ho raha tha aur ek ghanta pahle shuru ho chuka tha, par ticket to kal ke liye bhi nahi mila, ek saptah ki sari buking ho chuki thi kisi tarah kal ka ticket liya ja sakta tha, par main to kal sham ko chaar baje state phorD chhoD dene wala tha, thiyetar ki taswir to khinchi hi nadi mein battakh tair rahi thi unki taswir li nadi mein tairte aur naw khete logon ki li aur do teen bagh ke phalon ke bhi khinche
isi park mein jahan ek or thiyetar hai, dusri or unche chabutre par shekspiyar ki murti sthapit ki gai hai chabutre ke charon or shekspiyar ke natkon ke chaar wishesh patron 1 be fast 2 prins hall 3 haimlet 4 leDi mekbeth ki murtiyan hain leDi mekbarth ki smriti dekhte hi banti hai wo hattya kar chuki hai aur shekspiyar wahan tawe dar Dar se khaDi karah rahi hai murtiyon ka kya kahna murtiyan baDi janadar banai hain ye charon murtiyan chaar shekspiyar ki murti banane mein barah warsh lage the ye bani thi peris mein aur banwai thi gowaD ne inhone ye murtiyan is ganw ko 1888 mein bhent ki thi aur kuch din baad hi ye logon ke darshanarth is park mein sthapit kar di gai thi jis chabutre par shekspiyar ki murti rakhi hui hai uske charon parshwon par shekspiyar ki chaar kawitayen khudi hui hain nimnalikhit kawita yahan mujhe bahut janchi—
life’s but a walking shadow,
that shuts and poets a poor prayer
his hour up on the stage
and then is heard no more
jiwan ek chalti phirti chhaya hai ye gharib ki pararthna ke saman hai chhaya ka astitw kahan hai? ye to surya se sambaddh hai aur kuch samay ke liye hi sansar rupi rang manch par dauD dhoop karti, abhinay karti, dekhi ja sakti hai abhinay samapt ho jata hai, chhaya mit jati hai aur sath hi iska astitw bhi samapt ho jata hai
is amar natakkar ke smriti stambh par jiwan, sansar aur abhinay ka ye wishleshan mujhe bahut bhaya mai iske charon or dekh kar ghumta raha, murtiyon ki mukhmudra ko parakhta raha, phir thoDa state phorD ki saDkon par ghuma saDken panch chaar hi hain thoDi hi der mein sare ganw or saDkon ka bhugol samajh mein aa gaya aur main apne sthan par raat ke nau baje laut aaya
subah das baje nha dhokar tatha nashta kar main shekspiyar ka janm grih dekhne pahuncha is samay ye ghar darshnarthiyon se bhara hua tha is ghar ke charo taraf nae ghar ban gaye hai, unki sajawat bhi nai hi hai, par shekspiyar ke janm grih ko uske purane roop mein hi rakhne ki koshish ki gai hai is ghar ke upar ke ek kamre shekspiyar san 1564 ki 23 wi april ko paida hue the niche ke kamre mein inke pita dukan karte the aur upar ye log rahte the ye ghar unke pita ke baad kai hathon mein gaya par san 1847 mein shekspiyar memoriyal trast ne ise kharid liya jis kamre mein shekspiyar paida hue the usme ek charpai hai, bistar laga hai, bagal mein jamin par ek kath ka khatola rakha hai, kursi hai, chiragadan hai, par iska ye arth nahin hai ki isi khatole par shekspiyar khele the unka to purana kuch prapt hua hi nahin, par ye chizen hain unke hi samay ki or isliye ikatthi ki gai hain ki darshnarthiyo ko gyat ho sake ki us samay aisi hi chizen wywahar mein aati thi isi tarah chizon se rasoighar bhi sajaya gaya hai, jismen bartnon ke alawa stool, sanduk, surahi, almari waghairah bhi hai dusre kamre mein shekspiyar ke likhe patr, us samay ka state phorD ganw ka chitr aadi hain ek almari mein tamghe hain, jo san 1730 se 1916 tak logon ne banwakar achchhe abhinetaon ko diye the sabhi tamghon par shekspiyar ki akriti bani hui hai
sabhi chizen aur wo ghar baDe karine se rakha gaya hai har kamre mein har wastu ke sambandh mein batane wala niyukt hai, jo darshak ke har parashn ka uttar deta hai aur har cheez ke samajhne mein sahayak hota hai
ghar ke pichhe bag hai aur wo bhi theek usi tarah rakha gaya hai, jis tarah shekspiyar ke samay mein raha hoga
is ghar se thoDi door par shekspiyar ki dohitri ka ghar hai is ghar mein shekspiyar apne antim dinon mein rahe the aur san 1616 mein mare the iski bahut si chizen usi samay ki hai unki dohitri aur uske pati ka chitr bhi hai ghar mein shekspiyar ke samay ke inglainD ka darshan karane wali bahut si chizen rakhi hain, jinhen dekhkar shekspiyar ke widyarthi ko shekspiyar ko samajhne mein baDi sahayata milti hai
san 1630 mein shekspiyar warsh ples trast ne ye ghar bhi kharid liya, jismen shekspiyar ki man rahti thi wo ek baDe kisan ki laDki thi aur unke sat bahne thi ye ghar state phort se lagbhag das meel ki duri par hai ise dikhane ke liye bus serwice hai ghar purane samay ke kisan ka hai aur ismen bahut se pher badal nahin hua hai ghar mein ghar ka rasoighar aur rahne ke kamre usi samay ki chizon se sajaye gaye hain aur ghar ke pichhwaDe ek baDa ahata hai beech mein pani ka purana nal hai ahate ke charo or pashu rakhne, chara aur ghas ikattha karne ki kothariya hain ek kamra aisa bhi hai jismen sat sau se adhik kabutron ke joDe palte the pichhwaDe ka ye bhag us samay ki ganw ki chizon ka numaishghar bana diya gaya hai aur usme aata pisne ki chakki kisani ke auzar khel ka saman apradhi ko saja dene ke kaam aane wali chizen, us samay ke raison ki phitan, kamartoD saikil, doodh duhne, dahi zamane, makkhan nikalne ke bartan, tarah tarah ke hal, hasiyan, katne nirane ke khurpe, luhar ki bhathi, uske kaam mein aane wale auzar aadi ikatthe kiye gaye hain inme bahut si chizon ka warnan shekspiyar ke natkon mein aaya hai, atah in chizon ko dekhana shekspiyar ke widyarthi ke liye bahut upyogi hai
shekspiyar ki yadgar mein pratiwarsh yahan barmigham wishwawidyalay ki or se julai aur august ke panch saptahon mein shekspiyar par baDe baDe widwanon ke bees pachis bhashan karaye jate hain aur 23 april ko pratiwarsh kawi ka janmdin manne ke liye sansar ke deshon se pratinidhi ikatthe hote hain
mainne landan aakar allahabad myuziyam kyuretar apne mitr shri satishchandr kala ko ye baten sunai to wo dang rah gaye kahne lage banaras ka jila allahabad myuziyam ke matahat hai main banaras jile mein shripremchandr ka janmagrah dekhne gaya tha wo girne ki awastha mein hai mainne sarkar ko report di ki us ghar ki rakhsha honi chahiye, par koi sunwai abtak nahin hui sarkar ne us ghar par kewal ek takhti lagwa di hai, jis par likha hai—premchandr is ghar mein paida hue the aur is imarat ke upar yahi baat angrezi mein likh di gai hai main shri kala sahab se ye baten sunkar apne ko apradhi anubhaw karne laga main hazaron meel ki yatra kar shekspiyar ka sthan to dekhne aa gaya, par un premchand ke, jinke upanyas paDhkar mainne hindi sikhi, jinke upanyas bharat ek gramwasiyon ka hrday samajhne mein mere sahayak hue, jinke patr surdas ko mainne kai bar man hi man parnam kiya hai janmagrah ki tirthyatra mainne abhitak nahin ki sarkar to janta ki hi pratinidhi hoti hai jaisi janta hoti hai waisi hi sarkar use milti hai jis din janta apne sahitykon ka samman karna seekh jayegi us din koi sahityakar bhukho marega aur na sarkar hi uski upeksha kar sakegi
स्रोत :
पुस्तक : विठ्ठलदास मोदी की यूरोप यात्रा (पृष्ठ 88)
हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी
‘हिन्दवी डिक्शनरी’ हिंदी और हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों के शब्दों का व्यापक संग्रह है। इसमें अंगिका, अवधी, कन्नौजी, कुमाउँनी, गढ़वाली, बघेली, बज्जिका, बुंदेली, ब्रज, भोजपुरी, मगही, मैथिली और मालवी शामिल हैं। इस शब्दकोश में शब्दों के विस्तृत अर्थ, पर्यायवाची, विलोम, कहावतें और मुहावरे उपलब्ध हैं।