1 जुलाई का पूरा दिन हमने ल्यूबरत्से के एक सामूहिक खेत (कोलखोज़) में बिताया। ल्यूबरत्से कीव से लगभग 36 मील है। इस खेत का नाम था 'स्लाहेत दो कोम्यूनिज़्म', अर्थात् 'साम्यवाद की ओर'। सामूहिक खेत के अध्यक्ष ने हमारा स्वागत किया और फ़ार्म की सारी प्रवत्तियों की विस्तृत जानकारी दी। हमेशा की तरह उन्होंने कई आँकड़े पेश किये, जो काफ़ी प्रभावोत्पादक थे।
इस फ़ार्म पर 1200 मकान है, जिनकी जनसंख्या लगभग 4000 है। संपूर्ण फ़ार्म लगभग 15000 एकड़ भूमि पर स्थित है, जिसमें से 10000 एकड़ ज़मीन पर खेती की जाती है। 500 आदमी और 1100 स्त्रियाँ खेत में काम करते है। फ़ार्म पर एक माध्यमिक स्कूल, एक छोटा-सा दवाख़ाना, एक बच्चों का बग़ीचा; नौ सहकारी दुकाने और एक उपभोक्ता-सहकारी समिति है। एक क्लब भी उस समय बन रहा था। साथ ही फ़ार्म के पास दस कंबाइन मशीनें, 23 ट्रैक्टर, जानवरों का चारा मिलाने वाली तीन मशीनें, 23 ट्रकें और मोटरें, चुकदर काटने की चार मशीनें आदि भी है। 371 हॉर्सपावर की 76 बिजली की मोटरें, घोड़े, बैल आदि है सो अलग।
कुल काम का लगभग 65 प्रतिशत काम मशीनों द्वारा ही किया जाता है। अनाज की खेती के अलावा वे पशु-पालन, सब्ज़ी व हरी घास भी पैदा करते है। कुल कृषियोग्य भूमि में से 100 एकड़ भूमि चुकदर की खेती के लिए सुरक्षित है। चुकदर से वे चीनी बनाते है। शेष में से 2000 एकड़ पर वे गेहूँ की खेती करते है और बाक़ी बची ज़मीन अन्य खाद्यान्नों तथा आलू आदि सब्ज़ियों के लिए है। उनका प्रति एकड़ उत्पादन इस प्रकार है—गेहूँ 50 सेर, मक्का 17 सेर, चुकदर 12500 सेर, और आलू 7000 सेर। पशुओ में उनके पास 2000 गायें थी, जिनमें से 600 उस समय दूध देती थी। 2000 सूअर, 1000 भेडें, 10000 बत्तख़ें और मुर्ग़ाबिया तथा 500 छत्ते शहद की मक्खियों के थे। प्रत्येक गाय औसतन 15-16 सेर दूध प्रतिदिन देती थी। साल भर में उसका औसत दूध 3700 सेर बैठता था। उनका विचार था कि वे यह औसत 4000 सेर तक बढ़ा लेंगे। पूरे फ़ार्म की डेयरी का कुल वार्षिक उत्पादन इस प्रकार था—20 लाख सेर दूध, 27 लाख सेर मांस और 136000 अंडे।
फ़ार्म के संपूर्ण उत्पादन को तीन भागों में बाँट दिया जाता है। एक भाग तो सरकार को सौंप दिया जाता है, दूसरा भाग फ़ार्म के लिए रख लिया जाता है और तीसरा भाग फ़ार्म पर काम करने वाले परिवारों में बाँट दिया जाता है। ज्वार और बाजरा मुख्यतः पशुओं को खिला दिया जाता है। गायों को थोड़ा गेहूँ भी खिलाया जाता है। घटिया क़िस्म का चुकदर और तरबूज़ भी पशुओं के काम आता है। किसान अपने उत्पादन का कुछ भाग खुले बाज़ार में बेच सकते हैं। शेष उत्पादन सरकार की मंडी-समिति के द्वारा ही बेचा जाता है। स्वयं अपनी ज़मीन के उत्पादन पर किसान का ही स्वामित्व होता है। साथ ही सामूहिक खेत के उत्पादन में से भी उसे कुछ भाग मिलता है। सोवियत क़ानून के अनुसार सारी ज़मीन राष्ट्र की, अर्थात् जनता की होती है। ज़मीन का कुछ भाग लोगों को दे दिया जाता है, लेकिन केवल सामूहिक खेतों के उपयोग के लिए। सामूहिक खेत पर रहने वाले प्रत्येक परिवार को एक एकड़ ज़मीन दी जाती है, भले ही परिवार में कितने ही सदस्य हों। यदि किसान फ़ार्म छोड़कर शहर में अन्य धंधा करने जाना चाहता है, तो उसकी ज़मीन सामूहिक खेत में शामिल कर ली जाती है। लेकिन यदि उस किसान का परिवार फ़ार्म पर ही रहना चाहता है तो वह ज़मीन परिवार के पास ही रहती है। इस प्रकार मिली ज़मीन पर यदि किसान मकान बनवा लेता है, तो उस मकान पर किसान का ही स्वामित्व रहेगा। यदि किसान पास के शहर में अन्य धंधा करता है और उस मकान में रहना चाहता है तो वह रह सकता है।
यदि किसान व्यक्तिगत खेत पर अधिक मेहनत करे तो उसकी आय बढ़ जाती है। आमतौर पर रूसी किसान हैं भी मेहनती। खेती में सामूहिक फ़ार्म से उन्हें घोड़ों, ट्रैक्टरों और अन्य मशीनों की सहायता मिल जाती है। किसान की मृत्यु के बाद उसकी संपत्ति पर उसके परिवार का अधिकार हो जाता है और उसकी पत्नी परिवार की मुखिया बनती है। जब कोई युवक किसान विवाह करता है तो उसे नई ज़मीन मिलती है और वह अपने नए परिवार के साथ नया घर बसाता है।
सामूहिक खेत की कुल आय का 60 प्रतिशत सदस्यों में बाँट दिया जाता है। प्रत्येक परिवार ने कुल कितने घंटे और कितना काम किया, इस आधार पर यह वितरण किया जाता है। अलग-अलग प्रकार के कार्यों के लिए अलग-अलग दरें निश्चित हैं। सामूहिक फ़ार्म से प्रत्येक परिवार को औसतन 18000 से 20000 रूबल वार्षिक की आय हो जाती है। इसमें वस्तुओं की शक्ल में जो आय होती है, वह भी सम्मिलित है। इसके अलावा उसकी निजी आय होती है सो अलग। अधिक आय के लिए अतिरिक्त काम करने के लिए वे स्वतंत्र हैं। इसका एक ठोस उदाहरण हमारे देखने में आया। तीन जनों का एक परिवार था, जिसमें एक लड़की और उसके माता-पिता थे। वे तीनों जने काम करते थे और उनकी कुल आय 37000 रूबल थी। प्रत्येक व्यक्ति के लिए सप्ताह में छः दिन और प्रतिदिन आठ घंटे काम करना अनिवार्य है।
खेत की कुल आय का 60 प्रतिशत सदस्यों के बीच बटने के बाद शेष 40 प्रतिशत में से 20 प्रतिशत टूट-फूट की मरम्मत व नए निवेश (इनवेस्टमेंट) के लिए सुरक्षित रहता है। यह राशि मुख्यतः भवन निर्माण, मशीन, पशु, आदि पर ख़र्च की जाती है। 12 प्रतिशत एक विशेष कोष में चला जाता है। यह कोष सामूहिक खेत के वृद्ध सदस्यों की सहायता के लिए इकट्ठा किया जाता है और इसकी राशि वृद्ध सदस्यों को पेंशन के रूप में मिलती है। 6 प्रतिशत राशि रासायनिक पदार्थों, पेट्रोल, तेल आदि पर ख़र्च हो जाती है और शेष 2 प्रतिशत सांस्कृतिक कोष में जमा हो जाती है।
सामूहिक फ़ार्म सरकार को 8 प्रतिशत आयकर देता है। यह कर 'जनता की ज़मीन' का उपयोग करने के मुआवज़े के रूप में दिया जाता है। अन्य कोई भूमि-कर उन्हें नहीं देना पड़ता। प्रत्येक किसान अपना निजी आयकर देता है। जिस वर्ष हम वहाँ थे, उस वर्ष और उसके एक वर्ष पहले का मिलाकर, सामूहिक फ़ार्म ने सब प्रकार के करों के 685000 रूबल शासन को दिए, जिसमें 700000 रूबल कृषि कर और 285000 रूबल स्वेच्छा से दिया गया सुरक्षा-कर व बीमा राशि थी।
फ़ार्म के सब सदस्यों को मिलाकर एक सामान्य समिति बनती है, जो संपूर्ण फ़ार्म की प्रधान होती है। अपनी बैठक में यह समिति अपना सभापति, व्यवस्थापक-मंडल, और नियंत्रण आयोग (कंट्रोल कमीशन) का सभापति चुनती है। आने वाले वर्ष का उत्पादन कार्यक्रम भी यही समिति प्रतिम रूप से स्वीकार करती है। वर्ष में तीन-चार बार इस समिति की बैठक होती है और वह चाहे तो फ़ार्म के विधान में परिवर्तन कर सकती है। नियंत्रण-आयोग इस समिति के सामने अपनी रिपोर्ट पेश करता है। व्यवस्थापक-मंडल और नियंत्रण-आयोग की बैठके महीने में कम-से-कम दो बार होती है। उत्पादन के सुनियंत्रण के उद्देश्य से नियंत्रण-आयोग कई छोटे-छोटे विभागों में बँटा होता है और प्रत्येक विभाग के अधीन पाँच ब्रिगेड होती है।
इस आयोग के सभापति, उपसभापति तथा अन्य विशेषज्ञ फ़ार्म के वैतनिक कार्यकर्ता होते हैं। व्यवस्थापक-मंडल में इक्कीस सदस्य हैं, लेकिन वास्तव में इनमें से कुल छः सदस्य ही व्यवस्था आदि का काम करते है। इन छः सदस्यों को खेतों में काम नहीं करना पड़ता और इन्हें फ़ार्म से वेतन मिलता है। लेकिन नियंत्रण-आयोग के सदस्यों को स्वयं खेती का काम करना पड़ता है।
तथ्यों और आकड़ों की जानकारी प्राप्त करके हम खेत को प्रत्यक्ष देखने के लिए निकले। इसका विस्तार वहुत विशाल था। हर जगह हमें मोटरों में बैठकर ही जाना पड़ा। फ़ार्म को चार या पाँच मुख्य केंद्रों में बाँट दिया गया है। प्रत्येक केंद्र पर कर्मचारियों के रहने के मकान, मशीनें और काम करने के शेड और पशुशालाएँ हैं। हर केंद्र अपने आस-पास के क्षेत्र का काम संभालता है।
हम सामूहिक खेत के एक-दो सदस्यों के मकानों में भी गए। घर मामूली थे, जैसे हमारे यहाँ किसानों के खेतों पर होते है। आब-ओ-हवा और रहन-सह्न के कारण जो अंतर होता है, बस उतना ही अंतर था। साधारण कच्चे मकान थे, पड़ोस के कमरे में जानवरों के बाँधने की जगह थी और घर में आस-पास खेत के औज़ार वग़ैरह पड़े थे।
दूसरी जगहों की भाँति यहाँ के किसान भी भले थे और उन्होंने हमारा हार्दिक स्वागत किया। भोजन के समय तक हम इतना घूमे कि काफ़ी थक गए थे। भोजन फ़ार्म के प्रध्यक्ष के साथ ही किया। फ़ार्म पर पुछः बूँदा-बादी हो रही थी, इसलिए अंदर बैठकर ही डटकर खाना खाया। अगर बाहर बैठ सके होते तो अधिक मज़ा आता। अध्यक्ष और अन्य किसान बड़े परिश्रमी, हट्ठे-कट्टे और ताक़तवर मालूम हुए। उनका खाना-पीना भी अच्छा था। हँसी-मज़ाक़ सब पसंद करते थे। बात-बात पर ठहाके लगाते थे। युक्रेन के निवासियों की ख़ुश-मिज़ाजी और विनोदप्रियता प्रसिद्ध है। वे सदा प्रसन्न रहते हैं।
मैं तो कुछ आवश्यक कार्यों के कारण जल्दी भारत वापस आ गया था। हमारे प्रतिनिधि-मंडल के अन्य सदस्य वहीं रह गए थे। कुछ दिनों बाद जब वे वापस लौटे तो उन्होंने अपनी रिपोर्ट मुझे दी। उन्होंने बताया कि मेरे रवाना होने के बाद दोपहर को उन्हें उज़बेकिस्तान के उनीज़ाबाद का कार्ल मार्क्स सामूहिक फ़ार्म दिखाने ले जाया गया। यह फ़ार्म ताशक़न्द से कुछ ही मील की दूरी पर कालीनिन ज़िले में है। इस फ़ार्म पर ख़ासकर सब्ज़ी पैदा की जाती है। सन 1657 में यहाँ पर 17000 टन सब्ज़ी पैदा हुई थी। यह फ़ार्म कुल 3688 एकड़ भूमि पर फैला हुआ है। यहाँ पर 1000 व्यक्ति काम करते हैं—560 परिवारों के 600 पुरुष और 400 स्त्रियाँ। इनमें से 75 प्रतिशत परिवारों ने अपने निजी मकान बना लिए हैं। सन 1957 में इस फ़ार्म में एक करोड़ रूबल का लाभ हुआ। हर किसान को काम के प्रत्येक दिन की मज़दूरी 21 रूबल के हिसाब से मिली। इसके अलावा प्रतिदिन नौ किलोग्राम आलू और तीन किलोग्राम चावल मिलते थे। फ़ार्म की इस आय में से 60 प्रतिशत किसानों को बाँट दिया गया, 10 प्रतिशत सरकारी करों में चला गया, और 15-20 प्रतिशत के खेती के नए औज़ार ख़रीदे गए।
इसके दो दिन बाद प्रतिनिधि-मंडल यानगिआल कालेनिन सामूहिक फ़ार्म देखने गया। यहाँ कपास पैदा होती है। छः खेतों को मिलाकर सन् 1928 में इसकी स्थापना की गई थी। इसका क्षेत्रफल लगभग 5000 हेक्टर है, जिसमें से 3000 हेक्टर पर केवल कपास की खेती होती है। सन् 1956 में यहाँ पर 7300 टन कपास पैदा हुई थी, जिससे 270 लाख रूबल की निवल आय हुई। इस फ़ार्म में 4000 लोग काम करते हैं। हर व्यक्ति को प्रत्येक दिन के काम के लिए तीन किलोग्राम चावल तथा 22 रूबल मज़दूरी दी जाती है।
1 julai ka pura din hamne lyubratse ke ek samuhik khet (kolkhoz) mein bitaya. lyubratse keev se lagbhag 36 meel hai. is khet ka naam tha slahet do komyunizm, arthat samyavad ki or. samuhik khet ke adhyaksh ne hamara svagat kiya aur faarm ki sari prvattiyon ki vistrit jankari di. hamesha ki tarah unhonne kai ankaDe pesh kiye, jo kafi prabhavotpadak the.
is faarm par 1200 makan hai, jinki jansankhya lagbhag 4000 hai. sampurn faarm lagbhag 15000 acre bhumi par sthit hai, jismen se 10000 acre zamin par kheti ki jati hai. 500 adami aur 1100 striyan khet mein kaam karte hai. faarm par ek madhyamik school, ek chhota sa davakhana, ek bachchon ka baghicha; nau sahkari dukane aur ek upbhokta sahkari samiti hai. ek club bhi us samay ban raha tha. saath hi faarm ke paas das kambain mashinen, 23 tracktor, janavron ka chara milane vali teen mashinen, 23 trken aur motren, chukdar katne ki chaar mashinen aadi bhi hai. 371 haurspavar ki 76 bijli ki motren, ghoDe, bail aadi hai so alag.
kul kaam ka lagbhag 65 pratishat kaam mashinon dvara hi kiya jata hai. anaj ki kheti ke alava ve pashu palan, sabzi va hari ghaas bhi paida karte hai. kul krishiyogya bhumi mein se 100 acre bhumi chukdar ki kheti ke liye surakshait hai. chukdar se ve chini banate hai. shesh mein se 2000 acre par ve gehun ki kheti karte hai aur baqi bachi zamin any khadyannon tatha aalu aadi sabziyon ke liye hai. unka prati acre utpadan is prakar hai—gehun 50 ser, makka 17 ser, chukdar 12500 ser, aur aalu 7000 ser. pashuo mein unke paas 2000 gayen thi, jinmen se 600 us samay doodh deti thi. 2000 suar, 1000 bheDen, 10000 battkhen aur murghabiya tatha 500 chhatte shahd ki makkhiyon ke the. pratyek gaay ausatan 15 16 ser doodh pratidin deti thi. saal bhar mein uska ausat doodh 3700 ser baithta tha. unka vichar tha ki ve ye ausat 4000 ser tak baDha lenge. pure faarm ki Deyari ka kul varshaik utpadan is prakar tha—20 laakh ser doodh, 27 laakh ser maans aur 136000 anDe.
faarm ke sampurn utpadan ko teen bhagon mein baant diya jata hai. ek bhaag to sarkar ko saump diya jata hai, dusra bhaag faarm ke liye rakh liya jata hai aur tisra bhaag faarm par kaam karne vale parivaron mein baant diya jata hai. jvaar aur bajra mukhyatः pashuon ko khila diya jata hai. gayon ko thoDa gehun bhi khilaya jata hai. ghatiya qim ka chukdar aur tarbuz bhi pashuon ke kaam aata hai. kisan apne utpadan ka kuch bhaag khule bazar mein bech sakte hain. shesh utpadan sarkar ki manDi samiti ke dvara hi becha jata hai. svayan apni zamin ke utpadan par kisan ka hi svamitv hota hai. saath hi samuhik khet ke utpadan mein se bhi use kuch bhaag milta hai. soviyat qanun ke anusar sari zamin rashtra ki, arthat janta ki hoti hai. zamin ka kuch bhaag logon ko de diya jata hai, lekin keval samuhik kheton ke upyog ke liye. samuhik khet par rahne vale pratyek parivar ko ek acre zamin di jati hai, bhale hi parivar mein kitne hi sadasy hon. yadi kisan faarm chhoDkar shahr mein any dhandha karne jana chahta hai, to uski zamin samuhik khet mein shamil kar li jati hai. lekin yadi us kisan ka parivar faarm par hi rahna chahta hai to wo zamin parivar ke paas hi rahti hai. is prakar mili zamin par yadi kisan makan banva leta hai, to us makan par kisan ka hi svamitv rahega. yadi kisan paas ke shahr mein any dhandha karta hai aur us makan mein rahna chahta hai to wo rah sakta hai.
yadi kisan vyaktigat khet par adhik mehnat kare to uski aay baDh jati hai. amtaur par rusi kisan hain bhi mehnati. kheti mein samuhik faarm se unhen ghoDon, traiktron aur any mashinon ki sahayata mil jati hai. kisan ki mirtyu ke baad uski sampatti par uske parivar ka adhikar ho jata hai aur uski patni parivar ki mukhiya banti hai. jab koi yuvak kisan vivah karta hai to use nai zamin milti hai aur wo apne nae parivar ke saath naya ghar basata hai.
samuhik khet ki kul aay ka 60 pratishat sadasyon mein baant diya jata hai. pratyek parivar ne kul kitne ghante aur kitna kaam kiya, is adhar par ye vitarn kiya jata hai. alag alag prakar ke karyon ke liye alag alag daren nishchit hain. samuhik faarm se pratyek parivar ko ausatan 18000 se 20000 ruble varshaik ki aay ho jati hai. ismen vastuon ki shakl mein jo aay hoti hai, wo bhi sammilit hai. iske alava uski niji aay hoti hai so alag. adhik aay ke liye atirikt kaam karne ke liye ve svtantr hain. iska ek thos udaharn hamare dekhne mein aaya. teen janon ka ek parivar tha, jismen ek laDki aur uske mata pita the. ve tinon jane kaam karte the aur unki kul aay 37000 ruble thi. pratyek vekti ke liye saptah mein chhः din aur pratidin aath ghante kaam karna anivary hai.
khet ki kul aay ka 60 pratishat sadasyon ke beech batne ke baad shesh 40 pratishat mein se 20 pratishat toot phoot ki marammat va nae nivesh (investment) ke liye surakshait rahta hai. ye rashi mukhyatः bhavan nirman, machine, pashu, aadi par kharch ki jati hai. 12 pratishat ek vishesh kosh mein chala jata hai. ye kosh samuhik khet ke vriddh sadasyon ki sahayata ke liye ikattha kiya jata hai aur iski rashi vriddh sadasyon ko penshan ke roop mein milti hai. 6 pratishat rashi rasayanik padarthon, petrol, tel aadi par kharch ho jati hai aur shesh 2 pratishat sanskritik kosh mein jama ho jati hai.
samuhik faarm sarkar ko 8 pratishat ayakar deta hai. ye kar janta ki zamin ka upyog karne ke muavze ke roop mein diya jata hai. any koi bhumi kar unhen nahin dena paDta. pratyek kisan apna niji ayakar deta hai. jis varsh hum vahan the, us varsh aur uske ek varsh pahle ka milakar, samuhik faarm ne sab prakar ke karon ke 685000 ruble shasan ko diye, jismen 700000 ruble krishai kar aur 285000 ruble svechchha se diya gaya suraksha kar va bima rashi thi.
faarm ke sab sadasyon ko milakar ek samany samiti banti hai, jo sampurn faarm ki pardhan hoti hai. apni baithak mein ye samiti apna sabhapati, vyavasthapak manDal, aur niyantran aayog (kantrol commission) ka sabhapati chunti hai. aane vale varsh ka utpadan karyakram bhi yahi samiti prtim roop se svikar karti hai. varsh mein teen chaar baar is samiti ki baithak hoti hai aur wo chahe to faarm ke vidhan mein parivartan kar sakti hai. niyantran aayog is samiti ke samne apni report pesh karta hai. vyavasthapak manDal aur niyantran aayog ki baithke mahine mein kam se kam do baar hoti hai. utpadan ke suniyantran ke uddeshy se niyantran aayog kai chhote chhote vibhagon mein banta hota hai aur pratyek vibhag ke adhin paanch brigade hoti hai.
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tathyon aur akDon ki jankari praapt karke hum khet ko pratyaksh dekhne ke liye nikle. iska vistar vahut vishal tha. har jagah hamein motron mein baithkar hi jana paDa. faarm ko chaar ya paanch mukhy kendron mein baant diya gaya hai. pratyek kendr par karmchariyon ke rahne ke makan, mashinen aur kaam karne ke shade aur pashushalayen hain. har kendr apne aas paas ke kshaetr ka kaam sambhalta hai.
hum samuhik khet ke ek do sadasyon ke makanon mein bhi gaye. ghar mamuli the, jaise hamare yahan kisanon ke kheton par hote hai. aab o hava aur rahan sahn ke karan jo antar hota hai, bus utna hi antar tha. sadharan kachche makan the, paDos ke kamre mein janavron ke bandhne ki jagah thi aur ghar mein aas paas khet ke auzar vaghairah paDe the.
dusri jaghon ki bhanti yahan ke kisan bhi bhale the aur unhonne hamara hardik svagat kiya. bhojan ke samay tak hum itna ghume ki kafi thak gaye the. bhojan faarm ke pradhyaksh ke saath hi kiya. faarm par puchhः bunda badi ho rahi thi, isliye andar baithkar hi Datkar khana khaya. agar bahar baith sake hote to adhik maza aata. adhyaksh aur any kisan baDe parishrami, hatthe katte aur taqatvar malum hue. unka khana pina bhi achchha tha. hansi mazaq sab pasand karte the. baat baat par thahake lagate the. yukren ke nivasiyon ki khush mizaji aur vinodapriyta prasiddh hai. ve sada prasann rahte hain.
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iske do din baad pratinidhi manDal yanagial kalenin samuhik faarm dekhne gaya. yahan kapas paida hoti hai. chhः kheton ko milakar san 1928 mein iski sthapana ki gai thi. iska kshaetraphal lagbhag 5000 hektar hai, jismen se 3000 hektar par keval kapas ki kheti hoti hai. san 1956 mein yahan par 7300 tan kapas paida hui thi, jisse 270 laakh ruble ki nival aay hui. is faarm mein 4000 log kaam karte hain. har vekti ko pratyek din ke kaam ke liye teen kilogram chaval tatha 22 ruble mazduri di jati hai.
1 julai ka pura din hamne lyubratse ke ek samuhik khet (kolkhoz) mein bitaya. lyubratse keev se lagbhag 36 meel hai. is khet ka naam tha slahet do komyunizm, arthat samyavad ki or. samuhik khet ke adhyaksh ne hamara svagat kiya aur faarm ki sari prvattiyon ki vistrit jankari di. hamesha ki tarah unhonne kai ankaDe pesh kiye, jo kafi prabhavotpadak the.
is faarm par 1200 makan hai, jinki jansankhya lagbhag 4000 hai. sampurn faarm lagbhag 15000 acre bhumi par sthit hai, jismen se 10000 acre zamin par kheti ki jati hai. 500 adami aur 1100 striyan khet mein kaam karte hai. faarm par ek madhyamik school, ek chhota sa davakhana, ek bachchon ka baghicha; nau sahkari dukane aur ek upbhokta sahkari samiti hai. ek club bhi us samay ban raha tha. saath hi faarm ke paas das kambain mashinen, 23 tracktor, janavron ka chara milane vali teen mashinen, 23 trken aur motren, chukdar katne ki chaar mashinen aadi bhi hai. 371 haurspavar ki 76 bijli ki motren, ghoDe, bail aadi hai so alag.
kul kaam ka lagbhag 65 pratishat kaam mashinon dvara hi kiya jata hai. anaj ki kheti ke alava ve pashu palan, sabzi va hari ghaas bhi paida karte hai. kul krishiyogya bhumi mein se 100 acre bhumi chukdar ki kheti ke liye surakshait hai. chukdar se ve chini banate hai. shesh mein se 2000 acre par ve gehun ki kheti karte hai aur baqi bachi zamin any khadyannon tatha aalu aadi sabziyon ke liye hai. unka prati acre utpadan is prakar hai—gehun 50 ser, makka 17 ser, chukdar 12500 ser, aur aalu 7000 ser. pashuo mein unke paas 2000 gayen thi, jinmen se 600 us samay doodh deti thi. 2000 suar, 1000 bheDen, 10000 battkhen aur murghabiya tatha 500 chhatte shahd ki makkhiyon ke the. pratyek gaay ausatan 15 16 ser doodh pratidin deti thi. saal bhar mein uska ausat doodh 3700 ser baithta tha. unka vichar tha ki ve ye ausat 4000 ser tak baDha lenge. pure faarm ki Deyari ka kul varshaik utpadan is prakar tha—20 laakh ser doodh, 27 laakh ser maans aur 136000 anDe.
faarm ke sampurn utpadan ko teen bhagon mein baant diya jata hai. ek bhaag to sarkar ko saump diya jata hai, dusra bhaag faarm ke liye rakh liya jata hai aur tisra bhaag faarm par kaam karne vale parivaron mein baant diya jata hai. jvaar aur bajra mukhyatः pashuon ko khila diya jata hai. gayon ko thoDa gehun bhi khilaya jata hai. ghatiya qim ka chukdar aur tarbuz bhi pashuon ke kaam aata hai. kisan apne utpadan ka kuch bhaag khule bazar mein bech sakte hain. shesh utpadan sarkar ki manDi samiti ke dvara hi becha jata hai. svayan apni zamin ke utpadan par kisan ka hi svamitv hota hai. saath hi samuhik khet ke utpadan mein se bhi use kuch bhaag milta hai. soviyat qanun ke anusar sari zamin rashtra ki, arthat janta ki hoti hai. zamin ka kuch bhaag logon ko de diya jata hai, lekin keval samuhik kheton ke upyog ke liye. samuhik khet par rahne vale pratyek parivar ko ek acre zamin di jati hai, bhale hi parivar mein kitne hi sadasy hon. yadi kisan faarm chhoDkar shahr mein any dhandha karne jana chahta hai, to uski zamin samuhik khet mein shamil kar li jati hai. lekin yadi us kisan ka parivar faarm par hi rahna chahta hai to wo zamin parivar ke paas hi rahti hai. is prakar mili zamin par yadi kisan makan banva leta hai, to us makan par kisan ka hi svamitv rahega. yadi kisan paas ke shahr mein any dhandha karta hai aur us makan mein rahna chahta hai to wo rah sakta hai.
yadi kisan vyaktigat khet par adhik mehnat kare to uski aay baDh jati hai. amtaur par rusi kisan hain bhi mehnati. kheti mein samuhik faarm se unhen ghoDon, traiktron aur any mashinon ki sahayata mil jati hai. kisan ki mirtyu ke baad uski sampatti par uske parivar ka adhikar ho jata hai aur uski patni parivar ki mukhiya banti hai. jab koi yuvak kisan vivah karta hai to use nai zamin milti hai aur wo apne nae parivar ke saath naya ghar basata hai.
samuhik khet ki kul aay ka 60 pratishat sadasyon mein baant diya jata hai. pratyek parivar ne kul kitne ghante aur kitna kaam kiya, is adhar par ye vitarn kiya jata hai. alag alag prakar ke karyon ke liye alag alag daren nishchit hain. samuhik faarm se pratyek parivar ko ausatan 18000 se 20000 ruble varshaik ki aay ho jati hai. ismen vastuon ki shakl mein jo aay hoti hai, wo bhi sammilit hai. iske alava uski niji aay hoti hai so alag. adhik aay ke liye atirikt kaam karne ke liye ve svtantr hain. iska ek thos udaharn hamare dekhne mein aaya. teen janon ka ek parivar tha, jismen ek laDki aur uske mata pita the. ve tinon jane kaam karte the aur unki kul aay 37000 ruble thi. pratyek vekti ke liye saptah mein chhः din aur pratidin aath ghante kaam karna anivary hai.
khet ki kul aay ka 60 pratishat sadasyon ke beech batne ke baad shesh 40 pratishat mein se 20 pratishat toot phoot ki marammat va nae nivesh (investment) ke liye surakshait rahta hai. ye rashi mukhyatः bhavan nirman, machine, pashu, aadi par kharch ki jati hai. 12 pratishat ek vishesh kosh mein chala jata hai. ye kosh samuhik khet ke vriddh sadasyon ki sahayata ke liye ikattha kiya jata hai aur iski rashi vriddh sadasyon ko penshan ke roop mein milti hai. 6 pratishat rashi rasayanik padarthon, petrol, tel aadi par kharch ho jati hai aur shesh 2 pratishat sanskritik kosh mein jama ho jati hai.
samuhik faarm sarkar ko 8 pratishat ayakar deta hai. ye kar janta ki zamin ka upyog karne ke muavze ke roop mein diya jata hai. any koi bhumi kar unhen nahin dena paDta. pratyek kisan apna niji ayakar deta hai. jis varsh hum vahan the, us varsh aur uske ek varsh pahle ka milakar, samuhik faarm ne sab prakar ke karon ke 685000 ruble shasan ko diye, jismen 700000 ruble krishai kar aur 285000 ruble svechchha se diya gaya suraksha kar va bima rashi thi.
faarm ke sab sadasyon ko milakar ek samany samiti banti hai, jo sampurn faarm ki pardhan hoti hai. apni baithak mein ye samiti apna sabhapati, vyavasthapak manDal, aur niyantran aayog (kantrol commission) ka sabhapati chunti hai. aane vale varsh ka utpadan karyakram bhi yahi samiti prtim roop se svikar karti hai. varsh mein teen chaar baar is samiti ki baithak hoti hai aur wo chahe to faarm ke vidhan mein parivartan kar sakti hai. niyantran aayog is samiti ke samne apni report pesh karta hai. vyavasthapak manDal aur niyantran aayog ki baithke mahine mein kam se kam do baar hoti hai. utpadan ke suniyantran ke uddeshy se niyantran aayog kai chhote chhote vibhagon mein banta hota hai aur pratyek vibhag ke adhin paanch brigade hoti hai.
is aayog ke sabhapati, upasbhapati tatha any visheshagya faarm ke vaitanik karyakarta hote hain. vyavasthapak manDal mein ikkis sadasy hain, lekin vastav mein inmen se kul chhः sadasy hi vyavastha aadi ka kaam karte hai. in chhः sadasyon ko kheton mein kaam nahin karna paDta aur inhen faarm se vetan milta hai. lekin niyantran aayog ke sadasyon ko svayan kheti ka kaam karna paDta hai.
tathyon aur akDon ki jankari praapt karke hum khet ko pratyaksh dekhne ke liye nikle. iska vistar vahut vishal tha. har jagah hamein motron mein baithkar hi jana paDa. faarm ko chaar ya paanch mukhy kendron mein baant diya gaya hai. pratyek kendr par karmchariyon ke rahne ke makan, mashinen aur kaam karne ke shade aur pashushalayen hain. har kendr apne aas paas ke kshaetr ka kaam sambhalta hai.
hum samuhik khet ke ek do sadasyon ke makanon mein bhi gaye. ghar mamuli the, jaise hamare yahan kisanon ke kheton par hote hai. aab o hava aur rahan sahn ke karan jo antar hota hai, bus utna hi antar tha. sadharan kachche makan the, paDos ke kamre mein janavron ke bandhne ki jagah thi aur ghar mein aas paas khet ke auzar vaghairah paDe the.
dusri jaghon ki bhanti yahan ke kisan bhi bhale the aur unhonne hamara hardik svagat kiya. bhojan ke samay tak hum itna ghume ki kafi thak gaye the. bhojan faarm ke pradhyaksh ke saath hi kiya. faarm par puchhः bunda badi ho rahi thi, isliye andar baithkar hi Datkar khana khaya. agar bahar baith sake hote to adhik maza aata. adhyaksh aur any kisan baDe parishrami, hatthe katte aur taqatvar malum hue. unka khana pina bhi achchha tha. hansi mazaq sab pasand karte the. baat baat par thahake lagate the. yukren ke nivasiyon ki khush mizaji aur vinodapriyta prasiddh hai. ve sada prasann rahte hain.
main to kuch avashyak karyon ke karan jaldi bharat vapas aa gaya tha. hamare pratinidhi manDal ke any sadasy vahin rah gaye the. kuch dinon baad jab ve vapas laute to unhonne apni report mujhe di. unhonne bataya ki mere ravana hone ke baad dopahar ko unhen uzbekistan ke unizabad ka karl marx samuhik faarm dikhane le jaya gaya. ye faarm tashqand se kuch hi meel ki duri par kalinin zile mein hai. is faarm par khaskar sabzi paida ki jati hai. san 1657 mein yahan par 17000 tan sabzi paida hui thi. ye faarm kul 3688 acre bhumi par phaila hua hai. yahan par 1000 vekti kaam karte hain—560 parivaron ke 600 purush aur 400 striyan. inmen se 75 pratishat parivaron ne apne niji makan bana liye hain. san 1957 mein is faarm mein ek karoD ruble ka laabh hua. har kisan ko kaam ke pratyek din ki mazduri 21 ruble ke hisab se mili. iske alava pratidin nau kilogram aalu aur teen kilogram chaval milte the. faarm ki is aay mein se 60 pratishat kisanon ko baant diya gaya, 10 pratishat sarkari karon mein chala gaya, aur 15 20 pratishat ke kheti ke nae auzar kharide gaye.
iske do din baad pratinidhi manDal yanagial kalenin samuhik faarm dekhne gaya. yahan kapas paida hoti hai. chhः kheton ko milakar san 1928 mein iski sthapana ki gai thi. iska kshaetraphal lagbhag 5000 hektar hai, jismen se 3000 hektar par keval kapas ki kheti hoti hai. san 1956 mein yahan par 7300 tan kapas paida hui thi, jisse 270 laakh ruble ki nival aay hui. is faarm mein 4000 log kaam karte hain. har vekti ko pratyek din ke kaam ke liye teen kilogram chaval tatha 22 ruble mazduri di jati hai.
हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी
‘हिन्दवी डिक्शनरी’ हिंदी और हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों के शब्दों का व्यापक संग्रह है। इसमें अंगिका, अवधी, कन्नौजी, कुमाउँनी, गढ़वाली, बघेली, बज्जिका, बुंदेली, ब्रज, भोजपुरी, मगही, मैथिली और मालवी शामिल हैं। इस शब्दकोश में शब्दों के विस्तृत अर्थ, पर्यायवाची, विलोम, कहावतें और मुहावरे उपलब्ध हैं।