Font by Mehr Nastaliq Web

हरिद्वार

haridwar

भारतेंदु हरिश्चंद्र

और अधिकभारतेंदु हरिश्चंद्र

     

    श्रीमान क.व.सु. संपादक महोदयेषु,

    श्री हरिद्वार को रुड़की के मार्ग से जाना होता है। रुड़की शहर अँग्रेज़ों का बसाया हुआ है। इसमें दो-तीन वस्तु देखने योग्य हैं, एक तो (कारीगरी) शिल्प विद्या का बड़ा कारख़ाना है जिसमें जलचक्की पवनचक्की और भी कई बड़े-बड़े चक्र अनवरत स्वचक्र में सूर्य, चंद्र, पृथ्वी, मंगल आदि ग्रहों की भाँति फिरा करते हैं और बड़ी-बड़ी धरन ऐसी सहज में चिर जाती हैं कि देखकर आश्चर्य होता है। बड़े-बड़े लोहे के खंभे कल से एक छड़ में ढल जाते हैं और सैकड़ों मन आटा घड़ीभर में पिस जाता है, जो बात है आश्चर्य है। इस कारख़ाने के सिवा यहाँ सबसे आश्चर्य श्री गंगा जी की नहर है। पुल के ऊपर से तो नहर बहती है और नीचे से नदी बहती है। यह एक बड़े आश्चर्य का स्थान है। इसके देखने से शिल्प विद्या का बल और अँग्रेज़ों का चातुर्य् और द्रव्य का व्यय प्रगट होता है। न जाने वह पुल कितना दृढ़ बना है कि उस पर से अनवरत कई लाख मन, वरन करोड़ मन जल बहा करता है और वह तनिक नहीं हिलता। स्थल में जल कर रखा है। और स्थानों में पुल के नीचे से नाव चलती है, यहाँ पुल के ऊपर नाव चलती है और उसके दोनों ओर गाड़ी जाने का मार्ग है और उस के परले सिरे पर चूने के सिंह बहुत ही बड़े-बड़े बने हैं। हरिद्वार का एक मार्ग इसी नहर की पटरी पर से है और मैं इसी मार्ग से गया था।

    विदित हो कि यह श्री गंगा जी की नहर हरिद्वार से आई है और इसके लाने में यह चातुर्य किया है कि इसके जल का वेग रोकने के हेतु इस को सीढ़ी की भाँति लाए हैं। कोस-कोस डेढ़ कोस पर बड़े-बड़े पुल बनाए हैं, वही मानो सीढ़ियाँ हैं और प्रत्येक पुल के ताखों से जल को नीचे उतारा है। जहाँ-जहाँ जल को नीचे उतारा है, वहाँ-वहाँ बड़े-बड़े सीकड़ो में कसे हुए तख़्ते पुल के ताखों के मुँह पर लगा दिए हैं और उनके खींचने के हेतु ऊपर चक्कर रखे हैं। उन तख़्तों से ठोकर खाकर पानी नीचे गिरता है, वह शोभा देखने योग्य है। एक तो उस का महान शब्द, दूसरे उसमें से फुहारे की भाँति जल का उबलना और छीटों का उड़ना मन को बहुत लुभाता है और जब कभी जल विशेष लेना होता है तो तख़्तों को उठा लेते हैं, फिर तो इस वेग से जल गिरता है जिसका वर्णन नहीं हो सकता। और ये मल्लाह दुष्ट वहाँ भी आश्चर्य करते हैं कि उस जल पर से नाव को उतारते हैं या चढ़ाते हैं। जो नाव उतरती है तो यह ज्ञात होता है कि नाव पाताल को गई, पर वे बड़ी सावधानी से उसे बचा लेते हैं और क्षण मात्र में बहुत दूर निकल जाती है, पर चढ़ाने में बड़ा परिश्रम होता है। यह नाव का उतरना-चढ़ना भी एक कौतुक ही समझना चाहिए।

    इसके आगे और भी आश्चर्य है कि दो स्थान नीचे तो नहर है और ऊपर से नदी बहती है। वर्षा के कारण वे नदियाँ क्षण में तो वेग से बढ़ती थीं और क्षणभर में सूख जाती हैं। और भी मार्ग में जो नदी मिली, उनकी यही दशा थी। उनके करारे गिरते थे तो बड़ा भयंकर शब्द होता था और वृक्षों को जड़ समेत उखाड़-उखाड़ के बहाए लाती थीं। वेग ऐसा कि हाथी न संभल सके पर आश्चर्य यह कि जहाँ अभी डुबाव था, वहाँ थोड़ी देर पीछे सूखी रेत पड़ी है और आगे एक स्थान पर नदी और नहर को एक में मिलाके निकाला है, यह भी देखने योग्य है। सीधी रेखा की चाल से नहर आई है और बेंड़ी रेखा की चाल से नदी गई है। जिस स्थान पर दोनों का संगम है, वहाँ नहर के दोनों ओर पुल बने हैं और नदी जिधर गिरती है उधर कई द्वार बनाकर उस में काठ के तख़्ते लगाए हैं, जिससे जितना पानी नदी में जाने देना चाहें, उतना नदी में और जितना नहर में छोड़ना चाहें उतना नहर में छोड़ें। जहाँ से नहर श्री गंगा जी में से निकाला है वहाँ भी ऐसा ही प्रबंध है और गंगा जी नहर में पानी निकल जाने से दुबली और छिछली हो गई है, परंतु जहाँ नील धारा आ मिली है वहाँ फिर ज्यों की त्यों हो गई है।

    हरिद्वार के मार्ग में अनेक प्रकार के वृक्ष और पक्षी देखने में आए। एक पीले रंग का पक्षी छोटा बहुत मनोहर देखा गया। एक छोटी चिड़िया है, उसके घोंसले बहुत मिले। ये घोंसले सूखे बबूल काँटों के वृक्ष में हैं, और एक-एक डाल में लड़ी की भाँति बीस-बीस तीस-तीस लटकते हैं। इन पक्षियों की शिल्प विद्या तो प्रसिद्ध ही है, लिखने का कुछ काम नहीं है। इसी से इनका सब चातुर्य प्रगट है कि सब वृक्ष छोड़ के काँटे के वृक्ष में घर बनाया है। इसके आगे ज्वालापुर और कनखल और हरिद्वार है, जिनका वृतांत अगले नंबरों में लिखूँगा।

    पुरुषोत्तम 1,

    आपका मित्र
    यात्री।

     

    [2]

     

    श्रीमान क.व.सु. संपादक महामहिम मित्रवरेषु,

    मुझे हरिद्वार का शेष समाचार लिखने में बड़ा आनंद होता है कि मैं उस पुण्यभूमि का वर्णन करता हूँ जहाँ प्रवेश करने से ही मन शुद्ध हो जाता है। यह भूमि तीन ओर सुंदर हरे-भरे पर्वतों से घिरी है जिन पर्वतों पर अनेक प्रकार की वल्लरी हरी-भरी सज्जनों के शुभ मनोरथों की भाँति फैल कर लहलहा रही हैं और बड़े-बड़े वृक्ष भी ऐसे खड़े हैं मानों एक पैर से खड़े तपस्या करते हैं और साधुओं की भाँति घाम, ओस और वर्षा अपने ऊपर सहते हैं। अहा! इनके जन्म भी धन्य हैं, जिनसे अर्थी विमुख जाते ही नहीं। फल, फूल, गंध, छाया, पत्ते, छाल, बीज, लकड़ी और जड़; यहाँ तक कि जले पर भी कोयले और राख से लोगों पर अनेक रंग के पक्षी चहचहाते हैं और नगर के दुष्ट बधिकों से निडर हो कर कल्लोल करते हैं। वर्षा के कारण सब ओर हरियाली ही दृष्टि पड़ती थी। मानो हरे गलीचे की जात्रियों के विश्राम हेतु बिछायत बिछी थी। एक ओर त्रिभुवन पावनी श्री गंगा जी की पवित्र धार बहती है जो राजा भगीरथ के उज्ज्वल कीर्ति की लीला-सी दिखाई देती है। जल यहाँ का अत्यंत शीतल है और मिष्ट भी वैसा ही है मानो चीनी के पने को बर्फ़ में जमाया है। रंग जल का स्वच्छ और श्वेत है और अनेक प्रकार के जल जंतु कलोल करते हुए यहाँ श्री गंगा जी अपना नाम नदी सत्य करती है अर्थात जल के वेग का शब्द बहुत होता है और शीतल वायु नदी के उन पवित्र, छोटे-छोटे कणों को लेकर स्पर्श ही से पावन करता हुआ संचार करता है। यहाँ पर श्री गंगा जी ही के नाम से, इन दोनों धारों के बीच में एक सुंदर नीचा पर्वत है और नीलधारा के तट पर एक छोटा सा सुंदर चुटीला पर्वत है और उस के शिखर पर चंडिका देवी की मूर्ति है। यहाँ 'हरि की पैरी' नामक एक पक्का घाट है और यहीं स्नान भी होता है। विशेष आश्चर्य का विषय यह है कि यहाँ केवल गंगा जी ही देवता हैं दूसरा देवता नहीं। यों तो बैरागियों ने मठ-मंदिर कई बना लिए हैं। श्री गंगा जी का पाट भी बहुत छोटा है पर वेग बड़ा है। तट पर राजाओं की धर्मशाला यात्रियों के उतरने के हेतु बनी हैं और दुकानें भी बनी हैं, पर रात को बंद रहती हैं। यह ऐसा निर्मल तीर्थ है कि काम-क्रोध की खानि जो मनुष्य हैं सो वहाँ रहते ही नहीं। पंडे दुकानदार इत्यादि कनखल वा ज्वालापुर से आते हैं। पंडे भी यहाँ बड़े विलक्षण संतोषी हैं। ब्राह्मण होकर लोभ नहीं, यह बात इन्हीं में देखने में आई। एक पैसे को लाख कर के मान लेते हैं। इस क्षेत्र में पाँच तीर्थ मुख्य हैं—हरिद्वार, कुशावर्त, नीलधारा, विल्व पर्वत और कनखल। हरिद्वार तो 'हरि की पैड़ी' पर नहाते हैं, कुशावर्त भी उसी के पास है, नीलधारा वहीं दूसरी धारा, विल्व पर्वत भी एक सुहाना पर्वत है जिस पर विल्वेश्वर महादेव की मूर्ति है और कनखल तीर्थ इधर ही है। यह कनखल तीर्थ उक्त किसी काल में दक्ष ने यहीं यज्ञ किया था और यहीं सती ने शिवजी का अपमान न सह कर अपना शरीर भस्म कर दिया। कुछ छोटे घर भी बने हैं और भारामल नै कृष्णदास खत्री यहाँ के प्रसिद्ध धनिक हैं।

    हरिद्वार में यह बखेड़ा कुछ नहीं है और शुद्ध निर्मल साधुओं के सेवन योग्य तीर्थ है। मेरा तो चित्त वहाँ जाते ही ऐसा प्रसन्न और निर्मल हुआ कि वर्णन के बाहर है। मैं दीवान कृपाराम के घर के ऊपर के बंगले पर टिका था, यह स्थान भी उस क्षेत्र में टिकने योग्य ही है। चारों ओर से शीतल पवन आती थी। यहाँ रात्रि को ग्रहण हुआ और हम लोगों ने ग्रहण में बड़े आनंद पूर्वक स्नान किया और दिन में श्रीभागवत का परायण भी किया। वैसे ही मेरे संग कन्नूजी मित्र परमानंदी भी थे। निदान इस उत्तम क्षेत्र में जितना समय बीता, बड़े आनंद से बीता। एक दिन मैंने श्री गंगा जी के तट पर रसोई करके पत्थर पर ही जल के अत्यंत निकट परोस कर भोजन का सुख सोने के थाल के भोजन से कहीं बढ़ के था। चित्त में बारंबार ज्ञान, वैराग्य और भक्ति का उदय होता था। झगड़े-लड़ाई का कहीं नाम भी नहीं सुनता था। यहाँ और भी कई वस्तु अच्छी बनती हैं। जनेऊ यहाँ का अच्छा महीन और उज्ज्वल बनता है। यहाँ की कुशा सब से विलक्षण होती है, जिसमें से दाल-चीनी जावित्री इत्यादि की अच्छी सुगंध आती है मानो यह प्रत्यक्ष प्रगट होता है कि यह ऐसी पुण्य भूमि है कि यहाँ की घास भी ऐसी सुगंधमय है। निदान यहाँ जो कुछ है, अपूर्व है और यह भूमि साक्षात् विरागमय साधुओं और विरक्तों के सेवन योग्य है और संपादक महाशय मैं चित्त से तो अब तक वहीं निवास करता हूँ और अपने वर्णन द्वारा आप के पाठकों को इस पुण्यभूमि का वृतांत विदित करके मौनावलंबन करता हूँ। निश्चय है कि आप इस पत्र को स्थान दान दीजिएगा।

    आपका मित्र
    यात्री

    स्रोत :
    • पुस्तक : भारतेंदु के निबंध (पृष्ठ 67)
    • संपादक : केसरीनारायण शुक्ल
    • रचनाकार : भारतेंदु हरिश्चंद्र
    • प्रकाशन : सरस्वती मंदिर जतनबर,बनारस
    हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

    हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

    ‘हिन्दवी डिक्शनरी’ हिंदी और हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों के शब्दों का व्यापक संग्रह है। इसमें अंगिका, अवधी, कन्नौजी, कुमाउँनी, गढ़वाली, बघेली, बज्जिका, बुंदेली, ब्रज, भोजपुरी, मगही, मैथिली और मालवी शामिल हैं। इस शब्दकोश में शब्दों के विस्तृत अर्थ, पर्यायवाची, विलोम, कहावतें और मुहावरे उपलब्ध हैं।

    Additional information available

    Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

    OKAY

    About this sher

    Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit. Morbi volutpat porttitor tortor, varius dignissim.

    Close

    rare Unpublished content

    This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

    OKAY

    जश्न-ए-रेख़्ता | 13-14-15 दिसम्बर 2024 - जवाहरलाल नेहरू स्टेडियम, गेट नंबर 1, नई दिल्ली

    टिकट ख़रीदिए