
शोर कुछ भी साबित नहीं करता है। अक्सर जो मुर्ग़ी अंडा दे रही होती है, वह ऐसे कुड़कुड़ाती है; मानो उसने किसी क्षुद्र ग्रह को जन्म दिया हो।

चारों तरफ़ उपवासों का शोर है, उपवास, उसके विरुद्ध उपवास, विरुद्ध उपवास के विरुद्ध उपवास और विरुद्ध के, विरुद्ध के विरुद्ध उपवास।

आवाज़ करने से आवाज़ नहीं मिटती है, चुप्पी से मिटती है।