
कोई व्यक्ति जो करता है, उसमें माहिर हो सकता है; लेकिन वह जो महसूस करता है, उसमें कभी नहीं।

विशेषज्ञ और पुरोधा में अंतर होता है। विशेषज्ञ अपने शोध की दमक, से एक संकरी-सी जगह को प्रकाशित करता है; विशेषज्ञता दृष्टि से ज़्यादा ज्ञान देती है, जो कई बार दृष्टि के दरिद्र लोगों के हाथ में पड़कर दुरुपयोग का शिकार हो जाती है। पुरोधा की कल्पना करने के लिए हमें ज्ञान और दृष्टि के साथ आगे चलने वाले की प्रेरक भूमिका को समझना होगा।