शहर
‘ऐसा लगता है अब हम लोग कहीं पहुँच रहे हैं। इंजीनियर ज़ोर से बोल पड़ा; जैसे ही लोगों, कोयलें, औज़ारों और खाद्य-पदार्थों से भरी हुई दूसरी ट्रेन उस नए इलाके में पहुँची, जहाँ कल ही रेल की पटरियाँ बिछाई गई थीं। घास भरी ज़मीन के उस अछूते विस्तार में सूरज की