हमारे रहने की जगह। यह भी कह सकते हैं कि यह है हमारे अस्तित्व का गोल चबूतरा! प्रस्तुत चयन में पृथ्वी को कविता-प्रसंग में उतारती अभिव्यक्तियों का संकलन किया गया है।
हिंदी के साहित्य-सेवियों को पृथिवी-पुत्र बनना चाहिए। वे सच्चे हृदय से यह कह और अनुभव कर सकें—
माता भूमिः पुत्रोऽहं पृथिव्याः (अथर्ववेद)
यह भूमि माता है, मैं पृथिवी का पुत्र हूँ।
लेखकों में यह ज
वासुदेवशरण अग्रवाल
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