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दिल्ली पर गीत

भारत की राजधानी के रूप

में दिल्ली कविता-प्रसंगों में अपनी उपस्थिति जताती रही है। ‘हुनूज़ दिल्ली दूर अस्त’ के मेटाफ़र के साथ ही देश, सत्ता, राजनीति, महानगरीय संस्कृति, प्रवास संकट जैसे विभिन्न संदर्भों में दिल्ली को एक रूपक और प्रतीक के रूप में बरता गया है। प्रस्तुत चयन दिल्ली के बहाने कही गई कविताओं से किया गया है।

ओ राही दिल्ली जाना तो

गोपाल सिंह नेपाली

दिल्ली-दुखिया

जय चक्रवर्ती

मेहनत के हाथों हथकड़ी

हरिहर प्रसाद चौधरी ‘नूतन’

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