अगर कबरी बिल्ली घर-भर में किसी से प्रेम करती थी तो रामू की बहू से, और अगर रामू की बहू घर-भर में किसी से घृणा करती थी तो कबरी बिल्ली से। रामू की बहू, दो महीने हुए मायके से प्रथम बार ससुराल आई थी, पति की प्यारी और सास की दुलारी, चौदह वर्ष की बालिका। भंडार-घर की चाभी उसकी करधनी में लटकने लगी, नौकरों पर उसका हुक्म चलने लगा, और रामू की बहू घर में सब कुछ; सासजी ने माला ली और पूजा-पाठ में मन लगाया।
लेकिन ठहरी चौदह वर्ष की बालिका, कभी भंडार-घर खुला है तो कभी भंडार-घर में बैठे-बैठे सो गई। कबरी बिल्ली को मौक़ा मिला, घी-दूध पर अब वह जुट गई। रामू की बहू की जान आफ़त में और कबरी बिल्ली के छक्के-पंजे। रामू की बहू हाँडी में घी रखते-रखते ऊँघ गई और बचा हुआ घी कबरी के पेट में। रामू की बहू दूध ढककर मिसरानी को जिन्स देने गई और दूध नदारद। अगर बात यहीं तक रह जाती, तो भी बुरा न था, कबरी रामू की बहू से कुछ ऐसा परच गई थी कि रामू की बहू के लिए खाना-पीना दुश्वार। रामू की बहू के कमरे में रबड़ी से भरी कटोरी पहुँची और रामू जब आए तब तक कटोरी साफ़ चटी हुई। बाज़ार से बालाई आई और जब तक रामू की बहू ने पान लगाया बालाई ग़ायब। रामू की बहू ने तय कर लिया कि या तो वही घर में रहेगी या फिर कबरी बिल्ली ही। मोर्चाबंदी हो गई, और दोनों सतर्क। बिल्ली फँसाने का कठघरा आया, उसमें दूध बालाई, चूहे, और भी बिल्ली को स्वादिष्ट लगने वाले विविध प्रकार के व्यंजन रखे गए, लेकिन बिल्ली ने उधर निगाह तक न डाली। इधर कबरी ने सरगर्मी दिखलाई। अभी तक तो वह रामू की बहू से डरती थी; पर अब वह साथ लग गई, लेकिन इतने फ़ासिले पर कि रामू की बहू उस पर हाथ न लगा सके।
कबरी के हौसले बढ़ जाने से रामू की बहू को घर में रहना मुश्किल हो गया। उसे मिलती थीं सास की मीठी झिड़कियाँ और पतिदेव को मिलता था रूखा-सूखा भोजन।
एक दिन रामू की बहू ने रामू के लिए खीर बनाई। पिस्ता, बादाम, मखाने और तरह-तरह के मेवे दूध में ओटे गए, सोने का वर्क चिपकाया गया और खीर से भरकर कटोरा कमरे के एक ऐसे ऊँचे ताक़ पर रखा गया, जहाँ बिल्ली न पहुँच सके। रामू की बहू इसके बाद पान लगाने में लग गई।
उधर बिल्ली कमरे में आई, ताक़ के नीचे खड़े होकर उसने ऊपर कटोरे की ओर देखा, सूँघा, माल अच्छा है, ताक़ की ऊँचाई अंदाज़ी। उधर रामू की बहू पान लगा रही है। पान लगाकर रामू की बहू सासजी को पान देने चली गई और कबरी ने छलाँग मारी, पंजा कटोरे में लगा और कटोरा झनझनाहट की आवाज़ के साथ फ़र्श पर।
आवाज़ रामू की बहू के कान में पहुँची, सास के सामने पान फेंककर वह दौड़ी, क्या देखती है कि फूल का कटोरा टुकड़े-टुकड़े, खीर फ़र्श पर और बिल्ली डटकर खीर उड़ा रही है। रामू की बहू को देखते ही कबरी चपत।
रामू की बहू पर ख़ून सवार हो गया, न रहे बाँस, न बजे बाँसुरी, रामू की बहू ने कबरी की हत्या पर कमर कस ली। रात-भर उसे नींद न आई, किस दाँव से कबरी पर वार किया जाए कि फिर ज़िंदा न बचे, यही पड़े-पड़े सोचती रही। सुबह हुई और वह देखती है कि कबरी देहरी पर बैठी बड़े प्रेम से उसे देख रही है।
रामू की बहू ने कुछ सोचा, इसके बाद मुस्कुराती हुई वह उठी। कबरी रामू की बहू के उठते ही खिसक गई। रामू की बहू एक कटोरा दूध कमरे के दरवाज़े की देहरी पर रखकर चली गई। हाथ में पाटा लेकर वह लौटी तो देखती है कि कबरी दूध पर जुटी हुई है। मौक़ा हाथ में आ गया, सारा बल लगाकर पाटा उसने बिल्ली पर पटक दिया। कबरी न हिली, न डुली, न चीख़ी, न चिल्लाई, बस एकदम उलट गई।
आवाज़ जो हुई तो महरी झाड़ू छोड़कर, मिसरानी रसोई छोड़कर और सास पूजा छोड़कर घटनास्थल पर उपस्थित हो गईं। रामू की बहू सर झुकाए हुए अपराधिनी की भाँति बातें सुन रही है।
महरी बोली- अरे राम! बिल्ली तो मर गई। माँजी, बिल्ली की हत्या बहू से हो गई, यह तो बुरा हुआ।
मिसरानी बोली- माँजी, बिल्ली की हत्या और आदमी की हत्या बराबर है, हम तो रसोई न बनाएँगी, जब तक बहू के सिर हत्या रहेगी।
सास जी बोलीं- हाँ, ठीक तो कहती हो, अब जब तक बहू के सर से हत्या न उतर जाए, तब तक न कोई पानी पी सकता है, न खाना खा सकता है, बहू, यह क्या कर डाला?
महरी ने कहा- फिर क्या हो, कहो तो पंडितजी को बुलाय लाई।
सास की जान-में-जान आई- अरे हाँ, जल्दी दौड़ के पंडितजी को बुला लो।
बिल्ली की हत्या की ख़बर बिजली की तरह पड़ोस में फैल गई—पड़ोस की औरतों का रामू के घर ताँता बँध गया। चारों तरफ़ से प्रश्नों की बौछार और रामू की बहू सिर झुकाए बैठी।
पंडित परमसुख को जब यह ख़बर मिली, उस समय वह पूजा कर रहे थे। ख़बर पाते ही वे उठ पड़े—पंडिताइन से मुस्कुराते हुए बोले- भोजन न बनाना, लाला घासीराम की पतोहू ने बिल्ली मार डाली, प्रायश्चित होगा, पकवानों पर हाथ लगेगा।
पंडित परमसुख चौबे छोटे-से मोटे-से आदमी थे। लंबाई चार फीट दस इंच और तोंद का घेरा अट्ठावन इंच। चेहरा गोल-मटोल, मूँछ बड़ी-बड़ी, रंग गोरा, चोटी कमर तक पहुँचती हुई। कहा जाता है कि मथुरा में जब पसेरी ख़ुराकवाले पंडितों को ढूँढ़ा जाता था, तो पंडित परमसुखजी को उस लिस्ट में प्रथम स्थान दिया जाता था।
पंडित परमसुख पहुँचे और कोरम पूरा हुआ। पंचायत बैठी—सासजी, मिसरानी, किसनू की माँ, छन्नू की दादी और पंडित परमसुख। बाक़ी स्त्रियाँ बहू से सहानुभूति प्रकट कर रही थीं।
किसनू की माँ ने कहा- पंडितजी, बिल्ली की हत्या करने से कौन नरक मिलता है?
पंडित परमसुख ने पत्रा देखते हुए कहा- बिल्ली की हत्या अकेले से तो नरक का नाम नहीं बतलाया जा सकता, वह महूरत भी मालूम हो, जब बिल्ली की हत्या हुई, तब नरक का पता लग सकता है।
यही कोई सात बजे सुबह—मिसरानीजी ने कहा।
पंडित परमसुख ने पत्रे के पन्ने उलटे, अक्षरों पर उँगलियाँ चलाईं, माथे पर हाथ लगाया और कुछ सोचा। चेहरे पर धुंधलापन आया, माथे पर बल पड़े, नाक कुछ सिकुड़ी और स्वर गंभीर हो गया- हरे कृष्ण! हे कृष्ण! बड़ा बुरा हुआ, प्रातःकाल ब्रह्म-मुहूर्त में बिल्ली की हत्या! घोर कुंभीपाक नरक का विधान है! रामू की माँ, यह तो बड़ा बुरा हुआ।
रामू की माँ की आँखों में आँसू आ गए- तो फिर पंडितजी, अब क्या होगा, आप ही बतलाएँ!
पंडित परमसुख मुस्कुराए- रामू की माँ, चिंता की कौन-सी बात है, हम पुरोहित फिर कौन दिन के लिए हैं? शास्त्रों में प्रायश्चित का विधान है, सो प्रायश्चित से सब कुछ ठीक हो जाएगा।
रामू की माँ ने कहा- पंडितजी, इसीलिए तो आपको बुलवाया था, अब आगे बतलाओ कि क्या किया जाए?
किया क्या जाए, यही एक सोने की बिल्ली बनवाकर बहू से दान करवा दी जाए—जब तक बिल्ली न दे दी जाएगी, तब तक तो घर अपवित्र रहेगा, बिल्ली दान देने के बाद इक्कीस दिन का पाठ हो जाए।
छन्नू की दादी बोली- हाँ और क्या, पंडितजी ठीक तो कहते हैं, बिल्ली अभी दान दे दी जाए और पाठ फिर हो जाए।
रामू की माँ ने कहा- तो पंडितजी, कितने तोले की बिल्ली बनवाई जाए?
पंडित परमसुख मुस्कुराए, अपनी तोंद पर हाथ फेरते हुए उन्होंने कहा- बिल्ली कितने तोले की बनवाई जाए? अरे रामू की माँ, शास्त्रों में तो लिखा है कि बिल्ली के वज़न-भर सोने की बिल्ली बनवाई जाए। लेकिन अब कलियुग आ गया है, धर्म-कर्म का नाश हो गया है, श्रद्धा नहीं रही। सो रामू की माँ, बिल्ली के तौल भर की बिल्ली तो क्या बनेगी, क्योंकि बिल्ली बीस-इक्कीस सेर से कम की क्या होगी, हाँ, कम-से-कम इक्कीस तोले की बिल्ली बनवाकर दान करवा दो और आगे तो अपनी-अपनी श्रद्धा!
रामू की माँ ने आँखें फाड़कर पंडित परमसुख को देखा- अरे बाप रे! इक्कीस तोला सोना! पंडितजी यह तो बहुत है, तोला-भर की बिल्ली से काम न निकलेगा?
पंडित परमसुख हँस पड़े- रामू की माँ! एक तोला सोने की बिल्ली! अरे रुपया का लोभ बहू से बढ़ गया? बहू के सिर बड़ा पाप है, इसमें इतना लोभ ठीक नहीं!
मोल-तोल शुरू हुआ और मामला ग्यारह तोले की बिल्ली पर ठीक हो गया।
इसके बाद पूजा-पाठ की बात आई। पंडित परमसुख ने कहा- उसमें क्या मुश्किल है, हम लोग किस दिन के लिए हैं रामू की माँ, मैं पाठ कर दिया करुँगा, पूजा की सामग्री आप हमारे घर भिजवा देना।
पूजा का सामान कितना लगेगा?
अरे, कम-से-कम में हम पूजा कर देंगे, दान के लिए क़रीब दस मन गेहूँ, एक मन चावल, एक मन दाल, मन-भर तिल, पाँच मन जौ और पाँच मन चना, चार पसेरी घी और मन-भर नमक भी लगेगा। बस, इतने से काम चल जाएगा।
अरे बाप रे! इतना सामान! पंडितजी इसमें तो सौ-डेढ़ सौ रुपया ख़र्च हो जाएगा—रामू की माँ ने रुआँसी होकर कहा।
फिर इससे कम में तो काम न चलेगा। बिल्ली की हत्या कितना बड़ा पाप है, रामू की माँ! ख़र्च को देखते वक़्त पहले बहू के पाप को तो देख लो! यह तो प्रायश्चित है, कोई हँसी-खेल थोड़े ही है—और जैसी जिसकी मरजादा, प्रायश्चित में उसे वैसा ख़र्च भी करना पड़ता है। आप लोग कोई ऐसे-वैसे थोड़े हैं, अरे सौ-डेढ़ सौ रुपया आप लोगों के हाथ का मैल है।
पंडि़त परमसुख की बात से पंच प्रभावित हुए, किसनू की माँ ने कहा- पंडितजी ठीक तो कहते हैं, बिल्ली की हत्या कोई ऐसा-वैसा पाप तो है नहीं—बड़े पाप के लिए बड़ा ख़र्च भी चाहिए।
छन्नू की दादी ने कहा- और नहीं तो क्या, दान-पुन्न से ही पाप कटते हैं। दान-पुन्न में किफ़ायत ठीक नहीं।
मिसरानी ने कहा- और फिर माँजी आप लोग बड़े आदमी ठहरे। इतना ख़र्च कौन आप लोगों को अखरेगा।
रामू की माँ ने अपने चारों ओर देखा—सभी पंच पंडितजी के साथ। पंडित परमसुख मुस्कुरा रहे थे। उन्होंने कहा- रामू की माँ! एक तरफ़ तो बहू के लिए कुंभीपाक नरक है और दूसरी तरफ़ तुम्हारे ज़िम्मे थोड़ा-सा ख़र्चा है। सो उससे मुँह न मोड़ो।
एक ठंडी साँस लेते हुए रामू की माँ ने कहा- अब तो जो नाच नचाओगे नाचना ही पड़ेगा।
पंडित परमसुख ज़रा कुछ बिगड़कर बोले- रामू की माँ! यह तो ख़ुशी की बात है—अगर तुम्हें यह अखरता है तो न करो, मैं चला—इतना कहकर पंडितजी ने पोथी-पत्रा बटोरा।
अरे पंडितजी—रामू की माँ को कुछ नहीं अखरता—बेचारी को कितना दुःख है—बिगड़ो न!—मिसरानी, छन्नू की दादी और किसनू की माँ ने एक स्वर में कहा।
रामू की माँ ने पंडितजी के पैर पकड़े—और पंडितजी ने अब जमकर आसन जमाया।
और क्या हो?
इक्कीस दिन के पाठ के इक्कीस रुपए और इक्कीस दिन तक दोनों बखत पाँच-पाँच ब्राह्मणों को भोजन करवाना पड़ेगा, कुछ रुककर पंडित परमसुख ने कहा- सो इसकी चिंता न करो, मैं अकेले दोनों समय भोजन कर लूँगा और मेरे अकेले भोजन करने से पाँच ब्राह्मण के भोजन का फल मिल जाएगा।
यह तो पंडितजी ठीक कहते हैं, पंडितजी की तोंद तो देखो! मिसरानी ने मुस्कुराते हुए पंडितजी पर व्यंग किया।
अच्छा तो फिर प्रायश्चित का प्रबंध करवाओ, रामू की माँ ग्यारह तोला सोना निकालो, मैं उसकी बिल्ली बनवा लाऊँ—दो घंटे में मैं बनवाकर लौटूँगा, तब तक सब पूजा का प्रबंध कर रखो—और देखो पूजा के लिए…
पंडितजी की बात ख़त्म भी न हुई थी कि महरी हाँफती हुई कमरे में घुस आई और सब लोग चौंक उठे। रामू की माँ ने घबराकर कहा—अरी क्या हुआ री?
महरी ने लड़खड़ाते स्वर में कहा—माँजी, बिल्ली तो उठकर भाग गई!
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udhar billi kamre mein i, taq ke niche khaDe hokar usne upar katore ki or dekha, sungha, mal achchha hai, taq ki unchai andazi udhar ramu ki bahu pan laga rahi hai pan lagakar ramu ki bahu sasji ko pan dene chali gai aur kabri ne chhalang mari, panja katore mein laga aur katora jhanajhnahat ki awaz ke sath farsh par
awaz ramu ki bahu ke kan mein pahunchi, sas ke samne pan phenkkar wo dauDi, kya dekhti hai ki phool ka katora tukDe tukDe, kheer farsh par aur billi Datkar kheer uDa rahi hai ramu ki bahu ko dekhte hi kabri chapat
ramu ki bahu par khoon sawar ho gaya, na rahe bans, na baje bansuri, ramu ki bahu ne kabri ki hattya par kamar kas li raat bhar use neend na i, kis danw se kabri par war kiya jaye ki phir zinda na bache, yahi paDe paDe sochti rahi subah hui aur wo dekhti hai ki kabri dehri par baithi baDe prem se use dekh rahi hai
ramu ki bahu ne kuch socha, iske baad muskurati hui wo uthi kabri ramu ki bahu ke uthte hi khisak gai ramu ki bahu ek katora doodh kamre ke darwaze ki dehri par rakhkar chali gai hath mein pata lekar wo lauti to dekhti hai ki kabri doodh par juti hui hai mauqa hath mein aa gaya, sara bal lagakar pata usne billi par patak diya kabri na hili, na Duli, na chikhi, na chillai, bus ekdam ulat gai
awaz jo hui to mahri jhaDu chhoDkar, misrani rasoi chhoDkar aur sas puja chhoDkar ghatnasthal par upasthit ho gain ramu ki bahu sar jhukaye hue apradhini ki bhanti baten sun rahi hai
mahri boli are ram! billi to mar gai manji, billi ki hattya bahu se ho gai, ye to bura hua
misrani boli manji, billi ki hattya aur adami ki hattya barabar hai, hum to rasoi na banayengi, jab tak bahu ke sir hattya rahegi
sas ji bolin han, theek to kahti ho, ab jab tak bahu ke sar se hattya na utar jaye, tab tak na koi pani pi sakta hai, na khana kha sakta hai, bahu, ye kya kar Dala?
mahri ne kaha phir kya ho, kaho to panDitji ko bulay lai
sas ki jaan mein jaan i are han, jaldi dauD ke panDitji ko bula lo
billi ki hattya ki khabar bijli ki tarah paDos mein phail gai—paDos ki aurton ka ramu ke ghar tanta bandh gaya charon taraf se prashnon ki bauchhar aur ramu ki bahu sir jhukaye baithi
panDit paramsukh ko jab ye khabar mili, us samay wo puja kar rahe the khabar pate hi we uth paDe—panDitain se muskurate hue bole bhojan na banana, lala ghasiram ki patohu ne billi mar Dali, prayashchit hoga, pakwanon par hath lagega
panDit paramsukh chaube chhote se mote se adami the lambai chaar pheet das inch aur tond ka ghera atthawan inch chehra gol matol, moonchh baDi baDi, rang gora, choti kamar tak pahunchti hui kaha jata hai ki mathura mein jab paseri khurakwale panDiton ko DhunDha jata tha, to panDit paramasukhji ko us list mein pratham sthan diya jata tha
panDit paramsukh pahunche aur koram pura hua panchayat baithi—sasji, misrani, kisnu ki man, chhannu ki dadi aur panDit paramsukh baqi striyan bahu se sahanubhuti prakat kar rahi theen
kisnu ki man ne kaha panDitji, billi ki hattya karne se kaun narak milta hai?
panDit paramsukh ne patra dekhte hue kaha billi ki hattya akele se to narak ka nam nahin batlaya ja sakta, wo mahurat bhi malum ho, jab billi ki hattya hui, tab narak ka pata lag sakta hai
yahi koi sat baje subah—misraniji ne kaha
panDit paramsukh ne patre ke panne ulte, akshron par ungliyan chalain, mathe par hath lagaya aur kuch socha chehre par dhundhlapan aaya, mathe par bal paDe, nak kuch sikuDi aur swar gambhir ho gaya hare krishn! he krishn! baDa bura hua, pratःkal brahm muhurt mein billi ki hattya! ghor kumbhipak narak ka widhan hai! ramu ki man, ye to baDa bura hua
ramu ki man ki ankhon mein ansu aa gaye to phir panDitji, ab kya hoga, aap hi batlayen!
panDit paramsukh muskuraye ramu ki man, chinta ki kaun si baat hai, hum purohit phir kaun din ke liye hain? shastron mein prayashchit ka widhan hai, so prayashchit se sab kuch theek ho jayega
ramu ki man ne kaha panDitji, isiliye to aapko bulwaya tha, ab aage batlao ki kya kiya jaye?
kiya kya jaye, yahi ek sone ki billi banwakar bahu se dan karwa di jaye—jab tak billi na de di jayegi, tab tak to ghar apawitr rahega, billi dan dene ke baad ikkis din ka path ho jaye
chhannu ki dadi boli han aur kya, panDitji theek to kahte hain, billi abhi dan de di jaye aur path phir ho jaye
ramu ki man ne kaha to panDitji, kitne tole ki billi banwai jaye?
panDit paramsukh muskuraye, apni tond par hath pherte hue unhonne kaha billi kitne tole ki banwai jaye? are ramu ki man, shastron mein to likha hai ki billi ke wazan bhar sone ki billi banwai jaye lekin ab kaliyug aa gaya hai, dharm karm ka nash ho gaya hai, shardha nahin rahi so ramu ki man, billi ke taul bhar ki billi to kya banegi, kyonki billi bees ikkis ser se kam ki kya hogi, han, kam se kam ikkis tole ki billi banwakar dan karwa do aur aage to apni apni shardha!
ramu ki man ne ankhen phaDkar panDit paramsukh ko dekha are bap re! ikkis tola sona! panDitji ye to bahut hai, tola bhar ki billi se kaam na niklega?
panDit paramsukh hans paDe ramu ki man! ek tola sone ki billi! are rupaya ka lobh bahu se baDh gaya? bahu ke sir baDa pap hai, ismen itna lobh theek nahin!
mol tol shuru hua aur mamla gyarah tole ki billi par theek ho gaya
iske baad puja path ki baat i panDit paramsukh ne kaha usmen kya mushkil hai, hum log kis din ke liye hain ramu ki man, main path kar diya karunga, puja ki samagri aap hamare ghar bhijwa dena
puja ka saman kitna lagega?
are, kam se kam mein hum puja kar denge, dan ke liye qarib das man gehun, ek man chawal, ek man dal, man bhar til, panch man jau aur panch man chana, chaar paseri ghi aur man bhar namak bhi lagega bus, itne se kaam chal jayega
are bap re! itna saman! panDitji ismen to sau DeDh sau rupaya kharch ho jayega—ramu ki man ne ruansi hokar kaha
phir isse kam mein to kaam na chalega billi ki hattya kitna baDa pap hai, ramu ki man! kharch ko dekhte waqt pahle bahu ke pap ko to dekh lo! ye to prayashchit hai, koi hansi khel thoDe hi hai—aur jaisi jiski marjada, prayashchit mein use waisa kharch bhi karna paDta hai aap log koi aise waise thoDe hain, are sau DeDh sau rupaya aap logon ke hath ka mail hai
panDit paramsukh ki baat se panch prabhawit hue, kisnu ki man ne kaha panDitji theek to kahte hain, billi ki hattya koi aisa waisa pap to hai nahin—baDe pap ke liye baDa kharch bhi chahiye
chhannu ki dadi ne kaha aur nahin to kya, dan punn se hi pap katte hain dan punn mein kifayat theek nahin
misrani ne kaha aur phir manji aap log baDe adami thahre itna kharch kaun aap logon ko akhrega
ramu ki man ne apne charon or dekha—sabhi panch panDitji ke sath panDit paramsukh muskura rahe the unhonne kaha ramu ki man! ek taraf to bahu ke liye kumbhipak narak hai aur dusri taraf tumhare zimme thoDa sa kharcha hai so usse munh na moDo
ek thanDi sans lete hue ramu ki man ne kaha ab to jo nach nachaoge nachna hi paDega
panDit paramsukh zara kuch bigaDkar bole ramu ki man! ye to khushi ki baat hai—agar tumhein ye akharta hai to na karo, main chala—itna kahkar panDitji ne pothi patra batora
are panDitji—ramu ki man ko kuch nahin akharta—bechari ko kitna duःkh hai—bigDo n!—misrani, chhannu ki dadi aur kisnu ki man ne ek swar mein kaha
ramu ki man ne panDitji ke pair pakDe—aur panDitji ne ab jamkar aasan jamaya
aur kya ho?
ikkis din ke path ke ikkis rupae aur ikkis din tak donon bakhat panch panch brahmnon ko bhojan karwana paDega, kuch rukkar panDit paramsukh ne kaha so iski chinta na karo, main akele donon samay bhojan kar lunga aur mere akele bhojan karne se panch brahman ke bhojan ka phal mil jayega
yah to panDitji theek kahte hain, panDitji ki tond to dekho! misrani ne muskurate hue panDitji par wyang kiya
achchha to phir prayashchit ka prbandh karwao, ramu ki man gyarah tola sona nikalo, main uski billi banwa laun—do ghante mein main banwakar lautunga, tab tak sab puja ka prbandh kar rakho—aur dekho puja ke liye…
panDitji ki baat khatm bhi na hui thi ki mahri hanpti hui kamre mein ghus i aur sab log chaunk uthe ramu ki man ne ghabrakar kaha—ari kya hua ree?
mahri ne laDkhaDate swar mein kaha—manji, billi to uthkar bhag gai!
हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी
‘हिन्दवी डिक्शनरी’ हिंदी और हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों के शब्दों का व्यापक संग्रह है। इसमें अंगिका, अवधी, कन्नौजी, कुमाउँनी, गढ़वाली, बघेली, बज्जिका, बुंदेली, ब्रज, भोजपुरी, मगही, मैथिली और मालवी शामिल हैं। इस शब्दकोश में शब्दों के विस्तृत अर्थ, पर्यायवाची, विलोम, कहावतें और मुहावरे उपलब्ध हैं।