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चरवाहे की औरत

charvahe ki aurat

हेनरी लॉसन

हेनरी लॉसन

चरवाहे की औरत

हेनरी लॉसन

और अधिकहेनरी लॉसन

    दो कमरों का घर गोल लट्ठों, तख़्तों और पेड़ की छाल से गूँथी गई रस्सियों से बना है। फ़र्श की जगह अंदर चिरे हुए तख़्ते बिछे हैं। घर के एक सिरे पर बना रसोईघर और उसके सामने बना बरामदा आकार में उस घर से भी कहीं बड़े हैं।

    चारों तरफ़, जहाँ तक नज़र जाती है, एकसार झाड़ियाँ फैली हैं। ज़मीन बिल्कुल सपाट है, उसमें कहीं कोई उतार-चढ़ाव नहीं। कहीं क्षितिज के पार दिखती पहाड़ियों की झलक तक नहीं। दूर तक फैली वे एक-सी बौनी झाड़ियाँ सड़े हुए जंगली बेरनुमा सेबों की हैं। नीचे घास, किसी और पौधे का नामोनिशान। संकरे, लगभग सूखे घाटीनुमा मोड़ पर आहें भरते इक्का-दुक्का शीओक के अपेक्षाकृत हरे पेड़ों को छोड़कर ओने-कोने तक यहाँ कोई चीज़ नहीं जिस पर नज़र ठहर सके। सभ्यता के आख़िरी अवशेष से भी उन्नीस मील आगे मुख्य सड़क के किनारे खड़ा है यह झुग्गीनुमा घर।

    इस ज़मीन के प्रारम्भिक बाशिंदों में से एक, वह चरवाहा अपनी भेड़ों के साथ कहीं दूर भटक रहा है। उसकी औरत और बच्चे यहाँ घर में अकेले हैं।

    चार मैले चीकट, कुम्हलाए हुए बच्चे घर के नज़दीक खेल रहे हैं। अचानक उनमें से एक चिल्लाता है, “साँप, साँप! वहाँ साँप है माँ...”

    एक मरियल, धूप में झुलसी औरत रसोईघर से दौड़कर बाहर निकलती है, एक झटके के साथ छोटे बच्चे को ज़मीन से दबोचकर अपने बाएँ कूल्हे पर टिकाती है और फिर हाथ में छड़ी पकड़ लेती है।

    “कहाँ है?”

    “वहाँ, लकड़ियों के ढेर में!” सबसे बड़ा, जो ग्यारह के आसपास का एक होशियार लड़का है, चीखकर बताता है। “तुम वहीं रहना माँ, मैं अभी इस कमीने की चटनी बनाता हूँ!”

    “टॉमी, तू फ़ौरन इधर आ, वर्ना यह तुझे काट लेगा। तूने सुना कि नहीं, फ़ौरन इधर आ, नासपीटे!”

    बच्चा बहुत अनिच्छा से आता है। उसने हाथ में अपने आकार से कहीं बड़ा एक लट्ठ पकड़ रक्खा है। फिर अचानक वह विजयभाव से चिल्लाता है, “वह देखो, वह रहा! वहाँ घर के नीचे गया।” वह लट्ठ हवा में उठाकर दौड़ता है। इस सारी कार्रवाई के दौरान सबसे अधिक उत्तेजित होने वालों में है एक बड़ा-सा, पीली आँखों वाला काला कुत्ता, जो आख़िरकार अपनी ज़ंजीर तोड़कर खोलने में सफल हो जाता है और बदहवासी में साँप की ओर लपकता है। लेकिन उसे ज़रा सी देर हो गई है। तख़्तों के बीच की दरार पर उसकी थूथनी के टिकने से एक क्षण पहले ही साँप की पूँछ तख़्तों के नीचे ग़ायब हो चुकी होती है। लगभग उसी समय लड़के के लट्ठ का वार उस तख़्ते पर पड़ता है, जिससे कुत्ते की नाक बेतरह रगड़ खा जाती है। लेकिन इसकी तनिक भी परवाह किए बग़ैर वह कुत्ता, जिसका नाम ऐलिगेटर है, घर की पूरी नींव को उलट-पुलट डालने पर आमादा हो जाता है। बड़ी मुश्किल के साथ उसे शांत कर फिर से बाँध दिया जाता है। कुत्ते का वहाँ होना जरूरी है, वे किसी भी हालत में उसे खोना नहीं चाहते।

    सभी बच्चों को एक झुंड में कुत्ते के पास खड़ाकर चरवाहे की बीवी साँप की टोह लेना शुरू करती है। साँप को लुभाने के लिए वह दो छोटी तश्तरियों में दूध डालकर घर की दीवार के पास रखती है, लेकिन एक घंटा गुज़र जाने के बाद भी साँप बाहर नहीं निकलता।

    बाहर शाम ढलने वाली है और आसमान में तूफ़ान के आसार दिखाई दे रहे हैं। बच्चों को छत के नीचे ले जाना ज़रूरी है। वह उन्हें घर के भीतर नहीं ले जा सकती, क्योंकि वहाँ साँप है, जो किसी भी वक़्त ज़मीन पर बिछे तख़्तों के बीच से बाहर सकता है। जलाने वाली लकड़ियों को दोनों हाथों से उठाकर रसोईघर में रखने के बाद वह बच्चों को वहाँ ले जाती है। रसोईघर में कच्चा फ़र्श है। बीच में एक तख़्तनुमा टेबल है। वह चारों बच्चों को तख़्त पर चढ़ा देती है। दो बड़े लड़के और दो लड़कियाँ, जो अभी बहुत छोटी हैं। वह उन सब को खाना देती है और फिर अंधेरा होने से पहले घर में जाकर जल्दी से दो-तीन तकिए और कुछ कपड़े खींच निकालती है। ऐसा करते हुए उसे लगता है कि अभी वह साँप उसके सामने जाएगा। रसोईघर में जाकर वह तख़्त पर बच्चों का बिस्तर लगाती है और ख़ुद रात भर पहरा देने के लिए नज़दीक ही बैठ जाती है।

    उसकी आँखें तख़्तों से बनी रसोईघर और कमरों के बीच की दीवार पर टिकी हुई हैं। साँप से जूझने की तैयारी में उसने नज़दीक ही तिपाई पर कच्चे बेंत से बना डंडा रख लिया है। साथ ही उसकी बुनाई की टोकरी और किसी पुरानी पत्रिका का अंक है। कुत्ते को वह अपने साथ भीतर ले आई है।

    काफ़ी प्रतिवाद के बाद टॉमी आख़िरकार लेटता है, लेकिन उसकी ज़िद है कि वह सारी रात जागता रहेगा और साँप के दिखाई देते ही उस साले को कुचल डालेगा।

    उसकी माँ उसे डाँटती है कि ऐसे मवालियों की तरह गाली नहीं दिया करते! टॉमी ने अपना डंडा चादर के नीचे अपने साथ रक्खा हुआ है। उसका छोटा भाई जैकी प्रतिवाद करता है।

    “माँ, जैकी का यह डंडा मुझे चुभ रहा है। इससे कहो, इसे यहाँ से हटाए।”

    “चुपचाप सो जा छुटके! तुझे साँप से कटवाना है?”

    टॉमी की डाँट सुनकर जैकी चुप हो जाता है।

    “साँप ने काट लिया न,” कुछ देर बाद टॉमी कहता है, “तो तू फूलकर लाल-नीला हो जाएगा और तेरे अंदर से बदबू आने लगेगी। है माँ?”

    “चलो अब उसे डराना बंद करो और चुपचाप सो जाओ!” वह कहती है।

    दोनों छोटी लड़कियाँ पहले ही सो चुकी हैं। जैकी रह-रहकर शिकायत करता है कि वह बीच में दब रहा है। उसके लिए कुछ और जगह बनाई जाती है। फिर कुछ देर बाद टॉमी कहता है, “माँ, देखो, बाहर पॉज़म (छोटे आस्ट्रेलियाई जानवर) बोल रहे हैं। मेरा मन करता है इन सालों की गर्दन मरोड़ डालूँ!”

    जैकी उनींदे स्वर में प्रतिवाद करता है, “क्यों, इन सालों ने तुम्हारा क्या बिगाड़ा है?”

    “देखा!” माँ कहती है, “तुमने अपनी गाली-गलौज की ज़ुबान जैकी को भी सिखा दी है!” लेकिन जैकी के निरीह प्रतिवाद पर वह मुस्कुरा उठती है। इस बीच जैकी नींद में डूब चुका है।

    कुछ देर की ख़ामोशी के बाद टॉमी सवाल करता है, “माँ, तुम्हें क्या लगता है, वे इन साले कंगारुओं को भगा पाएँगे?”

    “हे भगवान! यह अब मुझे क्या मालूम, बच्चे! अच्छा, चल बहुत हुआ, अब सो जा!”

    “साँप निकला तो तुम मुझे जगा दोगी?”

    “हाँ, जगा दूँगी। अब सो जा चुपचाप!”

    आधी रात होने वाली है। बच्चे सब सो चुके हैं और बारी-बारी से कभी सिलाई का काम करती है, कभी पत्रिका के पन्ने उलटने लगती है। बीच-बीच में वह अपनी निगाहें फ़र्श और दीवारों पर भी दौड़ा लेती है। ज़रा-सी आवाज़ सुनाई देते ही उसका हाथ अपने डंडे की ओर चला जाता है। बाहर अंधड़ और तूफ़ान गरजना शुरू कर देता है तो दीवार के तख़्तों के बीच से भीतर घुसती हुई हवा के ज़ोर से मोमबत्ती बुझने-बुझने को होती है। वह उसे तिपाई के पीछे ताक पर रखकर हवा से बचाने के लिए उसके चारों ओर अख़बार का काग़ज़ बाँध देती है। बिजली की हर कड़कड़ाहट के साथ तख़्तों के बीच की दरारें चाँदी की तरह चमकती हैं। फिर उसके बाद अंधड़ के साथ मूसलाधार बारिश गिरने लगती है।

    ऐलिगेटर अपनी निगाहें रसोईघर और कमरों के बीच की दीवार पर टिकाए फ़र्श पर लंबा लेटा हुआ है। इससे औरत को यक़ीन हो जाता है कि साँप वहीं कहीं है। तख़्तों की दीवार के निचले हिस्से में कई बड़ी-बड़ी फाँकें हैं।

    ऐसा नहीं कि वह डरपोक है, लेकिन पिछले कुछ समय की घटनाओं ने उसके आत्मविश्वास को हिलाकर रख दिया है। एक तो अभी हाल ही में उसके देवर के छोटे बेटे को साँप ने काटा और वह मर गया। और फिर पिछले छः महीनों से उसके पति की कोई ख़बर नहीं है, जिससे अब उसे ख़ासी चिंता होने लगी है।

    उसका पति पहले चरवाहा था। फिर उसके बाद अपने मवेशियों के साथ वह इसी इलाक़े में बस गया था। लेकिन पाँच बरस पहले के सूखे ने उसे बरबाद कर डाला। बचे-खुचे मवेशियों को बेचकर उसे फिर से दर-दर भटकने वाले चरवाहे का जामा पहनना पड़ा। अब लौटकर आने के बाद उसका इरादा अपने परिवार के साथ नज़दीक के किसी शहर में बस जाने का है। इस बीच उसका देवर, जिसका घर मुख्य सड़क पर कुछ आगे है, महीने में एक बार उनके लिए रसद-पानी लेकर आता है। औरत के पास अब भी दो गायें, एक घोड़ा और कुछ भेड़ें बची हुई हैं। उसका देवर बीच-बीच में एकाध भेड़ को मारकर उन्हें अपनी ज़रूरत के मुताबिक माँस देता है, और बाक़ी का माँस अपने लाए गए रसद-पानी के मुआवज़े के रूप में वसूलकर ले जाता है।

    उसे इस तरह अकेले छूटने की आदत है। एक बार तो वह अट्ठारह महीनों तक यहाँ अकेली थी। लड़कपन में वह तरह-तरह के हवाई क़िले बनाया करती थी, लेकिन उसके सारे लड़कियाना मंसूबे और ख़्वाब बहुत पहले ही टूटकर बिखर चुके हैं। अब सारा मनोरंजन और उत्साह उसे पत्रिकाओं में छपने वाली रंगीन तस्वीरों में ढूँढना होता है।

    वह और उसका पति, दोनों ऑस्ट्रेलियाई हैं। थोड़ा लापरवाह होने के बावजूद उसका पति बहुत अच्छा है। अगर उसके पास हैसियत होती तो वह उसे शहर ले जाकर किसी राजकुमारी की तरह रखता। उन्हें, या कहना चाहिए कम से कम उसे, अब अकेलापन ज़्यादा परेशान नहीं करता। अपने लंबे प्रवास के बीच पति को चाहे यह याद रहता हो कि पीछे उसके बीवी बच्चे हैं, लेकिन लौटने पर अपनी कमाई का अधिकांश हिस्सा बीवी के हाथ में देना वह कभी नहीं भूलता। पैसे होने पर एक बार वह रेलवे में डिब्बा लेकर उसे शहर की सैर भी करवा चुका है। एक वक़्त उसके लिए उसने एक बग्घी भी ख़रीदी थी, लेकिन तंगी के दिनों में बाक़ी चीज़ों के साथ उन्हें उसे भी बेच देना पड़ा।

    उसकी दोनों छोटी लड़कियाँ इस उजाड़ में ही पैदा हुई हैं। एक वक़्त तो उसका पति इलाक़े के शराबी डॉक्टर को ज़बर्दस्ती पकड़कर लाने के लिए गया हुआ था और वह अकेली थी। ऊपर से बुखार के कारण उसे कमज़ोरी भी बहुत थी। वह मना रही थी कि ईश्वर उसकी मदद के लिए किसी को वहाँ भेज दे। और सचमुच वहाँ एक काला आदमी आया था, जिसने उसे देखने के बाद फ़ौरन घाटी के उस पार से अपनी बूढ़ी माँ को बुला लाने का निर्णय ले लिया था।

    यहाँ अकेले रहते हुए ही उसका एक बच्चा चल बसा था। मरे हुए बच्चे को साथ लिए, मदद की तलाश में तब उसने उन्नीस मील का सफ़र घोड़े की पीठ पर तय किया था।

    अब रात का एक बज चुका होगा। आग धीमी पड़ने लगी है। अपना सिर अपने दोनों अगले पंजों पर टिकाए ऐलिगेटर दीवार की ओर घूरता जा रहा है। देखने में वह बहुत सुंदर कुत्ता नहीं है और उसके पूरे शरीर पर जगह-जगह ज़ख्मों के निशान हैं। लेकिन दुनिया में कोई ऐसी चीज़ नहीं है, जिससे उसे डर लगता हो। मच्छर से लेकर साँड तक का मुक़ाबला वह उतनी ही बहादुरी के साथ कर सकता है। दुनिया के सारे दूसरे कुत्तों से उसे नफ़रत है और उस घर में दोस्तों या रिश्तेदारों का आना भी उसे सख़्त नापसंद है। ग़नीमत है कि भूले-भटके ही यहाँ कोई आता है। कभी-कभी अजनबियों से भी उसकी दोस्ती हो जाती है। और हाँ, साँपों से उसकी ज़ाती दुश्मनी है और वह जाने कितने साँपों को मौत के घाट उतार चुका है। लेकिन दूसरे लड़ाकू कुत्तों की तरह किसी दिन साँप के काटने से मर जाना ही शायद उसकी नियति है।

    बीच-बीच में औरत अपने हाथ का काम छोड़कर देखती है, सुनती है और सोचती है। उसकी सोच अपनी ख़ुद की ज़िंदगी के बारे में होती है। इसके अलावा उसके पास सोचने के लिए और है भी क्या!

    बारिश के बाद घास फिर से उग आएगी। उसे याद है कि कैसे एक बार पति की अनुपस्थिति में उसने झाड़ियों में लगी आग का मुक़ाबला किया था। जलती हुई लंबी, सूखी घास उनके पूरे वजूद को जला डालने पर आमादा थी। उसने अपने पति की पुरानी पतलून पहनकर एक हरी डाल से आग का मुक़ाबला किया था। तब उसका सारा चेहरा आग की कालिख से पुत गया था। फिर एक बार पति की अनुपस्थिति में ही पूरे इलाक़े में निरंतर बरसात से बाढ़ का ख़तरा पैदा हो गया था। मूसलाधार बारिश में घंटों खड़े रहकर उसने घाटी पर बने बाँध को बचाने के लिए फावड़े से पानी के निकलने के लिए रास्ता बनाया था। लेकिन तमाम कोशिशों के बावजूद अगली सुबह बाँध टूट गया था और उनकी बरसों की मेहनत पानी में बह गई थी। तब वह अपनी रुलाई रोक नहीं पाई थी। फिर एक बार जानवरों में प्लूरो-निमोनिया की बीमारी फैली थी तो वह अपने हाथों से उनकी ख़ून भरी बलगम साफ़ करती रही थी। लेकिन फिर भी उसकी दो सबसे प्यारी गायें इस बीमारी की भेंट चढ़ गई थीं। और उसे वह दिन भी याद है जब एक पगलाए हुए साँड ने घर पर हमला बोल दिया था। उसने अपने हाथों से बारूद के कारतूस बनाकर उन्हें एक पुरानी बंदूक़ में भरा था और फिर दीवार के तख़्तों के बीच बनी दरारों के भीतर से वह उन्हें साँड पर दागती रही थी। सुबह होने तक साँड मरा हुआ पाया गया था और उसकी चमड़ी की बिक्री से उसने साढ़े सत्रह डॉलरों को कमाई की थी।

    वह उन कौऔं और चीलों का भी मुक़ाबला करती है, जिनकी नज़र उसकी मुर्ग़ियों पर होती है। उन्हें भगाने का उसका तरीक़ा भी अनूठा है। बच्चों के “माँ, कौए!” चिल्लाते ही वह बाहर दौड़कर आती है और झाड़ को बंदूक़ की तरह हाथ में लेकर कौओं पर निशाना साधती है। उसके मुँह से ‘बूम!’ की आवाज़ निकलते ही कौए घबराकर उड़ जाते हैं। कौए शातिर हैं, लेकिन औरत की चतुराई के आगे उनकी एक नहीं चलती।

    कभी-कभार जब उसका साबका किसी मवाली या इस ओर रास्ता भूल गए किसी गुंडे-बदमाश से पड़ता है तो उसकी जैसे जान ही निकल जाती है। संदेहास्पद दिखने वाला कोई भी अजनबी जब घर के मालिक के बारे में पूछता तो वह उसे बताना नहीं भूलती कि उसका पति और दो बड़े लड़के नीचे बाँध पर काम कर रहे हैं। पिछले हफ़्ते सामान का गट्ठर पीठ पर लादे डरावने चेहरे वाले एक मुसाफ़िर ने, यह तय कर चुकने के बाद कि वहाँ आसपास कोई मर्द नहीं है, उसकी चौखट पर आकर कहा था कि वह बहुत भूखा है। जब उसने उसे खाना दिया था तो खा चुकने के बाद अपना बिस्तर पीठ से उतारकर उसने रात वहीं गुज़ारने का फ़रमान सुनाया था। तब उसने भीतर से एक छड़ी निकाली थी और कुत्ते की ज़ंजीर खोलकर वह सीधे उससे मुख़ातिब हुई थी। “अब तुम यहाँ से जाओ!” उसने सख़्त स्वर में आदेश दिया था। उसकी मुखमुद्रा और कुत्ते के तेवर देखकर वह मुसाफ़िर तुरंत वहाँ से चलता बना था।

    रात के सन्नाटे में अकेले साँप की पहरेदारी पर बैठे हुए वह किसी भी ऐसे विशेष सुख को याद नहीं कर पाती जो उसे अपनी ज़िंदगी में नसीब हुआ हो। उसके लिए सभी दिन लगभग एक जैसे हैं। सिर्फ़ रविवार की दोपहर को वह कपड़े बदलती है, बच्चों को नहला-धुलाकर सँवारती है और फिर झाड़ियों के बीच बनी पगडंडियों पर अकेली सैर के लिए निकल जाती है। उसके आगे ‘प्रैम’ में उसकी छोटी बच्ची होती है। हर रविवार वह अपने-आपको और बच्चों को यूँ तैयार करती है, जैसे वे शहर में घूमने के लिए जाने वाले हों। लेकिन झाड़ियों की उस एकाकी सैर के दौरान तो कुछ देखने को होता है, किसी से मिलना होता है। अगर इस एकसार इलाक़े की जानकारी हो तो बीसियों मील तक लगातार चलने के बाद भी किसी ख़ास जगह या मोड़ की शिनाख़्त करना मुश्किल होगा।

    हर जगह एक जैसी बौनी झाड़ियों का अंतहीन नज़ारा किसी को भी पागल बना देने के लिए काफ़ी होगा, लेकिन उसे इस अकेलेपन की आदत पड़ चुकी है। नई नवेली दुल्हन के रूप में उसने इस ज़िंदगी से बेइंतहा नफ़रत की थी, लेकिन अब वह इसकी इस कदर अभ्यस्त हो चुकी है कि किसी और तरह की ज़िंदगी से शायद उसे उलझन होने लगे।

    जब उसका पति लौटता है तो उसे ख़ुशी महसूस होती है। लेकिन वह इसका इज़हार करती है, भावातिरेक में डूबती है। सिर्फ़ खाने में वह कोई अच्छी चीज़ बनाती है और बच्चों को सजा-सँवारकर नए कपड़े पहनाती है।

    शायद वह अपनी ज़िंदगी से संतुष्ट है। अपने बच्चों को वह बेहद प्यार करती है, लेकिन उसे कभी अपने इस प्यार को व्यक्त करने का मौक़ा नहीं मिला। अकसर वह उनके साथ बहुत सख़्ती से पेश आती है। शायद यह माहौल ही ऐसा है कि इसमें स्त्रियोचित कोमलता के इज़हार की कोई गुंजाइश नहीं है।

    ***

    अब रात का तीसरा पहर बीतने को होगा, लेकिन उसकी घड़ी कमरे में छूट गई है। मोमबत्ती भी तकरीबन बुझने वाली है। उसे याद ही नहीं रहा कि उनकी मोमबत्तियाँ ख़त्म हो गई हैं। आग के जलते रहने के लिए कुछ और लकड़ियों की ज़रूरत होगी। कुत्ते को अंदर बंद कर वह बाहर लकड़ियाँ लेने के लिए आती है। बरसात अब थम चुकी है। लेकिन एक लकड़ी लेने के लिए जब वह उसे ढेर से खींचती है तो सारा ढेर भरभराकर ढह जाता है।

    कल उसने एक राह चलते छुट्टे मज़दूर से लकड़ियाँ लाकर इकट्ठी करने के लिए कहा था। वह जब काम कर रहा था तो वह अपनी गाय को ढूँढने निकल गई थी। कोई एक घंटे बाद जब वह लौटी थी तो मज़दूर ने चिमनी के पास लकड़ियों का एक ख़ूब बड़ा-सा ढेर सजा दिया था। इतने कम समय में इतनी लकड़ियाँ, उसने ताज्जुब किया था। मज़दूर की ईमानदार मेहनत से ख़ुश होकर उसने उसे तंबाकू की एक अतिरिक्त पुड़िया इनाम में दी थी। साथ ही उसकी तारीफ़ भी की थी कि वह दूसरे मज़दूरों की तरह आलसी नहीं है। मज़दूर ने उसे धन्यवाद दिया था और छाती फुलाए वहाँ से चला गया था। बेशक वह मज़दूरों के बीच एक शहंशाह रहा होगा, लेकिन सावधानी से सजाया गया उसका लकड़ियों का ढेर अंदर से बिल्कुल खोखला था।

    ठगे जाने के अहसास से उसकी आँखों में आँसू उमड़ आते हैं और वह कमरे में लौटकर फिर से टेबल के पास बैठ जाती है। रूमाल से वह अपनी आँखें पोंछने की कोशिश करती है तो उसकी उँगलियाँ उसकी आँखों में गड़ जाती हैं। वह देखती है कि उसके रूमाल में कई छेद हैं और उसकी उँगलियाँ उन छेदों के भीतर से निकलकर उसकी आँखों को छू रही हैं।

    वह हँसने लगती है और उसकी इस अचानक हँसी से कुत्ता चौंक जाता है। छोटी-छोटी मूर्खताएँ कभी-कभी उसे बेतरह हँसा जाती हैं। एक बार उदासी के मारे जब उसका मन फूट-फूटकर रोने को हुआ था तो अचानक उसकी बिल्ली उसके नज़दीक आकर अपना शरीर उसके गालों पर रगड़ने लगी थी गोया कि उसे भी रोना रहा हो। तब उसके सामने हँसने के सिवा कोई चारा नहीं रह गया था।

    ***

    अब सुबह होने में बहुत देर नहीं। जलती हुई आग की वजह से कमरे में बेतरह घुटन और गर्मी है। ऐलिगेटर अब भी रह-रहकर दीवार की ओर देखने लगता है। अचानक वह काफ़ी उत्तेजित होकर दीवार के बिल्कुल क़रीब सरक आता है। उसकी पीठ के बाल खड़े होने लगते हैं और उसकी चमकती हुई आँखें कुछ अतिरिक्त चौकन्नी हो जाती हैं। वह जान जाती है कि इसका क्या मतलब है और उसका हाथ ख़ुद-ब-ख़ुद नज़दीक ही रक्खी छड़ी की ओर चला जाता है। बीच की दीवार के एक तख़्ते में नीचे की ओर दोनों तरफ़ एक बड़ी-सी फाँक है। उसके भीतर अचानक दो मनकों जैसी चमकदार छोटी-छोटी आँखों का जोड़ा दिखाई देता है। बिल्कुल काले रंग का साँप धीरे-धीरे लगभग एक फुट बाहर निकलकर आता है और अपना सिर ऊपर-नीचे हिलाता है। कुत्ता चुपचाप बिना हिले-डुले लेटा है और वह भी मंत्रविद्ध-सी बैठी देखती चली जाती है। फिर वह धीरे-धीरे अपनी छड़ी हवा में उठाती है, जिससे साँप शायद ख़तरे की टोह पाकर तख़्ते के दूसरे छेद में अपना सिर घुसाकर जल्दी से वापस लौट जाना चाहता है। इसी क्षण ऐलिगेटर झपटता है, लेकिन साँप का सिर तख़्ते की फाँक के भीतर जा चुका है। उसके पीछे-पीछे उसकी पूँछ बाहर निकलती है तो ऐलिगेटर फिर से झपटता है और इस बार पूँछ का एक हिस्सा उसकी पकड़ में जाता है। वह उसे कोई डेढ़ फुट बाहर खींच निकालता है। धम्-धम्! औरत का डंडा बरसता है। ऐलिगेटर कुछ और खींचता है तो पूरा साँप बाहर जाता है, वह पूरे पाँच फुट लंबा काला धामन है। वह इधर-उधर भागने की कोशिश करता है, लेकिन कुत्ते ने उसे गर्दन के क़रीब ही जकड़ लिया है। भारी-भरकम होते ऐलिगेटर बेहद फुर्तीला है। मुँह में दबोचे साँप को वह इस वहशत के साथ झिंझोड़ता है, जैसे उस नस्ल से उसका कोई पुश्तैनी बैर हो। इस शोर के बीच बड़ा बेटा जाग जाता है और अपना डंडा हाथ में लेकर बिस्तर से उतरने की कोशिश करता है, लेकिन उसकी माँ उसे झिड़ककर वहीं रोक देती है। धम्, धम्! साँप की कमर कई जगह से चकनाचूर हो चुकी है। धम्, धम्! उसका सिर कुचल दिया जाता है और इसके साथ ही कुत्ते की थूथनी फिर से खरोंची जाती है।

    क्षत-विक्षत साँप के शरीर को वह अपनी छड़ी से उठाती है, फिर उसे आग के पास ले जाकर एक झटके के साथ भीतर झोंक देती है। कुछ और लकड़ियाँ डालकर वह चुपचाप साँप का जलना देखती जाती है। लड़का और वह कुत्ता भी उसी की तरह एकटक आग को देख रहे हैं। वह अपना एक हाथ कुत्ते के सिर पर रखती है तो उसकी पीली आँखों की सारी वहशत भरी चिंगारियाँ जैसे बुझकर शांत हो जाती हैं। तख़्त पर छोटे बच्चे कुनमुनाते हैं और ज़रा-सा थपकाए जाने पर फिर से नींद में डूब जाते हैं। मैली टाँगों वाला बड़ा लड़का कुछ क्षणों के लिए आग की ओर देखना जारी रखता है, फिर माँ की ओर पलटता है। माँ की आँखों में आँसू भर आए हैं। लड़का आवेग में अपनी दोनों बाँहें माँ की गर्दन के गिर्द डालकर गाली देते हुए कहता है, “तुम्हारी क़सम माँ, मैं कभी, कभी भी भेड़ें चराने के लिए जाऊँ तो कहना...”

    वह अपने बेटे को सीने से लगाकर उसका मुँह चूम लेती है। फिर कुछ देर तक वे उसी तरह एक-दूसरे में गुंथे बैठे रहते हैं। बाहर झाड़ियों पर अब सुबह की पहली रोशनी फूटने को है।

    स्रोत :
    • पुस्तक : विश्व की श्रेष्ठ कहानियाँ (खण्ड-2) (पृष्ठ 277)
    • संपादक : ममता कालिया
    • रचनाकार : हेनरी लॉसन
    • प्रकाशन : लोकभारती प्रकाशन
    • संस्करण : 2005
    हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

    हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

    ‘हिन्दवी डिक्शनरी’ हिंदी और हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों के शब्दों का व्यापक संग्रह है। इसमें अंगिका, अवधी, कन्नौजी, कुमाउँनी, गढ़वाली, बघेली, बज्जिका, बुंदेली, ब्रज, भोजपुरी, मगही, मैथिली और मालवी शामिल हैं। इस शब्दकोश में शब्दों के विस्तृत अर्थ, पर्यायवाची, विलोम, कहावतें और मुहावरे उपलब्ध हैं।

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