सूरज ढले छग्गी पोखर टोले पहुँची थी। धनुष की ढब मुड़ी बाँस की खपच्चियों पर सधी अपनी झुग्गी के सामने, कंधे पर झूलते तार के छींके-पिंजरे पटक कर उसने हाथ झटक दिया। फिर ओछे हाथ को पूरे हाथ से सहलाकर सामने देखा—नरसिंघा मरी चाल से बढ़ा आता था। उसके कंधे पर टिकी सोटी पर रबर के डोरे में बँधे तोता-मैना सटे हुए डोल रहे थे। उसे लगा भोर को जितने तोता-मैना थे, उतने ही अब भी हैं। एक कड़वाहट उसके सूखे गले में उतर गई।
पोखर की पुलिया पर बैठे फन्ने ने दोनों माँ-बेटों को झुग्गी के सामने जो देखा तो लकड़ी के सहारे टाँग उछालता उनके पास चला आया। थोड़ी देर चुपचाप रहा। छींके-पिंजरे और काग़ज़ी तोता-मैना के ढेर को देखकर उसने दोनों आँखें तरेर कर घूरा और बिना कुछ बोले झुग्गी के सिरे पर बिखरे अधबने खिलौनों को झल्ला कर एक ठो करने लगा। फिर एकाएक सामने पड़े खिलौनों और छींके-पिंजरों को दोनों के सर पर मार गालियाँ बकने लगा।
“अब और पिंजरे-खिलौने बनाकर तुम दोनों के बापों को उसमें धरूँ-बहलाऊँ?”
“अरे! कुल्लाय क्यों है, इन छींके-पिंजरों पर कोई हाथ न धरे तो मैं क्या करूँ? किसी के गले बाँध दूँ, इन्हें?”
“...तू न बँध जा किसी के गले? इधर को गला फाड़ती, बस्ती-बाज़ार में बोल नी फूटता के ले लो छींका-पिंजरा...”
“अरे दिन भर बोला...गला फाड़ा पर कोई आँख न उठी। एक बाबू ने देखा, बोला, ‘घरवाली पसंद करे तो ले डालूँ’... घर तक ले गया पर घरवाली थी कहाँ? लंडूरा था। मुझे ही बुलाने लगा घर में।”
“...फिर क्या?’ थूककर पलट आई।”
“...वा रे सती! सावतरी! थोड़ी पसर लेती तो कौन रूप ढल जाता?”
“...मरद है कि सूकर?...लाज कर।”
“...ओ लजवंती! जो सोईं नहीं आज तक इधर-उधर?”
“...मूंडकटे! मर, तेरे जैसे मरभूखे मेरे बाप ने ही इधर-उधर किया मुझे। बस, अपने मन से तो मूता भी नी तेरे मूँ में।”
“...पूतनी है। सिकल देखी पोखर में? चमड़मढ़ी ठट्ठर, बजाओ तो ढब-ढब...बने हैं रसीली...खुसक पोखरी, बिछी ज़रूर होगी वहाँ, ऐंठा होगा कुछ, यहाँ चलित्तर दिखा रही। दिखा अंटी?”
“...ले देख अपनी माँ भेण का”, कहते हुए उसने दो हाथ का लीतरा ही नहीं, फटियल चोली तक उतार फेंकी। भन्नाती हुई बोली, “ओर दिखाऊँ तेरे को तेरी जनम-जगा?”
“...अरी! परा समेट रूप अपना? बालक देखेंगे तो खौफा जाएँगे। कोई मरद जो यें देखेगा तो मरदानगी मर जाएगी उसकी।”
“...तू तो मरदुआ नहीं? मेरे को देख, तेरा मरद तो मर ही गया। खोदी है, जो खोदेगा नहर। भोथरा भट्टा मरद बने हैं।”
“री मा! खो-खों ही करेगी या खाने का जुगाड़ भी बैठाएगी? भूख लगी है।” नरसिंघा चुप दोनों की बतभेड़ देख रहा था; अब बोला।
“ले खिला खसम को अपना मूंड।”
“खसम होगा तेरी भेण का, मेरा तो बेट्टा है।”
“बता, अपने बाप की माँ के खसम! कित्ता लाया? तोता-मैना तो जूँ ही बैठे हैं तेरी माँ की मुँडेर पे” फन्ने ने नरसिंघा से पूछा।
“बप्पा! अब तो इन काग़ज़ के तोता-मैना को कोई न पूछे। पिलास्टिक के खिलौने ला दे, वो बेच लूँगा।” उसने खीसे झाड़ कर कुछ सिक्के सामने धर दिए।
“मर साले पिलास्टीक गई तेरी माँ की पोपली पेंदी में”, उसने तोते गिनते हुए कहा, “अरे! जे तो आठ हैं, मैना पंदरा और गुलदस्ते तो जो के जो हैं। पैसे कित्ते हैं।” नब्बे, कुल? मा-खोर! बीस में से आठ बचे। बारा तोतों के एक बीस तो जे ही और मैना के पचास अलग; कुल एक सित्तर का बेच हुआ—दे, बाक़ी किधर को?”
“पचास की पोस्त और...”
“और क्या, बाक़ी माँ के यार को चटा दिए?”
“दूँ एक झाप, बता?”
“एक चा और पाँच की मूँगफली।”
“कंजर कूँ हज़ार बार बोला, दो का बिकरा हो तो ‘चा’ पिया कर।” फन्ने ने तन्ना कर एक थप्पड़ नरसिंघा को जमा दिया।
“क़साई क्यों मारे है? दिन भर भूखा डोला, एक चा पी ली तो कौन तेरी कुँआरी भेण का दूध पी गया?”
“आए छिनलिया! चुप कर, इसने अपनी ही कुँआरी माँ का दूध पिया है, नी तो...बारा बजे से, तेरा बाप बाबू लोगों के कैंटिन के पास डोलता रहा। जूठन-फेंकन से पेट भरा...साँझ को फिर आ गया ठूँसने। मेरी झुग्गी में अब तुम दोनों के लिए कोई ठौर नहीं। मरो पल्ले कोने में। फन्ने ने बीड़ी सुलगाई और धौंकने लगा।” रुक कर बोला, “अब आना बेट्टे पोस्त पीने!”
“मैंने हज़ार टेम बोला तेरे कूँ, इस लौंडे को पोस्त की लत मत डाल... ” छग्गी उफन कर बोली।
“पोस्त की लत न हो तो, बेट्टा कल ही भाग खड़ा होगा। इसी से बँधा हेगा।”
“ओ नीच! तो जूँ पाल रखा है मेरे नरसिंघे को?”
“नी, तो तेरे रूप पे रीझा था? इसी खूटे के बल तेरे को गले बाँधा था, नी तो तू है कौन? समझ ले अब इसी लौंडे-लीतरे पर चलेगी तेरी रोटी।” तीनों के बीच चुप्पी तनी रही। थोड़ी देर बाद छग्गी ने आगे हाथ बढ़ा फन्ने के मुँह से बीड़ी झपट ली और सुट्टे लगाते हुई बोली, “ले ये डेढ और ले आ अद्धा।” उसने चोली के गूमड़ में से गाँठ निकाली।
“कब से सहेज रखे हैं?” फन्ने के गुंजल चेहरे पर तनाव रुका और बिला गया, बोला, “तो ले लौंडे, पोस्त तोड़ और भिगो, आया मैं” और वह लकड़ी के सहारे लँगड़ी टाँग उचकाता उठ खड़ा हुआ।
* * *
सूखे-भीगे, झाड़-झक्खड़ भरे, तपते-ठिठुरते बरसते-रिसते उनके दिन और रात वहीं पोखर में खपते थे। वहीं बच्चे जनमते, किलकिलाते, बिलबिलाते, बढ़ते और किसी को अपने बेहाल-बेघर होने का गुमान तक न होता। पर इस बार पूस, ठंडी आग बखेरता आया। ठंडी के साथ बेधने वाली बयार उनके कंकाल को खंगाल गई। बूढ़े कँपकँपाने लगे। टाबर दाँत किटकिटाते, बड़े-मोटियार झुरझरी नहीं झेल सके और नन्हें तो लंबे ही हो गए।
वैसे अनोखा-अनभोगा कुछ भी नहीं था। ऐसे मौसम पहले भी आए थे और ठसक बता बीत गए थे। पर इधर जब से थे। पर इधर जब से रैन-बसेरों की बात पोखर टोले में चली, तभी से सब एक ठौर जुड़े थे और रातें उधर ही रैन-बसेरा में काटने की ठानी थी।
रैन-बसेरे में आज पहली ही रात काटकर टोले के भाइले-भाइयों और मा-भैणों ने आँखें खोली थीं। बसेरे के फेराव में उन्हें अजीब-सा लगा, जैसे दूजे देस नहीं दूजे लोक आ गए हों।
पेटी में बंद मुर्गे की बाँग के साथ ही टोले में तू-तू मैं-मैं, रोना-पीटना मच जाता था। यही उनके जीने-जागने की पहचान थी। आदमी लुगाई के झोंटे नोचते, लुगाई मरद की मूंछ उखाड़ लेती थी और फिर एक-दूसरे की आसकी-मासकी बखानी जाती।
“तू तेरे भेण के मरद के साथ सोई।”
“तूने तेरी भौजी संग मूँ काला किया।”
“तू चोर।”
“तू छिनाल।”
“तेरा बाप धाड़वी।”
“तेरी माँ के चलित्तर देखे।”
“ये मेरा मूत नी तेरे भाई का तुखमा।”
“ऐ, लाज मर, में नी बोल दूँ, तेरा मूत तेरी भेण की कोख।”
“ओ चंडिये।”
“ओ रंडुए।”
“खसमखानी, आदमखोर।”
“लुगाई का रज पी ली, नीच।”
पोखर टोले में यही सब चलता। फिर साँझ को जुटाए फूस-फाचर, काग़ज़-कूड़ा, टहनी-ठूँठे धधकते, बीड़ियाँ सुलगतीं। रात के भीगे पोस्त के छिलके आग पर धरे काले-कठियाए डिब्बे में खौलते, खुदबुदाते, फिर चीकट धोती के छोर से छन-छनाकर टूटे हैंडिल के मगों में ढल जाते। पोस्त की गंधियाई भाप में वे एक-दूसरे का मुँह जोहते और कभी चहक और कभी अनबोले बोल के साथ उसके अपने सूखे गले की घाटी में उंडेल लेती। आकाश की काली टूटकर जब उनके आँखों के डोरों में बस जाती तो वे पोखर-पुलिया से सूरज का चढ़ना देखते। बूढ़े-बड़े मोटियार, नाले पर खड़े चायवाले सिंधी के खोखे के आगे जा बैठते। फिर बोल के गोल फूटते, फिर झंझट-झग्गड़ होता। हाथापाई तक की नौबत आ जाती। किसी को अजब नहीं लगता। सब जानते थे, ये रोज़ होता है। लोग देखकर भी अनदेखे निकल जाते। चाय की सुड़क के साथ फिर खों-खों होती, फिर दाँतों में बीड़ियाँ दबा टोली बिखर जाती, रोज़ी-रुजगार के लिए। किसी के कंधे पर टीन के कनस्तर पीटने, ठीक करने के औज़ारों की पेटी झूलती, किसी के सर पर चीनी-काँच के बरतन और फटे-जूने कपड़े होते। कोई काग़ज़-गत्ते के खिलौने लिए होता। दिन में कभी-कभार मिलना होता, साँझ पड़े फिर जुड़ते...फिर ज़िंदगी बजने लगती।
“तू पी आया कमाई, तेरा चाँचर राँधूँ?”
“तू खा आई कबाब-कचालू, अब खा गू-गोबर।”
“मूँडकटी मा को, बीड़ी-चा चटानी थी तो उसी के संग सोता; राँड क्यों लगाई गले?”
“बाप बूढ़ल के मूँ में दारू क्यों मूता? जा उसी से अपनी टाँग गरमा।”
“मूत हरामी का दूध मेरा,” बोल के साथ कोई माँ चिथयाई छाती ठूस बच्चे को धबक देती।
रात के बसियाए गले में, भोर-किरन के पथराए जाने पर भी जब पोस्त-रस न उतरा तो रैन-बसेरे में ही बकझक की झड़ी लग गई। आज वे सरकार और नेताओं के माँ-बापों को बखान रहे थे। उनसे रिश्ता-नाता जोड़कर चिल्ला रहे थे—बस एक टटरा गोदाम सा खोल दिया और बकरों-बैलों की जूँ भर दिया सबको। चा-पानी कुछ भी नहीं। कोई नौ बजे प्रबंधक जी आए तो कुहराम मचा था। गंदगी अलग। सब देख-सुनकर उन्होंने माथा पीट लिया और पोखर टोले वालों को निकाल बाहर किया। वे बकझक करते, गालियाँ उछालते रैन-बसेरे से बाहर आ गए।
***
साँझ घिरे पोखर टोले ने आज फिर साँस ली। उखड़े बाँस-खपच्चियाँ फिर खड़े हुए थे और टीन-टाट ने तनकर बित्ते-भर ज़मीन को आकाश की छाँव से काट दिया था। दस-बीस झुग्गियाँ फिर उभर आई थीं जैसे-तैसे पहर बिलमायों भोर हुए, फिर जुगत जुड़ी और दिनों की चलते आज चिल्ल-पों कम थी। बीड़ी के सुट्टों से खोलियों में धुआँ अटा जा रहा था।
“खेल-खिलौने कोई लेवे नी, छींके, पिंजरों के दिन गए। अब यूँ कैसे चलेगा?” छग्गी ने अपनी छठी अंगुली चटकाते हुए कहा। “अपना तो टेम टल गया, नरसिंघा बिन खाए नहीं रेणे का।”
“तू करे ना कोई जुगाड़? तेरे तो बीस ऊपर एक उँगली है।”
“जासती उंगली दीख रही है। भगवान ने जो दो की ठौर डेढ़ ही हाथ दिया वो दीदे में नी आता।” उसने अपने ठँठे से हाथ को नचा कर कहा।
“किचकिचाने का टैम नी। छोकरे को मना ले, सब फिर चल जाएगा।”
“छोकरे को क्या करना बोल?” उसने गूदड़ी में पड़े नरसिंघा के धूसर बालों में अंगुलियों से कंघी करते हुए पूछा।
“इसे करना कुछ नी...बस बजरंग बली बनना है।”
‘बजरंगबली...हनुमान?”
“ऐसे पूछ री है चूँ हिंदू नी, तुरक हो।”
“बोल भी कराएगा क्या उससे?”
“कुछ नी बस...उसकी देह एक लाल लंगोट धार देंगे...सिंदूर से बदन पोत देणा है, फिर मूँ में रामगोला ठूँस के बाल धोने की मिट्टी से लीप, पीछे बनार-पूँछ खोंस, खप्पर थमा उसे सहरी-बस्ती में डोला देंगे। कुछ तो धरम लोगों में है, दान-दच्छिना मिल ही जाएगी।”
“इसके मूँ में रामगोला ठूँसेगा? ऊपर मिट्टी पोतेगा? मेरे बछड़े का दम नहीं घुट जाएगा?”
“तेरा जना, दूधमुहा कुँवर कन्हैया जू नी, दस ऊपर दो का धींग है-उसकी जवानी नाक-काँख के नीचे फूट रही। समझेगी नी और बकबक लगा देगी। सुन, इसे थोड़ा नाक से साँस लेने की आदत बनानी पड़ेगी। दो-एक दिन यहीं रबत डाल देंगे। आज से ही ले।”
“ये क्या करतब हुआ भला पेट पालने का? मेरे बेटे की साँस में नी बंद करने की।”
“यूँ तो साँस बंद नी होगी। खाने को जी नी मिलेगा तो उसकी तो क्या तेरी भी बंद हो जाएगी। पोस्त का पानी जो गले नी उतरा तो बैठा नी होना, मरा पड़ा रहेगा। उधर उसकी महतारी का मूतना-हगणा रुक जाएगा।”
“और तू कौन पहाड़ चढ़ आएगा, तेरी आँख नी उधड़ने की। मेरी कोख फटी है न...अपना तुखम होता तो लगता।”
“अरे! मेरा तुखम होता तो कौन राज करता? इधर-उधर मोटे-मानुस की सेवा-टहल में खुटता, मिमियाता डोलता, या तेरी-मेरी तरज पर भूखों मरता। मरता...तू नी चाहे तो मुझे क्या पड़ी? मैं फिर छींके-पिंजरे गढ़-गाँठ दूँगा, रद्दी कागद गत्ते के फिर मोर-चिड़िया बना दूँगा। लिए डोलना उन्हें, उड़ाने-बेचने को...तू जाणे अपनी तो डेढ़ टाँग है, उसे लेकर लँगड़ाता-लठियाता चल भर सकूँ हूँ।” इतना बोल फन्ने ने पास बिखरे ‘मज़बूत इरादा’, ‘कड़ी मेहनत’ ‘पक्का अनुशासन’ वाले पोस्टरों को सहेज लिया और खिलौनों के लिए कतर-ब्यौत करने लगा।
‘जय बजरंग बली, तोड़ दुश्मन की नली!’ के ऊँचे बैन के साथ नरसिंघा को हनुमान का रूप धरा, फन्ने ने जब झुग्गी के बाहर किया तो टोलेवाले हँसते-खिल्लाते अचरज-अचंभा करने लगे।
“अरे ओ फन्ने! जो मानुसजात को बानर क्यों बना दिया रे?” तगड़े हूँ रे ने डटियाते हुए पूछा।
“धौंकनी के! जीभ जलेगी, बजरंगबली कूँ बानर बोले। बोल जय हनुमान!” छग्गी ने साथ दिया तो पास खड़ी लुगाइयों ने भी दोहरा दिया।
“माँ-बाप से मँजूरी-मता नी होवे...छोरे के मूँ में गोला ठूँस दिया। दमघुट मर गिया तो?”
“अरे बिचार भी, परबत उठा लिया तो मरे नी, रामगोला मूँ में रख लिया तो मर जाएँगे। फिर नाक-कान से राम-पौन जाएगा ही। वो भी नी तो राम-भगत कभी कोई मरा है?”
“अधरम का नास हो!...बोलो, जै बजरंग बली की!”
इस बार कई बोल साथ उठे। छग्गी ने हाथ जोड़ हनुमान के चरणों में सीस नवाया तो पास खड़ी लुगाइयों के हाथ भी जुड़ा गए। बूढ़े बीमार बोल उठे—‘रावन की लंका जरो, संकट टारो!’
फन्ने ने नरसिंघा के हाथ में सुनहरी पन्नी से मढ़ी गत्ते की गदा और दूसरे हाथ में भीख का खप्पर थमा दिया और उसे टोले से बाहर शहर की तरफ़ हँकाल दिया। टोले के लड़के-लीतरे तालियाँ बजाते पीछे दौड़े तो फन्ने ने उन्हें डटिया कर बरज दिया।
‘हनुमान’ बना नरसिंघा जब तक टोले में खड़ा था, उसे लगा था आज वह बड़ा हो गया है। बहुत बड़ा। ओले के बड़े-बूढ़े उसे हाथ जोड़े सीस नवा रहे...पल-पल मारपीट करने वाला फन्ना उसके आगे झुका था। पोखर पार कर जब वह मजूर बस्ती के छोर तक पहुँचा तो उसे धूप खाते छोरे-छोकरों ने घेर लिया।
“अरे! जे कऊन? बानर...बजरंग बली।”
“ओ-ओ तू किहाँ से आया?”
नरसिंघा ने उन्हें आँख चौड़ा कर के घूरा तो एक बोल उठा, “ओ बोड़म, तेरा जे रूप! अरे! भेण का जे तो आपना नरसिंघा।”
“ओय नरसिंघा! जे तेरी गदा, जे तेरी पूँछ। अरे! जे कैसे? बानर का मूँ तो काला होवे, तेरा सफ़ेद और फिर उसमें जे का?” कह कर चंदू ने उसके मूँ-गोले पर हाथ फिरा दिया।
नरसिंघा को मजूर-बस्ती में इसी का डर था। उसका चंदू से कल ही टंटा हुआ था। वह नरसिंघा से अंटस बाँधे था। सोचता हुआ वह आगे बढ़ा कि फिर चंदू सामने आ खड़ा हुआ। उसने हाथ बढ़ा कर उसका मुँह काला कर दिया। जाने कहाँ से वह काले में हाथ सान लाया था। नरसिंघा भभक कर ‘हू-हू’ करने लगा। आगे बढ़ा कि उसने पीछे से उसकी दुम खींच ली। सब खिल-खिलकार हँस पड़े। अभी और भी गुल खिलते कि तभी काम-कमठान पर जाते मजूर-मजूरनियों ने बचाव कर पूँछ ठीक लगा, उसे बस्ती के पार कर दिया।
बस्ती पार कर वह बाज़ार पहुँचा। पहले तो घमक-धमककर चलता, फिर पेढ़ी दुकान के आगे जा खड़ा होता। इधर-उधर खूँदता, लोगों का ध्यान बँटाता और भीख का पत्तरा आगे कर देता। कोई देता, कोई धकियाता। इसी तरह वह दूजे पहर तक डोलता रहा।
वैसे फन्ने ने उसे कई दिनों, ख़ूब रबत करवाई थी-नाक में नली घुसेड़ साँस लेने की। एक बार तो गोला उसके मुँह में भर कर उसे दिन भर झुग्गी में रखा था। महावरा हो जाने से दम तो नहीं घुटता था, पर मुँह में ठुँसे गोले से उसके जबड़े तने के तने रह गए थे। नाक से साँस लेते-लेते वह थक भी गया था पर उसने हिम्मत नहीं हारी। फन्ने का भी डर था। उसने सफ़ा बोला था-बेटे! जे मजूरी है। कामचोरी न करना। भूखों ही नी मरेगा। पोस्त के फोक का रस भी नी मिलने का तेरे को...और तेरी माँ भी दूजे ठौर किसी मरद के जा बैठेगी, फिर तेरा किन ठौर? सोच में डूबा था कि टप से पत्तर ठिनका। किसी भगत ने पैसा गैरा था।
चढ़े सूरज की किरन, सिंदूर-पुते तन पर काटने लगी तो वह एक तरफ़ सुस्ताने बैठ गया। सड़क से पीठ मोड़ उसने पत्तर में हाथ घुमाया तो पाँच-दस पैसों के सिक्कों से मुट्ठी भर गई। गिने तो दो रुपए ऊपर बीस पैसे थे। उसने चाहा, पैसे कहीं सहेज ले, पर रखे कहाँ? कुरत्ता-कच्छा होता तो खीसा-खीसू होता, यहाँ तो लंगोट के नाम देह पर एक चिंदी बँधी थी-बस।
“हनुमानजी, अपनी पूँछ सहेजो—पैर पड़ गया तो पाप लगेगा!” इतना कह कर उस मजूरनुमा आदमी ने उसकी पूँछ उसके हाथ में थमा दी और उसके सामने दस पैसे फेंक दिए। अब दो रुपए से ऊपर मजूरी हो चुकी थी। वह पँच पैसे की मूँगफली और एक ‘चा’ का हक़दार हो गया था। पर खाए-पीए कैसे? मुँह में रामगोला जो ठूँसा है। उसे अब भूख लग आई थी। भूख तो रोज़ लगती और मरती है, पर प्यास? कैसे पीए पानी? उसने एक बार गोला उगल डालने की सोची पर फिर कैसे गोला भरेगा, मिट्टी पोतेगा? यही सोच वह रुक गया। थोड़ा ठहर कर वह उठ खड़ा हुआ। दो-एक दुकानदारों के आगे उसने खूँद भरी भी, पर जब प्यास और सताने लगी तो आगे न जा, जिस गैल आया था, उसी पर बढ़ चला।
वह बाल्मीकि-बस्ती के आख़िरी छोर पर खड़ा था। तभी स्कूल की छुट्टी हुई। स्कूल से छुटे छोरों के टोल ने उसे आ घेरा। घंटों पोथी-पाटी से रुंधे छोरे अब चुहल पर चढ़े थे। एक डाटक छोरे ने पूँछ ही नहीं उखाड़ी, उसकी गदा भी छीन ली। वह बिलबिला कर ‘हूँ-हूँ’ करता धमक रहा था कि एक हाथ उसके खप्पर पड़ा और सिक्के खनखना कर धरती पर बिखर गए। उसने ‘बचाओ-बचाओ’ की गुहार जीभ पर उगाई पर बैन कंठ में घुट कर रह गए। उसने हड़बड़ा कर सिक्के सहेजे तो अब उसके पास कुल एक रुपया दस पैसे थे। दुश्मन की नली तोड़नेवाले बजरंग बली दुश्मन को महाबली देख ख़ुद रोने लगे। उसने मुँह से गोला निकाल गला फाड़ कर रोना चाहा, पर...दिन-भर भूखा-प्यासा-अनबोला रहा और मजूरी लुट गई। ‘बाप्पा को क्या बोलूँगा? वो मानेगा, भरोसा करेगा?’ सोचता हुआ वह उठा और मरे-मरे पग बढ़ाता पोखर की पुलिया के पास जा खड़ा हुआ।
आगे फिर नरसिंघा का वही साँग था, पर अब उसके साथ छग्गी लगी थी—एक हाथ में सोटी और दूजे में भीख-पातर थामे, ‘जय बजरंग बली, तोड़ दुश्मन की नली!’ के ‘जै बोल’ के साथ पीछे चलती ऊधमी छोकरे-लड़कों के झपट-झोटों से महाबली को बचाती।
कल नरसिंघा ने लाख हनुमान रामजी की आन ले कहा था—“मैंने रामगोला काढ़ मूँ नी खोला। न खाया, न पिया। पहर खूँदना-माँगना किया पर फन्ने ने एक न मानी। उसने डटियाया, धमकाया ही नहीं उसकी कुट्टस भी की। छग्गी फिर छींके-पिंजरे लिए ख़ाली हाथ लौटी तो उसने हुकम दिया कि कल से वह भी उस ‘रोनिए टुकड़िए बजरंगे’ के साथ जाएगी। वैसे भी कौन कमा के जुटा रही? इसीलिए मा-पूत आज संग-संग डोल रहे थे।”
पेड़ों तले धूप घिरती कि दोनों निकल जाते। बाज़ार-बस्ती में माँगते घूमते। परछाईं के पेड़ बनते-बनते जहाँ अलगाव दिखता, वही नरसिंघा अलसा के बैठ जाता। खाने-पीने की हठ करता। छग्गी नहीं मानती तो पसर जाता। खड़ा न होता। हार कर छग्गी उसके मुँह से गोला हटा, उसे कुछ खिला, ठंडा पानी पिला देती। खा-पी के भी वह फिर से गोला मुँह में धरने को राज़ी न होता।
“माई री! मैं बोलने-हँसने को तरस गिया। इस कठगोले से जबड़ा पिरा गया। किसी दूजे हिल्ले लगा दे ना।”
“दूजा हिल्ला? अपनी ‘जनती’ को नचा चोपड़ पे। पर इस डाइन को कौन देखे? तू कौन मर जाएगा जो एक तनी दड़ी-गेंद मूँ में रख लेगा?”
“मरने की ना बोलता। नाक में खुँसी नली से ख़ूब साँस लूँ हूँ पर आसपास देख, तेरे सूँ बोलने-हँसने को जी करे पर बोलूँ कैसे? सुभू ननकी मुनिया मुझे देख डर गई, भूत...भूत बोल पीठ फेर खड़ी हो गई। मेरे जी में आया, प्यार कर पुचकार लूँ...”
“आया बड़ा प्यार-पुचकार वाला...”
“क्यों, बच्चों को प्यार-पुचकार पाप है भला?”
“अरे, तू भी कौन स्याना है?” बालक ही है। तुझे प्यारा-पुचकारा किसी ने जो तू भी वैसा ही करेगा...सौ ऊपर बीस, तेरे मरे बाप के हाथ धर, फन्ने ने मेरे साथ तुझे भी अपने हिल्ले लिया है—भरी बिरादरी के आगे। फिर पोस्त की लत न हो तो मैं ही भगाकर पार कर देती तुझे, पर...चल, खोल थूथनी।” और उसने जबर से रामगोला उसके मूँ में ठूस, गोल हाथ फिरा उसे ज्यों का त्यों कर दिया।
दोनों फिर चल निकले। छग्गी पतरा पसारे घिघियाती और नरसिंघा दुकानों के आगे घूमता-खूँदता रहता। जब धूप पीली होकर मरने लगती, दोनों पोखर के टोले को मुड़ जाते।
यूँ तो छग्गी-नरसिंघा हर साँझ फन्ने के आगे डेढ़-दो रुपए की रेज़गारी लाकर बिखेर ही देते, पर इससे काम सधता नहीं था। नरसिंघा समेत छग्गी को अपने ‘घर घालने’ के लिए फन्ने ने जो क़र्ज़ा कराया था, उसका बोझ माथे था ही, ऊपर एक छेक और था कि—‘जो फिरे, वो चरे।’ दोनों माँ-पूत तो ‘कमाई’ से परबारे पैसा मार दिन में कुछ न कुछ खा-पी लेते थे और वह दिन-भर पुलिया पर बैठा, उबासी लेता जुएँ झारता रहता। छग्गी ने ‘रामजी की सौं’ ले, गंगा मैया का वास्ता दे उसे कमाई न खरचने का बिश्वास दिया था, पर उसे परतीत न होना था, न हुआ। और होता भी कैसे? एक दिन उसने रामगोले पर पहचान की रेख डाल कर उसे आगे रख नरसिंघा के मुँह में धरा था। पर जब साँझ उसने ख़ुद गोला अपने हाथ से निकाला तो पहचान की रेख पीछे थी। उसने दोनों को ख़ूब कूटा-पीटा भी पर कमाई में बढ़ोतरी कहाँ? उसे दिन-भर सोच रहती कि क्या जुगत जोड़े कि कमाई बढ़ जाए। नाम उसका फन्ने था। वह कई फ़न जानता था पर सर मार कर भी वह कोई फन न निकाल सका।
***
उस दिन गिनती भर को सिक्के ला कर छग्गी ने फन्ने की हथेली पर धरे थे, फिर भी वह चुप रहा था। रात को वह ठीक से सो न सका था। जब तब कुछ बुदबुदाता रहा था। भोर को भी वह ‘राम-राम’ ‘सियाराम’ रटता रहा था। सूरज के थाल के दमकते ही वह ‘राम लक्ष्मन जानकी, जय बोलो हनुमान की’ के जैकार के साथ लकड़ी टिकाता टोले से निकल गया था। जब लौटा तो उसके चेहरे पर संतोष की रेख अँकी थी। उसने सर खपाकर अपने बालपन में राम रखा पंडित से सुनी सीताराम बजरंगबली की कथा से आख़िर ‘रामफल’ और ‘रामफल के बीज’ की जोड़-तोड़ बिठाकर एक नई कथा गढ़ ली थी। ‘भगतों का, ख़ास तो मा-भेणो’ का धरम-धियान खिंचेगी जे कथा। इसी आस-विस्वास को पाल वह अदालत के आगे दरी बिछाए बैठे बाबू के आगे जा टिका था। बोला—“बाबू एक की ठो सवा ले लो, पै जैसे हम बोले वैसा मोटे कागद पर जई मसीन से लिख दो।” वह बोलता गया था और बाबू अंगुलियाँ मार कर काग़ज़ पर टिपटिप करता गया था। बिना चाँ-यूँ किए सब पूरा हो गया तो पैसे देने के पहले फन्ने ने कहा— “बाबू, जो लिखा पढ़ दो एक बार।” वह पढ़ने लगा था।
राम लछमन जानकी, जै बोलो हनुमान की।
***
तो भगतों, जो होनी थी जूँ हुई। राम, लछमन जानकी बन में रहे। सिंझया आकास में जूँ फूलै जैसे मन में छलबल की जवाला फैले। सोने का हिरन एक चौकड़ी मारता डोलै। जनक दुलारी की नैन हिरन की भोली दीठ सौं जुरै। मोहिनी रूप छबी देख बोली—“नाथ! इसे ले आओ। हम पालै-पोसैं। राम जी समुझावै—” परान पियारी। माया का देस है, जो यह बन है। कौन जाने ये मरग छौना किसी का हो जादू टोना।” लछमनजी हामी भरै पर भगतों, जानो तिरिया हठ। सीताजी देवी थीं, सती थीं, पर थीं तो लुगाई ज़ात। बस, पकड़ बैठी तिरिया हठ। राम लछमन जानकी, जै बोलो हनुमान की!
चले राम, उठा धनुष-बान। लछमनजी जानकी के निगाह बान। राम पीछे-छौना आगे। जैसे माया हरि से भागे। साँझ बिलानी-निसा घिरानी। राम न आने। पल-छिन गुंथ पहर बनैं तो जानकी हिरानी। दाँई आँख उड़े, मन डूबे। बोले ब्याकुल बानी—“देवरजी! जाओ, अपन भय्या को ल्याओ।” लछमन जी करें आना-कानी। “बियाबान बन, कैसे छोड़े राजरानी।” पर सीताजी पल बिफरै काट करता बोल मारै। सीता को लछमन रेखा भीतर घाल, राम खोजन चले, लखनलाल।
राम लछमन जानकी, जै बोलो हनुमान की!
फिर तो जानो भगतों! लंका के रावन की जो कुटिलता थी, फली और जानकी गई छली। उनका हरन हुआ। राम-लछमन डेरे आए। सीता नहीं पा अकुलाए। राम करे बिलाप, लछमन अपनी करनी पर पछताए। शबरी-जटायु सब आए विपद जान, अंत आए पवन पूत हनुमान। हाथ जोड़ राम-चरनों में सीस डाल माँ जानकी का अता-पता लगावे का परण धार। चरणरज ले बोले विकराल। पहाड़ फाँद उड़ चले बजरंग बाल। बन-बन छाने, नदी-नद खंगालै। पे सीता मैया का ठौर न पावै। तीन दिन तीन रात अन्न न जल, कंद न फल, परान हिरानै, कंठ सुखानौ। देव राम दुखी-माँ जानकी गुमानी। खावै-पीवै कैसे? हनुमान सयानौ पे परान जो न रुकें, तो माँ को भी कैसे पावैं? बस, जे ही धार रामफल एक मुख में गेरो। रामनाम लिए हिरदय जुड़ानौ। पे रामफल के बीज धरती पर कैसे डारै। जे तो राम भगत को हीय बिदारै। कभू नहीं, बस पिरण किया जूँही मुख में धारे रहे। फिर दिन उगै, निसा घिरै। इत्ते में राम उच्चार सूँ मुँह पड़ा बीज अंकुरै। अब हनुमान रामनाम कैसे उचारै? पर हठी हनुमान धरा पर बीज न डारे। मन ही मन राम पुकारें। बीज मुख में फैले अब हनुमान साँस कैसे लेवें? दम घुटै, साँस रुकै पर हनुमान परण से ना टरे। रामफल के बीज मुख धारै अंत तो जा पूगे लंका के असोक-बन। बस वहीं सीताजी कूँ राम की मूंदरी दिखाई। सीताजी। राम लछमन की कुसलाई पूछ। पर हनुमान मुख से नहीं बोलै। हनुमान कूँ सौन आकुल— ब्याकुल देख सीताजी ने आपन तेज जगाई। हनुमान की मन चीतीं कूँ टोह पायो। के राम के परम भगत राम बीज मुख में पुसाए फिर क्या? राम दुलारी ने आपन आँचर फैलाए। हनुमान ने राम-फल बीज आँचर में गेरायौ। सीताजी ने हनुमान कूँ जलपान करायौ। अपना भाग सराहौ। और जयरामजी के साथ सीताजी का समाचार ले हनुमान राम की ठौर उड़ै।
तो भगतों! तभी से जो देवी रामफल के बीज को आपन आँचर में धार इन रामभगत हनुमान की जलपान से सेवा करें, उन्हें राम उसी ढब मिलै जैसे जानकी को मिलै। राम लछमन जानकी, जै बोली हनुमान की!
ठिकाने पर आकर उसने बाँस पर टंगी ‘परबत धारे हनुमान जी’ की फोटू को चौखट में से हटा गुडीमुड़ी कर नमक की हँडिया में डाल दिया और उसकी ठौर अपनी गढ़ी कथा के कागद को मढ़ दिया।
फन्ने की सूझ ठीक बन पड़ी थी। राम-बीज की जो कथा उसने गढ़ी थी, ख़ूब चली-फली थी। अब फन्ने भी बजरंग बली के संग हो लिया। पढ़े-लिखो को वह जा कर ना-ना करते भी कथा की काँचमढ़ी पाटी थमा देता और जो ना पढ़ होते, उन्हें ख़ुद डूब कर भगती-भाव से राम-फल की कथा सुनाता। धूप सेंकते अपने छोटे-मोटे धंधे में लगे लोग कथा के बोल सुन-समझ लेते और कुछ-न-कुछ दान-रूप कथा-पाटी के काँच पर धर देते। कभी-कभार कोई भगत उन्हें न्यौत ही देता। पहले फन्ने कथा सुनाता, आँखें भर लाता और बीच-बीच में बजरंग बली के रूप धारे नरसिंघा के चरण छूता। छग्गी आँखों से आँचल लगाती। फिर जब कथा पूरी होती तो कोई भगतीमती घरनी बजरंगबली के आगे आँचल पसार खड़ी हो जाती। ‘जयराम’, ‘जय सियाराम’ की रट लगाती ‘राम भगत हनुमान की जै’ के साथ राम-बीज दान की बिनती करती पहले तो बजरंबली सुनी-अनसुनी करते, फिर विनय-चिरौरी होती तो रामगोला छोड़ मुँह में धरे रामफल के बीज आँचल में उगल देते। तब जलपान-भोग होता। पहले बजरंगबली जल लेते, फिर भोग लगाते। बाद को फन्ने और छग्गी खाते, पहले नहीं। बोलते, ‘पहले रामभगत भोग लगावै, तब रामभगत के भगत परसाद पावै।’
इधर नरसिंघा को फन्ने पोस्त का रस भी छक कर पिलाने लगा था। उससे हँसी-चुहले भी करता। छग्गी भी कम ही पिटती। दिन-भर बीड़ियों के सुट्टे उड़ाती। फन्ने से ठुमक ठुमक बतियाती। पर नरसिंघा गुल-गप्प-मूक रहता। अच्छा से अच्छा भोग लगाकर ठौर पहुँचाता, पोस्त पीता और बीड़ी का धुआँ उगल कर पड़ा रहता। चुपचुप! बुलाने पर भी ‘हाँ-हूँ’ ही करता। बिना बोले भी उसका मुँह खुला ही रहता। कभी जब मुँह में मक्खी भिनभिनाने लगती, तभी वह मुँह बंद करता। मन से तो बोलता ही नहीं पर जब बोलता तो बेपर की हाँकने लगता।
“मैं बजरंगबली हूँ—फन्ने तू मेरा चाकर-मैं तेरा ठाकर...मेरा झूठा खाने! मेरा हगा खाएगा? और तू कहाँ की महतारी...फन्ने का भूत...उसके मूँ में दारू का कुल्ला करती—मेरे मूँ में गोला ठूसती। इस लंगड़ को अपनी टंगड़ पे सुलाती और मुझे टाँग मारती। मैं कभू तुम्हारी लंका में लंपा लगाऊँगा। भगत-भगतन को भी मूत में बसाऊँगा।” उसकी बक-झक सुन, कई बार छग्गी फन्ने से लड़-भिड़ गई थी।
“हज़ार बार बोला तेरे कूँ, इस लपरू को जास्ती पोस्त का पानी मत पिला, पर...”
“अरे, तेरे बंदर को जब भोग के नाम माल-मलीदा उड़वाऊँ तब तो नी बोले तूँ...फिर पोस्त, कौन तू हग रही...पैसे काढूँ तभी आवे ना।”
“कौन तू पैसे अपने पसीने के काटे? दिन-भर मेरा छोरा गोला-पटी कटी जीभ लिए डोले, तभी आवै नी पैसा।”
“अरे रीछनी! अपनी जंगली जीभ से तू मैं दोनों क्या कर रिये जो तेरा जे मा-चेंट बेट्टा कर लेता! फिर कौन परबत उठा लिया जीभ पर, एक हलका कठगोला और दो बीज ही तो धार रखे हैं थोथ में...बदल में माल-मलाई पावे, ऊपर से नसा-नुसी का ठाठ अलग।”
“अरे ओ लंगड़-बतंगड़! तू ही ना कर ले, भर ले जे सब साँग। मैंने भोत किया। अब तू बन बजरंगबली, मेरे भाई के साले!” एकाएक नरसिंघा फटाफट बोल गया।
“लंगड-बंगड़। जो बोल, हूँ तो तेरी माँ का खसम। मैं जो ये सब करने लगा तो तुम दोनों खाओगे क्या मेरा हगा-मूता?”
“री मा! अब जे मौन-मजूरी मेरे से नी होनी। छोड़ इसकी झोली-झुग्गी और कहीं और जा पड़, कहीं काम-मजूरी करेंगे।” नरसिंघा ने छग्गी का हाथ थाम कहा।
“है इस छगली की हौंस जो चले और ठौर? फिर सुभू उठते ही पोस्त का पानी गले न उतरा तो दो दिन में मैला मूँ से निकलेगा।” फन्ना तनक कर बोला।
“बेट्टा! क़साई के खुंट बँधे हैं हम दोनों। सो भी जा” कहकर छग्गी ने उसका माथा सहला दिया।
फन्ने के होठों में ठुँसा बीड़ी का सुलगा ठूँठ खोली के अंधधुप्प में लाल जुगनू-सा दिप-दिप भर रहा था। नरसिंघा की गुर-गुर अब भी न थमी तो छग्गी ने फन्ने के होठों से बीड़ी झपट उसके मुँह में ठूँस दी।
भोर नरसिंघा बड़ा अनमना था। किरन काटे पर कुनमुनाकर करवट ले उसने फिर आँख मूंद ली। छग्गी ने हाथ पकड़ उठाया। तन पर मिट्टी पुतवा हाथ से मुँह में गोला ठूँस, गदा तान उठ खड़ा हो गया। थोड़ी देर बाद बजरंगबली की जै के साथ तीनों फिर सड़क पर थे।
आज रामनवमी थी। फन्ने ने कुछ बड़ा और बढ़िया पाने के हेतु शहर से सटे गाँव की सुध ली। उसने घर-घर हर चौखट पर, कथा-पाटी, बखान-बता खासा पैसे जुटा लिए। सूरज ऊपर आए-आए तभी उसे बीज-दान के दो-एक न्यौते मिल चुके थे। पर आज वह वहीं भोग लगवाने की सोचे था जहाँ खान-पान से आगे लत्ते-लूगड़ की जुगत बैठ सके। उसने बजरंगबली के मन-मान का हीला ले पतली हालत के जजमानों को टाल दिया। और बस अड्डे के अगे लिलाए खेत में खड़े बड़े ‘रामभवन’ को बढ़ चला। वहीं भोंपू पर रामधुन लगी थी। और साँझ को ही उसे संपूरन होना था।
‘रामभवन’ के ठीक सामने उसने जमावड़ा लगाया। बैठे-बैठे देर हो गई। किसी को आता न देख उसने बीड़ी सुलगाई। दो सुट्टे मारे ही थे कि नरसिंघा ने बीड़ी लपक नाक के छेद में खोंस ली और फिर ज़ोर-ज़ोर से ऊँची साँस लेने लगा। उसकी नाक के दूसरे फुनगे से धुआँ निकला ही था कि तभी घर की मालकिन सामने आ पड़ी। थोड़ा देख-समझ बोली—‘कैसा है तुम्हारा बजरंग बली? बीड़ी का भोग लगावे, वो भी नाक से।’ इतना कह, मुस्कान-सी तान आगे हो गई। तभी फन्ने ने झट उसकी नाक से बीड़ी झपट दूर फेंक दी और ‘जै बजरंगबली’ के साथ पाटी उसके आगे कर दी।
“मैंने सुन रखा है तेरे बजरंग बली और रामफल की कथा के बारे में...मैंने तो तुम्हें न्यौतने के लिए उन्हें कहा भी था। बैठो आती हूँ कहती घाघरे-लुगड़े में बसी धरम-धियान वाली अधेड़ उम्र की भगतन घर में हो ली। धड़ी टले वह आई। बजरंग बली की आरती उतार, आँचल फैला, सामने खड़ी हो गई। नरसिंघा ने मुँह चौड़ा कर गोला हटा रामबीज आँचल में उगल दिया। न जाने कैसे बीजों के साथ लद से थक का थक्का भी गिर गया। उसने आँखें तरेरी। तभी “जै सियाराम” के संग रामगोला धमक से फन्ने के कंधे पर जा लगा।
“अरे, जे का करो बजरंगबली?” फन्ने उफान रोक बुदबुदाया।
“तोड़ दुश्मन की नली। राम कूँ बेंच बजरंगबली के कलपाने वालों ढोंगियों। लुच्चों। मेरी आवाज़ की लास खाओ तुम...” नरिंसघा चीख़ता बोला।
“क्या हुआ रे तेरे कूँ?” छग्गी ने पूछा।
“चुप...दोनों दिन भर हा-हू कर हँसो, ठिठोली करो। भला देख बोलो, बतियाओ...मैं दिन-भर कठगोले के नीचे जीभ दबा अरथी-सा डोलूँ-फिरूँ।”
“के बोल रिया तुमारा बजरंग बली?” मालकन ने पूछा।
“अरे नरासिंघे! पगला गया रे क्या?”
“पगलाया नी’, ठीक बोल रिया हूँ। अब रोक मेरा बोल। आज वो सिगरेट बेचने वाले लोग देखे तूने? दो आदमी कित्ते लंबे-लंबे बाँसों पे चढ़े चलते थे-उन्हें देख जगत मुलका रिया था। मेरा मन हँसी से भर गया पर हँसूँ कैसे? मेरी हँसी मर गई, बोली गोले के नीचे दब गई। ध्यान है, कल एक मेम ने छतरी खोली तो उसके तार में उसके बालों का टोपा उलझ ऊपर गया—‘गंजी मेम’ कहकर लोग कुरलाए, तुम दोनों बात मार-मार के खिल्लाए और मैं अपनी बोल की लास उठाए मन-मारे मुँह-मूँदे खड़ा रिया।”
“अरे, बोल के कौन तेरा पेट भर जाता, बिन बोले जो माल मिले तो भी बड़-बड़ा रिया है।”
“चिड़िया को सोना चुगा दो, बिना चहके रे सकती है? अब मैं भी बोलूँगा और ख़ूब बोलूँगा, मुझे रोक, तेरे बाप का ही तो?” और वह दनादन गालियाँ उगलने लगा। कान में अंगुलियाँ डाल मालकिन जाने लगी तो वह उसके आगे फिर गया—“अरे भगतन! जावे कहा...तू अंधी है जो मैं तेरे कूँ बजरंगबली दिखू? मैं तो नरसिंघा। जे रामबीज हैं के खजूर की गुठली? धरम पाल रही। तुम जैसे ढोंगियों ने ही मेरे मूँ में गोला ठूँसवाया, मेरी आवाज़ को मारा है। मैं तेरी भी लंका में आग लगा दूँगा।”
इतना कहकर वह फाँदता, धमकता सामने ओसारे में जा कूदा और राममूरत के आगे सजे पूजा के फूल-पान को इधर-उधर बिखेरता, बम-बम करता, भोजन-पानी को रौंदता भाग खड़ा हुआ।
suraj Dhale chhaggi pokhar tole pahunchi thi dhanush ki Dhab muDi bans ki khapachchiyon par sadhi apni jhuggi ke samne, kandhe par jhulte tar ke chhinke pinjre patak kar usne hath jhatak diya phir ochhe hath ko pure hath se sahlakar samne dekha—narsingha mari chaal se baDha aata tha uske kandhe par tiki soti par rabar ke Dore mein bandhe tota maina sate hue Dol rahe the use laga bhor ko jitne tota maina the, utne hi ab bhi hain ek kaDwahat uske sukhe gale mein utar gai
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“aise poochh ri hai choon hindu ni, turak ho
“bol bhi karayega kya usse?
“kuchh ni bus uski deh ek lal langot dhaar denge sindur se badan pot dena hai, phir moon mein ramgola thoons ke baal dhone ki mitti se leep, pichhe banar poonchh khons, khappar thama use sahri basti mein Dola denge kuch to dharam logon mein hai, dan dachchhina mil hi jayegi ”
iske moon mein ramgola thunsega? upar mitti potega? mere bachhDe ka dam nahin ghut jayega?
tera jana, dudhamuha kunwar kanhayya ju ni, das upar do ka dheeng hai uski jawani nak kankh ke niche phoot rahi samjhegi ni aur bakbak laga degi sun, ise thoDa nak se sans lene ki aadat banani paDegi do ek din yahin rabat Dal denge aaj se hi le
ye kya kartab hua bhala pet palne ka? mere bete ki sans mein ni band karne ki
yoon to sans band ni hogi khane ko ji ni milega to uski to kya teri bhi band ho jayegi post ka pani jo gale ni utra to baitha ni hona, mara paDa rahega udhar uski mahtari ka mutna hagna ruk jayega
aur tu kaun pahaD chaDh ayega, teri ankh ni udhaDne ki meri kokh phati hai na apna tukham hota to lagta
are! mera tukham hota to kaun raj karta? idhar udhar mote manus ki sewa tahal mein khutta, mimiyata Dolta, ya teri meri taraj par bhukon marta marta tu ni chahe to mujhe kya paDi? main phir chhinke pinjre gaDh ganth dunga, raddi kagad gatte ke phir mor chiDiya bana dunga liye Dolna unhen, uDane bechne ko tu jane apni to DeDh tang hai, use lekar langData lathiyata chal bhar sakun hoon itna bol phanne ne pas bikhre majbut irada, kaDi mehnat pakka anushasan wale postaron ko sahej liya aur khilaunon ke liye katar byaut karne laga
jay bajrang bali, toD dushman ki nali! ke unche bain ke sath narsingha ko hanuman ka roop dhara, phanne ne jab jhuggi ke bahar kiya to tolewale hanste khillate achraj achambha karne lage
“are o phanne! jo manusjat ko banar kyon bana diya re? tagDe hoon re ne Datiyate hue puchha
“dhaunkni ke! jeebh jalegi, bajrangbali koon banar bole bol jay hanuman!” chhaggi ne sath diya to pas khaDi lugaiyon ne bhi dohra diya
man bap se manjuri mata ni howe chhore ke moon mein gola thoons diya damghut mar giya to?
are bichar bhi, parbat utha liya to mare ni, ramgola moon mein rakh liya to mar jayenge phir nak kan se ram paun jayega hi wo bhi ni to ram bhagat kabhi koi mara hai?
“adhram ka nas ho! bolo, jai bajrang bali kee!
is bar kai bol sath uthe chhaggi ne hath joD hanuman ke charnon mein sees nawaya to pas khaDi lugaiyon ke hath bhi juDa gaye buDhe bimar bol uthe—rawan ki lanka jaro, sankat taro!
phanne ne narsingha ke hath mein sunahri panni se maDhi gatte ki gada aur dusre hath mein bheekh ka khappar thama diya aur use tole se bahar shahr ki taraf hankal diya tole ke laDke litre taliyan bajate pichhe dauDe to phanne ne unhen Datiya kar baraj diya
hanuman bana narsingha jab tak tole mein khaDa tha, use laga tha aaj wo baDa ho gaya hai bahut baDa ole ke baDe buDhe use hath joDe sees nawa rahe pal pal marapit karne wala phanna uske aage jhuka tha pokhar par kar jab wo majur basti ke chhor tak pahuncha to use dhoop khate chhore chhokron ne gher liya
are! je kaun? banar bajrang bali
o o tu kihan se aya?
narsingha ne unhen ankh chauDa kar ke ghura to ek bol utha, o boDam, tera je roop! are! bhen ka je to aapna narsingha ,
oy narsingha! je teri gada, je teri poonchh are! je kaise? banar ka moon to kala howe, tera safed aur phir usmen je ka? kah kar chandu ne uske moon gole par hath phira diya
narsingha ko majur basti mein isi ka Dar tha uska chandu se kal hi tanta hua tha wo narsingha se antas bandhe tha sochta hua wo aage baDha ki phir chandu samne aa khaDa hua usne hath baDha kar uska munh kala kar diya jane kahan se wo kale mein hath san laya tha narsingha bhabhak kar hu hoo karne laga aage baDha ki usne pichhe se uski dum kheench li sab khil khilkar hans paDe abhi aur bhi gul khilte ki tabhi kaam kamthan par jate majur majuraniyon ne bachaw kar poonchh theek laga, use basti ke par kar diya
basti par kar wo bazar pahuncha pahle to ghamak dhamakkar chalta, phir peDhi dukan ke aage ja khaDa hota idhar udhar khundata, logon ka dhyan bantata aur bheekh ka pattra aage kar deta koi deta, koi dhakiyata isi tarah wo duje pahar tak Dolta raha
waise phanne ne use kai dinon, khoob rabat karwai thi nak mein nali ghuseD sans lene ki ek bar to gola uske munh mein bhar kar use din bhar jhuggi mein rakha tha mahawra ho jane se dam to nahin ghutta tha, par munh mein thunse gole se uske jabDe tane ke tane rah gaye the nak se sans lete lete wo thak bhi gaya tha par usne himmat nahin hari phanne ka bhi Dar tha usne safa bola tha bete! je majuri hai kamchori na karna bhukon hi ni marega post ke phok ka ras bhi ni milne ka tere ko aur teri man bhi duje thaur kisi marad ke ja baithegi, phir tera kin thaur? soch mein Duba tha ki tap se pattar thinka kisi bhagat ne paisa gaira tha
chaDhe suraj ki kiran, sindur pute tan par katne lagi to wo ek taraf sustane baith gaya saDak se peeth moD usne pattar mein hath ghumaya to panch das paison ke sikkon se mutthi bhar gai gine to do rupae upar bees paise the usne chaha, paise kahin sahej le, par rakhe kahan? kuratta kachchha hota to khisa khisu hota, yahan to langot ke nam deh par ek chindi bandhi thi bus
hanumanji, apni poonchh sahejo—pair paD gaya to pap lagega! itna kah kar us majuranuma adami ne uski poonchh uske hath mein thama di aur uske samne das paise phenk diye ab do rupae se upar majuri ho chuki thi wo panch paise ki mungaphali aur ek cha ka haqdar ho gaya tha par khaye piye kaise? munh mein ramgola jo thunsa hai use ab bhookh lag i thi bhookh to roz lagti aur marti hai, par pyas? kaise piye pani? usne ek bar gola ugal Dalne ki sochi par phir kaise gola bharega, mitti potega? yahi soch wo ruk gaya thoDa thahar kar wo uth khaDa hua do ek dukandaron ke aage usne khoond bhari bhi, par jab pyas aur satane lagi to aage na ja, jis gail aaya tha, usi par baDh chala
wo balmiki basti ke akhiri chhor par khaDa tha tabhi school ki chhutti hui school se chhute chhoron ke tol ne use aa ghera ghanton pothi pati se rundhe chhore ab chuhal par chaDhe the ek Datak chhore ne poonchh hi nahin ukhaDi, uski gada bhi chheen li wo bilbila kar hoon hoon karta dhamak raha tha ki ek hath uske khappar paDa aur sikke khanakhna kar dharti par bikhar gaye usne bachao bachao ki guhar jeebh par ugai par bain kanth mein ghut kar rah gaye usne haDbaDa kar sikke saheje to ab uske pas kul ek rupaya das paise the dushman ki nali toDnewale bajrang bali dushman ko mahabali dekh khu rone lage usne munh se gola nikal gala phaD kar rona chaha, par din bhar bhukha pyasa anbola raha aur majuri lut gai bappa ko kya bolunga? wo manega, bharosa karega? sochta hua wo utha aur mare mare pag baDhata pokhar ki puliya ke pas ja khaDa hua
age phir narsingha ka wahi sang tha, par ab uske sath chhaggi lagi thi—ek hath mein soti aur duje mein bheekh patar thame, jay bajrang bali, toD dushman ki nali! ke jai bol ke sath pichhe chalti udhami chhokre laDkon ke jhapat jhoton se mahabali ko bachati
kal narsingha ne lakh hanuman ramji ki aan le kaha tha—mainne ramgola kaDh moon ni khola na khaya, na piya pahar khundana mangna kiya par phanne ne ek na mani usne Datiyaya, dhamkaya hi nahin uski kuttas bhi ki chhaggi phir chhinke pinjre liye khali hath lauti to usne hukam diya ki kal se wo bhi us roniye tukaDiye bajrange ke sath jayegi waise bhi kaun kama ke juta rahi? isiliye ma poot aaj sang sang Dol rahe the
peDon tale dhoop ghirti ki donon nikal jate bazar basti mein mangte ghumte parchhain ke peD bante bante jahan algaw dikhta, wahi narsingha alsa ke baith jata khane pine ki hath karta chhaggi nahin manti to pasar jata khaDa na hota haar kar chhaggi uske munh se gola hata, use kuch khila, thanDa pani pila deti kha pi ke bhi wo phir se gola munh mein dharne ko razi na hota
“mai ree! main bolne hansne ko taras giya is kathgole se jabDa pira gaya kisi duje hille laga de na
duja hilla? apni janti ko nacha chopaD pe par is Dain ko kaun dekhe? tu kaun mar jayega jo ek tani daDi gend moon mein rakh lega?
marne ki na bolta nak mein khunsi nali se khoob sans loon hoon par asapas dekh, tere soon bolne hansne ko ji kare par bolun kaise? subhu nanki muniya mujhe dekh Dar gai, bhoot bhoot bol peeth pher khaDi ho gai mere ji mein aaya, pyar kar puchkar loon
“aya baDa pyar puchkarwala ”
kyon, bachchon ko pyar puchkar pap hai bhala?
“are, tu bhi kaun syana hai? balak hi hai tujhe pyara puchkara kisi ne jo tu bhi waisa hi karega sau upar bees, tere mare bap ke hath dhar, phanne ne mere sath tujhe bhi apne hille liya hai—bhari biradri ke aage phir post ki lat na ho to main hi bhagakar par kar deti tujhe, par chal, khol thuthni aur usne jabar se ramgola uske moon mein thoos, gol hath phira use jyon ka tyon kar diya
donon phir chal nikle chhaggi patra pasare ghighiyati aur narsingha dukanon ke aage ghumta khundata rahta jab dhoop pili hokar marne lagti, donon pokhar ke tole ko muD jate
yoon to chhaggi narsingha har sanjh phanne ke aage DeDh do rupae ki rezgari lakar bikher hi dete, par isse kaam sadhta nahin tha narsingha samet chhaggi ko apne ghar ghalne ke liye phanne ne jo qarza karaya tha, uska bojh mathe tha hi, upar ek chhek aur tha ki—jo phire, wo chare donon man poot to kamai se parbare paisa mar din mein kuch na kuch kha pi lete the aur wo din bhar puliya par baitha, ubasi leta juen jharta rahta chhaggi ne ramji ki saun le, ganga maiya ka wasta de use kamai na kharachne ka bishwas diya tha, par use partit na hona tha, na hua aur hota bhi kaise? ek din usne ramgole par pahchan ki rekh Dal kar use aage rakh narsingha ke munh mein dhara tha par jab sanjh usne khu gola apne hath se nikala to pahchan ki rekh pichhe thi usne donon ko khoob kuta pita bhi par kamai mein baDhotri kahan? use din bhar soch rahti ki kya jugat joDe ki kamai baDh jaye nam uska phanne tha wo kai fan janta tha par sar mar kar bhi wo koi phan na nikal saka
***
us din ginti bhar ko sikke la kar chhaggi ne phanne ki hatheli par dhare the, phir bhi wo chup raha tha raat ko wo theek se so na saka tha jab tab kuch budabudata raha tha bhor ko bhi wo ram ram siyaram ratta raha tha suraj ke thaal ke damakte hi wo ram lakshman janki, jay bolo hanuman ki ke jaikar ke sath lakDi tikata tole se nikal gaya tha jab lauta to uske chehre par santosh ki rekh anki thi usne sar khapakar apne balapan mein ram rakha panDit se suni sitaram bajrangbali ki katha se akhir ramphal aur ramphal ke beej ki joD toD bithakar ek nai katha gaDh li thi ‘bhagton ka, khas to ma bheno ka dharam dhiyan khinchegi je katha isi aas wiswas ko pal wo adalat ke aage dari bichhaye baithe babu ke aage ja tika tha bola—babu ek ki tho sawa le lo, pai jaise hum bole waisa mote kagad par jai masin se likh do wo bolta gaya tha aur babu anguliyan mar kar kaghaz par tiptip karta gaya tha bina chan yoon kiye sab pura ho gaya to paise dene ke pahle phanne ne kaha— babu, jo likha paDh do ek bar wo paDhne laga tha
ram lachhman janki, jai bolo hanuman ki
***
to bhagton, jo honi thi joon hui ram, lachhman janki ban mein rahe sinjhya akas mein joon phulai jaise man mein chhalbal ki jawala phaile sone ka hiran ek chaukDi marta Dolai janak dulari ki nain hiran ki bholi deeth saun jurai mohiani roop chhabi dekh boli—“nath! ise le aao hum palai posain ram ji samujhawai—“paran piyari maya ka des hai, jo ye ban hai kaun jane ye marag chhauna kisi ka ho jadu tona lachhamanji hami bharai par bhagton, jano tiriya hath sitaji dewi theen, sati theen, par theen to lugai zat bus, pakaD baithi tiriya hath ram lachhman janki, jai bolo hanuman kee!
chale ram, utha dhanush ban lachhamanji janki ke nigah ban ram pichhe chhauna aage jaise maya hari se bhage sanjh bilani nisa ghirani ram na aane pal chhin gunth pahar banain to janki hirani dani ankh uDe, man Dube bole byakul bani—dewarji! jao, apan bhayya ko lyao lachhman ji karen aana kani “biyaban ban, kaise chhoDe rajrani par sitaji pal bipharai kat karta bol marai sita ko lachhman rekha bhitar ghaal, ram khojan chale, lakhanlal
ram lachhman janki, jai bolo hanuman kee!
phir to jano bhagton! lanka ke rawan ki jo kutilta thi, phali aur janki gai chhali unka haran hua ram lachhman Dere aaye sita nahin pa akulaye ram kare bilap, lachhman apni karni par pachhtaye shabri jatayu sab aaye wipad jaan, ant aaye pawan poot hanuman hath joD ram charnon mein sees Dal man janki ka ata pata lagawe ka paran dhaar charnaraj le bole wikral pahaD phand uD chale bajrang baal ban ban chhane, nadi nad khangalai pe sita maiya ka thaur na pawai teen din teen raat ann na jal, kand na phal, paran hiranai, kanth sukhanau dew ram dukhi man janki gumani khawai piwai kaise? hanuman sayanau pe paran jo na ruken, to man ko bhi kaise pawain? bus, je hi dhaar ramphal ek mukh mein gero ramnam liye hirday juDanau pe ramphal ke beej dharti par kaise Darai je to ram bhagat ko heey bidarai kabhu nahin, bus piran kiya junhi mukh mein dhare rahe phir din ugai, nisa ghirai itte mein ram uchchaar soon munh paDa beej ankurai ab hanuman ramnam kaise ucharai? par hathi hanuman dhara par beej na Dare man hi man ram pukaren beej mukh mein phaile ab hanuman sans kaise lewen? dam ghutai, sans rukai par hanuman paran se na tare ramphal ke beej mukh dharai ant to ja puge lanka ke asok ban bus wahin sitaji koon ram ki mundri dikhai sitaji ram lachhman ki kuslai poochh par hanuman mukh se nahin bolai hanuman koon saun akul— byakul dekh sitaji ne aapan tej jagai hanuman ki man chitin koon toh payo ke ram ke param bhagat ram beej mukh mein pusaye phir kya? ram dulari ne aapan anchar phailaye hanuman ne ram phal beej anchar mein gerayau sitaji ne hanuman koon jalpan karayau apna bhag sarahau aur jayramji ke sath sitaji ka samachar le hanuman ram ki thaur uDai
to bhagton! tabhi se jo dewi ramphal ke beej ko aapan anchar mein dhaar in ramabhgat hanuman ki jalpan se sewa karen, unhen ram usi Dhab milai jaise janki ko milai ram lachhman janki, jai boli hanuman kee!
thikane par aakar usne bans par tangi parbat dhare hanuman jee ki photu ko chaukhat mein se hata guDimuDi kar namak ki hanDiya mein Dal diya aur uski thaur apni gaDhi katha ke kagad ko maDh diya
phanne ki soojh theek ban paDi thi ram beej ki jo katha usne gaDhi thi, khoob chali phali thi ab phanne bhi bajrang bali ke sang ho liya paDhe likho ko wo ja kar na na karte bhi katha ki kanchamaDhi pati thama deta aur jo na paDh hote, unhen khu Doob kar bhagti bhaw se ram phal ki katha sunata dhoop senkte apne chhote mote dhandhe mein lage log katha ke bol sun samajh lete aur kuch na kuch dan roop katha pati ke kanch par dhar dete kabhi kabhar koi bhagat unhen nyaut hi deta pahle phanne katha sunata, ankhen bhar lata aur beech beech mein bajrang bali ke roop dhare narsingha ke charn chhuta chhaggi ankhon se anchal lagati phir jab katha puri hoti to koi bhagtimti gharni bajrangbali ke aage anchal pasar khaDi ho jati jayram, jay siyaram ki rat lagati ram bhagat hanuman ki jai ke sath ram beej dan ki binti karti pahle to bajrambli suni anasuni karte, phir winay chirauri hoti to ramgola chhoD munh mein dhare ramphal ke beej anchal mein ugal dete tab jalpan bhog hota pahle bajrangbali jal lete, phir bhog lagate baad ko phanne aur chhaggi khate, pahle nahin bolte, pahle ramabhgat bhog lagawai, tab ramabhgat ke bhagat parsad pawai
idhar narsingha ko phanne post ka ras bhi chhak kar pilane laga tha usse hansi chuhle bhi karta chhaggi bhi kam hi pitti din bhar biDiyon ke sutte uDati phanne se thumak thumak batiyati par narsingha gul gapp mook rahta achchha se achchha bhog lagakar thaur pahunchata, post pita aur biDi ka dhuan ugal kar paDa rahta chupchup! bulane par bhi ‘han hoon hi karta bina bole bhi uska munh khula hi rahta kabhi jab munh mein makkhi bhinbhinane lagti, tabhi wo munh band karta man se to bolta hi nahin par jab bolta to bepar ki hankne lagta
main bajrangbali hun—phanne tu mera chakar main tera thakar mera jhutha khane! mera haga khayega? aur tu kahan ki mahtari phanne ka bhoot uske moon mein daru ka kulla karti—mere moon mein gola thusti is langaD ko apni tangaD pe sulati aur mujhe tang marti main kabhu tumhari lanka mein lampa lagaunga bhagat bhagtan ko bhi moot mein basaunga uski bak jhak sun, kai bar chhaggi phanne se laD bhiD gai thi
hazar bar bola tere koon, is lapru ko jasti post ka pani mat pila, par
“are, tere bandar ko jab bhog ke nam mal malida uDwaun tab to ni bole toon phir post, kaun tu hag rahi paise kaDhun tabhi aawe na
kaun tu paise apne pasine ke kate? din bhar mera chhora gola pati kati jeebh liye Dole, tabhi aawai ni paisa
“are richhni! apni jangali jeebh se tu main donon kya kar riye jo tera je ma chent betta kar leta! phir kaun parbat utha liya jeebh par, ek halka kathgola aur do beej hi to dhaar rakhe hain thoth mein badal mein mal malai pawe, upar se nasa nusi ka thath alag
“are o langaD batangaD! tu hi na kar le, bhar le je sab sang mainne bhot kiya ab tu ban bajrangbali, mere bhai ke sale! ekayek narsingha phataphat bol gaya
langaD bangaD jo bol, hoon to teri man ka khasam main jo ye sab karne laga to tum donon khaoge kya mera haga muta?
ri ma! ab je maun majuri mere se ni honi chhoD iski jholi jhuggi aur kahin aur ja paD, kahin kaam majuri karenge narsingha ne chhaggi ka hath tham kaha
hai is chhagli ki hauns jo chale aur thaur? phir subhu uthte hi post ka pani gale na utra to do din mein maila moon se niklega phanna tanak kar bola
betta! qasai ke khunt bandhe hain hum donon so bhi ja kahkar chhaggi ne uska matha sahla diya
phanne ke hothon mein thunsa biDi ka sulga thoonth kholi ke andhdhupp mein lal jugnu sa dip dip bhar raha tha narsingha ki gur gur ab bhi na thami to chhaggi ne phanne ke hothon se biDi jhapat uske munh mein thoons di
bhor narsingha baDa anmana tha kiran kate par kunamunakar karwat le usne phir ankh moond li chhaggi ne hath pakaD uthaya tan par mitti putwa hath se munh mein gola thoons, gada tan uth khaDa ho gaya thoDi der baad bajrangbali ki jai ke sath tinon phir saDak par the
aj ramanawmi thi phanne ne kuch baDa aur baDhiya pane ke hetu shahr se sate ganw ki sudh li usne ghar ghar har chaukhat par, katha pati, bakhan bata khasa paise juta liye suraj upar aaye aaye tabhi use beej dan ke do ek nyaute mil chuke the par aaj wo wahin bhog lagwane ki soche tha jahan khan pan se aage latte lugaD ki jugat baith sake usne bajrangbali ke man man ka hila le patli haalat ke jajmanon ko tal diya aur bus aDDe ke age lilaye khet mein khaDe baDe ramabhwan ko baDh chala wahin bhompu par ramadhun lagi thi aur sanjh ko hi use sampuran hona tha
ramabhwan ke theek samne usne jamawDa lagaya baithe baithe der ho gai kisi ko aata na dekh usne biDi sulgai do sutte mare hi the ki narsingha ne biDi lapak nak ke chhed mein khons li aur phir zor zor se unchi sans lene laga uski nak ke dusre phunge se dhuan nikla hi tha ki tabhi ghar ki malkin samne aa paDi thoDa dekh samajh boli—kaisa hai tumhara bajrang bali? biDi ka bhog lagawe, wo bhi nak se itna kah, muskan si tan aage ho gai tabhi phanne ne jhat uski nak se biDi jhapat door phenk di aur jai bajrangabli ke sath pati uske aage kar di
mainne sun rakha hai tere bajrang bali aur ramphal ki katha ke bare mein mainne to tumhein nyautne ke liye unhen kaha bhi tha baitho aati hoon kahti ghaghre lugDe mein basi dharam dhiyan wali adheD umr ki bhagtan ghar mein ho li dhaDi tale wo i bajrang bali ki aarti utar, anchal phaila, samne khaDi ho gai narsingha ne munh chauDa kar gola hata rambij anchal mein ugal diya na jane kaise bijon ke sath lad se thak ka thakka bhi gir gaya usne ankhen tareri tabhi jai siyaram ke sang ramgola dhamak se phanne ke kandhe par ja laga
are, je ka karo bajrangabli? phanne uphan rok budabudaya
“toD dushman ki nali ram koon bench bajrangbali ke kalpane walon Dhongiyon luchchon meri awaz ki las khao tum narinsgha chikhta bola
kya hua re tere koon?” chhaggi ne puchha
chup donon din bhar ha hu kar hanso, thitholi karo bhala dekh bolo, batiyao main din bhar kathgole ke niche jeebh daba arthi sa dolun phirun
ke bol riya tumara bajrang bali?” malkan ne puchha
“are narasinghe! pagla gaya re kya?
paglaya nee, theek bol riya hoon ab rok mera bol aaj wo cigarette bechne wale log dekhe tune? do adami kitte lambe lambe banson pe chaDhe chalte the unhen dekh jagat mulka riya tha mera man hansi se bhar gaya par hansun kaise? meri hansi mar gai, boli gole ke niche dab gai dhyan hai, kal ek mem ne chhatri kholi to uske tar mein uske balon ka topa ulajh upar gaya—ganji mem kahkar log kurlaye, tum donon baat mar mar ke khillaye aur main apni bol ki las uthaye man mare munh munde khaDa riya
“are, bol ke kaun tera pet bhar jata, bin bole jo mal mile to bhi baD baDa riya hai
chiDiya ko sona chuga do, bina chahke re sakti hai? ab main bhi bolunga aur khoob bolunga, mujhe rok, tere bap ka hi to? aur wo danadan galiyan ugalne laga kan mein anguliyan Dal malkin jane lagi to wo uske aage phir gaya—are bhagtan! jawe kaha tu andhi hai jo main tere koon bajrangbali dikhu? main to narsingha je rambij hain ke khajur ki guthli? dharam pal rahi tum jaise Dhongiyon ne hi mere moon mein gola thunswaya, meri awaz ko mara hai main teri bhi lanka mein aag laga dunga
itna kahkar wo phandata, dhamakta samne osare mein ja kuda aur rammurat ke aage saje puja ke phool pan ko idhar udhar bikherta, bam bam karta, bhojan pani ko raundta bhag khaDa hua
suraj Dhale chhaggi pokhar tole pahunchi thi dhanush ki Dhab muDi bans ki khapachchiyon par sadhi apni jhuggi ke samne, kandhe par jhulte tar ke chhinke pinjre patak kar usne hath jhatak diya phir ochhe hath ko pure hath se sahlakar samne dekha—narsingha mari chaal se baDha aata tha uske kandhe par tiki soti par rabar ke Dore mein bandhe tota maina sate hue Dol rahe the use laga bhor ko jitne tota maina the, utne hi ab bhi hain ek kaDwahat uske sukhe gale mein utar gai
pokhar ki puliya par baithe phanne ne donon man beton ko jhuggi ke samne jo dekha to lakDi ke sahare tang uchhalta unke pas chala aaya thoDi der chupchap raha chhinke pinjre aur kaghazi tota maina ke Dher ko dekhkar usne donon ankhen tarer kar ghura aur bina kuch bole jhuggi ke sire par bikhre adhabne khilaunon ko jhalla kar ek tho karne laga phir ekayek samne paDe khilaunon aur chhinke pinjron ko donon ke sar par mar galiyan bakne laga
“ab aur pinjre khilaune banakar tum donon ke bapon ko usmen dharun bahlaun?”
are! kullay kyon hai, in chhinke pinjron par koi hath na dhare to main kya karun? kisi ke gale bandh doon, inhen?
“ tu na bandh ja kisi ke gale? idhar ko gala phaDti, basti bazar mein bol ni phutta ke le lo chhinka pinjra ”
are din bhar bola gala phaDa par koi ankh na uthi ek babu ne dekha, bola, gharwali pasand kare to le Dalun ghar tak le gaya par gharwali thi kahan? lanDura tha mujhe hi bulane laga ghar mein
phir kya? thukkar palat i ”
wa re sati! sawatri! thoDi pasar leti to kaun roop Dhal jata?
“ marad hai ki sukar? laj kar
o lajwanti! jo soin nahin aaj tak idhar udhar?
“ munDakte! mar, tere jaise marbhukhe mere bap ne hi idhar udhar kiya mujhe bus, apne man se to muta bhi ni tere moon mein
putni hai sikal dekhi pokhar mein? chamaDamDhi thatthar, bajao to Dhab Dhab bane hain rasili khusak pokhri, bichhi zarur hogi wahan, aintha hoga kuch, yahan chalittar dikha rahi dikha anti?
“ le dekh apni man bhen ka, kahte hue usne do hath ka litra hi nahin, phatiyal choli tak utar phenki bhannati hui boli, “or dikhaun tere ko teri janam jaga?
“ ari! para samet roop apna? balak dekhenge to khaupha jayenge koi marad jo yen dekhega to mardangi mar jayegi uski
“ tu to mardua nahin? mere ko dekh, tera marad to mar hi gaya khodi hai, jo khodega nahr bhothara bhatta marad bane hain
ri ma! kho khon hi karegi ya khane ka jugaD bhi baithayegi? bhookh lagi hai narsingha chup donon ki batbheD dekh raha tha; ab bola
le khila khasam ko apna moonD
“khasam hoga teri bhen ka, mera to betta hai
“bata, apne bap ki man ke khasam! kitta laya? tota maina to joon hi baithe hain teri man ki munDer pe phanne ne narsingha se puchha
“bappa! ab to in kaghaz ke tota maina ko koi na puchhe pilastik ke khilaune la de, wo bech lunga usne khise jhaD kar kuch sikke samne dhar diye
“mar sale pilastik gai teri man ki popli pendi mein, usne tote ginte hue kaha, “are! je to aath hain, maina pandra aur guldaste to jo ke jo hain paise kitte hain ” nabbe, kul? ma khor! bees mein se aath bache bara toton ke ek bees to je hi aur maina ke pachas alag; kul ek sittar ka bech hua—de, baqi kidhar ko?
“pachas ki post aur ”
“aur kya, baqi man ke yar ko chata diye?
doon ek jhap, bata?
“ek cha aur panch ki mungaphali
“kanjar koon hazar bar bola, do ka bikra ho to cha piya kar phanne ne tanna kar ek thappaD narsingha ko jama diya
qasai kyon mare hai? din bhar bhukha Dola, ek cha pi li to kaun teri kunari bhen ka doodh pi gaya?
aye chhinaliya! chup kar, isne apni hi kunari man ka doodh piya hai, ni to bara baje se, tera bap babu logon ke kaintin ke pas Dolta raha juthan phenkan se pet bhara sanjh ko phir aa gaya thunsane meri jhuggi mein ab tum donon ke liye koi thaur nahin maro palle kone mein phanne ne biDi sulgai aur dhaunkne laga ruk kar bola, “ab aana bette post pine!
“mainne hazar tem bola tere koon, is launDe ko post ki lat mat Dal chhaggi uphan kar boli
“post ki lat na ho to, betta kal hi bhag khaDa hoga isi se bandha hega ”
o neech! to joon pal rakha hai mere narsinghe ko?
ni, to tere roop pe rijha tha? isi khute ke bal tere ko gale bandha tha, ni to tu hai kaun? samajh le ab isi launDe litre par chalegi teri roti tinon ke beech chuppi tani rahi thoDi der baad chhaggi ne aage hath baDha phanne ke munh se biDi jhapat li aur sutte lagate hui boli, le ye DeDh aur le aa addha usne choli ke gumaD mein se ganth nikali
“kab se sahej rakhe hain? phanne ke gunjal chehre par tanaw ruka aur bila gaya, bola, to le launDe, post toD aur bhigo, aaya main aur wo lakDi ke sahare langDi tang uchkata uth khaDa hua
* * *
sukhe bhige, jhaD jhakkhaD bhare, tapte thithurte baraste riste unke din aur raat wahin pokhar mein khapte the wahin bachche janamte, kilakilate, bilbilate, baDhte aur kisi ko apne behal beghar hone ka guman tak na hota par is bar poos, thanDi aag bakherta aaya thanDi ke sath bedhne wali bayar unke kankal ko khangal gai buDhe kanpknpane lage tabar dant kitakitate, baDe motiyar jhurajhri nahin jhel sake aur nanhen to lambe hi ho gaye
waise anokha anbhoga kuch bhi nahin tha aise mausam pahle bhi aaye the aur thasak bata beet gaye the par idhar jab se the par idhar jab se rain baseron ki baat pokhar tole mein chali, tabhi se sab ek thaur juDe the aur raten udhar hi rain basera mein katne ki thani thi
rain basere mein aaj pahli hi raat katkar tole ke bhaile bhaiyon aur ma bhainon ne ankhen kholi theen basere ke pheraw mein unhen ajib sa laga, jaise duje des nahin duje lok aa gaye hon
peti mein band murge ki bang ke sath hi tole mein tu tu main main, rona pitna mach jata tha yahi unke jine jagne ki pahchan thi adami lugai ke jhonte nochte, lugai marad ki moonchh ukhaD leti thi aur phir ek dusre ki aaski maski bakhani jati
tu tere bhen ke marad ke sath soi
tune teri bhauji sang moon kala kiya
“tu chor ”
tu chhinal
tera bap dhaDwi ”
teri man ke chalittar dekhe
ye mera moot ni tere bhai ka tukhma
ai, laj mar, mein ni bol doon, tera moot teri bhen ki kokh
o chanDiye
“o ranDue ”
khasamkhani, adamkhor
lugai ka raj pi li, neech
pokhar tole mein yahi sab chalta phir sanjh ko jutaye phoos phachar, kaghaz kuDa, tahni thunthe dhadhakte, biDiyan sulagtin raat ke bhige post ke chhilke aag par dhare kale kathiyaye Dibbe mein khaulte, khudabudate, phir chikat dhoti ke chhor se chhan chhanakar tute hainDil ke magon mein Dhal jate post ki gandhiyai bhap mein we ek dusre ka munh johte aur kabhi chahak aur kabhi anbole bol ke sath uske apne sukhe gale ki ghati mein unDel leti akash ki kali tutkar jab unke ankhon ke Doron mein bus jati to we pokhar puliya se suraj ka chaDhna dekhte buDhe baDe motiyar, nale par khaDe chaywale sindhi ke khokhe ke aage ja baithte phir bol ke gol phutte, phir jhanjhat jhaggaD hota hathapai tak ki naubat aa jati kisi ko ajab nahin lagta sab jante the, ye roz hota hai log dekhkar bhi andekhe nikal jate chay ki suDak ke sath phir khon khon hoti, phir danton mein biDiyan daba toli bikhar jati, rozi rujgar ke liye kisi ke kandhe par teen ke kanastar pitne, theek karne ke auzaron ki peti jhulti, kisi ke sar par chini kanch ke bartan aur phate june kapDe hote koi kaghaz gatte ke khilaune liye hota din mein kabhi kabhar milna hota, sanjh paDe phir juDte phir zindagi bajne lagti
tu pi aaya kamai, tera chanchar randhun?”
tu kha i kabab kachalu, ab kha gu gobar
“munDakati ma ko, biDi cha chatani thi to usi ke sang sota; ranD kyon lagai gale?
“bap buDhal ke moon mein daru kyon muta? ja usi se apni tang garma ”
“moot harami ka doodh mera, bol ke sath koi man chithyai chhati thoos bachche ko dhabak deti
raat ke basiyaye gale mein, bhor kiran ke pathraye jane par bhi jab post ras na utra to rain basere mein hi bakjhak ki jhaDi lag gai aaj we sarkar aur netaon ke man bapon ko bakhan rahe the unse rishta nata joDkar chilla rahe the— bus ek tatra godam sa khol diya aur bakron bailon ki joon bhar diya sabko cha pani kuch bhi nahin koi nau baje prabandhak ji aaye to kuhram macha tha gandgi alag sab dekh sunkar unhonne matha peet liya aur pokhar tole walon ko nikal bahar kiya we bakjhak karte, galiyan uchhalte rain basere se bahar aa gaye
***
sanjh ghire pokhar tole ne aaj phir sans li ukhDe bans khapachchiyan phir khaDe hue the aur teen tat ne tankar bitte bhar zamin ko akash ki chhanw se kat diya tha das bees jhuggiyan phir ubhar i theen jaise taise pahar bilmayon bhor hue, phir jugat juDi aur dinon ki chalte aaj chill pon kam thi biDi ke sutton se kholiyon mein dhuan ata ja raha tha
“khel khilaune koi lewe ni, chhinke, pinjron ke din gaye ab yoon kaise chalega? chhaggi ne apni chhathi anguli chatkate hue kaha “apna to tem tal gaya, narsingha bin khaye nahin rene ka
tu kare na koi jugaD? tere to bees upar ek ungli hai
jasti ungli deekh rahi hai bhagwan ne jo do ki thaur DeDh hi hath diya wo dide mein ni aata usne apne thanthe se hath ko nacha kar kaha
kichakichane ka taim ni chhokre ko mana le, sab phir chal jayega ”
chhokre ko kya karna bol? usne gudaDi mein paDe narsingha ke dhusar balon mein anguliyon se kanghi karte hue puchha
ise karna kuch ni bus bajrang bali banna hai
bajrangabli hanuman?
“aise poochh ri hai choon hindu ni, turak ho
“bol bhi karayega kya usse?
“kuchh ni bus uski deh ek lal langot dhaar denge sindur se badan pot dena hai, phir moon mein ramgola thoons ke baal dhone ki mitti se leep, pichhe banar poonchh khons, khappar thama use sahri basti mein Dola denge kuch to dharam logon mein hai, dan dachchhina mil hi jayegi ”
iske moon mein ramgola thunsega? upar mitti potega? mere bachhDe ka dam nahin ghut jayega?
tera jana, dudhamuha kunwar kanhayya ju ni, das upar do ka dheeng hai uski jawani nak kankh ke niche phoot rahi samjhegi ni aur bakbak laga degi sun, ise thoDa nak se sans lene ki aadat banani paDegi do ek din yahin rabat Dal denge aaj se hi le
ye kya kartab hua bhala pet palne ka? mere bete ki sans mein ni band karne ki
yoon to sans band ni hogi khane ko ji ni milega to uski to kya teri bhi band ho jayegi post ka pani jo gale ni utra to baitha ni hona, mara paDa rahega udhar uski mahtari ka mutna hagna ruk jayega
aur tu kaun pahaD chaDh ayega, teri ankh ni udhaDne ki meri kokh phati hai na apna tukham hota to lagta
are! mera tukham hota to kaun raj karta? idhar udhar mote manus ki sewa tahal mein khutta, mimiyata Dolta, ya teri meri taraj par bhukon marta marta tu ni chahe to mujhe kya paDi? main phir chhinke pinjre gaDh ganth dunga, raddi kagad gatte ke phir mor chiDiya bana dunga liye Dolna unhen, uDane bechne ko tu jane apni to DeDh tang hai, use lekar langData lathiyata chal bhar sakun hoon itna bol phanne ne pas bikhre majbut irada, kaDi mehnat pakka anushasan wale postaron ko sahej liya aur khilaunon ke liye katar byaut karne laga
jay bajrang bali, toD dushman ki nali! ke unche bain ke sath narsingha ko hanuman ka roop dhara, phanne ne jab jhuggi ke bahar kiya to tolewale hanste khillate achraj achambha karne lage
“are o phanne! jo manusjat ko banar kyon bana diya re? tagDe hoon re ne Datiyate hue puchha
“dhaunkni ke! jeebh jalegi, bajrangbali koon banar bole bol jay hanuman!” chhaggi ne sath diya to pas khaDi lugaiyon ne bhi dohra diya
man bap se manjuri mata ni howe chhore ke moon mein gola thoons diya damghut mar giya to?
are bichar bhi, parbat utha liya to mare ni, ramgola moon mein rakh liya to mar jayenge phir nak kan se ram paun jayega hi wo bhi ni to ram bhagat kabhi koi mara hai?
“adhram ka nas ho! bolo, jai bajrang bali kee!
is bar kai bol sath uthe chhaggi ne hath joD hanuman ke charnon mein sees nawaya to pas khaDi lugaiyon ke hath bhi juDa gaye buDhe bimar bol uthe—rawan ki lanka jaro, sankat taro!
phanne ne narsingha ke hath mein sunahri panni se maDhi gatte ki gada aur dusre hath mein bheekh ka khappar thama diya aur use tole se bahar shahr ki taraf hankal diya tole ke laDke litre taliyan bajate pichhe dauDe to phanne ne unhen Datiya kar baraj diya
hanuman bana narsingha jab tak tole mein khaDa tha, use laga tha aaj wo baDa ho gaya hai bahut baDa ole ke baDe buDhe use hath joDe sees nawa rahe pal pal marapit karne wala phanna uske aage jhuka tha pokhar par kar jab wo majur basti ke chhor tak pahuncha to use dhoop khate chhore chhokron ne gher liya
are! je kaun? banar bajrang bali
o o tu kihan se aya?
narsingha ne unhen ankh chauDa kar ke ghura to ek bol utha, o boDam, tera je roop! are! bhen ka je to aapna narsingha ,
oy narsingha! je teri gada, je teri poonchh are! je kaise? banar ka moon to kala howe, tera safed aur phir usmen je ka? kah kar chandu ne uske moon gole par hath phira diya
narsingha ko majur basti mein isi ka Dar tha uska chandu se kal hi tanta hua tha wo narsingha se antas bandhe tha sochta hua wo aage baDha ki phir chandu samne aa khaDa hua usne hath baDha kar uska munh kala kar diya jane kahan se wo kale mein hath san laya tha narsingha bhabhak kar hu hoo karne laga aage baDha ki usne pichhe se uski dum kheench li sab khil khilkar hans paDe abhi aur bhi gul khilte ki tabhi kaam kamthan par jate majur majuraniyon ne bachaw kar poonchh theek laga, use basti ke par kar diya
basti par kar wo bazar pahuncha pahle to ghamak dhamakkar chalta, phir peDhi dukan ke aage ja khaDa hota idhar udhar khundata, logon ka dhyan bantata aur bheekh ka pattra aage kar deta koi deta, koi dhakiyata isi tarah wo duje pahar tak Dolta raha
waise phanne ne use kai dinon, khoob rabat karwai thi nak mein nali ghuseD sans lene ki ek bar to gola uske munh mein bhar kar use din bhar jhuggi mein rakha tha mahawra ho jane se dam to nahin ghutta tha, par munh mein thunse gole se uske jabDe tane ke tane rah gaye the nak se sans lete lete wo thak bhi gaya tha par usne himmat nahin hari phanne ka bhi Dar tha usne safa bola tha bete! je majuri hai kamchori na karna bhukon hi ni marega post ke phok ka ras bhi ni milne ka tere ko aur teri man bhi duje thaur kisi marad ke ja baithegi, phir tera kin thaur? soch mein Duba tha ki tap se pattar thinka kisi bhagat ne paisa gaira tha
chaDhe suraj ki kiran, sindur pute tan par katne lagi to wo ek taraf sustane baith gaya saDak se peeth moD usne pattar mein hath ghumaya to panch das paison ke sikkon se mutthi bhar gai gine to do rupae upar bees paise the usne chaha, paise kahin sahej le, par rakhe kahan? kuratta kachchha hota to khisa khisu hota, yahan to langot ke nam deh par ek chindi bandhi thi bus
hanumanji, apni poonchh sahejo—pair paD gaya to pap lagega! itna kah kar us majuranuma adami ne uski poonchh uske hath mein thama di aur uske samne das paise phenk diye ab do rupae se upar majuri ho chuki thi wo panch paise ki mungaphali aur ek cha ka haqdar ho gaya tha par khaye piye kaise? munh mein ramgola jo thunsa hai use ab bhookh lag i thi bhookh to roz lagti aur marti hai, par pyas? kaise piye pani? usne ek bar gola ugal Dalne ki sochi par phir kaise gola bharega, mitti potega? yahi soch wo ruk gaya thoDa thahar kar wo uth khaDa hua do ek dukandaron ke aage usne khoond bhari bhi, par jab pyas aur satane lagi to aage na ja, jis gail aaya tha, usi par baDh chala
wo balmiki basti ke akhiri chhor par khaDa tha tabhi school ki chhutti hui school se chhute chhoron ke tol ne use aa ghera ghanton pothi pati se rundhe chhore ab chuhal par chaDhe the ek Datak chhore ne poonchh hi nahin ukhaDi, uski gada bhi chheen li wo bilbila kar hoon hoon karta dhamak raha tha ki ek hath uske khappar paDa aur sikke khanakhna kar dharti par bikhar gaye usne bachao bachao ki guhar jeebh par ugai par bain kanth mein ghut kar rah gaye usne haDbaDa kar sikke saheje to ab uske pas kul ek rupaya das paise the dushman ki nali toDnewale bajrang bali dushman ko mahabali dekh khu rone lage usne munh se gola nikal gala phaD kar rona chaha, par din bhar bhukha pyasa anbola raha aur majuri lut gai bappa ko kya bolunga? wo manega, bharosa karega? sochta hua wo utha aur mare mare pag baDhata pokhar ki puliya ke pas ja khaDa hua
age phir narsingha ka wahi sang tha, par ab uske sath chhaggi lagi thi—ek hath mein soti aur duje mein bheekh patar thame, jay bajrang bali, toD dushman ki nali! ke jai bol ke sath pichhe chalti udhami chhokre laDkon ke jhapat jhoton se mahabali ko bachati
kal narsingha ne lakh hanuman ramji ki aan le kaha tha—mainne ramgola kaDh moon ni khola na khaya, na piya pahar khundana mangna kiya par phanne ne ek na mani usne Datiyaya, dhamkaya hi nahin uski kuttas bhi ki chhaggi phir chhinke pinjre liye khali hath lauti to usne hukam diya ki kal se wo bhi us roniye tukaDiye bajrange ke sath jayegi waise bhi kaun kama ke juta rahi? isiliye ma poot aaj sang sang Dol rahe the
peDon tale dhoop ghirti ki donon nikal jate bazar basti mein mangte ghumte parchhain ke peD bante bante jahan algaw dikhta, wahi narsingha alsa ke baith jata khane pine ki hath karta chhaggi nahin manti to pasar jata khaDa na hota haar kar chhaggi uske munh se gola hata, use kuch khila, thanDa pani pila deti kha pi ke bhi wo phir se gola munh mein dharne ko razi na hota
“mai ree! main bolne hansne ko taras giya is kathgole se jabDa pira gaya kisi duje hille laga de na
duja hilla? apni janti ko nacha chopaD pe par is Dain ko kaun dekhe? tu kaun mar jayega jo ek tani daDi gend moon mein rakh lega?
marne ki na bolta nak mein khunsi nali se khoob sans loon hoon par asapas dekh, tere soon bolne hansne ko ji kare par bolun kaise? subhu nanki muniya mujhe dekh Dar gai, bhoot bhoot bol peeth pher khaDi ho gai mere ji mein aaya, pyar kar puchkar loon
“aya baDa pyar puchkarwala ”
kyon, bachchon ko pyar puchkar pap hai bhala?
“are, tu bhi kaun syana hai? balak hi hai tujhe pyara puchkara kisi ne jo tu bhi waisa hi karega sau upar bees, tere mare bap ke hath dhar, phanne ne mere sath tujhe bhi apne hille liya hai—bhari biradri ke aage phir post ki lat na ho to main hi bhagakar par kar deti tujhe, par chal, khol thuthni aur usne jabar se ramgola uske moon mein thoos, gol hath phira use jyon ka tyon kar diya
donon phir chal nikle chhaggi patra pasare ghighiyati aur narsingha dukanon ke aage ghumta khundata rahta jab dhoop pili hokar marne lagti, donon pokhar ke tole ko muD jate
yoon to chhaggi narsingha har sanjh phanne ke aage DeDh do rupae ki rezgari lakar bikher hi dete, par isse kaam sadhta nahin tha narsingha samet chhaggi ko apne ghar ghalne ke liye phanne ne jo qarza karaya tha, uska bojh mathe tha hi, upar ek chhek aur tha ki—jo phire, wo chare donon man poot to kamai se parbare paisa mar din mein kuch na kuch kha pi lete the aur wo din bhar puliya par baitha, ubasi leta juen jharta rahta chhaggi ne ramji ki saun le, ganga maiya ka wasta de use kamai na kharachne ka bishwas diya tha, par use partit na hona tha, na hua aur hota bhi kaise? ek din usne ramgole par pahchan ki rekh Dal kar use aage rakh narsingha ke munh mein dhara tha par jab sanjh usne khu gola apne hath se nikala to pahchan ki rekh pichhe thi usne donon ko khoob kuta pita bhi par kamai mein baDhotri kahan? use din bhar soch rahti ki kya jugat joDe ki kamai baDh jaye nam uska phanne tha wo kai fan janta tha par sar mar kar bhi wo koi phan na nikal saka
***
us din ginti bhar ko sikke la kar chhaggi ne phanne ki hatheli par dhare the, phir bhi wo chup raha tha raat ko wo theek se so na saka tha jab tab kuch budabudata raha tha bhor ko bhi wo ram ram siyaram ratta raha tha suraj ke thaal ke damakte hi wo ram lakshman janki, jay bolo hanuman ki ke jaikar ke sath lakDi tikata tole se nikal gaya tha jab lauta to uske chehre par santosh ki rekh anki thi usne sar khapakar apne balapan mein ram rakha panDit se suni sitaram bajrangbali ki katha se akhir ramphal aur ramphal ke beej ki joD toD bithakar ek nai katha gaDh li thi ‘bhagton ka, khas to ma bheno ka dharam dhiyan khinchegi je katha isi aas wiswas ko pal wo adalat ke aage dari bichhaye baithe babu ke aage ja tika tha bola—babu ek ki tho sawa le lo, pai jaise hum bole waisa mote kagad par jai masin se likh do wo bolta gaya tha aur babu anguliyan mar kar kaghaz par tiptip karta gaya tha bina chan yoon kiye sab pura ho gaya to paise dene ke pahle phanne ne kaha— babu, jo likha paDh do ek bar wo paDhne laga tha
ram lachhman janki, jai bolo hanuman ki
***
to bhagton, jo honi thi joon hui ram, lachhman janki ban mein rahe sinjhya akas mein joon phulai jaise man mein chhalbal ki jawala phaile sone ka hiran ek chaukDi marta Dolai janak dulari ki nain hiran ki bholi deeth saun jurai mohiani roop chhabi dekh boli—“nath! ise le aao hum palai posain ram ji samujhawai—“paran piyari maya ka des hai, jo ye ban hai kaun jane ye marag chhauna kisi ka ho jadu tona lachhamanji hami bharai par bhagton, jano tiriya hath sitaji dewi theen, sati theen, par theen to lugai zat bus, pakaD baithi tiriya hath ram lachhman janki, jai bolo hanuman kee!
chale ram, utha dhanush ban lachhamanji janki ke nigah ban ram pichhe chhauna aage jaise maya hari se bhage sanjh bilani nisa ghirani ram na aane pal chhin gunth pahar banain to janki hirani dani ankh uDe, man Dube bole byakul bani—dewarji! jao, apan bhayya ko lyao lachhman ji karen aana kani “biyaban ban, kaise chhoDe rajrani par sitaji pal bipharai kat karta bol marai sita ko lachhman rekha bhitar ghaal, ram khojan chale, lakhanlal
ram lachhman janki, jai bolo hanuman kee!
phir to jano bhagton! lanka ke rawan ki jo kutilta thi, phali aur janki gai chhali unka haran hua ram lachhman Dere aaye sita nahin pa akulaye ram kare bilap, lachhman apni karni par pachhtaye shabri jatayu sab aaye wipad jaan, ant aaye pawan poot hanuman hath joD ram charnon mein sees Dal man janki ka ata pata lagawe ka paran dhaar charnaraj le bole wikral pahaD phand uD chale bajrang baal ban ban chhane, nadi nad khangalai pe sita maiya ka thaur na pawai teen din teen raat ann na jal, kand na phal, paran hiranai, kanth sukhanau dew ram dukhi man janki gumani khawai piwai kaise? hanuman sayanau pe paran jo na ruken, to man ko bhi kaise pawain? bus, je hi dhaar ramphal ek mukh mein gero ramnam liye hirday juDanau pe ramphal ke beej dharti par kaise Darai je to ram bhagat ko heey bidarai kabhu nahin, bus piran kiya junhi mukh mein dhare rahe phir din ugai, nisa ghirai itte mein ram uchchaar soon munh paDa beej ankurai ab hanuman ramnam kaise ucharai? par hathi hanuman dhara par beej na Dare man hi man ram pukaren beej mukh mein phaile ab hanuman sans kaise lewen? dam ghutai, sans rukai par hanuman paran se na tare ramphal ke beej mukh dharai ant to ja puge lanka ke asok ban bus wahin sitaji koon ram ki mundri dikhai sitaji ram lachhman ki kuslai poochh par hanuman mukh se nahin bolai hanuman koon saun akul— byakul dekh sitaji ne aapan tej jagai hanuman ki man chitin koon toh payo ke ram ke param bhagat ram beej mukh mein pusaye phir kya? ram dulari ne aapan anchar phailaye hanuman ne ram phal beej anchar mein gerayau sitaji ne hanuman koon jalpan karayau apna bhag sarahau aur jayramji ke sath sitaji ka samachar le hanuman ram ki thaur uDai
to bhagton! tabhi se jo dewi ramphal ke beej ko aapan anchar mein dhaar in ramabhgat hanuman ki jalpan se sewa karen, unhen ram usi Dhab milai jaise janki ko milai ram lachhman janki, jai boli hanuman kee!
thikane par aakar usne bans par tangi parbat dhare hanuman jee ki photu ko chaukhat mein se hata guDimuDi kar namak ki hanDiya mein Dal diya aur uski thaur apni gaDhi katha ke kagad ko maDh diya
phanne ki soojh theek ban paDi thi ram beej ki jo katha usne gaDhi thi, khoob chali phali thi ab phanne bhi bajrang bali ke sang ho liya paDhe likho ko wo ja kar na na karte bhi katha ki kanchamaDhi pati thama deta aur jo na paDh hote, unhen khu Doob kar bhagti bhaw se ram phal ki katha sunata dhoop senkte apne chhote mote dhandhe mein lage log katha ke bol sun samajh lete aur kuch na kuch dan roop katha pati ke kanch par dhar dete kabhi kabhar koi bhagat unhen nyaut hi deta pahle phanne katha sunata, ankhen bhar lata aur beech beech mein bajrang bali ke roop dhare narsingha ke charn chhuta chhaggi ankhon se anchal lagati phir jab katha puri hoti to koi bhagtimti gharni bajrangbali ke aage anchal pasar khaDi ho jati jayram, jay siyaram ki rat lagati ram bhagat hanuman ki jai ke sath ram beej dan ki binti karti pahle to bajrambli suni anasuni karte, phir winay chirauri hoti to ramgola chhoD munh mein dhare ramphal ke beej anchal mein ugal dete tab jalpan bhog hota pahle bajrangbali jal lete, phir bhog lagate baad ko phanne aur chhaggi khate, pahle nahin bolte, pahle ramabhgat bhog lagawai, tab ramabhgat ke bhagat parsad pawai
idhar narsingha ko phanne post ka ras bhi chhak kar pilane laga tha usse hansi chuhle bhi karta chhaggi bhi kam hi pitti din bhar biDiyon ke sutte uDati phanne se thumak thumak batiyati par narsingha gul gapp mook rahta achchha se achchha bhog lagakar thaur pahunchata, post pita aur biDi ka dhuan ugal kar paDa rahta chupchup! bulane par bhi ‘han hoon hi karta bina bole bhi uska munh khula hi rahta kabhi jab munh mein makkhi bhinbhinane lagti, tabhi wo munh band karta man se to bolta hi nahin par jab bolta to bepar ki hankne lagta
main bajrangbali hun—phanne tu mera chakar main tera thakar mera jhutha khane! mera haga khayega? aur tu kahan ki mahtari phanne ka bhoot uske moon mein daru ka kulla karti—mere moon mein gola thusti is langaD ko apni tangaD pe sulati aur mujhe tang marti main kabhu tumhari lanka mein lampa lagaunga bhagat bhagtan ko bhi moot mein basaunga uski bak jhak sun, kai bar chhaggi phanne se laD bhiD gai thi
hazar bar bola tere koon, is lapru ko jasti post ka pani mat pila, par
“are, tere bandar ko jab bhog ke nam mal malida uDwaun tab to ni bole toon phir post, kaun tu hag rahi paise kaDhun tabhi aawe na
kaun tu paise apne pasine ke kate? din bhar mera chhora gola pati kati jeebh liye Dole, tabhi aawai ni paisa
“are richhni! apni jangali jeebh se tu main donon kya kar riye jo tera je ma chent betta kar leta! phir kaun parbat utha liya jeebh par, ek halka kathgola aur do beej hi to dhaar rakhe hain thoth mein badal mein mal malai pawe, upar se nasa nusi ka thath alag
“are o langaD batangaD! tu hi na kar le, bhar le je sab sang mainne bhot kiya ab tu ban bajrangbali, mere bhai ke sale! ekayek narsingha phataphat bol gaya
langaD bangaD jo bol, hoon to teri man ka khasam main jo ye sab karne laga to tum donon khaoge kya mera haga muta?
ri ma! ab je maun majuri mere se ni honi chhoD iski jholi jhuggi aur kahin aur ja paD, kahin kaam majuri karenge narsingha ne chhaggi ka hath tham kaha
hai is chhagli ki hauns jo chale aur thaur? phir subhu uthte hi post ka pani gale na utra to do din mein maila moon se niklega phanna tanak kar bola
betta! qasai ke khunt bandhe hain hum donon so bhi ja kahkar chhaggi ne uska matha sahla diya
phanne ke hothon mein thunsa biDi ka sulga thoonth kholi ke andhdhupp mein lal jugnu sa dip dip bhar raha tha narsingha ki gur gur ab bhi na thami to chhaggi ne phanne ke hothon se biDi jhapat uske munh mein thoons di
bhor narsingha baDa anmana tha kiran kate par kunamunakar karwat le usne phir ankh moond li chhaggi ne hath pakaD uthaya tan par mitti putwa hath se munh mein gola thoons, gada tan uth khaDa ho gaya thoDi der baad bajrangbali ki jai ke sath tinon phir saDak par the
aj ramanawmi thi phanne ne kuch baDa aur baDhiya pane ke hetu shahr se sate ganw ki sudh li usne ghar ghar har chaukhat par, katha pati, bakhan bata khasa paise juta liye suraj upar aaye aaye tabhi use beej dan ke do ek nyaute mil chuke the par aaj wo wahin bhog lagwane ki soche tha jahan khan pan se aage latte lugaD ki jugat baith sake usne bajrangbali ke man man ka hila le patli haalat ke jajmanon ko tal diya aur bus aDDe ke age lilaye khet mein khaDe baDe ramabhwan ko baDh chala wahin bhompu par ramadhun lagi thi aur sanjh ko hi use sampuran hona tha
ramabhwan ke theek samne usne jamawDa lagaya baithe baithe der ho gai kisi ko aata na dekh usne biDi sulgai do sutte mare hi the ki narsingha ne biDi lapak nak ke chhed mein khons li aur phir zor zor se unchi sans lene laga uski nak ke dusre phunge se dhuan nikla hi tha ki tabhi ghar ki malkin samne aa paDi thoDa dekh samajh boli—kaisa hai tumhara bajrang bali? biDi ka bhog lagawe, wo bhi nak se itna kah, muskan si tan aage ho gai tabhi phanne ne jhat uski nak se biDi jhapat door phenk di aur jai bajrangabli ke sath pati uske aage kar di
mainne sun rakha hai tere bajrang bali aur ramphal ki katha ke bare mein mainne to tumhein nyautne ke liye unhen kaha bhi tha baitho aati hoon kahti ghaghre lugDe mein basi dharam dhiyan wali adheD umr ki bhagtan ghar mein ho li dhaDi tale wo i bajrang bali ki aarti utar, anchal phaila, samne khaDi ho gai narsingha ne munh chauDa kar gola hata rambij anchal mein ugal diya na jane kaise bijon ke sath lad se thak ka thakka bhi gir gaya usne ankhen tareri tabhi jai siyaram ke sang ramgola dhamak se phanne ke kandhe par ja laga
are, je ka karo bajrangabli? phanne uphan rok budabudaya
“toD dushman ki nali ram koon bench bajrangbali ke kalpane walon Dhongiyon luchchon meri awaz ki las khao tum narinsgha chikhta bola
kya hua re tere koon?” chhaggi ne puchha
chup donon din bhar ha hu kar hanso, thitholi karo bhala dekh bolo, batiyao main din bhar kathgole ke niche jeebh daba arthi sa dolun phirun
ke bol riya tumara bajrang bali?” malkan ne puchha
“are narasinghe! pagla gaya re kya?
paglaya nee, theek bol riya hoon ab rok mera bol aaj wo cigarette bechne wale log dekhe tune? do adami kitte lambe lambe banson pe chaDhe chalte the unhen dekh jagat mulka riya tha mera man hansi se bhar gaya par hansun kaise? meri hansi mar gai, boli gole ke niche dab gai dhyan hai, kal ek mem ne chhatri kholi to uske tar mein uske balon ka topa ulajh upar gaya—ganji mem kahkar log kurlaye, tum donon baat mar mar ke khillaye aur main apni bol ki las uthaye man mare munh munde khaDa riya
“are, bol ke kaun tera pet bhar jata, bin bole jo mal mile to bhi baD baDa riya hai
chiDiya ko sona chuga do, bina chahke re sakti hai? ab main bhi bolunga aur khoob bolunga, mujhe rok, tere bap ka hi to? aur wo danadan galiyan ugalne laga kan mein anguliyan Dal malkin jane lagi to wo uske aage phir gaya—are bhagtan! jawe kaha tu andhi hai jo main tere koon bajrangbali dikhu? main to narsingha je rambij hain ke khajur ki guthli? dharam pal rahi tum jaise Dhongiyon ne hi mere moon mein gola thunswaya, meri awaz ko mara hai main teri bhi lanka mein aag laga dunga
itna kahkar wo phandata, dhamakta samne osare mein ja kuda aur rammurat ke aage saje puja ke phool pan ko idhar udhar bikherta, bam bam karta, bhojan pani ko raundta bhag khaDa hua
स्रोत :
पुस्तक : श्रेष्ठ हिन्दी कहानियाँ (1970-1980) (पृष्ठ 11)
हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी
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