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ईदगाह कक्षा : (पाँच)

iidgah kaksha ha (paanch)

प्रेमचंद

प्रेमचंद

ईदगाह कक्षा : (पाँच)

प्रेमचंद

और अधिकप्रेमचंद

    नोट

    प्रस्तुत पाठ एनसीईआरटी की कक्षा पाँचवी के पाठ्यक्रम में शामिल है।

    हिंदवी

    रमज़ान के पूरे तीस रोज़ों के बाद ईद आई है। गाँव में कितनी हलचल है। ईदगाह जाने की तैयारियाँ हो रही हैं। किसी के कुर्ते में बटन नहीं है, पड़ोस के घर से सुई-तागा लेने दौड़ा जा रहा है। किसी के जूते कड़े हो गए हैं, उनमें तेल डालने के लिए तेली के घर भागा जाता है। जल्दी-जल्दी बैलों को सानी-पानी दे दें। ईदगाह से लौटते-लौटते दुपहर हो जाएगी। लड़के सबसे ज़्यादा प्रसन्न हैं। किसी ने एक रोज़ा रखा है, वह भी दुपहर तक, किसी ने वह भी नहीं, लेकिन ईदगाह जाने की ख़ुशी उनके हिस्से की चीज़ है। रोज़े बड़े-बूढ़ों के लिए होंगे। इनके लिए तो ईद है। रोज़ ईद का नाम रटते थे, आज यह आ गई। अब जल्दी पड़ी है कि लोग ईदगाह क्यों नहीं चलते। बार-बार जेब से अपना खज़ाना निकालकर गिनते हैं और ख़ुश होकर फिर रख लेते हैं। महमूद गिनता है, एक-दो, दस-बारह! उसके पास बारह पैसे हैं। मोहसिन के पास एक, दो, तीन, आठ, नौ, पंद्रह पैसे हैं। इन्हीं अनगिनत पैसों में अनगिनत चीज़ें लाएँगे—खिलौने, मिठाइयाँ, बिगुल, गेंद और जाने क्या-क्या! और सबसे ज़्यादा प्रसन्न है हामिद। हामिद अपनी बूढ़ी दादी अमीना की गोद में सोता है। हामिद के पाँव में जूते नहीं हैं, सिर पर एक पुरानी—धुरानी टोपी है, जिसका गोटा काला पड़ गया है।

    गाँव से मेला चला। और बच्चों के साथ हामिद भी जा रहा था। कभी सब-के-सब दौड़कर आगे निकल जाते। फिर किसी पेड़ के नीचे खड़े होकर साथवालों का इंतज़ार करते। ये लोग क्यों इतना धीरे-धीरे चल रहे हैं! हामिद के पैरों में तो जैसे पर लग गए हैं।

    शहर आ गया। बड़ी-बड़ी इमारते आने लगीं, यह अदालत है, यह कॉलेज है, यह क्लब घर है। इतने बड़े कॉलेज में कितने लड़के पढ़ते होंगे? सब लड़के नहीं है जी! बड़े-बड़े आदमी है, सच! उनकी बड़ी-बड़ी मूँछें हैं। इतने बड़े हो गए, अभी तक पढ़ने जाते हैं। न जाने कब तक पढ़ेंगे और क्या करेंगे इतना पढ़कर। हामिद के मदरसे में दो-तीन बड़े-बड़े लड़के हैं, बिल्कुल तीन कौड़ी के! रोज़ मार खाते हैं, काम से जी चुरानेवाले। इस जगह भी उसी तरह के लोग होंगे और क्या।

    सहसा ईदगाह नज़र आया। नमाज़ ख़त्म हो गई है। लोग आपस में गले मिल रहे हैं। तब मिठाई और खिलौने की दुकान पर धावा होता है। ग्रामीणों का यह दल इस विषय में बालकों से कम उत्साही नहीं हैं। यह देखो, हिंडोला है। एक पैसा देकर चढ़ जाओ। कभी आसमान पर जाते हुए मालूम होंगे, कभी ज़मीन पर गिरते हुए। यह चर्खी है, लकड़ी के हाथी, घोड़े, ऊँट छड़ों से लटके हुए हैं। एक पैसा देकर बैठ जाओ और पच्चीस चक्करों का मज़ा लो। महमूद और मोहसिन और नूरे और सम्मी इन घोड़ों और ऊँटों पर बैठते हैं। हामिद दूर खड़ा है। तीन ही पैसे तो उसके पास हैं। अपने कोष का एक तिहाई ज़रा-सा चक्कर खाने के लिए नहीं दे सकता।

    सब चर्खियों से उतरते हैं। अब खिलौने लेंगे। इधर दुकानों की क़तार लगी हुई है। तरह-तरह के खिलौने है—सिपाही और गुजरिया, राजा और वकील, भिश्ती और धोबिन और साधु वाह! कितने सुंदर खिलौने हैं। अब बोलना ही चाहते हैं। महमूद सिपाही लेता है, ख़ाकी वर्दी और लाल पगड़ीवाला, कंधे पर बंदूक़ रखे हुए। मालूम होता है, अभी क़वायद किए चला आ रहा है। मोहसिन को भिश्ती पसंद आया। कमर झुकी है, ऊपर मशक रखे हुए है। मशक का मुँह एक हाथ से पकड़े हुए। बस, मशक से पानी उडे़लना ही चाहता है। नूरे को वकील से प्रेम है। कैसी विद्वता है उसके मुख पर! काला चोगा, नीचे सफ़ेद अचकन, अचकन के सामने की जेब में घड़ी, सुनहरी ज़ंजीर, एक हाथ में कानून का पोथा लिए हुए। मालूम होता है, अभी किसी अदालत से जिरह या बहस किए चले आ रहे हैं। यह सब दो-दो पैसे के खिलौने हैं। हामिद के पास कुल तीन पैसे हैं, इतने महँगे खिलौने वह कैसे ले? खिलौना कहीं हाथ से छूट पड़े तो चूर-चूर हो जाए। ज़रा पानी पड़े तो सारा रंग धुल जाए। ऐसे खिलौने लेकर वह क्या करेगा। लेकिन ललचाई हुई आँखों से खिलौनों को देख रहा है और चाहता है कि ज़रा देर के लिए उन्हें हाथ में ले सकता।

    खिलौने के बाद मिठाइयाँ आती हैं। किसी ने रेवड़ियाँ ली हैं, किसी ने गुलाबजामुन, किसी ने सोहन हलवा, सभी मज़े से खा रहे हैं।

    मिठाइयों के बाद कुछ दुकानें लोहे की चीज़ों की हैं। कुछ गिलट और कुछ नक़ली गहनों की। लड़कों के लिए यहाँ कोई आकर्षण नहीं था। वे सब आगे बढ़ जाते हैं। हामिद लोहे की दुकान पर रुक जाता है। कई चिमटे रखे हुए थे। उसे ख़्याल आया, दादी के पास चिमटा नहीं है। तवे से रोटियाँ उतारती हैं, तो हाथ जल जाता है। अगर वह चिमटा ले जाकर दादी को दे दे, तो वह कितनी प्रसन्न होंगी। फिर उनकी उँगलियाँ कभी न जलेंगी। घर में एक काम की चीज़ हो जाएगी। खिलौने से क्या फ़ायदा?

    हामिद के साथी आगे बढ़ गए है। सबील पर सब-के-सब शर्बत पी रहे हैं। देखो, सब कितने लालची हैं। इतनी मिठाइयाँ लीं, मुझे किसी ने एक भी न दी। उस पर कहते हैं, मेरे साथ खेलो। मेरा यह काम करो। अब अगर किसी ने कोई काम करने को कहा, तो पूछूँगा। खाएँ मिठाइयाँ, आप मुँह सड़ेगा, फोड़े-फुंसियाँ निकलेंगी, आप की ज़बान चटोरी हो जाएगी। सब-के-सब हँसेंगे कि हामिद ने चिमटा लिया है। हँसें! मेरी बला से! उसने दुकानदार से पूछा—यह चिमटा कितने का है?

    दुकानदार ने उसकी ओर देखा और कोई आदमी साथ न देखकर कहा—यह तुम्हारे काम का नहीं है जी!

    हिंदवी

    “बिकाऊ है कि नहीं?”

    “बिकाऊ क्यों नहीं है? और यहाँ क्यों लाद लाए हैं?”

    “तो बताते क्यों नहीं, कै पैसे का है?”

    “छह पैसे लगेंगे।”

    हामिद का दिल बैठ गया।

    “ठीक-ठीक बताओ।”

    “ठीक-ठीक पाँच पैसे लगेंगे, लेना हो लो, नहीं चलते बनो।”

    हामिद ने कलेजा मज़बूत करके कहा—तीन पैसे लोगे?

    यह कहता हुआ वह आगे बढ़ गया कि दुकानदार की घुड़कियाँ न सुने। लेकिन दुकानदार ने घुड़कियाँ नहीं दी। बुलाकर चिमटा दे दिया। हामिद ने उसे इस तरह कंधे पर रखा, मानो बंदूक़ है और शान से अकड़ता हुआ संगियों के पास आया। ज़रा सुनें, सब-के-सब क्या-क्या आलोचनाएँ करते हैं।

    मोहसिन ने हँसकर कहा—यह चिमटा क्यों लाया पगले, इससे क्या करेगा?

    हामिद ने चिमटे को ज़मीन पर पटककर कहा—ज़रा अपना भिश्ती ज़मीन पर गिरा दो। सारी पसलियाँ चूर-चूर हो जाएँ बच्चू की।

    महमूद बोला—तो यह चिमटा कोई खिलौना है?

    हामिद—खिलौना क्यों नहीं है। अभी कंधे पर रखा, बंदूक़ हो गई। हाथ में लिया, फ़कीरों का चिमटा हो गया। चाहूँ तो इससे मंजीरे का काम ले सकता हूँ। एक चिमटा जमा दूँ, तो तुम लोगों के सारे खिलौनों की जान निकल जाए। तुम्हारे खिलौने कितना ही ज़ोर लगाएँ, मेरे चिमटे का बाल भी बाँका नहीं कर सकते। मेरा बहादुर शेर है—चिमटा।

    सम्मी ने खँजरी ली थी। प्रभावित होकर बोला—मेरी खँजरी से बदलोगे, दो आने की है।

    हामिद ने खँजरी की ओर उपेक्षा से देखा—मेरा चिमटा चाहे तो तुम्हारी खँजरी का पेट फाड़ डाले। बस, एक चमड़े की झिल्ली लगा दी, ढब-ढब बोलने लगी। ज़रा-सा पानी लग जाए तो ख़त्म हो जाए। मेरा बहादुर चिमटा आग में, पानी में, आँधी में, तूफ़ान में बराबर डटा खड़ा रहेगा।

    चिमटे ने सभी को मोहित कर लिया, लेकिन अब पैसे किसके पास धरे हैं। फिर मेले से दूर निकल आए हैं, नौ कब के बज गए, धूप तेज़ हो रही है। घर पहुँचने की जल्दी हो रही हैं। बाप से ज़िद भी करें, तो चिमटा नहीं मिल सकता है। हामिद है बड़ा चालाक। इसीलिए बदमाश ने अपने पैसे बचा रखे थे।

    अब बालकों के दो दल हो गए हैं। एक ओर मिट्टी है, दूसरी ओर लोहा। अगर कोई शेर आ जाए, मियाँ भिश्ती के छक्के छूट जाए, मियाँ सिपाही मिट्टी की बंदूक़ छोड़कर भागे, वकील साहब की जानी मर जाए, चोगे में मुँह छिपाकर ज़मीन पर लेट जाए। मगर यह चिमटा, यह बहादुर, यह रुस्तमे-हिंद लपककर शेर की गर्दन पर सवार हो जाएगा। और उसकी आँखें निकाल लेगा।

    मोहसिन ने एड़ी-चोटी का ज़ोर लगाकर कहा—अच्छा पानी तो नहीं भर सकता।

    हामिद ने चिमटे को सीधा खड़ा करके कहा—भिश्ती को एक डाँट बताएगा, तो दौड़ा हुआ पानी लाकर द्वार पर छिड़कने लगेगा।

    मोहसिन परास्त हो गया; पर महमूद ने कुमुक पहुँचाई—अगर बच्चू पकड़े जाएँ, तो अदालत में बँधे-बँधे फिरेंगे। तब वकील साहब के ही पैरों पड़ेंगे।

    हामिद इस प्रबल तर्क का जवाब न दे सका। उसने पूछा—हमें पकड़ने कौन आएगा? नूरे ने अकड़कर कहा—यह सिपाही बंदूक़वाला

    हामिद ने मुँह चिढ़ाकर कहा—यह बेचारे हम बहादुर रुस्तमें-हिंद को पकड़ेंगे! अच्छा लाओ, अभी ज़रा कुश्ती हो जाए। इसकी सूरत देखकर दूर से भागेंगे। पकड़ेंगे क्या बेचारे!

    मोहसिन को एक नई चोट सूझ गई—तुम्हारे चिमटे का मुँह रोज़ आग में जलेगा।

    उसने समझा था कि हामिद लाजवाब हो जाएगा; लेकिन यह बात न हुई। हामिद ने तुरंत जवाब दिया—आग में बहादुर ही कूदते हैं जनाब। आग में कूदना वह काम है, जो रुस्तमे-हिंद ही कर सकता है।

    महमूद ने एक ज़ोर लगाया—वकील साहब कुर्सी-मेज़ पर बैठेंगे, तुम्हास चिमटा तो बावरचीख़ाने में ज़मीन पर पड़ा रहेगा।

    इस तर्क ने सम्मी और नूरे को भी सजीव कर दिया! कितने ठिकाने की बात कही है पट्ठे ने। चिमटा बावरचीख़ाने में पड़े रहने के सिवा और क्या कर सकता है?

    हामिद को कोई फड़कता हुआ जवाब न सूझा, तो उसने धाँधली शुरू की—मेरा चिमटा बावरचीख़ाने में नहीं रहेगा। वकील साहब कुर्सी पर बैठेंगे, तो जाकर उन्हें ज़मीन पर पटक देगा और उनका कानून उनके पेट में डाल देगा।

    कानून को पेट में डालने वाली बात छा गई। ऐसी छा गई कि तीनों शूरमा मुँह ताकते रह गए। हामिद ने मैदान मार लिया। उसका चिमटा रुस्तमे-हिंद है। अब इसमें मोहसिन, महमूद, नूरे, सम्मी किसी को भी आपत्ति नहीं हो सकती। औरों ने तीन-तीन, चार-चार आने पैसे ख़र्च किए, पर कोई काम की चीज़ न ले सके हामिद ने तीन पैसे में रंग जमा लिया। सच ही तो है, खिलौनों का क्या भरोसा? टूट फूट जाएँगे। हामिद का चिमटा तो बना रहेगा बरसें!

    संधि की शर्तें तय होने लगीं। मोहसिन ने कहा—ज़रा अपना चिमटा दो, हम भी देखें, तुम हमारा भिश्ती लेकर देखो।

    महमूद और नूरे ने भी अपने-अपने खिलौने पेश किए।

    हामिद को इन शर्तों के मानने में कोई आपत्ति न थी। चिमटा बारी-बारी से सबके हाथ में गया, और उनके खिलौने बारी-बारी से हामिद के हाथ में आए कितने ख़ूबसूरत खिलौने हैं!

    हामिद ने हारनेवालों के आँसू पोंछे—मैं तुम्हें चिढ़ा रहा था, सच! यह चिमटा भला इन खिलौनों की क्या बराबरी करेगा? मालूम होता है, अब बोले, तब बोले।

    मोहसिन—लेकिन इन खिलौनों के लिए कोई हमें दुआ तो न देगा।

    महमूद—दुआ को लिए फिरते हो। उलटे मार न पड़े। अम्माँ ज़रूर कहेंगी कि मेले में यही के खिलौने मिले?

    हामिद को स्वीकार करना पड़ा कि खिलौने को देखकर किसी की माँ इतनी ख़ुश न होगी, जितनी दादी चिमटे को देखकर होंगी। फिर अब तो चिमटा रुस्तमे-हिंद है और सभी खिलौनों का बादशाह!

    रास्ते में महमूद को भूख लगी। उसके बाप ने केले खाने को दिए। महमूद ने केवल हामिद को साझी बनाया। उसके अन्य मित्र मुँह ताकते रह गए। यह उस चिमटे का प्रसाद था।

    ग्यारह बजे सारे गाँव में हलचल मच गई। मेलेवाले आ गए। मोहसिन की छोटी बहन ने दौड़कर भिश्ती उसके हाथ से छीन लिया और मारे ख़ुशी के जो उछली, मियाँ भिश्ती नीचे आ रहे और परलोक सिधारे। इस पर भाई-बहन में मार-पीट हुई। दोनों ख़ूब रोए उनकी अम्मा यह शोर सुनकर बिगड़ी और दोनों को ऊपर से दो-दो चाँटे और लगाए।

    मियाँ नूरे के वकील का अंत इससे ज़्यादा गौरवमय हुआ। वकील ज़मीन पर या ताक पर तो नहीं बैठ सकता। दीवार में दो खूँटियाँ गाड़ी गई। उन पर लकड़ी का एक पटरा रखा गया। पटरे पर काग़ज़ का क़ालीन बिछाया गया। वकील साहब राजा भोज की भाँती सिंहासन पर विराजे। नूरे ने उन्हें पंखा झलना शुरू किया। मालूम नहीं, पंखे की हवा से या पंखे की चोट से वकील साहब का चोला माटी में मिल गया। फिर बड़े ज़ोर-शोर से मातम हुआ और वकील साहब की अस्थि घूरे पर डाल दी गई।

    अब रहा महमूद का सिपाही। उसे चटपट गाँव का पहरा देने का चार्ज मिल गया। लेकिन पुलिस का सिपाही पालकी पर चलेगा। एक टोकरी आई, उसमें कुछ लाल रंग के फटे-पुराने चिथड़े बिछाए गए, जिसमें सिपाही साहब आराम से लेटे। नूरे ने यह टोकरी उठाई और अपने द्वार का चक्कर लगाने लगे। उनके दोनों छोटे भाई सिपाही की तरह ‘छोनेवाले, जागते लहो’ पुकारते चलते हैं। महमूद को ठोकर लग जाती है। टोकरी उसके हाथ से छूटकर गिर पड़ती है और मियाँ सिपाही अपनी बंदूक़ लिए ज़मीन पर आ जाते हैं और उनकी एक टाँग में विकार आ जाता है। महमूद को आज ज्ञात हुआ कि वह अच्छा डॉक्टर है। उसको ऐसा मरहम मिल गया है, जिससे वह टूटी टाँग को आनन-फानन में जोड़ सकता है। टॉंग जोड़ दी जाती है; लेकिन सिपाही को ज्यों ही खड़ा किया जाता है, टाँग जवाब दे देती है। शल्य-क्रिया असफल हुई, तब दूसरी टाँग भी तोड़ दी जाती है। अब कम-से-कम एक जगह आराम से बैठ तो सकता है।

    अब मियाँ हामिद का हाल सुनिए। अमीना उसकी आवाज़ सुनते ही दौड़ी और उसे गोद में उठाकर प्यार करने लगी। सहसा उसके हाथ में चिमटा देखकर वह चौकी।

    “यह चिमटा कहाँ था?”

    “मैंने मोल लिया है।”

    “कितने पैसे में?”

    “तीन पैसे दिए।”

    अमीना ने छाती पीट ली। यह कैसा बेसमझ लड़का है कि दुपहर हुआ, कुछ खाया न पिया लाया क्या, यह चिमटा!

    “सारे मेले में तुझे और कोई चीज़ मिली, जो यह लोहे का चिमटा उठा लाया?”

    हामिद ने कहा—तुम्हारी उँगलियाँ तवे से जल जाती थीं, इसलिए मैंने इसे ले लिया।

    बुढ़िया का क्रोध तुरंत स्नेह में बदल बच्चे में कितना त्याग, कितना सद्भाव और कितना विवेक है! दूसरों को खिलौने लेते और मिठाई आकर इसका कितना ललचाया होगा? वहाँ इसे अपनी बुढ़िया दादी याद बनी रही। वहाँ भी इसे अपनी बुढ़िया दादी की याद बनी रही। अमीना का मन गद्गद हो गया।

    वह रोने लगी। दामन फैलाकर हामिद को दुआएँ देती जाती थी और आँसू की बड़ी-बड़ी बूँदें गिराती जाती थी।

    हिंदवी

    स्रोत :
    • पुस्तक : रिमझिम (पृष्ठ 24)
    • प्रकाशन : एनसीईआरटी
    • संस्करण : 2022
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