‘ऐसा लगता है अब हम लोग कहीं पहुँच रहे हैं। इंजीनियर ज़ोर से बोल पड़ा; जैसे ही लोगों, कोयलें, औज़ारों और खाद्य-पदार्थों से भरी हुई दूसरी ट्रेन उस नए इलाके में पहुँची, जहाँ कल ही रेल की पटरियाँ बिछाई गई थीं। घास भरी ज़मीन के उस अछूते विस्तार में सूरज की सुनहली किरणें चमक रही थीं। दूर क्षितिज पर पेड़ों से भरे पहाड़ नीले कुहासे में नहा रहे थे। हरे-भरे मैदान में कोयलें, राख, काग़ज़ और टिन का ढेर उतर रहा था, शोर-गुल हो रहा था और जंगली कुत्ते और बैल यह सब देख रहे थे। आरा मशीन की पहली कर्कश आवाज़ दूर जंगलों को चीरती चली गई, बंदूक़ की पहली गूँज मेघों की गड़गड़ाहट की तरह पर्वतों पर तैर गई, लोहे पर भारी हथौड़े की पहली चोट की ‘घन’ आवाज़ हुई। टिन की छत की एक झोंपड़ी खड़ी हुई, दूसरे दिन लकड़ी का एक घर, फिर दिनों-दिन पत्थर के मकान दिखाई पड़ने लगे। जंगली कुत्ते और बैल वहाँ से दूरी रखने लगे, ज़मीन जोती जाने लगी और उसमें फसल उगी। पहले ही बसंत में वह ज़मीन हरी फसलों से भर गई। वहाँ खेत, अस्तबल और अनाज-घर बनाए गए, ज़मीन काट कर सड़कें बन गईं।
रेलवे स्टेशन बन कर खड़ा हुआ और उसका उद्घाटन भी हो गया। इसके तुरंत बाद एक सरकारी भवन बना, फिर एक बैंक। थोड़ी दूरी पर कुछ ही महीने बाद और भी शहर बसे। जगह-जगह से मज़दूर वहाँ आने लगे। किसान और शहरी, व्यापारी और वकील आए। उपदेशक और शिक्षक आए। कुछ ही दिनों में वहाँ एक स्कूल, तीन धार्मिक सभागृह और दो अख़बार शुरू हो गए। पश्चिमी तरफ़ तेल मिला, नए शहर की उन्नति होने लगी। एक ही वर्ष बाद वहाँ पाकेटमार, सेंधमार, भड़वे, बड़ी दुकान, मद्यनिषेधी संगठन, पेरिस का दर्जी और बावेरियाई बीयर पीने के हॉल आदि सब आ गए। पास के शहरों की स्पर्द्धा से और भी प्रेरणा मिली। अब किसी चीज़ की कमी नहीं थी, चुनाव अभियानों से लेकर हड़ताल तक, सिनेमाघरों से आध्यात्मिक केंद्रों तक सब कुछ था। फ्रांसीसी शराब, नार्वेजियाई मछली, इतावली सॉसेज, अँग्रेज़ी ऊन और रूसी कैवियार भी उपलब्ध हो गए थे। दूसरे दर्जे के गायकों, नर्तकियों और संगीतकारों की टोलियाँ भी कार्यक्रम देने के लिए आने लगी थीं।
धीरे-धीरे एक संस्कृति भी विकसित हुई। वह शहर जो बस एक गुमटी से शुरू हुआ था, अब एक स्थाई रिहायिश में बदल गया। मिलने-जुलने और अभिवादन के तरीक़ों में दूसरे शहरों से शायद ही कोई फ़र्क़ था। जिन लोगों ने इस शहर की स्थापना की थी, लोकप्रिय और सम्मानित हो गए थे, वे यहाँ के महत्वपूर्ण लोगों का मुख्य हिस्सा थे। एक युवा पीढ़ी आ गई, जिसके लिए मानो वह शहर सदी से उसका पुराना घर था। वे दिन जब इसकी स्थापना हुई थी, पहली हत्या, पहली प्रार्थना सभा या पहला अख़बार छपा था अब क़िस्से-कहानियों की चीज़ें बन गए।
यह शहर अब आस-पास के क़स्बों, छोटे शहरों पर दबदबा रखता था। जहाँ पहले राख की ढेरियों के साथ झोंपड़ियाँ खड़ी हुई थीं, वहाँ अब बड़ी और खिली-खिली चौड़ी सड़कें और उनके किनारे बैकों, दफ़्तरों, थियेटरों और चर्चों की भव्य अट्टालिकाएँ थीं। रास्तों पर छात्र घूमते हुए विश्वविद्यालय या पुस्तकालय जाते, अस्पताल की गाड़ियाँ दौड़तीं, किसी राजनेता की लिमोज़ीन निकल जाती और लोग उसे रुतबे से देखते। पत्थर और लोहे से बने बीसियों बड़े स्कूलों में हर साल शहर का स्थापना-दिवस गीत और भाषणों के साथ मनाया जाता। पहले वाला अछूता विस्तार अब मैदानों, कारख़ानों, बस्तियों और दर्ज़नों रेलवे लाइनों से भर गया था। रेलवे लाइनों के कारण अब पहाड़ नज़दीक हो गए थे। वहाँ या सुदूर समुद्र के किनारे धनिकों के ग्रीष्मकालीन आवास बए गए थे।
क़रीब सौ साल बाद शहर एक बड़े भूकंप से ध्वस्त हो गया। पर यह फिर खड़ा हुआ। इस बार पत्थर के मकानों की जगह लकड़ी ने, और बड़े भवनों की जगह छोटे मकानों ने ले ली। संकरे रास्तों को ख़त्म कर खुले रास्ते बनाए गए। इसका रेलवे स्टेशन और स्टॉक एक्सचेंज पूरे देश में बड़ा था। पुनर्निर्मित शहर को वास्तुविदों और कलाकारों ने सार्वजनिक भवनों, पार्कों, फ़व्वारों और मूर्तियों से सजाया। नई शताब्दी में यह शहर देश का सबसे धनी और सुंदर शहर माना जाने लगा। सारी दुनिया से राजनीतिज्ञ और वास्तुविद, इंजीनियर और मेयर यहाँ के भवनों, जल-व्यवस्था, प्रशासन और संस्थाओं का अध्ययन करने आने लगे। शहर के नए टाउन-हाल का निर्माण आरंभ हुआ जो दुनिया में सबसे बड़ा और शानदार था। तरक्की और स्थानीय अभियान बढ़ने के साथ-साथ वास्तुकला और स्थापत्य में नफ़ासत बढ़ी और विकसित होता हुआ यह शहर अभियान और सौंदर्य के चमत्कार में बदल गया। शहर के बीच का हिस्सा, जहाँ की इमारतें एक ख़ास हल्के रंग के पत्थरों से बनी थी, चारों तरफ़ से बड़े सुंदर पार्कों से घिरा था। उसके बाद विस्तृत सड़कें, जिनके किनारे घरों की कतारें खड़ी थीं, दूर-देहातों तक जाकर खो जाती थीं। ख़ूब सराहा जाने वाला एक विशाल संग्रहालय था, जहाँ हमेशा देखने वाले आते रहते थे। उसमें सैकड़ों कमरे, हॉल और बरामदे थे,जिसमें शहर का पूरा इतिहास संभाल कर रखा गया था। एक बड़े हिस्से में शहर की पहली झोंपड़ियों, रास्तों आदि की अनुकृतियाँ जंगली जानवरों और ज़मीनों के साथ अपनी संपूर्ण पृष्ठभूमि में बनी हुई थीं। वहाँ टहलते हुए युवा लोग तंबुओं और झोंपड़ियों, ऊबड़खाबड़ पटरियों से आज चमचमाते हुए शहर तक के अपने इतिहास पर विचार करते। अपने शिक्षकों के मार्गदर्शन और निर्देश में उन्होंने विकास और प्रगति के महान नियमों को समझना सीखा, कैसे अनपढ़ से सुगढ़, बर्बर से मनुष्य, असभ्यता से सभ्यता और अभाव से समृद्धि बनती है।
शहर की समृद्धि और सुविधाएँ बड़ी तेज़ रफ़्तार से बढ़ीं और अगली शताब्दी में वे शिखर पर पहुँच गईं। तब निचले तबकों की एक ख़ूनी क्रांति ने इस गति का अंत कर दिया। भीड़ ने कई तेल की खदानों में आग लगा दी। कारख़ानों, खेतों और गाँवों समेत क्षेत्र के बड़े हिस्से में आगजनी और भारी बर्बादी हुई। हत्याकांडों और अन्य भयानक कांडों के बावजूद शहर बन गया। बाद के वर्षों में यह उबरा ज़रूर, पर पहले जैसी तरक़्क़ी नहीं रही। फिर कोई नया भवन नहीं बना। इन मुश्किल सालों में समुद्र पार कोई जगह तेज़ी से विकसित हुई। वहाँ की ज़मीन अनाज, लोहा, चाँदी और कई नियामतें बहुतायत से देने लगी। नई जगह ने नए उद्यमियों को आकर्षित किया। पुरानी दुनिया की आकांक्षाएँ और प्रयत्न उधर जाने लगे। रातों-रात ज़मीन से शहर खड़े होने लगे। जंगल ग़ायब हो गए। जल प्रपातों को इच्छानुरूप आकार दिया जाने लगा।
धीरे-धीरे वह पुराना सुंदर शहर ग़रीब होने लगा। वह एक समाज का मन और मस्तिष्क तथा कई देशों का बाज़ार और स्टॉक एक्सचेंज नहीं रह गया। नए दौर की उथल-पुथल में यह बस बना रह सका एवं अपनी पुरानी समृद्धि के कुछ टूटे तार बचाए रख सका, इससे अधिक कुछ नहीं। इसके जो निवासी इसे छोड़कर नई दुनिया की ओर नहीं गए, वे कुछ नया नहीं बना सके। व्यापार में ठहराव आ गया था और पैसे बनाने के अवसर बहुत कम रह गए थे। किंतु अब इस पुरानी, सांस्कृतिक भूमि पर अध्यात्मिक जीवन का प्रस्फुटन होने लगा। इस मरते हुए शहर में विद्वान और कलाकार, चित्रकार और कवि पैदा होने लगे, जिन्होंने कभी इस ज़मीन पर पहले मकान बनाए थे। उनके वंशज अब यहाँ देर से उदित हुए कलामय जीवन को देख कर मुस्कुरा रहे थे। उन्होंने काई से आच्छादित बाग़ों की उदास गरिमा के चित्र बनाए जिनमें जर्जर मूर्तियाँ और हरे तालाब थे या वे प्राचीन वीरतापूर्वक युग की उथल-पुथल अथवा पुराने महलों में रह रहे थके लोगों के मूक स्वप्न के बारे में संवेदनशील कविताएँ लिखते थे।
एक बार फिर इस शहर का नाम और ख्याति दूर-दूर तक फैलने लगी। चाहे बाहरी दुनिया युद्धों से हिलती रहे और बड़ी-बड़ी परियोजनाओं में व्यस्त रहे—यहाँ के लोग शांतिपूर्ण एकाकीपन और प्राचीन गौरव के स्वप्नों में जी सकते थे। यहाँ की शांत सड़कें फलती-फूलती डालियों से आच्छादित थीं; मौसम की मार झेलते हुए विशाल भवनों के अग्रभाग नि:शब्द चौराहों को देखते होते और काई जमे फ़व्वारे संगीतमय राग सुनाते।
एक या दो सदी तक दुनिया के युवा लोग इस पुराने स्वप्निल शहर को चाहते और सम्मान करते रहे। कवियों और पर्यटकों ने भी इसे सराहा, किंतु जीवन अधिकाधिक दूसरे देशों की ओर मुड़ता जा रहा था। स्वयं इस शहर में पुराने बाशिंदों की अगली पीढ़ियाँ लुप्त होती जा रही थीं। सांस्कृतिक हलचलों का दौर भी बहुत पहले छूट चुका था और अब उसके सड़ते अवशेष ही बाक़ी बचे थे। इसके आस-पास के छोटे-छोटे शहर वीरान और खंडहरों में बदल चुके थे। कभी-कभार विदेशी चित्रकार या पर्यटक यहाँ आते और समय-समय पर जिप्सी दल तथा भगोड़े अपराधियों का वहाँ बसेरा होता।
शहर से थोड़ा हटकर एक भूकंप आया, जिसने पास की नदी की धारा बदल दी। वहाँ की भूमि का एक हिस्सा दलदल में और शेष रेगिस्तान में बदल गया। धीरे-धीरे पहाड़ से पुराना जंगल नीचे उतरने लगा और पुराने ग्रीष्म-आवासों तथा पत्थर के पुलों के भग्नावशेषों को अपने क़ब्ज़े में लेने लगा। विशाल प्रांतर को वीरान देखकर जंगल ने उसे टुकड़े-टुकड़े अपनी गिरफ़्त में लेना आरंभ कर दिया। दलदलों पर रहस्यमय हरियाली छाने लगी और खंडहरों पर बड़े-बड़े पेड़ उग आए।
अंतत: शहर से बाशिंदे उठ गए। जो बचा वह एक अनाम क़िस्म का खंडहर। जंगली और विचित्र क़िस्म के प्राणी उन टूटते खंडहरों में दिखाई देते और कभी सड़कों और बग़ीचों पर अपनी बकरियाँ चराते। दलदलों के बनने के बाद ज्वर का एक दौर आया जिसमें इस तरह की आबादी भी रोगों और व्याधियों से मृत्यु को प्राप्त हुई। अंत में सब कुछ वीरान हो गया।
पुराना टाउन हॉल जो अपने समय का गौरव था, टूटा-फूटा पर अभी लंबा और सीधा खड़ा था। दुनिया भर के गीतों में अभी भी इसकी चर्चा होती थी और पड़ोसी लोगों के बीच इसके बारे में अनेक कहानियाँ प्रचलित थीं। इन पड़ोसी स्थानों के शहर भी उपेक्षित हो चुके थे। उनकी सभ्यताओं का भी पतन हो रहा था। इस शहर से जुड़े नामों और पुरानी भव्यता की चर्चा बच्चों की भुतहा कहानियों में होती थी और कभी-कभी दूर फलते-फूलते देशों से अध्येता कठिन यात्राएँ कर इसके खंडहरों का अध्ययन करने आते। इसके रहस्यों पर उन देशों के स्कूली लड़के ख़ूब चर्चा करते। ठोस सोने के दरवाज़ों और जवाहरात के गुंबदों की बात होती। कहा जाता है कि इस क्षेत्र की खानाबदोश जनजातियों के पास अभी भी उस पुराने, चमत्कारी अतीत के अवशेष सुरक्षित हैं।
लेकिन जंगल और नीचे आते गए, पहाड़ों से समतलों तक। झरनों और नदियों का आगमन और प्रस्थान हुआ। जंगल और बढ़े, धीरे-धीरे पूरे प्रदेश, पुरानी दीवालों, महलों, मंदिरों और संग्रहालयों पर उसने अपनी चादर ओढ़ा दी। लोमड़ी, नेवले, भेड़िये और भालुओं का पूरे विस्तार में निवास हो गया।
एक टूटे महल के खंडहर में एक नया चीड़ वृक्ष खड़ा होने लगा। केवल एक ही साल पहले इसने जंगल के निकट आने की सूचना दी थी। पर अब जब इसने आस-पास देखा तो दूर-दूर तक छोटे-छोटे पेड़ जड़ जमाते खड़े होते जा रहे थे।
‘लगता है, अब हम लोग कहीं पहुँच रहे हैं!’ एक कठफोड़वे ने उल्लास से आवाज़ लगाई, जो एक डाल पर चोट करता जा रहा था और संतोष के साथ बढ़ते जंगल को देख रहा था जिसकी शानदार हरियाली पूरी धरती को आच्छादित करती जा रही थी।
‘aisa lagta hai ab hum log kahin pahunch rahe hain. injiniyar zor se bol paDa; jaise hi logon, koylen, auzaron aur khadya padarthon se bhari hui dusri tren us ne ilake mein pahunchi, jahan kal hi rel ki patriyan bichhai gai theen. ghaas bhari zamin ke us achhute vistar mein suraj ki sunahli kirnen chamak rahi theen. door kshitij par peDon se bhare pahaD nile kuhase mein nha rahe the. hare bhare maidan mein koylen, raakh, kaghaz aur tin ka Dher utar raha tha, shor gul ho raha tha aur jangli kutte aur bail ye sab dekh rahe the. aara mashin ki pahli karkash avaz door janglon ko chirti chali gai, banduq ki pahli goonj meghon ki gaDgaDahat ki tarah parvton par tair gai, lohe par bhari hathauDe ki pahli chot ki ‘ghan’ avaz hui. tin ki chhat ki ek jhopDi khaDi hui, dusre din lakDi ka ek ghar, phir dinon din patthar ke makan dikhai paDne lage. jangli kutte aur bail vahan se duri rakhne lage, zamin joti jane lagi aur usmen phasal ugi. pahle hi basant mein wo zamin hari phaslon se bhar gai. vahan khet, astabal aur anaj ghar banaye ge, zamin kaat kar saDken ban gain.
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baveriyai biyar pine ke haul aadi sab aa ge. paas ke shahron ki sparddha se aur bhi prerna mili. ab kisi cheez ki kami nahin thi, chunav abhiyanon se lekar haDtal tak, sinemaghron se adhyatmik kendron tak sab kuch tha. phransisi sharab, narvejiyai machhli, itavli sayesej, angrezi uun aur rusi kaiviyar bhi uplabdh ho ge the. dusre darze ke gaykon, nartakiyon aur sangitkaron ki toliyan bhi karyakram dene ke liye aane lagi theen.
dhire dhire ek sanskriti bhi viksit hui. wo shahr jo bas ek gumti se shuru hua tha, ab ek sthai rihayish mein badal gaya. milne julne aur abhivadan ke tariqon mein dusre shahron se shayad hi koi farq tha. jin logon ne is shahr ki sthapana ki thi, lokapriy aur sammanit ho ge the, ve yahan ke mahatvpurn logon ka mukhya hissa the. ek yuva piDhi aa gai, jiske liye manon wo shahr sadi se uska purana ghar tha. ve din jab iski sthapana hui thi, pahli hatya, pahli pararthna sabha ya pahla akhbar chhapa tha ab qisse kahaniyon ki chizen ban ge.
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baveriyai biyar pine ke haul aadi sab aa ge. paas ke shahron ki sparddha se aur bhi prerna mili. ab kisi cheez ki kami nahin thi, chunav abhiyanon se lekar haDtal tak, sinemaghron se adhyatmik kendron tak sab kuch tha. phransisi sharab, narvejiyai machhli, itavli sayesej, angrezi uun aur rusi kaiviyar bhi uplabdh ho ge the. dusre darze ke gaykon, nartakiyon aur sangitkaron ki toliyan bhi karyakram dene ke liye aane lagi theen.
dhire dhire ek sanskriti bhi viksit hui. wo shahr jo bas ek gumti se shuru hua tha, ab ek sthai rihayish mein badal gaya. milne julne aur abhivadan ke tariqon mein dusre shahron se shayad hi koi farq tha. jin logon ne is shahr ki sthapana ki thi, lokapriy aur sammanit ho ge the, ve yahan ke mahatvpurn logon ka mukhya hissa the. ek yuva piDhi aa gai, jiske liye manon wo shahr sadi se uska purana ghar tha. ve din jab iski sthapana hui thi, pahli hatya, pahli pararthna sabha ya pahla akhbar chhapa tha ab qisse kahaniyon ki chizen ban ge.
ye shahr ab aas paas ke qasbon, chhote shahron par dabdaba rakhta tha. jahan pahle raakh ki Dheriyon ke saath jhompaDiyan khaDi hui theen, vahan ab baDi aur khili khili chauDi saDken aur unke kinare baikon, daftron, thiyetron aur charchon ki bhavya attalikayen theen. raston par chhaatr ghumte hue vishvavidyalay ya pustakalaya jate, aspatal ki gaDiyan dauDtin, kisi rajaneta ki limoshin nikal jati aur log use rutbe se dekhte. patthar aur lohe se bane bisiyon baDe skulon mein har saal shahr ka sthapana divas geet aur bhashnon ke saath manaya jata. pahle vala achhuta vistar ab maidanon, karkhanon, bastiyon aur darznon relve lainon se bhar gaya tha. relve lainon ke karan ab pahaD nazdik ho ge the. vahan ya sudur samudr ke kinare dhanikon ke grishmkalin avas be ge the.
qarib sau saal baad shahr ek baDe bhukamp se dhvast ho gaya. par ye phir khaDa hua. is baar patthar ke makanon ki jagah lakDi ne, aur baDe bhavnon ki jagah chhote makanon ne le li. sankre raston ko khatm kar khule raste banaye ge. iska relve steshan aur stauk ekschenj pure desh mein baDa tha. punarnirmit shahr ko vastuvidon aur kalakaron ne sarvajnik bhavnon, parkon, favvaron aur murtiyon se sajaya. nai shatabdi mein ye shahr desh ka sabse dhani aur sundar shahr mana jane laga. sari duniya se rajnitigya aur vastuvid, injiniyar aur meyar yahan ke bhavnon, jal vyavastha, prashasan aur sansthaon ka adhyayan karne aane lage. shahr ke ne taun haal ka nirman arambh hua jo duniya mein sabse baDa aur shanadar tha. tarakki aur sthaniy abhiyan baDhne ke saath saath vastukla aur sthapatya mein nafasat baDhi aur viksit hota hua ye shahr abhiyan aur saundarya ke ke chamatkar mein badal gaya. shahr ke beech ka hissa, jahan ki imarten ek khaas halke rang ke patthron se bani thi, charon taraf se baDe sundar parkon se ghira tha. uske baad vistrit saDken, jinke kinare gharon ki kataren khaDi theen, door dehaton tak jakar kho jati theen. khoob saraha jane vala ek vishal sangrhalay tha, jahan hamesha dekhne vale aate rahte the. usmen saikDon kamre, haul aur baramde the,jismen shahr ka pura itihas sambhal kar rakha gaya tha. ek baDe hisse mein shahr ki pahli jhompaDiyon, raston aadi ki anukritiyan jangli janavron aur zaminon ke saath apni sampurn prishthabhumi mein bani hui theen. vahan tahalte hue yuva log tambuon aur jhompaDiyon, uubaDkhabaD patariyon se aaj chamchamate hue shahr tak ke apne itihas par vichar karte. apne shikshkon ke margadarshan aur nirdesh mein unhonne vikas aur pragti ke mahan niymon ko samajhna sikha, kaise anpaDh se sugaDh, barbar se manushya, asabhyata se sabhayta aur abhav se samriddhi banti hai.
shahr ki samriddhi aur suvidhayen baDi tez raftar se baDhin aur agli shatabdi mein ve shikhar par pahunch gain. tab nichle tabkon ki ek khuni kranti ne is gati ka ant kar diya. bheeD ne kai tel ki khadanon mein aag laga di. karkhanon, kheton aur ganvon samet kshetr ke baDe hisse mein agajni aur bhari barbadi hui. hatyakanDon aur anya bhayanak kanDon ke bavjud shahr ban gaya. baad ke varshon mein ye ubra zarur, par pahle jaisi taraqqi nahin rahi. phir koi naya bhavan nahin bana. in mushkil salon mein samudr paar koi jagah tezi se viksit hui. vahan ki zamin anaj, loha, chandi aur kai niyamten bahutayat se dene lagi. nai jagah ne ne udyamiyon ko akarshit kiya. purani duniya ki akankshayen aur prayatn udhar jane lage. raton raat zamin se shahr khaDe hone lage. jangal ghayab ho ge. jal prpaton ko ichchhanurup akar diya jane laga.
dhire dhire wo purana sundar shahr gharib hone laga. wo ek samaj ka man aur mastishk tatha kai deshon ka bazar aur stauk ekschenj nahin rah gaya. ne daur ki uthal puthal mein ye bas bana rah saka evan apni purani samriddhi ke kuch tute taar bachaye rakh saka, isse adhik kuch nahin. iske jo nivasi ise chhoDkar nai duniya ki or nahin ge, ve kuch naya nahin bana sake. vyapar mein thahrav aa gaya tha aur paise banane ke avsar bahut kam rah ge the. kintu ab is purani, sanskritik bhumi par adhyatmik jivan ka prasphutan hone laga. is marte hue shahr mein vidvan aur kalakar, chitrkar aur kavi paida hone lage, jinhonne kabhi is zamin par pahle makan banaye the. unke vanshaj ab yahan der se udit hue kalamay jivan ko dekh kar muskura rahe the. unhonne kai se achchhadit baghon ki udaas garima ke chitr banaye jinmen jarjar murtiyan aur hare talab the ya ve prachin virtapurvak yug ki uthal puthal athva purane mahlon mein rah rahe thake logon ke mook svapn ke bare mein sanvedanshil kavitayen likhte the.
ek baar phir is shahr ka naam aur khyati door door tak phailne lagi. chahe bahari duniya yuddhon se hilti rahe aur baDi baDi pariyojnaon mein vyast rahe—yahan ke log shantipurn ekakipan aur prachin gaurav ke svapnon mein ji sakte the. yahan ki shaant saDken phalti phulti Daliyon se achchhadit theen; mausam ki maar jhelte hue vishal bhavnon ke agrabhag nihshabd chaurahon ko dekhte hote aur kai jame favvare sangitmay raag sunate.
ek ya do sadi tak duniya ke yuva log is purane svapnil shahr ko chahte aur samman karte rahe. kaviyon aur paryatkon ne bhi ise saraha, kintu jivan adhikadhik dusre deshon ki or muDta ja raha tha. svayan is shahr mein purane bashindon ki agli piDhiyan lupt hoti ja rahi theen. sanskritik halachlon ka daur bhi bahut pahle chhoot chuka tha aur ab uske saDte avshesh hi baqi bache the. iske aas paas ke chhote chhote shahr viran aur khanDahron mein badal chuke the. kabhi kabhar videshi chitrkar ya paryatak yahan aate aur samay samay par jipsi dal tatha bhagoDe apradhiyon ka vahan basera hota.
shahr se thoDa hatkar ek bhukamp aaya, jisne paas ki nadi ki dhara badal di. vahan ki bhumi ka ek hissa daldal mein aur shesh registan mein badal gaya. dhire dhire pahaD se purana jangal niche utarne laga aur purane greeshm avason tatha patthar ke pulon ke bhagnavsheshon ko apne qabze mein lene laga. vishal prantar ko viran dekhkar jangal ne use tukDe tukDe apni giraft mein lena arambh kar diya. daladlon par rahasyamay hariyali chhane lagi aur khanDahron par baDe baDe peD ug aaye.
anttah shahr se bashinde uth ge. jo bacha wo ek anam qism ka khanDhar. jangli aur vichitr qism ke prani un tutte khanDahron mein dikhai dete aur kabhi saDkon aur baghichon par apni bakriyan charate. daladlon ke banne ke baad jvar ka ek daur aaya jismen is tarah ki abadi bhi rogon aur vyadhiyon mrityu ko praapt hui. ant mein sab kuch viran ho gaya.
purana taun haul jo apne samay ka gaurav tha, tuta phuta par abhi lamba aur sidha khaDa tha. duniya bhar ke giton mein abhi bhi iski charcha hoti thi aur sthanon ke shahr bhi upekshit ho chuke the. unki sabhytaon ka bhi patan ho raha paDosi logon ke beech iske bare mein anek kahaniyan prachalit theen. in paDosi tha. is shahr se juDe namon aur purani bhavyata ki charcha bachchon ki bhutha kahaniyon mein hoti thi aur kabhi kabhi door phalte phulte deshon se adhyeta kathin yatrayen kar iske khanDahron ka adhyayan karne aate. iske rahasyon par un deshon ke skuli laDke khoob charcha karte. thos sone ke darvazon aur javaharat ke gumbdon ki baat hoti. kaha jata hai ki is kshetr ki khanabadosh janjatiyon ke paas abhi bhi us purane, chamatkari atit ke avshesh surakshit hain.
lekin jangal aur niche aate ge, pahaDon se samatlon tak. jharnon aur nadiyon ka agaman aur prasthan hua. jangal aur baDhe, dhire dhire pure pardesh, purani divalon, mahlon, mandiron aur sangrhalyon par usne apni chadar oDha di. lomDi, nevale, bheDiye aur bhaluon ka pure vistar mein nivas ho gaya.
ek tute mahl ke khanDhar mein ek naya cheeD vriksh khaDa hone laga. keval ek hi saal pahle isne jangal ke nikat aane ki suchana di thi. par ab jab isne aas paas dekha to door door tak chhote chhote peD jaD jamate khaDe hote ja rahe the.
‘lagta hai, ab hum log kahin pahunch rahe hain!’ ek kathphoDve ne ullaas se avaz lagai, jo ek Daal par chot karta ja raha tha aur santosh ke saath baDhte jangal ko dekh raha tha jiski shanadar hariyali puri dharti ko achchhadit karti ja rahi thi.
स्रोत :
पुस्तक : विश्व की श्रेष्ठ कहानियाँ (खण्ड-2) (पृष्ठ 131)
हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी
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