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शहर

shahr

हर्मन हेस

और अधिकहर्मन हेस

    ‘ऐसा लगता है अब हम लोग कहीं पहुँच रहे हैं। इंजीनियर ज़ोर से बोल पड़ा; जैसे ही लोगों, कोयलें, औज़ारों और खाद्य-पदार्थों से भरी हुई दूसरी ट्रेन उस नए इलाके में पहुँची, जहाँ कल ही रेल की पटरियाँ बिछाई गई थीं। घास भरी ज़मीन के उस अछूते विस्तार में सूरज की सुनहली किरणें चमक रही थीं। दूर क्षितिज पर पेड़ों से भरे पहाड़ नीले कुहासे में नहा रहे थे। हरे-भरे मैदान में कोयलें, राख, काग़ज़ और टिन का ढेर उतर रहा था, शोर-गुल हो रहा था और जंगली कुत्ते और बैल यह सब देख रहे थे। आरा मशीन की पहली कर्कश आवाज़ दूर जंगलों को चीरती चली गई, बंदूक़ की पहली गूँज मेघों की गड़गड़ाहट की तरह पर्वतों पर तैर गई, लोहे पर भारी हथौड़े की पहली चोट की ‘घन’ आवाज़ हुई। टिन की छत की एक झोंपड़ी खड़ी हुई, दूसरे दिन लकड़ी का एक घर, फिर दिनों-दिन पत्थर के मकान दिखाई पड़ने लगे। जंगली कुत्ते और बैल वहाँ से दूरी रखने लगे, ज़मीन जोती जाने लगी और उसमें फसल उगी। पहले ही बसंत में वह ज़मीन हरी फसलों से भर गई। वहाँ खेत, अस्तबल और अनाज-घर बनाए गए, ज़मीन काट कर सड़कें बन गईं।

    रेलवे स्टेशन बन कर खड़ा हुआ और उसका उद्घाटन भी हो गया। इसके तुरंत बाद एक सरकारी भवन बना, फिर एक बैंक। थोड़ी दूरी पर कुछ ही महीने बाद और भी शहर बसे। जगह-जगह से मज़दूर वहाँ आने लगे। किसान और शहरी, व्यापारी और वकील आए। उपदेशक और शिक्षक आए। कुछ ही दिनों में वहाँ एक स्कूल, तीन धार्मिक सभागृह और दो अख़बार शुरू हो गए। पश्चिमी तरफ़ तेल मिला, नए शहर की उन्नति होने लगी। एक ही वर्ष बाद वहाँ पाकेटमार, सेंधमार, भड़वे, बड़ी दुकान, मद्यनिषेधी संगठन, पेरिस का दर्जी और बावेरियाई बीयर पीने के हॉल आदि सब गए। पास के शहरों की स्पर्द्धा से और भी प्रेरणा मिली। अब किसी चीज़ की कमी नहीं थी, चुनाव अभियानों से लेकर हड़ताल तक, सिनेमाघरों से आध्यात्मिक केंद्रों तक सब कुछ था। फ्रांसीसी शराब, नार्वेजियाई मछली, इतावली सॉसेज, अँग्रेज़ी ऊन और रूसी कैवियार भी उपलब्ध हो गए थे। दूसरे दर्जे के गायकों, नर्तकियों और संगीतकारों की टोलियाँ भी कार्यक्रम देने के लिए आने लगी थीं।

    धीरे-धीरे एक संस्कृति भी विकसित हुई। वह शहर जो बस एक गुमटी से शुरू हुआ था, अब एक स्थाई रिहायिश में बदल गया। मिलने-जुलने और अभिवादन के तरीक़ों में दूसरे शहरों से शायद ही कोई फ़र्क़ था। जिन लोगों ने इस शहर की स्थापना की थी, लोकप्रिय और सम्मानित हो गए थे, वे यहाँ के महत्वपूर्ण लोगों का मुख्य हिस्सा थे। एक युवा पीढ़ी गई, जिसके लिए मानो वह शहर सदी से उसका पुराना घर था। वे दिन जब इसकी स्थापना हुई थी, पहली हत्या, पहली प्रार्थना सभा या पहला अख़बार छपा था अब क़िस्से-कहानियों की चीज़ें बन गए।

    यह शहर अब आस-पास के क़स्बों, छोटे शहरों पर दबदबा रखता था। जहाँ पहले राख की ढेरियों के साथ झोंपड़ियाँ खड़ी हुई थीं, वहाँ अब बड़ी और खिली-खिली चौड़ी सड़कें और उनके किनारे बैकों, दफ़्तरों, थियेटरों और चर्चों की भव्य अट्टालिकाएँ थीं। रास्तों पर छात्र घूमते हुए विश्वविद्यालय या पुस्तकालय जाते, अस्पताल की गाड़ियाँ दौड़तीं, किसी राजनेता की लिमोज़ीन निकल जाती और लोग उसे रुतबे से देखते। पत्थर और लोहे से बने बीसियों बड़े स्कूलों में हर साल शहर का स्थापना-दिवस गीत और भाषणों के साथ मनाया जाता। पहले वाला अछूता विस्तार अब मैदानों, कारख़ानों, बस्तियों और दर्ज़नों रेलवे लाइनों से भर गया था। रेलवे लाइनों के कारण अब पहाड़ नज़दीक हो गए थे। वहाँ या सुदूर समुद्र के किनारे धनिकों के ग्रीष्मकालीन आवास बए गए थे।

    क़रीब सौ साल बाद शहर एक बड़े भूकंप से ध्वस्त हो गया। पर यह फिर खड़ा हुआ। इस बार पत्थर के मकानों की जगह लकड़ी ने, और बड़े भवनों की जगह छोटे मकानों ने ले ली। संकरे रास्तों को ख़त्म कर खुले रास्ते बनाए गए। इसका रेलवे स्टेशन और स्टॉक एक्सचेंज पूरे देश में बड़ा था। पुनर्निर्मित शहर को वास्तुविदों और कलाकारों ने सार्वजनिक भवनों, पार्कों, फ़व्वारों और मूर्तियों से सजाया। नई शताब्दी में यह शहर देश का सबसे धनी और सुंदर शहर माना जाने लगा। सारी दुनिया से राजनीतिज्ञ और वास्तुविद, इंजीनियर और मेयर यहाँ के भवनों, जल-व्यवस्था, प्रशासन और संस्थाओं का अध्ययन करने आने लगे। शहर के नए टाउन-हाल का निर्माण आरंभ हुआ जो दुनिया में सबसे बड़ा और शानदार था। तरक्की और स्थानीय अभियान बढ़ने के साथ-साथ वास्तुकला और स्थापत्य में नफ़ासत बढ़ी और विकसित होता हुआ यह शहर अभियान और सौंदर्य के चमत्कार में बदल गया। शहर के बीच का हिस्सा, जहाँ की इमारतें एक ख़ास हल्के रंग के पत्थरों से बनी थी, चारों तरफ़ से बड़े सुंदर पार्कों से घिरा था। उसके बाद विस्तृत सड़कें, जिनके किनारे घरों की कतारें खड़ी थीं, दूर-देहातों तक जाकर खो जाती थीं। ख़ूब सराहा जाने वाला एक विशाल संग्रहालय था, जहाँ हमेशा देखने वाले आते रहते थे। उसमें सैकड़ों कमरे, हॉल और बरामदे थे,जिसमें शहर का पूरा इतिहास संभाल कर रखा गया था। एक बड़े हिस्से में शहर की पहली झोंपड़ियों, रास्तों आदि की अनुकृतियाँ जंगली जानवरों और ज़मीनों के साथ अपनी संपूर्ण पृष्ठभूमि में बनी हुई थीं। वहाँ टहलते हुए युवा लोग तंबुओं और झोंपड़ियों, ऊबड़खाबड़ पटरियों से आज चमचमाते हुए शहर तक के अपने इतिहास पर विचार करते। अपने शिक्षकों के मार्गदर्शन और निर्देश में उन्होंने विकास और प्रगति के महान नियमों को समझना सीखा, कैसे अनपढ़ से सुगढ़, बर्बर से मनुष्य, असभ्यता से सभ्यता और अभाव से समृद्धि बनती है।

    शहर की समृद्धि और सुविधाएँ बड़ी तेज़ रफ़्तार से बढ़ीं और अगली शताब्दी में वे शिखर पर पहुँच गईं। तब निचले तबकों की एक ख़ूनी क्रांति ने इस गति का अंत कर दिया। भीड़ ने कई तेल की खदानों में आग लगा दी। कारख़ानों, खेतों और गाँवों समेत क्षेत्र के बड़े हिस्से में आगजनी और भारी बर्बादी हुई। हत्याकांडों और अन्य भयानक कांडों के बावजूद शहर बन गया। बाद के वर्षों में यह उबरा ज़रूर, पर पहले जैसी तरक़्क़ी नहीं रही। फिर कोई नया भवन नहीं बना। इन मुश्किल सालों में समुद्र पार कोई जगह तेज़ी से विकसित हुई। वहाँ की ज़मीन अनाज, लोहा, चाँदी और कई नियामतें बहुतायत से देने लगी। नई जगह ने नए उद्यमियों को आकर्षित किया। पुरानी दुनिया की आकांक्षाएँ और प्रयत्न उधर जाने लगे। रातों-रात ज़मीन से शहर खड़े होने लगे। जंगल ग़ायब हो गए। जल प्रपातों को इच्छानुरूप आकार दिया जाने लगा।

    धीरे-धीरे वह पुराना सुंदर शहर ग़रीब होने लगा। वह एक समाज का मन और मस्तिष्क तथा कई देशों का बाज़ार और स्टॉक एक्सचेंज नहीं रह गया। नए दौर की उथल-पुथल में यह बस बना रह सका एवं अपनी पुरानी समृद्धि के कुछ टूटे तार बचाए रख सका, इससे अधिक कुछ नहीं। इसके जो निवासी इसे छोड़कर नई दुनिया की ओर नहीं गए, वे कुछ नया नहीं बना सके। व्यापार में ठहराव गया था और पैसे बनाने के अवसर बहुत कम रह गए थे। किंतु अब इस पुरानी, सांस्कृतिक भूमि पर अध्यात्मिक जीवन का प्रस्फुटन होने लगा। इस मरते हुए शहर में विद्वान और कलाकार, चित्रकार और कवि पैदा होने लगे, जिन्होंने कभी इस ज़मीन पर पहले मकान बनाए थे। उनके वंशज अब यहाँ देर से उदित हुए कलामय जीवन को देख कर मुस्कुरा रहे थे। उन्होंने काई से आच्छादित बाग़ों की उदास गरिमा के चित्र बनाए जिनमें जर्जर मूर्तियाँ और हरे तालाब थे या वे प्राचीन वीरतापूर्वक युग की उथल-पुथल अथवा पुराने महलों में रह रहे थके लोगों के मूक स्वप्न के बारे में संवेदनशील कविताएँ लिखते थे।

    एक बार फिर इस शहर का नाम और ख्याति दूर-दूर तक फैलने लगी। चाहे बाहरी दुनिया युद्धों से हिलती रहे और बड़ी-बड़ी परियोजनाओं में व्यस्त रहे—यहाँ के लोग शांतिपूर्ण एकाकीपन और प्राचीन गौरव के स्वप्नों में जी सकते थे। यहाँ की शांत सड़कें फलती-फूलती डालियों से आच्छादित थीं; मौसम की मार झेलते हुए विशाल भवनों के अग्रभाग नि:शब्द चौराहों को देखते होते और काई जमे फ़व्वारे संगीतमय राग सुनाते।

    एक या दो सदी तक दुनिया के युवा लोग इस पुराने स्वप्निल शहर को चाहते और सम्मान करते रहे। कवियों और पर्यटकों ने भी इसे सराहा, किंतु जीवन अधिकाधिक दूसरे देशों की ओर मुड़ता जा रहा था। स्वयं इस शहर में पुराने बाशिंदों की अगली पीढ़ियाँ लुप्त होती जा रही थीं। सांस्कृतिक हलचलों का दौर भी बहुत पहले छूट चुका था और अब उसके सड़ते अवशेष ही बाक़ी बचे थे। इसके आस-पास के छोटे-छोटे शहर वीरान और खंडहरों में बदल चुके थे। कभी-कभार विदेशी चित्रकार या पर्यटक यहाँ आते और समय-समय पर जिप्सी दल तथा भगोड़े अपराधियों का वहाँ बसेरा होता।

    शहर से थोड़ा हटकर एक भूकंप आया, जिसने पास की नदी की धारा बदल दी। वहाँ की भूमि का एक हिस्सा दलदल में और शेष रेगिस्तान में बदल गया। धीरे-धीरे पहाड़ से पुराना जंगल नीचे उतरने लगा और पुराने ग्रीष्म-आवासों तथा पत्थर के पुलों के भग्नावशेषों को अपने क़ब्ज़े में लेने लगा। विशाल प्रांतर को वीरान देखकर जंगल ने उसे टुकड़े-टुकड़े अपनी गिरफ़्त में लेना आरंभ कर दिया। दलदलों पर रहस्यमय हरियाली छाने लगी और खंडहरों पर बड़े-बड़े पेड़ उग आए।

    अंतत: शहर से बाशिंदे उठ गए। जो बचा वह एक अनाम क़िस्म का खंडहर। जंगली और विचित्र क़िस्म के प्राणी उन टूटते खंडहरों में दिखाई देते और कभी सड़कों और बग़ीचों पर अपनी बकरियाँ चराते। दलदलों के बनने के बाद ज्वर का एक दौर आया जिसमें इस तरह की आबादी भी रोगों और व्याधियों से मृत्यु को प्राप्त हुई। अंत में सब कुछ वीरान हो गया।

    पुराना टाउन हॉल जो अपने समय का गौरव था, टूटा-फूटा पर अभी लंबा और सीधा खड़ा था। दुनिया भर के गीतों में अभी भी इसकी चर्चा होती थी और पड़ोसी लोगों के बीच इसके बारे में अनेक कहानियाँ प्रचलित थीं। इन पड़ोसी स्थानों के शहर भी उपेक्षित हो चुके थे। उनकी सभ्यताओं का भी पतन हो रहा था। इस शहर से जुड़े नामों और पुरानी भव्यता की चर्चा बच्चों की भुतहा कहानियों में होती थी और कभी-कभी दूर फलते-फूलते देशों से अध्येता कठिन यात्राएँ कर इसके खंडहरों का अध्ययन करने आते। इसके रहस्यों पर उन देशों के स्कूली लड़के ख़ूब चर्चा करते। ठोस सोने के दरवाज़ों और जवाहरात के गुंबदों की बात होती। कहा जाता है कि इस क्षेत्र की खानाबदोश जनजातियों के पास अभी भी उस पुराने, चमत्कारी अतीत के अवशेष सुरक्षित हैं।

    लेकिन जंगल और नीचे आते गए, पहाड़ों से समतलों तक। झरनों और नदियों का आगमन और प्रस्थान हुआ। जंगल और बढ़े, धीरे-धीरे पूरे प्रदेश, पुरानी दीवालों, महलों, मंदिरों और संग्रहालयों पर उसने अपनी चादर ओढ़ा दी। लोमड़ी, नेवले, भेड़िये और भालुओं का पूरे विस्तार में निवास हो गया।

    एक टूटे महल के खंडहर में एक नया चीड़ वृक्ष खड़ा होने लगा। केवल एक ही साल पहले इसने जंगल के निकट आने की सूचना दी थी। पर अब जब इसने आस-पास देखा तो दूर-दूर तक छोटे-छोटे पेड़ जड़ जमाते खड़े होते जा रहे थे।

    ‘लगता है, अब हम लोग कहीं पहुँच रहे हैं!’ एक कठफोड़वे ने उल्लास से आवाज़ लगाई, जो एक डाल पर चोट करता जा रहा था और संतोष के साथ बढ़ते जंगल को देख रहा था जिसकी शानदार हरियाली पूरी धरती को आच्छादित करती जा रही थी।

    स्रोत :
    • पुस्तक : विश्व की श्रेष्ठ कहानियाँ (खण्ड-2) (पृष्ठ 131)
    • संपादक : ममता कालिया
    • रचनाकार : हरमन हेस्से
    • प्रकाशन : लोकभारती प्रकाशन
    • संस्करण : 2005
    हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

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