प्रस्तुत पाठ एनसीईआरटी की कक्षा छठी के पाठ्यक्रम में शामिल है।
केशव के घर कार्निस के ऊपर एक चिड़िया ने अंडे दिए थे। केशव और उसकी बहन श्यामा दोनों बड़े ध्यान से चिड़िया को वहाँ आते-जाते देखा करते। सवेरे दोनों आँखें मलते कार्निस के सामने पहुँच जाते और चिड़ा और चिड़िया दोनों को वहाँ बैठा पाते। उनको देखने में दोनों बच्चों को न मालूम क्या मज़ा मिलता, दूध और जलेबी की सुध भी न रहती थी। दोनों के दिल में तरह-तरह के सवाल उठते। अंडे कितने बड़े होंगे? किस रंग के होंगे? कितने होंगे? क्या खाते होंगे? उनमें से बच्चे किस तरह निकल आएँगे? बच्चों के पर कैसे निकलेंगे? घोंसला कैसा है? लेकिन इन बातों का जवाब देने वाला कोई नहीं। न अम्माँ को घर के काम-धंधों से फ़ुर्सत थी, न बाबू जी को पढ़ने-लिखने से दोनों बच्चे आपस ही में सवाल-जवाब करके अपने दिल को तसल्ली दे लिया करते थे।
केशव विद्वानों जैसे गर्व से कहता—नहीं री पगली, पहले पर निकलेंगे। बग़ैर परों के बेचारे कैसे उड़ेंगे?
श्यामा—बच्चों को क्या खिलाएगी बेचारी?
केशव इस पेचीदा सवाल का जवाब कुछ न दे सकता था।
इस तरह तीन-चार दिन गुज़र गए। दोनों बच्चों की जिज्ञासा दिन-दिन बढ़ती जाती थी। अंडों को देखने के लिए वे अधीर हो उठते थे। उन्होंने अनुमान लगाया कि अब ज़रूर बच्चे निकल आए होंगे। बच्चों के चारे का सवाल अब उनके सामने आ खड़ा हुआ।
चिड़िया बेचारी इतना दाना कहाँ पाएगी कि सारे बच्चों का पेट भरे! ग़रीब बच्चे भूख के मारे चूँ-चूँ करके मर जाएँगे।
इस मुसीबत का अंदाज़ा करके दोनों घबरा उठे। दोनों ने फ़ैसला किया कि कार्निस पर थोड़ा-सा दाना रख दिया जाए। श्यामा ख़ुश होकर बोली—तब तो चिड़ियों को चारे के लिए कहीं उड़कर न जाना पड़ेगा न?
केशव—नहीं, तब क्यों जाएँगी?
श्यामा—क्यों भइया, बच्चों को धूप न लगती होगी?
केशव का ध्यान इस तकलीफ़ की तरफ़ न गया था। बोला—ज़रूर तकलीफ़ हो रही होगी। बेचारे प्यास के मारे तड़पते होंगे। ऊपर छाया भी तो कोई नहीं।
आख़िर यही फ़ैसला हुआ कि घोंसले के ऊपर कपड़े की छत बना देनी चाहिए। पानी की प्याली और थोड़े से चावल रख देने का प्रस्ताव भी स्वीकृत हो गया।
दोनों बच्चे बड़े चाव से काम करने लगे। श्यामा माँ की आँख बचाकर मटके से चावल निकाल लाई। केशव ने पत्थर की प्याली का तेल चुपके से ज़मीन पर गिरा दिया और उसे ख़ूब साफ़ करके उसमें पानी भरा।
अब चाँदनी के लिए कपड़ा कहाँ से आए? फिर ऊपर बग़ैर छड़ियों के कपड़ा ठहरेगा कैसे और छड़ियाँ खड़ी होगी कैसे?
केशव बड़ी देर तक इसी उधेड़बुन में रहा। आख़िरकार उसने यह मुश्किल भी हल कर दी। श्यामा से बोला—जाकर कूड़ा फेंकने वाली टोकरी उठा लाओ। अम्मा जी को मत दिखाना।
श्यामा—वह तो बीच से फटी हुई है। उसमें से धूप न जाएगी?
केशव ने झुँझलाकर कहा—तू टोकरी तो ला, मैं उसका सूराख़ बंद करने की कोई हिकमत निकालूँगा।
श्यामा दौड़कर टोकरी उठा लाई केशव ने उसके सूराख़ में थोड़ा-सा काग़ज़ ठूँस दिया और तब टोकरी को एक टहनी से टिकाकर बोला—देख ऐसे ही घोंसले पर उसकी आड़ कर दूँगा। तब कैसे धूप जाएगी?
श्यामा ने दिल में सोचा, भइया कितने चालाक हैं।
दो
गर्मी के दिन थे। बाबू जी दफ़्तर गए हुए थे। अम्माँ दोनों बच्चों को कमरे में सुलाकर ख़ुद सो गई थीं। लेकिन बच्चों की आँखों में आज नींद कहाँ? अम्माँ जी को बहलाने के लिए दोनों दम रोके, आँखें बंद किए, मौक़े का इंतज़ार कर रहे थे। ज्यों ही मालूम हुआ कि अम्माँ जी अच्छी तरह से सो गई, दोनों चुपके से उठे और बहुत धीरे से दरवाज़े को सिटकनी खोलकर बाहर निकल आए। अंडों की हिफ़ाज़त की तैयारियाँ होने लगीं। केशव कमरे से एक स्टूल उठा लाया, लेकिन जब उससे काम न चला तो नहाने की चौकी लाकर स्टूल के नीचे रखी और डरते-डरते स्टूल पर चढ़ा।
श्यामा दोनों हाथों से स्टूल पकड़े हुए थी। स्टूल चारों टाँगें बराबर न होने के कारण जिस तरफ़ ज़्यादा दबाव पाता था, जरा-सा हिल जाता था। उस वक़त केशव को कितनी तकलीफ़ उठानी पड़ती थी, यह उसी का दिल जानता था। दोनों हाथों से कार्निस पकड़ लेता और श्यामा को दबी आवाज़ से डाँटता—अच्छी तरह पकड़, वरना उतरकर बहुत मारूँगा। मगर बेचारी श्यामा का दिल तो ऊपर कार्निस पर था। बार-बार उसका ध्यान उधर चला जाता और हाथ ढीले पड़ जाते।
केशव ने ज्यों ही कार्निस पर हाथ रखा, दोनों चिड़ियाँ उड़ गई। केशव ने देखा, कार्निस पर थोड़े तिनके बिछे हुए हैं और उन पर तीन अंडे पड़े हैं। जैसे घोंसले उसने पेड़ों पर देखे थे, वैसा कोई घोंसला नहीं है। श्यामा ने नीचे से पूछा—कै बच्चे हैं भइया?
केशव—तीन अंडे हैं, अभी बच्चे नहीं निकले।
श्यामा—ज़रा हमें दिखा दो भइया, कितने बड़े हैं?
केशव—दिखा दूँगा, पहले ज़रा चिथड़े ले आ, नीचे बिछा दूँ। बेचारे अंडे तिनकों पर पड़े हैं।
श्यामा दौड़कर अपनी पुरानी धोती फाड़कर एक टुकड़ा लाई। केशव ने झुककर कपड़ा ले लिया, उसकी कई तह करके उसने एक गद्दी बनाई और उसे तिनकों पर बिछाकर तीनों अंडे धीरे से उस पर रख दिए।
श्यामा ने फिर कहा—हमको भी दिखा दो भइया।
केशव—दिखा दूँगा, पहले ज़रा वह टोकरी तो दे दो ऊपर छाया कर दूँ।
श्यामा ने टोकरी नीचे से थमा दी और बोली—अब तुम उतर आओ, मैं भी तो देखूँ।
केशव ने टोकरी को एक टहनी से टिकाकर कहा—जा, दाना और पानी की प्याली ले आ, मैं उतर आऊँ तो तुझे दिखा दूँगा।
श्यामा प्याली और चावल भी लाई। केशव ने टोकरी के नीचे दोनों चीज़ें रख दी और आहिस्ता से उतर आया।
श्यामा ने गिड़गिड़ाकर कहा—अब हमको भी चढ़ा दो भइया।
केशव—न भइया, कहीं तू गिर-गिरा पड़ी तो अम्माँ जी मेरी चटनी ही कर डालेंगी। तू कहेंगी कि तूने ही चढ़ाया था। क्या करेगी देखकर? अब अंडे बड़े आराम से हैं। जब बच्चे निकलेंगे, तो उनको पालेंगे।
दोनों चिड़ियाँ बार-बार कार्निस पर आती थीं और बग़ैर बैठे ही उड़ जाती थीं। केशव ने सोचा, हम लोगों के डर से नहीं बैठतीं स्टूल उठाकर कमरे में रख आया, चौकी जहाँ की थी, वहाँ रख दी।
श्यामा ने आँखों में आँसू भरकर कहा—तुमने मुझे नहीं दिखाया, मैं अम्माँ जी से कह दूँगी।
केशव—अम्माँ जी से कहेगी तो बहुत मारूँगा, कहे देता हूँ।
श्यामा—तो तुमने मुझे दिखाया क्यों नहीं?
केशव—और गिर पड़ती तो चार सर न हो जाते!
श्यामा—हो जाते, हो जाते। देख लेना मैं कह दूँगी!
इतने में कोठरी का दरवाज़ा खुला और माँ ने धूप से आँखों को बचाते हुए कहा—तुम दोनों बाहर कब निकल आए? मैंने कहा न था कि दुपहर को न निकलना? किसने किवाड़ खोला?
किवाड़ केशव ने खोला था, लेकिन श्यामा ने माँ से यह बात नहीं कही। उसे डर लगा कि भइया पिट जाएँगे। केशव दिल में काँप रहा था कि कहीं श्यामा कह न दे। अंडे न दिखाए थे, इससे अब उसको श्यामा पर विश्वास न था। श्यामा सिर्फ़ मुहब्बत के मारे चुप थी या इस क़सूर में हिस्सेदार होने की वजह से इसका फ़ैसला नहीं किया जा सकता। शायद दोनों ही बातें थीं।
माँ ने दोनों को डाँट-डपटकर फिर कमरे में कर दिया और आप धीरे-धीरे उन्हें पंखा झलने लगी। अभी सिर्फ़ दो बजे थे। बाहर तेज़ लू चल रही थी। अब दोनों बच्चों को नींद आ गई थी।
तीन
चार बजे यकायक श्यामा की नींद खुली। किवाड़ खुले हुए थे। वह दौड़ी हुई कार्निस के पास आई और ऊपर की तरफ़ ताकने लगी। टोकरी का पता न था। संयोग से उसकी नज़र नीचे गई और वह उलटे पाँव दौड़ती हुई कमरे में जाकर ज़ोर से बोली— भइया, अंडे तो नीचे पड़े हैं, बच्चे उड़ गए।
केशव घबराकर उठा और दौड़ा हुआ बाहर आया तो क्या देखता है कि तीनों अंडे नीचे टूटे पड़े हैं और उनसे कोई चूने की-सी चीज़ बाहर निकल आई है। पानी की प्याली भी एक तरफ़ टूटी पड़ी है।
उसके चेहरे का रंग उड़ गया। सहमी हुई आँखों से ज़मीन की तरफ़ देखने लगा। श्यामा ने पूछा—बच्चे कहाँ उड़ गए भइया?
केशव ने करुण स्वर में कहा—अंडे तो फूट गए। श्यामा-और बच्चे कहाँ गए?
केशव—तेरे सर में देखती नहीं है अंडों में से उजला-उजला पानी निकल आया है। वही तो दो-चार दिनों में बच्चे बन जाते।
माँ ने सोटी हाथ में लिए हुए पूछा—तुम दोनों वहाँ धूप में क्या कर रहे हो?
श्यामा ने कहा—अम्माँ जी चिड़िया के अंडे टूटे पड़े हैं।
माँ ने आकर टूटे हुए अंडों को देखा और ग़ुस्से से बोलीं—तुम लोगों ने अंडों को छुआ होगा।
अब तो श्यामा को भइया पर ज़रा भी तरस न आया। उसी ने शायद अंडों को इस तरह रख दिया कि वह नीचे गिर पड़े। इसकी उसे सज़ा मिलनी चाहिए। बोली—इन्होंने अंडों को छेड़ा था अम्माँ जी।
माँ ने केशव से पूछा—क्यों रे?
केशव भीगी बिल्ली बना खड़ा रहा। माँ तू वहाँ पहुँचा कैसे?
श्यामा—चौकी पर स्टूल रखकर चढ़े अम्माँ जी।
केशव—तू स्टूल थामे नहीं खड़ी थी?
श्यामा—तुम्हीं ने तो कहा था।
माँ—तू इतना बड़ा हुआ, तुझे अभी इतना भी नहीं मालूम कि छूने से चिड़ियों के अंडे गंदे हो जाते हैं। चिड़िया फिर उन्हें नहीं सेती।
श्यामा ने डरते-डरते पूछा—तो क्या चिड़िया ने अंडे गिरा दिए हैं अम्माँ जी?
माँ—और क्या करती! केशव के सिर इसका पाप पड़ेगा हाय, हाय तीन जानें ले लीं दुष्ट ने!
केशव रोनी सूरत बनाकर बोला—मैंने तो सिर्फ़ अंडों को गद्दी पर रख दिया था अम्माँ जी!
माँ को हँसी आ गई। मगर केशव को कई दिनों तक अपनी ग़लती पर अफ़सोस होता रहा। अंडों की हिफ़ाज़त करने के जोग में उसने उनका सत्यानाश कर डाला। इसे याद कर वह कभी-कभी रो पड़ता था।
दोनों चिड़ियाँ वहाँ फिर न दिखाई दीं।
keshav ke ghar karnis ke uupar ek chiDiya ne anDe diye the. keshav aur uski bahan shyama donon baDe dhyaan se chiDiya ko vahan aate jate dekha karte. savere donon ankhen malte karnis ke samne pahunch jate aur chiDa aur chiDiya donon ko vahan baitha pate. unko dekhne mein donon bachchon ko na malum kya maza milta, doodh aur jalebi ki sudh bhi na rahti thi. donon ke dil mein tarah tarah ke saval uthte. anDe kitne baDe honge? kis rang ke honge? kitne honge? kya khate honge? unmen se bachche kis tarah nikal ayenge? bachchon ke par kaise niklenge? ghonsla kaisa hai? lekin in baton ka javab dene vala koi nahin. na amman ko ghar ke kaam dhandhon se fursat thi, na babu ji ko paDhne likhne se donon bachche aapas hi mein saval javab karke apne dil ko tasalli de liya karte the.
shyama kahti—kyon bhaiya, bachche nikalkar phurr se uD jayenge?
keshav vidvanon jaise garv se kahta—nahin ri pagli, pahle par niklenge. bagair paron ke bechare kaise uDenge?
shyama—bachchon ko kya khilayegi bechari?
keshav is pechida saval ka javab kuch na de sakta tha.
is tarah teen chaar din guzar ge. donon bachchon ki jigyasa din din baDhti jati thi. anDon ko dekhne ke liye ve adhir ho uthte the. unhonne anuman lagaya ki ab zarur bachche nikal aaye honge. bachchon ke chare ka saval ab unke samne aa khaDa hua.
chiDiya bechari itna dana kahan payegi ki sare bachchon ka pet bhare! garib bachche bhookh ke mare choon choon karke mar jayenge.
is musibat ka andaza karke donon ghabra uthe. donon ne faisla kiya ki karnis par thoDa sa dana rakh diya jaye. shyama khush hokar boli—tab to chiDiyon ko chare ke liye kahin uDkar na jana paDega na?
keshav—nahin, tab kyon jayengi?
shyama—kyon bhaiya, bachchon ko dhoop na lagti hogi?
keshav ka dhyaan is taklif ki taraf na gaya tha. bola—zarur taklif ho rahi hogi. bechare pyaas ke mare taDapte honge. uupar chhaya bhi to koi nahin.
akhir yahi faisla hua ki ghonsle ke uupar kapDe ki chhat bana deni chahiye. pani ki pyali aur thoDe se chaval rakh dene ka prastav bhi svikrit ho gaya.
donon bachche baDe chaav se kaam karne lage shyama maan ki ankh bachakar matke se chaval nikal lai. keshav ne patthar ki pyali ka tel chupke se zamin par gira diya aur use khoob saaf karke usmen pani bhara.
ab chandni ke liye kapDa kahan se aaye? phir uupar bagair chhaDiyon ke kapDa thahrega kaise aur chhaDiyan khaDi hogi kaise?
keshav baDi der tak isi udheDbun mein raha. akhirkar usne ye mushkil bhi hal kar di. shyama se bola—jakar kuDa phenknevali tokari utha lao. amma ji ko mat dikhana.
shyama—vah to beech se phati hui hai. usmen se dhoop na jayegi?
keshav ne jhunjhlakar kaha—tu tokari to la, main uska surakh band karne ki koi hikmat nikalunga.
shyama dauDkar tokari utha lai keshav ne uske surakh mein thoDa sa kagaz thoons diya aur tab tokari ko ek tahni se tikakar bola—dekh aise hi ghonsle par uski aaD kar dunga. tab kaise dhoop jayegi?
shyama ne dil mein socha, bhaiya kitne chalak hain.
do
garmi ke din the. babu ji daftar ge hue the. amman donon bachchon ko kamre mein sulakar khud so gai theen. lekin bachchon ki ankhon mein aaj neend kahan? amman ji ko bahlane ke liye donon dam roke, ankhen band kiye, mauqe ka intzaar kar rahe the. jyon hi malum hua ki amman ji achchhi tarah se so gai, donon chupke se uthe aur bahut dhire se darvaze ko sitakni kholkar bahar nikal aaye. anDon ki hifazat ki taiyariyan hone lagin. keshav kamre se ek stool utha laya, lekin jab usse kaam na chala to nahane ki chauki lakar stool ke niche rakhi aur Darte Darte stool par chaDha.
shyama donon hathon se stool pakDe hue thi. stool charon tangen barabar na hone ke karan jis taraf zyada dabav pata tha, jara sa hil jata tha. us vaqat keshav ko kitni taklif uthani paDti thi, ye usi ka dil janta tha. donon hathon se karnis pakaD leta aur shyama ko dabi avaz se Dantta—achchhi tarah pakaD, varna utarkar bahut marunga. magar bechari shyama ka dil to uupar karnis par tha. baar baar uska dhyaan udhar chala jata aur haath Dhile paD jate.
keshav ne jyon hi karnis par haath rakha, donon chiDiyan uD gai. keshav ne dekha, karnis par thoDe tinke bichhe hue hain aur un par teen anDe paDe hain. jaise ghonsle usne peDon par dekhe the, vaisa koi ghonsla nahin hai. shyama ne niche se puchha—kai bachche hain bhaiya?
keshav—tin anDe hain, abhi bachche nahin nikle.
shyama—zara hamein dikha do bhaiya, kitne baDe hain?
keshav—dikha dunga, pahle zara chithDe le aa, niche bichha doon. bechare anDe tinkon par paDe hain.
shyama dauDkar apni purani dhoti phaDkar ek tukDa lai. keshav ne jhukkar kapDa le liya, uski kai tah karke usne ek gaddi banai aur use tinkon par bichhakar tinon anDe dhire se us par rakh diye.
shyama ne phir kaha—hamko bhi dikha do bhaiya.
keshav—dikha dunga, pahle jara wo tokari to de do uupar chhaya kar doon.
shyama ne tokari niche se thama di aur boli—ab tum utar aao, main bhi to dekhun.
keshav ne tokari ko ek tahni se tikakar kaha—ja, dana aur pani ki pyali le aa, main utar auun to tujhe dikha dunga.
shyama pyali aur chaval bhi lai. keshav ne tokari ke niche donon chizen rakh di aur
ahista se utar aaya.
shyama ne giDagiDakar kaha—ab hamko bhi chaDha do bhaiya.
keshav—tu gir paDegi. shyama na girungi bhaiya, tum niche se pakDe rahna.
keshav—na bhaiya, kahin tu gir gira paDi to amman ji meri chatni hi kar Dalengi. tu kahengi ki tune hi chaDhaya tha. kya karegi dekhkar? ab anDe baDe aram se hain. jab bachche niklenge, to unko palenge.
donon chiDiyan baar baar karnis par aati theen aur bagair baithe hi uD jati theen. keshav ne socha, hum logon ke Dar se nahin baithtin stool uthakar kamre mein rakh aaya, chauki jahan ki thi, vahan rakh di.
shyama ne ankhon mein ansu bharkar kaha—tumne mujhe nahin dikhaya, main amman ji se kah dungi.
keshav—amman ji se kahegi to bahut marunga, kahe deta hoon.
shyama—to tumne mujhe dikhaya kyon nahin?
keshav—aur gir paDti to chaar sar na ho jate!
shyama—ho jate, ho jate. dekh lena main kah dungi!
itne mein kothari ka darvaza khula aur maan ne dhoop se ankhon ko bachate hue kaha—tum donon bahar kab nikal aaye? mainne kaha na tha ki dopahar ko na nikalna? kisne kivaD khola?
kivaD keshav ne khola tha, lekin shyama ne maan se ye baat nahin kahi. use Dar laga ki bhaiya pit jayenge. keshav dil mein kaanp raha tha ki kahin shyama kah na de. anDe na dikhaye the, isse ab usko shyama par vishvas na tha. shyama sirf muhabbat ke mare chup thi ya is qasur mein hissedar hone ki vajah se iska faisla nahin kiya ja sakta. shayad donon hi baten theen.
maan ne donon ko Daant Dapatkar phir kamre mein kar diya aur aap dhire dhire unhen pankha jhalne lagi. abhi sirf do baje the. bahar tez lu chal rahi thi. ab donon bachchon ko neend aa gai thi.
teen
chaar baje yakayak shyama ki neend khuli. kivaD khule hue the. wo dauDi hui karnis ke paas aai aur uupar ki taraf takne lagi. tokari ka pata na tha. sanyog se uski nazar niche gai aur wo ulte paanv dauDti hui kamre mein jakar jor se boli bhaiya, anDe to niche paDe hain, bachche uD ge.
keshav ghabrakar utha aur dauDa hua bahar aaya to kya dekhta hai ki tinon anDe niche tute paDe hain aur unse koi chune ki si cheez bahar nikal aai hai. pani ki pyali bhi ek taraf tuti paDi hai.
uske chehre ka rang uD gaya. sahmi hui ankhon se zamin ki taraf dekhne laga. shyama ne puchha—bachche kahan uD ge bhaiya?
keshav ne karun svar mein kaha—anDe to phoot ge. shyama aur bachche kahan ge?
keshav—tere sar mein dekhti nahin hai anDon mein se ujla ujla pani nikal aaya hai. vahi to do chaar dinon mein bachche ban jate.
maan ne soti haath mein liye hue puchha—tum donon vahan dhoop mein kya kar rahe ho?
shyama ne kaha—amman ji chiDiya ke anDe tute paDe hain.
maan ne aakar tute hue anDon ko dekha aur ghusse se bolin—tum logon ne anDon ko chhua hoga.
ab to shyama ko bhaiya par zara bhi taras na aaya. usi ne shayad anDon ko is tarah rakh diya ki wo niche gir paDe. iski use saza milani chahiye. boli—inhonne anDon ko chheDa tha amman ji.
maan ne keshav se puchha—kyon re?
keshav bhigi billi bana khaDa raha. maan tu vahan pahuncha kaise?
shyama—chauki par stool rakhkar chaDhe amman ji.
keshav—tu stool thame nahin khaDi thee?
shyama—tumhin ne to kaha tha.
man—tu itna baDa hua, tujhe abhi itna bhi nahin malum ki chhune se chiDiyon ke anDe gande ho jate hain. chiDiya phir unhen nahin seti.
shyama ne Darte Darte puchha—to kya chiDiya ne anDe gira diye hain amman jee? maan aur kya karti! keshav ke sir iska paap paDega haay, haay teen janen le leen dusht ne!
keshav roni surat banakar bola—mainne to sirf anDon ko gaddi par diya tha amman jee!
maan ko hansi aa gai. magar keshav ko kai dinon tak apni ghalati par afsos hota raha. anDon ki hifazat karne ke jog mein usne unka satyanash kar Dala. ise yaad kar wo kabhi kabhi ro paDta tha.
donon chiDiyan vahan phir na dikhai deen.
keshav ke ghar karnis ke uupar ek chiDiya ne anDe diye the. keshav aur uski bahan shyama donon baDe dhyaan se chiDiya ko vahan aate jate dekha karte. savere donon ankhen malte karnis ke samne pahunch jate aur chiDa aur chiDiya donon ko vahan baitha pate. unko dekhne mein donon bachchon ko na malum kya maza milta, doodh aur jalebi ki sudh bhi na rahti thi. donon ke dil mein tarah tarah ke saval uthte. anDe kitne baDe honge? kis rang ke honge? kitne honge? kya khate honge? unmen se bachche kis tarah nikal ayenge? bachchon ke par kaise niklenge? ghonsla kaisa hai? lekin in baton ka javab dene vala koi nahin. na amman ko ghar ke kaam dhandhon se fursat thi, na babu ji ko paDhne likhne se donon bachche aapas hi mein saval javab karke apne dil ko tasalli de liya karte the.
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shyama ne dil mein socha, bhaiya kitne chalak hain.
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shyama donon hathon se stool pakDe hue thi. stool charon tangen barabar na hone ke karan jis taraf zyada dabav pata tha, jara sa hil jata tha. us vaqat keshav ko kitni taklif uthani paDti thi, ye usi ka dil janta tha. donon hathon se karnis pakaD leta aur shyama ko dabi avaz se Dantta—achchhi tarah pakaD, varna utarkar bahut marunga. magar bechari shyama ka dil to uupar karnis par tha. baar baar uska dhyaan udhar chala jata aur haath Dhile paD jate.
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keshav—tin anDe hain, abhi bachche nahin nikle.
shyama—zara hamein dikha do bhaiya, kitne baDe hain?
keshav—dikha dunga, pahle zara chithDe le aa, niche bichha doon. bechare anDe tinkon par paDe hain.
shyama dauDkar apni purani dhoti phaDkar ek tukDa lai. keshav ne jhukkar kapDa le liya, uski kai tah karke usne ek gaddi banai aur use tinkon par bichhakar tinon anDe dhire se us par rakh diye.
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keshav—dikha dunga, pahle jara wo tokari to de do uupar chhaya kar doon.
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shyama pyali aur chaval bhi lai. keshav ne tokari ke niche donon chizen rakh di aur
ahista se utar aaya.
shyama ne giDagiDakar kaha—ab hamko bhi chaDha do bhaiya.
keshav—tu gir paDegi. shyama na girungi bhaiya, tum niche se pakDe rahna.
keshav—na bhaiya, kahin tu gir gira paDi to amman ji meri chatni hi kar Dalengi. tu kahengi ki tune hi chaDhaya tha. kya karegi dekhkar? ab anDe baDe aram se hain. jab bachche niklenge, to unko palenge.
donon chiDiyan baar baar karnis par aati theen aur bagair baithe hi uD jati theen. keshav ne socha, hum logon ke Dar se nahin baithtin stool uthakar kamre mein rakh aaya, chauki jahan ki thi, vahan rakh di.
shyama ne ankhon mein ansu bharkar kaha—tumne mujhe nahin dikhaya, main amman ji se kah dungi.
keshav—amman ji se kahegi to bahut marunga, kahe deta hoon.
shyama—to tumne mujhe dikhaya kyon nahin?
keshav—aur gir paDti to chaar sar na ho jate!
shyama—ho jate, ho jate. dekh lena main kah dungi!
itne mein kothari ka darvaza khula aur maan ne dhoop se ankhon ko bachate hue kaha—tum donon bahar kab nikal aaye? mainne kaha na tha ki dopahar ko na nikalna? kisne kivaD khola?
kivaD keshav ne khola tha, lekin shyama ne maan se ye baat nahin kahi. use Dar laga ki bhaiya pit jayenge. keshav dil mein kaanp raha tha ki kahin shyama kah na de. anDe na dikhaye the, isse ab usko shyama par vishvas na tha. shyama sirf muhabbat ke mare chup thi ya is qasur mein hissedar hone ki vajah se iska faisla nahin kiya ja sakta. shayad donon hi baten theen.
maan ne donon ko Daant Dapatkar phir kamre mein kar diya aur aap dhire dhire unhen pankha jhalne lagi. abhi sirf do baje the. bahar tez lu chal rahi thi. ab donon bachchon ko neend aa gai thi.
teen
chaar baje yakayak shyama ki neend khuli. kivaD khule hue the. wo dauDi hui karnis ke paas aai aur uupar ki taraf takne lagi. tokari ka pata na tha. sanyog se uski nazar niche gai aur wo ulte paanv dauDti hui kamre mein jakar jor se boli bhaiya, anDe to niche paDe hain, bachche uD ge.
keshav ghabrakar utha aur dauDa hua bahar aaya to kya dekhta hai ki tinon anDe niche tute paDe hain aur unse koi chune ki si cheez bahar nikal aai hai. pani ki pyali bhi ek taraf tuti paDi hai.
uske chehre ka rang uD gaya. sahmi hui ankhon se zamin ki taraf dekhne laga. shyama ne puchha—bachche kahan uD ge bhaiya?
keshav ne karun svar mein kaha—anDe to phoot ge. shyama aur bachche kahan ge?
keshav—tere sar mein dekhti nahin hai anDon mein se ujla ujla pani nikal aaya hai. vahi to do chaar dinon mein bachche ban jate.
maan ne soti haath mein liye hue puchha—tum donon vahan dhoop mein kya kar rahe ho?
shyama ne kaha—amman ji chiDiya ke anDe tute paDe hain.
maan ne aakar tute hue anDon ko dekha aur ghusse se bolin—tum logon ne anDon ko chhua hoga.
ab to shyama ko bhaiya par zara bhi taras na aaya. usi ne shayad anDon ko is tarah rakh diya ki wo niche gir paDe. iski use saza milani chahiye. boli—inhonne anDon ko chheDa tha amman ji.
maan ne keshav se puchha—kyon re?
keshav bhigi billi bana khaDa raha. maan tu vahan pahuncha kaise?
shyama—chauki par stool rakhkar chaDhe amman ji.
keshav—tu stool thame nahin khaDi thee?
shyama—tumhin ne to kaha tha.
man—tu itna baDa hua, tujhe abhi itna bhi nahin malum ki chhune se chiDiyon ke anDe gande ho jate hain. chiDiya phir unhen nahin seti.
shyama ne Darte Darte puchha—to kya chiDiya ne anDe gira diye hain amman jee? maan aur kya karti! keshav ke sir iska paap paDega haay, haay teen janen le leen dusht ne!
keshav roni surat banakar bola—mainne to sirf anDon ko gaddi par diya tha amman jee!
maan ko hansi aa gai. magar keshav ko kai dinon tak apni ghalati par afsos hota raha. anDon ki hifazat karne ke jog mein usne unka satyanash kar Dala. ise yaad kar wo kabhi kabhi ro paDta tha.
हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी
‘हिन्दवी डिक्शनरी’ हिंदी और हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों के शब्दों का व्यापक संग्रह है। इसमें अंगिका, अवधी, कन्नौजी, कुमाउँनी, गढ़वाली, बघेली, बज्जिका, बुंदेली, ब्रज, भोजपुरी, मगही, मैथिली और मालवी शामिल हैं। इस शब्दकोश में शब्दों के विस्तृत अर्थ, पर्यायवाची, विलोम, कहावतें और मुहावरे उपलब्ध हैं।