एलिया कचहरी में बेकार-सा रहता था। उन दिनों लोग कचहरी से दूर ही रहना पसंद करते थे। बड़े से बड़े वकील भी छोटे-छोटे मुक़दमे लेने के लिए मज़बूर थे। एलिया के पास तो कोई भी मुक़दमा न आता, फिर भी वह कचहरी में जाता और वहाँ एकांत में बैठकर अपनी पत्नी को संबोधित करके कविताएँ लिखा करता।
एक दिन रास्ते में एक परिचित गाड़ीवान ने एलिया को रोकते हुए कहा, मैं अभी-अभी तेर्सनोवा से आ रहा हूँ, वहाँ मैं तुम्हारे चाचा से मिला था। वे सख़्त बीमार हैं। एलिया घर लौटा तो उसकी पत्नी घर के सामने धूप में खड़ी उसकी प्रतीक्षा कर रही थी। एलिया ने चाचा की बीमारी की ख़बर उसे सुनाई तो उसके शांत-गंभीर चेहरे पर बेचैनी की बजाय रहस्यमयी मुस्कराहट आई। उसे देखकर एलिया के होंठों पर भी मुस्कराहट आई।
तो मैं जाता हूँ, एलिया ने कहा। आगे वह कुछ न बोला। पत्नी उसके मन की बात समझ गई। चाचा मरने पर अपनी सारी संपत्ति उसे दे जाने वाला था। तभी उसने पति के फटे हुए बूट की ओर देखते हुए पूछा, रास्ते के ख़र्चे का भी कुछ ख़याल किया है?
“इसकी चिंता न करो। मेरे पास थोड़े से पैसे हैं।
एलिया अपने चाचा के शहर के लिए रवाना हो गया। रास्ते में वह तेज़ी से चलता हुआ अपने फटे बूट के बारे में सोच रहा था कि वह उसे किसी न किसी तरह चाचा के घर तक पहुँचा दे तो बहुत अच्छा हो।
रात हुई तो ठंड बढ़ने लगी। एलिया को लगा कि उसके पाँव ठंड को जैसे छूने लगे हों। उसने अपने ख़स्ता बूट की तरफ़ देखा, जो अब मरम्मत करने के लायक़ भी नहीं रह गया था। उसे पहनकर चलने में बड़ी तकलीफ़ हो रही थी। फिर यह ख़याल भी तकलीफ़ दे रहा था कि ऐसा बूट पहनकर चाचा के घर में जाना बेइज़्ज़ती वाली बात होगी, लेकिन कोई चारा नहीं था। तब वह बूट की ओर से ध्यान हटाकर चाचा की संपत्ति पाने और भविष्य में सुखी जीवन बिताने के बारे में सोचने लगा।
एक गाँव आने पर वह रात बिताने के लिए एक धर्मशाला में ठहरा। कम किराए में उसे एक गंदी, छोटी-सी कोठरी मिली। वहाँ दो व्यक्ति पहले से ठहरे हुए थे। वे दोनों ही सोए हुए थे।
एलिया अपने उन्हीं कपड़ों में लेट गया, लेकिन नींद न आई। उसने अपने ख़यालों में संसार की सभी सड़कों पर और सभी घरों में अनगिनत बूट देखे, फिर तो जैसे उसे हर जगह बूट ही बूट दिखाई देने लगे। आख़िर उसे लगा कि जैसे उस कोठरी में भी बूट बिखरे पड़े हों। तभी वह अचानक उठ बैठा और सर्दी से काँपता हुआ नंगे पाँव बड़ी नरमी से चलता हुआ अपने बग़ल वाले मुसाफ़िर की खटिया के पास गया। उसका एक बूट उसने पहना ही था कि उसके तपते हुए पाँव में कोई चीज़ चुभी। उसने बूट उतार डाला, तभी कोठरी के बाहर से उसे अस्पष्ट-सी आवाज़ सुनाई दी तो डर के मारे उसके पाँव वहीं के वहीं जम गए। और उसी समय उसने अपनी आत्मा की फटकार सुनी कि वह पतन के रास्ते पर जा रहा है। बाहर की आवाज़ जब बंद हो गई तो वह कोठरी में से निकला। वहाँ कोई नहीं था। एक तरफ़ लटकी हुई लालटेन मद्धिम-सी रोशनी कर रही थी। एलिया ने इधर-उधर देखा तो पास ही एक बूटों का जोड़ा दिखाई दिया। उसी समय उसने बिना कुछ सोचे एक बूट उठाकर अपने कोट में छिपा लिया। फिर एक नज़र वहाँ सोए पड़े चौकीदार की तरफ़ देखकर चुपके से फाटक खोलकर वह बाहर निकल गया।
लगभग आधा घंटा नंगे पाँव चलने के बाद उसे बूट पहनने का ख़याल आया। एक पत्थर पर बैठकर वह बूट को कुछ क्षण देखता रहा। आख़िर जब वह बूट पहनकर खड़ा हुआ तो उसके अंदर से आवाज़ आई, 'पतन! घोर पतन!’ लेकिन आवाज़ की तनिक भी परवाह किए बिना वह चल पड़ा, अब वह पहले की तरह तेज़ी से नहीं चल रहा था। उसके क़दम लड़खड़ा रहे थे और वह बार-बार पीछे मुड़कर देखता था कि कोई उसका पीछा तो नहीं कर रहा है।
प्रातःकाल का प्रकाश फैलने लगा तो एलिया का डर और बढ़ गया। उसके दिमाग़ में विचारों ने हलचल मचा दी। उसे लग रहा था कि राह चलते लोग उसकी चोरी भाँप लेंगे और फिर उसके चोर होने की ख़बर चारों ओर फैल जाएगी। आख़िर पकड़े जाने के डर से उसने फिर अपना पुराना बूट पहन लिया और चुराया हुआ बूट सड़क के एक तरफ़ फेंक दिया। तो भी उसका मन शांत न हुआ। रात की घटना रह-रहकर उसके सामने आने लगी। उसे बार-बार लग रहा था कि उस कोठरी के दोनों मुसाफ़िर उसके पीछे आ रहे होंगे। फिर इस ख़याल से उसका दिल काँप उठा कि उसके चोर होने की ख़बर उसकी पत्नी तक पहुँच गई तो अनर्थ हो जाएगा। संपत्ति पाने के पहले ही वह किस अध:पतन को पहुँच गया है!
चलते-चलते वह रुक गया और फिर लौट पड़ा। उसका फेंका हुआ बूट वहीं पड़ा था। उसे देखते हुए उसके मन में हलचल होने लगी। अगर वह उसे छिपा दे या ज़मीन में गाड़ दे तो भी वह चोरी उसकी आत्मा से छिपी तो नहीं रहेगी और वह चोरी उसके पूरे जीवन को कलंकित करती रहेगी...
अचानक उसने बूट उठाया और धर्मशाला की ओर चल पड़ा। वह धीरे-धीरे चल रहा था, ताकि अँधेरा होने पर धर्मशाला में पहुँचे। दिन-भर उसने कुछ नहीं खाया था और बड़ी थकान महसूस कर रहा था। उसके क़दम डगमगा रहे थे।
धर्मशाला में ख़ामोशी थी। उसने रात काटने के लिए जगह ली। फिर मौक़ा पाकर उसने वह बूट वहीं रख दिया, जहाँ से उठाया था और अपनी खटिया पर जाकर लेट गया। लेटते ही वह नींद में डूब गया। सुबह उठने पर उसने बचे-खुचे पैसों से डबलरोटी ख़रीदी और वहाँ से चल दिया।
बड़ा सुहाना मौसम था। एलिया अपना फटा हुआ बूट पहने स्वस्थ मन से चला जा रहा था। आख़िर जब वह अपने चाचा के घर पहुँचा तो पता लगा कि कुछ ही घंटे पहले वह चल बसा था। नौकरानी ने उसे बताया, मालिक ने आपका बहुत रास्ता देखा। तीन दिन पहले उन्होंने आपको तार भी भेजा था। वे कहा करते थे कि आप अकेले ही उनके वारिस हैं, लेकिन आपने उन्हें भुला दिया है। वे आपसे बहुत नाराज़ थे। जब आज सुबह भी आप नहीं आए तो उन्होंने अपनी सारी दौलत मछेरों के अनाथ बच्चों को दे दी।
एलिया लौटकर अपने घर आया। उसकी पत्नी ने सारा हाल सुनकर कहा, अच्छा ही हुआ, जो वह संपत्ति हमें नहीं मिली। जिस संपत्ति के मिलने से पहले ही आदमी अपनी ईमानदारी खो बैठे, उसका न मिलना ही अच्छा है।
eliya kachahri mein bekar sa rahta tha. un dinon log kachahri se door hi rahna pasand karte the. baDe se baDe vakil bhi chhote chhote muqadme lene ke liye mazbur the. eliya ke paas to koi bhi muqadma na aata, phir bhi wo kachahri mein jata aur vahan ekaant mein baithkar apni patni ko sambodhit karke kavitayen likha karta.
ek din raste mein ek parichit gaDivan ne eliya ko rokte hue kaha, main abhi abhi tersnova se aa raha hoon, vahan main tumhare chacha se mila tha. ve sakht bimar hain. eliya ghar lauta to uski patni ghar ke samne dhoop mein khaDi uski pratiksha kar rahi thi. eliya ne chacha ki bimari ki khabar use sunai to uske shaant gambhir chehre par bechaini ki bajay rahasyamyi muskrahat i. use dekhkar eliya ke honthon par bhi muskrahat i.
to main jata hoon, eliya ne kaha. aage wo kuch na bola. patni uske man ki baat samajh gai. chacha marne par apni sari sampatti use de jane vala tha. tabhi usne pati ke phate hue boot ki or dekhte hue puchha, raste ke kharche ka bhi kuch khayal kiya hai?
“iski chinta na karo. mere paas thoDe se paise hain.
eliya apne chacha ke shahr ke liye ravana ho gaya. raste mein wo tezi se chalta hua apne phate boot ke bare mein soch raha tha ki wo use kisi na kisi tarah chacha ke ghar tak pahuncha de to bahut achchha ho.
raat hui to thanD baDhne lagi. eliya ko laga ki uske paanv thanD ko jaise chhune lage hon. usne apne khasta boot ki taraf dekha, jo ab marammat karne ke layaq bhi nahin rah gaya tha. use pahankar chalne mein baDi taklif ho rahi thi. phir ye khayal bhi taklif de raha tha ki aisa boot pahankar chacha ke ghar mein jana beizzti vali baat hogi, lekin koi chara nahin tha. tab wo boot ki or se dhyaan hatakar chacha ki sampatti pane aur bhavishya mein sukhi jivan bitane ke bare mein sochne laga.
ek gaanv aane par wo raat bitane ke liye ek dharmshala mein thahra. kam kiraye mein use ek gandi, chhoti si kothari mili. vahan do vekti pahle se thahre hue the. ve donon hi soe hue the.
eliya apne unhin kapDon mein let gaya, lekin neend na i. usne apne khayalon mein sansar ki sabhi saDkon par aur sabhi gharon mein anaginat boot dekhe, phir to jaise use har jagah boot hi boot dikhai dene lage. akhir use laga ki jaise us kothari mein bhi boot bikhre paDe hon. tabhi wo achanak uth baitha aur sardi se kanpta hua nange paanv baDi narmi se chalta hua apne baghal vale musafi ki khatiya ke paas gaya. uska ek boot usne pahna hi tha ki uske tapte hue paanv mein koi cheez chubhi. usne boot utaar Dala, tabhi kothari ke bahar se use aspasht si avaz sunai di to Dar ke mare uske paanv vahin ke vahin jam gaye. aur usi samay usne apni aatma ki phatkar suni ki wo patan ke raste par ja raha hai. bahar ki avaz jab band ho gai to wo kothari mein se nikla. vahan koi nahin tha. ek taraf latki hui lalten maddhim si roshni kar rahi thi. eliya ne idhar udhar dekha to paas hi ek buton ka joDa dikhai diya. usi samay usne bina kuch soche ek boot uthakar apne coat mein chhipa liya. phir ek nazar vahan soe paDe chaukidar ki taraf dekhkar chupke se phatak kholkar wo bahar nikal gaya.
lagbhag aadha ghanta nange paanv chalne ke baad use boot pahanne ka khayal aaya. ek patthar par baithkar wo boot ko kuch kshan dekhta raha. akhir jab wo boot pahankar khaDa hua to uske andar se avaz i, patan! ghor patan!’ lekin avaz ki tanik bhi parvah kiye bina wo chal paDa, ab wo pahle ki tarah tezi se nahin chal raha tha. uske qadam laDkhaDa rahe the aur wo baar baar pichhe muDkar dekhta tha ki koi uska pichha to nahin kar raha hai.
prataakal ka parkash phailne laga to eliya ka Dar aur baDh gaya. uske dimagh mein vicharon ne halchal macha di. use lag raha tha ki raah chalte log uski chori bhaanp lenge aur phir uske chor hone ki khabar charon or phail jayegi. akhir pakDe jane ke Dar se usne phir apna purana boot pahan liya aur churaya hua boot saDak ke ek taraf phenk diya. to bhi uska man shaant na hua. raat ki ghatna rah rahkar uske samne aane lagi. use baar baar lag raha tha ki us kothari ke donon musafi uske pichhe aa rahe honge. phir is khayal se uska dil kaanp utha ki uske chor hone ki khabar uski patni tak pahunch gai to anarth ho jayega. sampatti pane ke pahle hi wo kis adhahaptan ko pahunch gaya hai!
chalte chalte wo ruk gaya aur phir laut paDa. uska phenka hua boot vahin paDa tha. use dekhte hue uske man mein halchal hone lagi. agar wo use chhipa de ya zamin mein gaaD de to bhi wo chori uski aatma se chhipi to nahin rahegi aur wo chori uske pure jivan ko kalankit karti rahegi. . .
achanak usne boot uthaya aur dharmshala ki or chal paDa. wo dhire dhire chal raha tha, taki andhera hone par dharmshala mein pahunche. din bhar usne kuch nahin khaya tha aur baDi thakan mahsus kar raha tha. uske qadam Dagmaga rahe the.
dharmshala mein khamoshi thi. usne raat katne ke liye jagah li. phir mauqa pakar usne wo boot vahin rakh diya, jahan se uthaya tha aur apni khatiya par jakar let gaya. lette hi wo neend mein Doob gaya. subah uthne par usne bache khuche paison se Dabalroti kharidi aur vahan se chal diya.
baDa suhana mausam tha. eliya apna phata hua boot pahne svasth man se chala ja raha tha. akhir jab wo apne chacha ke ghar pahuncha to pata laga ki kuch hi ghante pahle wo chal bsa tha. naukarani ne use bataya, malik ne aapka bahut rasta dekha. teen din pahle unhonne aapko taar bhi bheja tha. ve kaha karte the ki aap akele hi unke varis hain, lekin aapne unhen bhula diya hai. ve aapse bahut naraz the. jab aaj subah bhi aap nahin aaye to unhonne apni sari daulat machheron ke anath bachchon ko de di.
eliya lautkar apne ghar aaya. uski patni ne sara haal sunkar kaha, achchha hi hua, jo wo sampatti hamein nahin mili. jis sampatti ke milne se pahle hi adami apni imandari kho baithe, uska na milna hi achchha hai.
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स्रोत :
पुस्तक : नोबेल पुरस्कार विजेताओं की 51 कहानियाँ (पृष्ठ 89-92)
संपादक : सुरेन्द्र तिवारी
रचनाकार : ग्रेज़िया मारिया कुसिमा डेमियाना डेलेडा
प्रकाशन : आर्य प्रकाशन मंडल, सरस्वती भण्डार, दिल्ली
हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी
‘हिन्दवी डिक्शनरी’ हिंदी और हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों के शब्दों का व्यापक संग्रह है। इसमें अंगिका, अवधी, कन्नौजी, कुमाउँनी, गढ़वाली, बघेली, बज्जिका, बुंदेली, ब्रज, भोजपुरी, मगही, मैथिली और मालवी शामिल हैं। इस शब्दकोश में शब्दों के विस्तृत अर्थ, पर्यायवाची, विलोम, कहावतें और मुहावरे उपलब्ध हैं।