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मनुष्य को समझाना कठिन है
किसान पिता की/ कन्याव्रत-सी भूखमृगृ-छौने के बिछुड़ने पर / हरिणि की हूक जैसी ही
नारायण सिंह भाटी
कठिन था मेरे लिए
कठिन था मेरे लिए तुम्हारा तर्पणनंगे पाँव चलकर ही पहुँचना था काली के चरणों में