आपकी घड़ी में कितना बजा है
apaki ghaDi mein kitna baja hai
संसार की सारी घड़ियों में
ठीक एक ही समय पर समय एक नहीं होता
स्थान समय का मान बदल देता है
अभी-अभी जब काग़ज़ पर उतर रही है यह कविता
ठीक इसी समय,
कहीं उषा की किरणें अठखेलियाँ कर रही होंगी लताओं से
कहीं सूरज तप रहा होगा किसान के माथे पर
कहीं समुद्र तट पर धूप-स्नान कर रही होंगी जोड़ियाँ
कहीं शाम के धुँधलके में दबोच ली गई होगी कोई नाबालिग़ लड़की
कहीं तख़्त पलट दिया गया होगा
कहीं बेवजह तोपें ग़रज़ रही होंगी
कहीं कैबरे की धुन पर थिरकते होंगे
कारपोरेट के निमोछिया लड़के
कहीं लोग सुरा में जीवन का सार देख रहे होंगे
कहीं कोई प्यासा ठाकुर के कुएँ से
अपमान का घूँट पीकर लौट रहा होगा
कहीं कोई स्त्री पिटी जा रही होगी
सब्जी में नमक अधिक होने के कारण
कहीं इसी समय कोई पिता
प्रिय पुत्र को अग्नि को समर्पित कर लौट रहा होगा
श्मशान भूमि से स्वयं लाश होकर
कहीं इसी समय सात फेरे हो रहे होंगे
और बज रही होंगी शहनाइयाँ
कहीं इसी समय कोई शिशु भर रहा होगा पहली किलकारी
और पंडित जी कर रहे होंगे
जातक के राजयोग की भविष्यवाणी
समय वही है मगर सबके लिए अलग-अलग है
एक ही समय सबके लिए समान नहीं होता
हर पल उम्मीदों की फ़सल बोने वाले!
मुझे यह कभी मत कहना कि
एक दिन सबका समय आता है
संसार में असंख्य लोगों का समय कभी नहीं आता
उनका समय पूरा होने तक भी
घड़ी की सुइयाँ ऊर्जा से होती हैं निर्देशित
इस सत्य को तुम झुठला नहीं सकते
तुम कभी दावे के साथ नहीं कह सकते कि
बारह बजे का मतलब बारह बजना ही होता है
आपकी घड़ी में कितना बजा है
समय पूछने के लिए सबसे सटीक वाक्य है।
- रचनाकार : ललन चतुर्वेदी
- प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
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