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पित्ताशय की पथरी से बातचीत

pittashay ki phathri se batachit

इब्बार रब्बी

इब्बार रब्बी

पित्ताशय की पथरी से बातचीत

इब्बार रब्बी

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    रोचक तथ्य

    सन् 1974 में पथरी की शिकायत हुई। काफ़ी परेशान किया। अस्पताल में भर्ती रहे। दवाओं आदि के कारण पथरी का प्रकोप शांत हुआ, पर वह अंदर ही अंदर पनपती रही और 18 वर्ष बाद पित्ताशय की पथरी बन गई। इस बार भीषण कष्ट था। कविता में उसी ओर संकेत है। (कवि)

    वाह रे गणित

    वाह प्राणिशास्त्र

    सिर्फ़ नौ माह नहीं

    पूरे 18 वर्ष अंदर पाला

    जिसका रक्त पीकर बनी

    किया उसे पाभाल।

    अबोध बच्चे

    देते प्यार

    माँगते प्यार

    समझ आते ही

    माँगते जायदाद

    छीनते अधिकार।

    जवान हो गई तू,

    वोट दे सकती है।

    चुनाव लड़ सकती है,

    वयस्क होते ही,

    आतंकवाद हो गई।

    पटरी से उतरी

    दर्द की गठरी।

    फूल को नहीं,

    विचार को नहीं,

    डिंब नहीं,

    भ्रूण नहीं,

    आग या,

    तूफ़ान नहीं

    किसको कोख में पाला

    दर्द देती तो क्या करती

    पत्थर पड़े अक़्ल पर

    पेट में पत्थर पाला।

    हनुमान के सीने में राम

    मेरे पित्ताशय में पथरी

    त्रेता से कलियुग तक जो अवतारी रहा

    त्रिलोक का स्वामी

    अव्यक्त, अनाम, अगोचर

    वह प्रतीक रह गया

    प्रतिमा मात्र,

    पत्थर हो गया।

    निराकार था साकार हो गया

    मूर्तिपूजकों के देश में और क्या होता!

    सही रहा डार्विन

    कपि का विकास

    कवि में हो गया।

    अपना ही पेट फाड़ना होगा

    इन्फ़ेक्शन से भर जाऊँ

    तुझे निकालना होगा

    कैसी यह प्रसव-पीड़ा

    हाड़-मांस नहीं

    कोरे पत्थर को

    जातक पुकारना होगा।

    स्रोत :
    • पुस्तक : कवि ने कहा (पृष्ठ 119)
    • रचनाकार : इब्बार रब्बी
    • प्रकाशन : किताबघर प्रकाशन
    • संस्करण : 2012

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