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कानन मूंदी रहो निसि वासर

kanan mundi raho nisi wasar

चंद्रकला

चंद्रकला

कानन मूंदी रहो निसि वासर

चंद्रकला

और अधिकचंद्रकला

    कानन मूंदी रहो निसि वासर, आन उपाय व्याधि टरैगी।

    कै धसि भौनन बैठि रहौ तु, दामिनि सी उर आय अरैगी॥

    'चंद्रकला' किल चूकि चले पर, आय व्यथा सब शीश परैगी।

    नींद छुधा तिस हू नसिहें कहुं, बाँसुरी तान जो कान परैगी॥

    स्रोत :
    • पुस्तक : साहित्य प्रभाकर (पृष्ठ 497)
    • संपादक : महालचंद बयेद
    • रचनाकार : चंद्रकला
    • प्रकाशन : ओसवाल प्रेस कलकत्ता
    • संस्करण : 1937

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