सन् 1664 में मुझे तीसरी बार लंदन जाने का मौका मिला। भारतीय दूतावास के सहयोग के कारण पहले की यात्राओं की अपेक्षा इस बार देखने सुनने की ज़्यादा सुविधाएँ मिली। लोगों के रहन-सहन और दुकानों की सजावट देखकर अदाज़ा होता था कि पिछले पंद्रह वर्षों में ब्रिटेन ने महायुद्ध के भीषण धक्के से अपने को कितना अधिक संभाल लिया है। यहाँ के होटलों की हफ़्तों की नहीं; महीनों की अग्रिम बुकिंग बताती थी कि पिछले वर्षों में युद्ध ज़र्ज़रित ब्रिटेन की आर्थिक स्थिति कितनी अधिक मज़बूत हो उठी है।
सबसे पहले मैं भारतीय राजदूत श्री जीवराज मेहता से मिलने गया। उनका निवासस्थान बहुत ही सुंदर उद्यान के बीच है। भारत और ब्रिटेन के लंबे अर्से तक पारस्परिक संबंध रहे है। उन के अनुरूप ही हमारे दूतावास का भवन है।
जीवराज भाई और श्रीमती हंसा मेहता से मेरा पूर्व परिचय था। 80 वर्ष की आयु में भी वह स्वस्थ और फुरतीले है। इस कारण उन के व्यक्तित्व में सहज आकर्षण है। वह बड़ी आत्मीयता से मिले। गुजराती ढंग के कलाकंद, डोसा और चिवड़े का सुस्वाद जलपान कराया। भारत की राजनीतिक गतिविधियों के विषय में भी उन्होंने चर्चा की।
उसी दिन 12 बजे दोपहर को उन्होंने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस बुलाई थी। ब्रिटेन की प्रेस चर्चा के सिलसिले में उन्होंने मुझे सावधान कर दिया कि यहाँ के पत्रकार बड़े चतुर होते हैं, शब्द और वाक्यों पर मनचाहे रंग की कलई चढ़ाने में पटु होते हैं, इसलिए इन के प्रश्नों का उत्तर बहुत सावधानी से देना चाहिए।
निर्धारित समय पर प्रेस कॉन्फ्रेंस हुई। दस-बारह पत्रकार थे। सभी वहाँ के प्रमुख समाचारपत्रों या न्यूज़ एजेंसियों से सबंधित थे। मेहता जी की सलाह सचमुच अच्छी रही। मैंने लक्ष्य किया कि अँग्रेज़ों की वाक्चातुरी भी एक कला है। इसके लिए अनुभव ज़ोर अभ्यास दोनों आवश्यक है। हमने अपनी ओर प्रभुदयाल जी को प्रधान बना लिया था। सभी प्रश्नों का उत्तर वे बहुत ही सक्षेप में किंतु स्पष्ट दें रहे थे।
हमने महसूस किया कि कश्मीर के मामले में अँग्रेज़ों के दिमाग़ में एक विशेष दृष्टिकोण बैठ गया है। अन्य बातों में तो उन्हें हम संतोष दिलाने में सफल हुए, किंतु जहाँ तक कश्मीर का सवाल था, वे हमारी युक्ति और तर्क को स्वीकार करने को ही तैयार नहीं थे। उन की सहानुभूति पाकिस्तान के साथ थी। उन का यह तर्क था कि जब श्री नेहरू ने कश्मीर में जनमत संग्रह स्वीकार किया और उसे पूरा आश्वासन दिया था तो इसे भारत क्यो नहीं मानता? दोनों देशों के बीच आपसी समझौते और अमन कायम रखने के लिए यह निहायत ज़रूरी है।
प्रभुदयालजी उन्हें बराबर समझा रहे थे कि इन वर्षों में पाकिस्तान और भारत के आपसी संबंधों में काफ़ी कटुता आ गई है। कश्मीर और भारत युगों से एक-दूसरे से भाषा, संस्कृति और भौगोलिक दृष्टि से बंधे रहे हैं, अंत अब जनमत का प्रश्न ही नहीं रह जाता। पाकिस्तान कुछ धर्मांधों को उभारकर वहाँ अशांति पैदा करता रहता है। भारतीय व्यवस्था के अंतर्गत प्रत्येक कश्मीरी सुखी है, उस की आर्थिक दशा भी सुधरी है। दूसरी ओर पाकिस्तानी व्यवस्था के नीचे, कशमीरी जनता पीड़ित है, उसका दमन भी किया जाता है।
इसके अलावा जब तक पाकिस्तान कश्मीर के उस अचल से हट नहीं जाता जिस पर उस ने ज़बरदस्ती कब्ज़ा जमा रखा है, तब तक नहीं। यहाँ जनमत संग्रह का कोई अर्थ नहीं।
पता नहीं क्यों ब्रिटिश पत्रकार इसे मानने से इनकार करते रहे। भारत के विकास और आर्थिक उन्नति के संबंध में उन लोगों की धारणा थी कि इन वर्षों में हमारे देश ने प्रगति की है अवश्य, फिर भी यदि हम अपनी बढ़ती हुई जनसंख्या की बढ़ोतरी को नहीं रोक पाएँगे तो हमारी योजनाएँ निष्फल सिद्ध होंगी। उनका ख़याल था कि इस दिशा में भारत का प्रयास शिथिल रहा है।
दोपहर के बाद जूट एक्सचेंज देखने गया। मैं लंबे समय तक पटसन का व्यवसायी रहा—हूँ आकर्षण स्वाभाविक था। जूट के क्रय-विक्रय के लिए यह एक्वेज़ विश्व में सबसे बड़ा केंद्र माना जाता है। प्रायः सभी देशों को अपना कच्चा पाट यहाँ के नियमों से ख़रीदना पड़ता है। यहाँ मेरे मित्र बाबूलाल सेठिया मिल गए। 1635 में साधारण स्थिति में लंदन आए ये ओर यहीं बस गए। अब तो करोड़ो रुपए कमा लिए है और यहाँ के बड़े व्यापारियों में गिनती है। विदेशों में पुराने साथियों के मिलने पर बड़ी ख़ुशी होती है। अगले दिन उनके घर भोजन का निमंत्रण मिला। बेसन की रोटी और काचरी के साग में पकवानों से कहीं अधिक स्वाद मिला।
शाम के बाद पिकाडिली सर्कस पहुँचा, यह फ़ैशन, रोशनी और रईसी की जगह है। लंदन सज उठता है। रंग-बिरंगे नियोन के प्रकाश इंद्रधनुष से खेलते रहते हैं। कलकत्ता का पार्क स्ट्रीट और दिल्ली का कनॉट प्लेस इसकी थोड़ी सी झाकी पेश करते हैं। यहाँ नियोन के तरह-तरह के विज्ञापनों के बीच ओवलटीन और बोवरील की विशेषताएँ देखीं। ओवलटीन में अंडे और बोवरील में गोमास का रस रहता है। हमारे यहाँ सनांतनी घरों में भी इन दोनों का प्रयोग होता है।
सोहो का महल्ला पिकाडिली के पास ही है। बदनाम जगह है। दुनिया के हर शहर में इस प्रकार के स्थान होते है, लंदन कोई अपवाद नहीं। इंसान में कमज़ोरियाँ होती है। ग़म को ख़ुद बुलाता है और इसे ग़लत करने के लिए ग़लतियाँ करता जाता है। हमारे यहाँ समाज के भय से लोग लुकछिप कर करते है, जबकि यूरोप में इसे जीवन की आवश्यकता मानकर बिना झिझक के। लंबेचौडे पुलिसमैनों को चक्कर लगाते देखा। निर्विकार से घूम रहे थे। शायद उन्हें हिदायत थी कि आने-जाने में दखल न दें। बस इतना ध्यान रखे कि दंगा-फसाद, राहजनी और गुंडागर्दी न हो। ख़ासतौर से किसी विदेशी को ऐसी परेशानी में न पड़ना पड़े। सोहो में सब कुछ चलता है। वैध-अवैध सभी तरह की नशीली चीज़ों के अड्डे है, जिन के सचालक ज़्यादातर चीनी है। चफलो की भी कमी नहीं। कानून से बचने के लिए इन्हें क्लबों के नाम पर चलाया जाता है। ग्राहक के पहुँचते ही उसे सदस्य बना लेते हैं और कार्ड दे दिया जाता है।
इसी ढंग के एक क्लब में जा पहुँचा, दस रुपए दे कर सदस्य बना। शराब और जुए का दौर चल रहा था। काउंटर पर एक मोटी सी औरत बैठी थी। ग्राहको में अधिकांश पिए हुए थे। एक वृत के चारों ओर टेबले लगी थी और उनके इर्द-गिर्द कुरसिया। युवतियाँ शराब लाकर ग्राहकों को दे रही थी। कारबार बिलकुल रोकड़ी था, यानी नकद। जो लड़की जितना पिलाती थी, कमीशन भी उसी मुताबिक बनता था। रोशनी धीमी थी। कौन आया और कौन गया, आसानी से जाना नहीं जा सकता था। इस पर सिगरेट के धुएँ का कुहरा।
बाजे की धुन पर एक नंगी लड़की नाच रही थी। अँग्रेज़ों के अलावा अन्य देशों के लोग भी थे, कुछेक भारतीय भी। दो-तीन टेबल हटकर दो सिख युवक पीकर धुत हो चुके थे। दोनों के सामने लड़कियाँ प्यालियाँ भरकर लातीं, वे उनकी कमर में हाथ डालकर पास खींचते और गोद में बैठा लेते थे। लड़कियाँ प्यालियाँ होंठो से लगा देती थी और बढ़ावा देती जा रही थी।
मैं हेरत से यह सब देख रहा था, न जाने कब एक लड़की मेंरे बगल में आई, मुझे पता भी न चला।
“क्या पसंद करेंगे, हल्की या कड़ी,” बड़ी मधुरता से उस ने पूछा। मैंने देखा उन्नीस-बीस साल की युवती है, छरहरा बदन, ख़ूबसूरत नाक-नक्शा।
“पीना नहीं, देखना है” मेरे मुँह से निकल गया। फिर जगह का ख़याल हो आया। मैंने कहा मुझे सिर्फ़ कोल्ड ड्रिंक में दिलचस्पी है।
उसने बड़ी मायूसी से मेरी ओर देखा और दूसरे ग्राहक के पास चली गई। मैंने देखा-काउंटर पर बैठी मोटी मालकिन गोल-गोल आँखों के नीचे होठ बिचकाए मुझे देख रही है। थोडी देर बाद लड़की ने लैमनेड लाकर मेंरे सामने रख दिया। और कहने लगी। “शायद आप गलत जगह आ गए है।”
लैमनेड ख़तम कर मैं उठा देखा दोनों सिख चित्त हो चुके है। लड़खड़ाते हुए वे लड़कियों को लेकर पास के कमरों में जा रहे थे।
क्लब से बाहर फाटक पर आ गया। देखा, लड़की भी पीछे-पीछे आ रही है। मैंने उस से कहा, “तुम्हारा समय नष्ट होगा कोई फ़ायदा नहीं।”
बड़े दर्द से उस ने कहा, “आप मुझे जैसा सोचते हैं मैं वैसी नहीं हूँ। आख़िर छात्रा हूँ। उसने बताया कि सोहो में थोड़ी-सी देर के लिए आने से उस की अच्छी आमदनी हो जाती है। इस से उसका और उसकी माँ का रहने-खाने का ख़र्च चल जाता है और कुछ पैसे बचा भी लेती है। आगे चलकर वह सम्मानपूर्वक अच्छी ज़िंदगी बिताएगी पढ़ाई पूरी कर आस्ट्रेलिया जाकर जीवन का नया अध्याय शुरू करेगी।
एक से एक नीचे स्तर का मनोरंजन सोहो के क्लबों में है। सोचने लगा, ‘पता नहीं अँग्रेज़ किस आधार पर भारतीयों को असभ्य कहते थे।’
सोहो का एक दूसरा रूप भी है। यहाँ के सस्ते रेस्तराओं में बैठकर लेखक और विचारकों ने नई विश्व प्रसिद्ध कृतियों का सृजन किया है। इस युग का विख्यात चिंतक और क्रांतिकारी कार्ल मार्क्स यहीं के एक गंदे मकान में रहता था। यहीं उसने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक ‘दास कैपिटल’ लिखी थी, जिसने विश्व की आधुनिक अर्थनीति और राजनीति की धारा में एक ऐसी उथल-पुथल की सृष्टि की है, जिस का परिणाम अंततोगत्वा क्या होगा, यह कहना कठिन है। जिस अँधेरी कोठरी में वह रहता था और जिस रेस्तरां में चाय पिया करता था, उसे मैंने देखा। आज तो यह स्थान संसार के कम्युनिस्टों के लिए मक्का-मदीना है।
सोहो की चहल-पहल रात के दस बजे से तीन बजे तक रहती है। ब्रुशेल्ज़ और पेरिस में भी रात्रि क्लब और इस ढंग के मुहल्ले पर यहाँ के नज़ारे उनसे कहीं भद्दे और वीभत्स बारह बज रहे थे, होटल के लिए लौट पड़ा। तीन दिन बाद हमें स्विट्ज़रलैंड जाना था। समय कम था। अतएव, घूमने का प्रोग्राम भी सीमित रखा। दूसरे दिन पेटिकोट स्ट्रीट, फ्लीट स्ट्रीट और फ़ॉयल्ज़ की दुकान देखने का निश्चय किया।
पेटिकोट स्ट्रीट कलकत्ता के चोरबाज़ार की तरह है। वैसे न तो चोरबाज़ार में ही चोरी की चीज़ें बिकती हैं न यहाँ। फिर भी यहाँ अजीबोग़रीब पुरानी चीज़ें बेशुमार इकट्ठी हैं। कभी-कभी तो बड़ी अमूल्य और दुर्लभ वस्तुएँ बहुत सस्ते दामों में हाथ लग जाती है।
हर रविवार की सुबह यह बाज़ार खुलता है। पुराने कपड़े, छाते, जूते, फ़र्नीचर, हथियार, तस्वीरें, छड़ियाँ, घरेलू सामान यहाँ के फुटपाथों की दुकानों में मिलेंगे।
कुछ लोगों को शौक़ रहता है इन दुकानों के चक्कर लगाने का, क्योंकि मोक़े-बेमौक़े उनके पसंद की नायाब चीज़ सस्ते दामों में मिल जाती है।
यहाँ के दुकानदार बड़े बातूनी और चतुर है। कहते है कि एक बार विश्वप्रसिद्ध साहित्यकार बर्नाड शा ने पुरानी पुस्तकों की एक दुकान में रखी अपने ही एक नाटक की प्रति का दाम पूछा। दुकानदार ने कहा, “यूँ तो यह पुस्तक एक बहुत बड़े आदमी की कृति है लेकिन किसी बेवक़ूफ़ ने इसके पृष्ठों पर टिप्पणियाँ कई जगह लिख दी है, इसलिए महज़ चार शिलिंग में आपको दे दूँगा।” शा ने किताब खोलकर देखी तो अचंभे में रह गए। किताब की यह प्रति उन्होंने अपने हस्ताक्षर करके एक मित्र को भेट की थी। विशेष रूप से अध्ययन के लिए पृष्ठों के हाशिए पर ख़ुद टिप्पणियाँ लिखी थी। शा ने चार शिलिंग देकर वह किताब ख़रीद ली। आज वह शायद पचास हज़ार तक में बिक जाए तो कोई ताज्जुब नहीं।
चेयरिंग क्रास की नुक्कड़ पर फॉयल्ज़ की बहुत बड़ी दुकान है। पुस्तकों की ऐसी दुकान शायद ही विश्व में कहीं हो। इसकी विशेषता यह है कि कोई ज़रूरी नहीं कि आप किताब ख़रीदे। कुर्सियाँ लगी हैं, सुबह से शाम तक यहाँ बैठकर मनचाही पुस्तक बिना शुल्क दिए पढ़ सकते हैं। इसके लिए हर तरह की सुविधा है। सैकड़ों वर्षों से यह दुकान यहाँ है। ब्रिटेन के बड़े-बड़े कवि और लेखकों ने यहाँ बैठकर अपनी पुस्तकें लिखी है। किताबों का शौक़ मुझे भी है। बड़े-बड़े शहरों में बहुत-सी दुकानें भी देखीं हैं। मगर, ऐसी दुकान और विभिन्न विषयों पर इतनी तरह की पुस्तकें मैंने एक ही जगह उपलब्ध कहीं नहीं देखी थी। इसलिए किताबों के देखने में काफ़ी समय लग गया। यहाँ से प्राकृतिक चिकित्सा की कुछ पुस्तकें जसीडीह के अपने मित्र महावीरप्रसाद पोहार के लिए ख़रीदी।
दोपहर का भोजन लायज कारनर में किया। लायज की सैकड़ों रेस्तरां लंदन में है। इनमें आमिष और निरामिष दोनों प्रकार के भोजन बहुत कम ख़र्च में मिल जाते है। इसके अलावा, केक, पेस्ट्री, चॉकलेट आदि की भी बहुत बड़ी बिक्री है। इन जलपानगृहों के मुनाफ़े के कारण लायज के मालिक की गिनती ब्रिटेन के प्रमुख धनिकों में है।
भोजन करके फ्लीट स्ट्रीट गया। अख़बारों का मुहल्ला है, पत्रकारों की दुनिया है। ब्रिटेन में प्रति व्यक्ति संसार के अन्य देशों से ओसतन ज़्यादा अख़बार पढ़े जाते है यहाँ भी अधिकाश समाचारपत्रों पर हमारे देश की तरह कुछ धनी व्यक्तियों का अधिकार है। सैकड़ों अख़बार तो केवल लंदन से ही प्रकाशित होते है। इनमें से किसी-किसी की चालीस-पचास लाख प्रतियाँ छपती हैं। रविवार अथवा छुट्टी के दिनों में दैनिक पत्रों की पृष्ठ संख्या पचास-साठ तक पहुँच जाती है। यदि रद्दी के भाव भी इन अख़बारों को बेचा जाए तो इनके दाम वसूल हो जाते है।
दैनिको के अलावा, अलग-अलग विषयों पर साप्ताहिक, पाक्षिक और मासिक पत्र भी बहुत बारी संख्या में निकलते है। बालक, किशोर, युवक, वृद्ध और इसी तरह भिन्न-भिन्न आयु की महिलाओं के लिए अलग-अलग पत्र प्रकाशित होते हैं। टाइम्स, गार्जियन और न्यू स्टेट्समैन जैसे गंभीरपन तो दस-बीस ही होंगे। अधिकांश पद बड़े-बड़े हैडिंग देकर सनसनीखेज़ समाचार देते है। जैसे मिस कोलर के मुकदमें का प्रमुख गवाह आज दोपहर में हालबोर्न की बस से ईस्ट बीप की तरफ़ जा रहा था, बकरी के बच्चे ने कुत्ते की पिल्ले का कान चबा लिया, आदि।
इन हैडलाइनों को मोटे-मोटे अक्षरों में कार्ड बोड पर छपवाकर अख़बार के एजेंटों को अपनी-अपनी दुकानों या स्टालों पर टागने के लिए देते हैं। लोगों की निगाह पड़ी कि दौड़े ख़बर पढ़ने। मेरी समझ में नहीं आ रहा कि कीलर का गवाह किस बस से कहा गया और कुत्ते के पिल्ले का काम बकरी के बच्चे ने काट लिया तो इस में पाठकों के काम की कौन-सी बात है। मगर यहाँ ऐसे ही पत्र ज़्यादा बिकते हैं। नंगी तस्वीरों के तथा कामोद्दीपक विषयों के मासिक या साप्ताहिक पत्रों के ग्राहक बहुत बड़ी संख्या से है।
प्रमुख पत्रों के संवाददाताओं की बड़ी इज़्ज़त है और वे मेहनत भी ख़ूब करते हैं। समाचारपत्र अपने संवाददाताओं को ख़तरे की जगहों पर भी भेजते हैं, ताकि आँखों देखा सच्चा हाल पाठकों तक पहुँचाया जा सके। पत्रकार भी बड़े साहसिक होते है। युद्ध के मोर्चों पर जाकर वहाँ की गतिविधि का विवरण भेजना कम ख़तरे का काम नहीं। कभी-कभी कइयों को जान से हाथ धोने पड़े है। विशिष्ट संवाददाताओं के पास तो अपने निजी हेलिकोप्टर या छोटे हवाई जहाज़ रहते है, जिस से घटनास्थल पर शीघ्र ही पहुँचने में सुविधा रहे।
यहाँ परिवार के सदस्य अपनी-अपनी रुचि के अनुसार अख़बार ख़रीदते है। यदि घर में छः व्यक्ति है तो छः पत्र रोज़ाना आएँगे ही, कई अख़बारों के तो दिन में छः-सात संस्करण तक निकलते हैं। इन में से किसी-किसी की करोड़ों रुपए की वार्षिक आय केवल विज्ञापनों से होती है।
आज हालांकि ब्रिटेन दुनिया में पहली श्रेणी का राष्ट्र नहीं रहा, फिर भी अख़बारी दुनिया में फ्लीट स्ट्रीट और उसके संवाददाता प्रथम श्रेणी में आते है। भाषा की चटक, कार्टून और पवन पत्रकारिता में अब भी ब्रिटेन से फ्रांस, अमेरिका और मास्को को बहुत कुछ सीखना है और हमें भी।
फ़्लीट स्ट्रीट से हम ब्रिटिश पार्लियामेंट (संसद भवन) देखने गए। हम अपने देश के संसद सदस्य थे, इसलिए बाहर के अधिकारियों ने हमारी अच्छी ख़ातिर की, बैठने के लिए विशेष स्थान दिया। पार्लियामेंट आज जिस जगह पर है, वहाँ पहले वेस्टमिंस्टर पैलेस नामक प्रसाद था। वर्तमान संसद भवन 15वीं शताब्दी के अंत में बना था। बीच-बीच में कई बार इस में आग लगी। फलत: कुछ न कुछ रद्दोबदल होते रहे। अँग्रेज़ ज़माने के साथ बदलते ज़रूर है, मगर अपनी संस्कृति के कट्टर प्रेमी होते हैं। अपने संसद भवन की मरम्मत और सुधार में उन्होंने इस बात का ख़याल रखा कि उस की मौलिकता नष्ट न हो। इसलिए आज भी संसद भवन पहले के रंगढंग में है।
यों तो हम ने पुस्तकों में ब्रिटिश पार्लियामेंट भवन के चित्र पहले ही देखे थे, किंतु यहाँ इसे प्रत्यक्ष देखकर बीते हुए ज़माने की बाते एक बार दिमाग़ में घूम गई। इन्हीं में से किसी ‘एक कुर्सी पर राबर्ट क्लाइव और वारेन हेस्टिंग्स ने बैठकर भारत में अपने किए गए कुकृत्यों पर बहस सुनी होगी। सन् 1858 में इसी भवन में कानून बनाकर भारत को ब्रिटेन की रानी विक्टोरिया की पूर्ण अधीनता स्वीकार करने के लिए बाध्य किया गया था। भारत के शिल्पोद्योग को कुठित करने के लिए नाना प्रकार के कानून-क़ायदें इसी संसद ने बनाए और अंग्रेज़ी व्यापार को भारत में अनेक तरह से संरक्षण मिले।
जो भी हो, ब्रिटिश पार्लियामेंट का इतिहास अपने में अनोखा है। फ़्रांस में इससे भी पहले संसद की स्थापना हो चुकी थी, किंतु वहाँ के राजाओं ने उसकी सत्ता को सर्वोच्च नहीं माना। ब्रिटेन में राजाओं ने समय-समय पर संसद के अधिकारों का अतिक्रमण करने के प्रयत्न किए थे, लेकिन जनमत के सामने उन्हें भी सिर झुकाना पड़ा।
1642 में अपने सम्राट चार्ल्स प्रथम के शिरच्छेद का आदेश संसद ने दिया। सन् 1636 में एक वर्ष के अंदर ही सम्राट अष्टम एडवर्ट को राजमुकुट त्यागने के लिए बाध्य किया गया। एडवर्ड साधारण घराने की तलाकशुदा महिला से विवाह करना चाहते थे। ब्रिटिश पार्लियामेंट ने स्वीकृति नहीं दी। एडवर्ड के सामने सिंपसन या सिंहासन दोनों में से एक चुनना था।
यद्यपि विधानत ब्रिटिश सम्राट ही सार्वभौम सत्ता का अधिकारी है, फिर भी परंपरा का पालन ब्रिटेन के शासक करते आए है। संसद के बनाए कानून-क़ायदे और उस के निर्णय को वे सदैव मानते आए हैं।
हम जिन दिनों वहाँ थे, उन दिनों अनुदार दल की सरकार थी। प्रधानमंत्री थे लाई मैकमिलन। ब्रिटेन में हमारे यहाँ की तरह अनेक राजनीतिक दल नहीं है। अनुदार दल और श्रमिक दल ये दो ही मुख्य है। श्रमिक दल है ज़रूर, पर यह साम्यवादी या मार्क्सवादी नहीं है। विदेशों से निर्देश और प्रेरणा प्राप्त करने वाले व्यक्ति या दल को यहाँ जनता प्रथम नहीं देती, भले ही वह क्यो न भूलोक में स्वर्ग उतार लाने का पट्टा लिख दे।
विरोधी दल को भी शासक दल और जनता, दोनों के द्वारा मान्यता और प्रतिष्ठा मिलती है, क्योंकि उनके द्वारा स्वस्थ विरोध एवं आलोचना होती है।
हम जिस दिन संसद गए, वहाँ प्रोफ़्यूमों कार्ड पर बहस हो रही थी। स्तर काफ़ी ऊँचा था। ऐसा लगता था कि प्रत्येक सदस्य पूरी जानकारी करके आता है। विरोधी सदस्य इस कार्ड की सारी ज़िम्मेदारी पूरे मंत्रीमंडल पर थोपना चाहते थे, जब कि सरकारी दल के नेता मंत्रीमंडल को इससे मुक्त रखना चाहते थे। उनका कहना था कि एक व्यक्ति की कमज़ोरी के लिए सारे के सारे दोषी क्यो ठहराए जाए?
संसद भवन देखकर हम लोग बस से लंदन के उस अचल को देखने गए, जो ‘ईस्ट एंड’ के नाम से मशहूर है। यह ग़रीबों की बस्ती है। इसके बारे में पहले भी सुन चुका था, प्रत्यक्ष जो कुछ भी देखा वह उससे कहीं ज़्यादा था और विचारोत्तेजक भी। यहाँ से क़रीब पौन मील की दूरी पर ही डोर चेस्टर और पार्कलेन जैसे महँगे होटल, बकिंघम पैलेस, रिजेट स्ट्रीट व बोड स्ट्रीट की महँगी दुकानें हैं। लगता है जैसे ईस्ट एंड कोई अभिशप्त स्थान है। लंदन बदला पर यह नहीं बदल सका।
यहाँ है कीचड़ और गंदगी भरे रास्ते, मैले-फटे वस्त्र पहने मुरझाए पीले चेहरे और ज़िंदगी के बोझ ढोते हुए स्त्री-पुरूप, बच्चे, पुरानी सस्ती चीज़ों की दुकाने, तन का सौदा करती चलती फिरती स्त्रिया। ख़ूबसूरत मासूम बच्चें और किशोर अपनी माँ-बहनों के लिए ग्राहक ढूँढ़ने को तैयार, गांजा, अफ़ीम, चडू, चरस आदि अवेध नशों की पुड़िया पहुँचाने को तत्पर। महज़ इसलिए कि पैसे मिलेंगे। पैसे चाहिए जीने के लिए।
अजीब-सी घुटन थी विचित्र दृश्य था। इससे तो सोही कही बेहतर था। यहाँ की एक दुकान में देखा, कुछ लोग अपने सामान बंधक रखकर रुपए ले रहे थे। सामान में पुराने कोट, पतलून और कमीज़ें तक थी।
ईस्ट एंड बंदरगाह के नज़दीक है। यही इसका सब से बड़ा अभिशाप है। सभी बंदरगाहों के आसपास ऐसी बस्तियाँ होती हैं। महीनों घर से दूर समुद्र में बिताने के बाद मल्लाह और नाविक हर जगह जुटते हैं। हमारे देश कलकत्ता में भी खिदिरपुर इसी प्रकार का मुहल्ला है, किंतु वहाँ ऐसी छूट और सुविधा नहीं है। यहाँ देखा विदेशी मल्लाह और नाविक भाँति-भाँति की पोशाकों में चक्कर लगा रहे है। शराब की दुकानों में लड़कियों को लिए बैठे है और चिल्ला रहे है। नशे में यहाँ झगड़े और मारपीट होते रहना मामूली बात है, दैनिक वारदाते हैं।
ऐसी जगह पर चीनियों की वन आती है। कलकत्ता के चीनी मुहल्ले के बारे में हम ने सुना था यहाँ भी देखा। चीनी चोरी के कारबार में दक्ष होते हैं। चडू और चरस के अड्डे यहाँ भी उन्हीं के चलते है। सैकड़ों वर्षों से हर देश में उनका यही धंधा रहा है। हमें पहले ही से सावधान कर दिया गया था, इसलिए इन अड्डो पर मैं नहीं गया। इच्छा तो बहुत थी कि ख़ुद जाकर नज़ारा देखूँ मगर सूत्र न था और अकेले जाने में ख़तरा, इसलिए मन की मन में रह गई।
रात दस बजे हम होटल वापस लौटे अंतिम दो-तीन घंटों में जो कुछ देखा, उससे बहुत आश्चर्य नहीं हुआ। ब्रिटेन में कहीं ज़्यादा संपन्न देश है अमरीका। वहाँ न्यूयार्क के हारलेम मुहल्ले का भी नज़ारा ईस्ट एंड जैसा था। फ़र्क़ केवल यही था कि इतनी ग़रीबी और गंदगी वहाँ नहीं थी।
हमें सूचना मिली कि श्री घनश्याम दाम बिडला अमरीका में लौट आए है। दूसरे दिन सुबह ग्रोसवेनर होटल में उनसें मिलने गए। लंदन के सबसे महँगे होटलों में यह माना जाता है। उनके साथ बोड स्ट्रीट की चमड़े के सामान की एक दुकान में गया। कई तरह के बक्स, हैंड बैग और पोर्टफ़ोलियो देखे। कीमत डेढ़ में तीन हज़ार तक अधिक कीमत का कारण पूछा तो सेल्समैन ने शाइस्ता से मुस्कुरा कर बताया हमारी यह दुकान लगभग 250 वर्षों से आप लोगों की ख़िदमत करती आ रही है। डिज़रैली ग्लैडस्टोन जर्मन सम्राट कैंसर विलियम जार्ज बर्नाड शा तथा विस्टन चर्चिल जैसे मूर्धन्य महानुभावों की सेवा कर उनकी प्रशंसाएँ अर्जित करने का हमें सौभाग्य प्राप्त हुआ है। हमारे यहाँ बने माल में शिकायत का मौका शायद ही मिले। हम बेहतरीन चीज़ें ख़रीदते है और सुदृक्ष कारीगरों को अच्छी मज़दूरी देकर तैयार करते है। इसलिए हमें आप को संतोष देने का पूरा विश्वास हैं।
बिडलाजी ने क़रीब दो हज़ार रुपए में एक पोर्टफ़ोलियो बैग ख़रीदा। मुझे लगा कि मोलभाव करने में शायद कीमत कुछ कम हो सकती थी पर ख़रीददार भी बड़ा और दुकान भी ऊँची दोनों ही इसे अच्छा नहीं समझते होंगे।
दूसरे दिन अकेला ही वूर्ल्थवर्थ के चैन स्टोर्स में गया यहाँ उसी तरह की पोर्टफ़ोलियों के दाम 100 व 125 रुपए थे। शायद क्वॉलिटी में कुछ फ़र्क़ था ज़रूर पर कीमत के अनुपात से नहीं के बराबर। यहाँ कीमत है दुकान की साख पर बड़ी-बड़ी दुकानों में जो फल तीन या चार रुपए पौंड में मिलते हैं बाहर सड़को पर देने वालों में रुपए सवा रुपए में मिल जाएँगे। हम ने देखा वर्षा और ठंड की परवा किए बिना वे रात के दस-ग्यारह बजे तक ठेलों में फल, सूखे मेवे इत्यादि बेचते रहते हैं।
आज प्रभुदयालजी साथ नहीं थे, इसलिए घूमने-फिरने में स्वतंत्रता थी। चेयरिंग क्रॉस में बेरी ब्रदर्म की दुकान पर क्यों सी लगी देखी। मैं भी खड़ा हो गया। यह शराब की प्रसिद्ध दुकान है जो पिछले 365 वर्षों में लंदन में इसी जगह पर है। इसके ग्राहकों में अनेक देशों के राजे, महाराजे शेख़, सुलतान, मिनिस्टर राजनीतिज्ञ और सेनाधिकारी रहे हैं। इन लोगों के निजी हस्ताक्षर से युक्त तसवीरें दुकान के मालिक ने सजा रखी है। इनका दावा है कि महारानी विक्टोरिया के परदादा के समय की शराब इन के यहाँ मिल जाएगी।
लगभग उसी ज़माने का एक बेडौल-सा तराज़ू भी वहाँ देखा। इस पर किसी समय अंगूर जौ और गुड़ तौले जाने थे, आजकल ग्राहकों को इस पर नि:शुल्क अपना वज़न लेने की छूट हैं। इस कोटे के बारे में बताया गया कि 350 वर्षों के इस पुराने काटे का वज़न तोले तक सही उतरता है। एक ओर पुराने ज़माने के बटखरे रखे थे और दूसरी ओर लोहे की साँकलों में झुलते हुए पलड़े पर स्त्री-पुरुष बारी-बारी में बैठकर अपना वज़न कर रहे थे। हँसी और चुहल का वातावरण था। मैं भी क्यों में अपनी बारी आने पर पलड़े पर बैठ गया। नीचे उतरते ही वहाँ की सेल्स गर्ल ने मुस्कुराकर वज़न का सुंदर कार्ड दिया और बेहतरीन क़िस्म की शराब का एक पेग भी शराब से हमे हमेशा परहेज़ रहा है, पर वहाँ ‘ना’ नहीं कर सका। बहरहाल, पीने के बाद उर्दू का एक शेर ज़रूर याद आया।
“जाहिद शराब पीने से क़ाफ़िर बना में क्यों,
क्या एक चुल्लू पानी में ईमान वह गया?”
हालाँकि इस व्यवस्था से प्रतिदिन इनका बहुत ख़र्च होता होगा लेकिन मेरा ख़याल है, प्रचार की दृष्टि निसंदेह लाभदायक है। पश्चिमी देशों में विज्ञापन का बड़ा महत्व है। आदम के ज़माने के काटे पर निःशुल्क वज़न करने के बाद इस एक पेग’ के मुफ़्त बाँटने पर उनकी बिक्री बहुत बढ़ जाती है। हमारे यहाँ चाय का प्रचार भी इसी तरह से हुआ था। मैंने देखा, वहाँ जाने वाले सभी कुछ न कुछ ख़रीद करते ही है। मेरी तरह खाली हाथ तो एकआध ही आता होगा।
अगले दिन भी ब्रजमोहन बिडला से मिलन डारचेस्टर हॉटन गए। बड़ी चहल-पहल था। लंबे चोगे पहने अरब काफ़ी संख्या में इधर-उधर आ जा रहे थे। पता चला, कुवैत के कोई शेख़ वहाँ ठहरे है। उन्होने इस महँगे होटल का एक पूरा तल्ला ले रखा है, क्योंकि इन के मुसाहिबों और बेगमों की एक पूरी टोली इन के साथ आई है। मुझे पचीस वर्ष पहले के भारतीय राजाओं की याद आ गई। वे भी तो यहाँ आ कर इस तरह बेशुमार दौलत लुटाते थे। ऐश और मौज में ग़रीब भारत के करोड़ो रुपए ख़र्च कर डालते थे कभी-कभी तो लाखों रुपए के कुत्ते ही ख़रीद लेते थे और इनकी संभाल के नाम पर सुंदर लड़कियाँ भी ले जाते थे। सोचने लगा, ‘बिना मेहनत की कमाई पर मोह कैसा? चाहे वह गरीब प्रजा से ली गई हो ना तेल की रॉयल्टी में मिली हो।
रविवार का दिन था। श्री ब्रजमोहन बिडला ने समुद्र तट के सुंदर शहर ब्राइटन में पिकनिक का आयोजन कर रखा था। हम आठ-दस व्यक्ति रहे होंगे। तीन बड़ी हवर सिडली मोटरें थीं। उनमें से दो की ड्राइवर स्वस्थ और सुंदर युवतियाँ भी। लदंन ने बाहर आते ही सड़क के दोनों बाज़ुओं पर करीने से बने सैकड़ों एक सरीखे मकान दिखाई पड़े। बीच-बीच में हरियाली लंदन की घुटन में मानों राहत मिली।
बिडला जी के लंदन ऑफ़िस के मैनेजर श्री गम्बे ने बताया कि ये सारे मकान पिछले पंद्रह वर्षों में बने है जिनमें अधिकांश मध्यम वर्ग के लोगों के है। आवास की समस्या को हल करने के लिए सरकार अत्यंत उदार शर्तों पर ऋण देती है।
आबादी धीरे-धीरे पीछे छूटती और हम खुली जगह पर आ गए। हमारी कारों में तेज़ रफ़्तार की होड़ लग गई। लड़कियाँ भला क्यो हार मानती। मुई 80 मील पर जा पहुँची। प्रभुदयाल जी ने बहुतेरा समझाने का प्रयत्न किया पर हमारी ड्राइवर केवल मुस्कुराती रही और गाड़ी की चाल तेज़ करती गई। आख़िर हम लोगों ने आँखें बंद कर ली। किसी तरह बाइटन पहुँचे। यहाँ के एक प्रसिद्ध होटल में लंच लिया। निरामिष भोजन के लिए उन्हें लंदन से पूर्व सूचना दी जा चुकी थी। शायद बिडला जी की टिप के बारे में होटल के कर्मचारियों को पहले से पता था, इसीलिए ख़ातिरदारी भी उसी तरह जमकर हुई।
लंच लेकर हम समुद्र के किनारे आए तो ऐसा लगा कि लंदन उठकर यहाँ आ गया हो। किनारे पर तीन-चार लंबे डेक बने हुए थे जिन पर दुकानों के सिवा कार्निवल-सा लगा था तरह-तरह के खेल और जुए चल रहे थे। हम लोगों ने भी किस्मत को आज़माईश करनी चाही मैंने दस रुपए की गेंद ख़रीदी। उन्हें सामने खड़े राक्षस के मुँह में डालना था। मुँह काफ़ी खुला था होंठों का फ़ासला भी बहुत था पर एक भी गेंद भीतर न जा सकी शायद बनावट की ख़ूबी हो, वैसे निशाने अच्छे साधे थे। प्रभुदयाल जी तथा अन्य साथियों ने भी कुछ न कुछ अलग-अलग खेलों पर ख़र्च किया। लगभग एक सौ रुपए ख़र्च करके इनाम में मिली दो काग़ज़ की टोपियाँ और अन्य दो-तीन मामूली चीज़ें। स्टालों में बहुत सी क़ीमती चीज़ें सजा कर रखी गई थीं, लेकिन वे सब दिखावे के लिए ही थी, क्योंकि दूसरे लोग भी हमारी तरह अपने इनाम देख-देखकर हँस रहे थे। एक वृद्धा तो बुरी तरह चिढ़ गई। वह दुकानदारों को ठग बताकर बुरा-भला कह रही थी।
शाम हो रही थी। हम समुद्र के किनारे-घूमने निकले। कई मील लंबा समुद्र तट है। जुड़ गोपालपुर या पुरी में कही अधिक विस्तार है। सैलानी शनिवार को ही मनपंसद जगह रोक लेते है। खाने-पीने का सामान साथ ले आते है। यहाँ आकर अपनी व्यावसायिक अथवा नौकरी की सारी परेशानियाँ और दिक़्क़त भूल जाते हैं। किसी के साथ उसकी स्त्री और बच्चे है, तो कोई प्रेयसी के साथ है। सभी जोड़े में मिलेंगे।
यूरोप में स्त्रियों के समक्ष पुरुषों को पूरे कपड़ों में रहना ही शिष्टता है। पर इन स्थानों पर इस की छूट है। इसलिए पुरुष केवल जांघिया पहने मिलेंगे और बिकनी पहने स्त्रियाँ। सभी बालू पर धूप सेककर बदन को साँवला बनाने की कोशिश करते रहते है। होनोलूलू की तरह तो यहाँ नज़ारे नहीं दिखाई दिए पर जितना भी देखा वह भारतीय मर्यादा की लक्ष्मण रेखा से कहीं बाहर था।
एक जगह बहुत और शोर शराबा हो रहा था। काफ़ी भीड़ लगी थी और पुलिस वाले भी इकट्ठे हो गए थे। पूछने पर पता चला कि छावों के दो दलों में मारपीट हो गई। अनेक के सिर फटे है, किसी की कलाई टूटी है तो किसी की टाँग आश्चर्य की बात यह थी कि लड़ने वालो में लड़कियाँ भी थी। ख़ूब जमकर हॉकीस्टिक चला रही थी। हमें बताया गया कि यहाँ ‘रॉकेट और माड’ नाम के दो दल विद्यार्थियों के है, जो एक-दूसरे को नीचा दिखाने की कोशिश में रहते है। इसलिए यहाँ कही ये इकट्ठे हुए कि झगड़ा और मार-पीट हो जाती है।
मैं तो समझता था कि हमारे देश में ही उच्छृंखलता का रोग छात्र समाज में है, पर यहाँ आकर देखा कि इस की हवा यहाँ कहीं अधिक है।
वापस जब लंदन आए, रात हो चुकी थी। दिन में इतनी ज़्यादा आइस्क्रीम खा चुका वा कि डिनर लेने की तबीयत नहीं थी। इसके अलावा, ऐसे मौक़ों पर प्रभुदयाल जी याद दिला देते थे कि खाए कि न खाए तो न खाए भला, अर्थात कम भूखा रहने पर नहीं खाना ही अच्छा रहता है, इस से स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ता।
लंदन में हमारे इतने परिचित मित्र थे कि होटल या रेस्तरां में खाने का कम ही मौक़ा लगा। दूसरे दिन दोपहर में श्री जी० डी० विनानी के लंदन कार्यालय के व्यवस्थापक श्री बागडी के यहाँ गए। वे यहाँ एक फ़्लैट से कर सपत्नी रहते है। बहुत ही सुस्वाद भारतीय भोजन मिला। हलुवे के साथ बीकानेरी भुजिए भी थे। बहुत दिनों बाद लता मंगेशकर मुकेश की सुरीली आवाज़ में रिकार्डों पर हिंदी गाने भी सुनने को मिले।
रात के भोजन का निमंत्रण था—रामकुमार जी के मित्र श्री हुन के यहाँ। बहुत ही संभ्रांत मुहल्ले में श्री हुन का अपना मकान है। 15 वर्ष पहले साधारण स्थिति में यहाँ आए थे। अब तो यहाँ के विशिष्ट व्यापारियों में इनकी गणना है। टर्नर मोरिसन नामक प्रसिद्ध फ़र्म के अध्यक्ष है। उन्होंने हमारे सिवा और भी दस-पंद्रह मित्रों को बुलाया था। भोजन के साथ-साथ विविध चर्चाएँ—विशेषत: भारतीय अर्थनीति और राजनीति पर चलती रही। पता ही नहीं चला कि रात के बारह बज गए हैं। बहुत मना करने पर भी श्रीमती हुन हमें अपनी कार से होटल तक पहुँचा ही गई।
दो दिन बाद हमें लंदन में विएना जाना था। नाश्ता कर सुबह की चेयरिंग क्रॉस से ट्रेन में बैठ कर लंदन से लगभग तीन मील दूर अपने एक पुराने मित्र से मिलने चला गया। वर्षों के लंबे अर्से के बाद हमारी मुलाक़ात हुई। मैंने महसूस किया कि मुझे देखकर वह कुछ झेप-सा रहा था। मैं कारण ठीक समझ नहीं पाया। प्राविज़न स्टोर्म की अपनी छोटी-सी दुकान पर बैठा था। कुशल-मंगल पूछने के बाद भीतर से आती हुई एक प्रोढा से परिचय कराया—वह इस की पत्नी थी। भारत से आने के बाद मित्र ने इस से विवाह कर लिया था। पति की मृत्यु के बाद महिला को दुकान और खेती संभालने के लिए एक साथी की ज़रूरत थी। मेरे मित्र को लंदन के व्यस्त जीवन और नौकरी की झंझटो से कही अच्छा यह काम और स्थान जच गया। एक परिचित के माध्यम से परस्पर जान-पहचान हो गई और दोनों विवाह सूत्र में बंध गए। अब मुझे उसकी झेप का कारण समझ में आ गया।
पत्नी उम्र में मेरे मित्र से क़रीब दस-बारह साल बड़ी थी। फिर भी मैंने उसे हर काम को तत्परता और उत्साह से करते हुए पाया। उस दिन की दोपहर का भोजन मुझे आज तक याद है। थोड़ी ही देर में खीर, रोटी, फलों के मुरब्बे और न जाने कितने तरह के सुस्वादु व्यंजन बने थे। मैंने यह भी लक्ष्य किया कि इतनी ख़ातिर-ख़िदमत और मेहनत करने पर भी वह अपने पति का काफ़ी अदब करती थी, शायद डरती भी थी। आमतौर पर पश्चिमी देशों की पत्नियों में ऐसा कम ही होता है। मुझे अपने यहाँ के वृद्ध पतियों की याद आई जो जवान बीवियों से झिड़किया खाकर भी दाँत निपोरते रहते हैं। शायद आयु के अधिक अंतर से मन में हीनता की भावना का संचार होना स्वाभाविक है।
पूरे दिन उन्होंने मुझे अपने यहाँ रोके रखा। मुझे भी यहाँ बड़ी शांति मिली। लंदन की भीड़ और व्यस्त जीवन ने दिमाग़ को बोझिल बना दिया था। पुराने दिनों को याद कर हम दोनों कभी ख़ूब हँसते तो कभी उन्हीं में डूब जाते थे हम दोनों ने ढाका, नारायणगंज और खुलना आदि पटसन के केंद्रों की बहुत बार एक साथ यात्रा की थी। बड़ी आरज़ू के बाद पति-पत्नी दोनों ने छः बजे शाम को नाश्ता कराने के बाद लंदन वापस आने दिया। स्टेशन तक अपनी कार में पहुँचाने आए।
लंदन पहुँचा, उस समय आठ बज चुके थे ज़ोरो की बारिश हो रही थी। अपने एक भारतीय मित्र के पुत्र के विशेष आग्रह पर आठ बजे उसके घर पर भोजन करना स्वीकार कर लिया था। वह यहाँ पढ़ने के लिए भारत से आया था किंतु एक स्पेनिश विधवा से विवाह कर यही बस गया था। उसका घर स्टेशन से क़रीब बारह-चौदह मील पर था। ज़ोरो की वर्षा और मेरे पास छाता नहीं। दूसरे ही दिन मुझे लंदन छोड़ देना था। अतएव, एक दुकान में बरसाती और बच्चों के लिए कुछ उपहार ख़रीदकर जब उस के घर पहुँचा तो रात के नौ बजे चुके थे। मैंने देखा पति-पत्नी दोनों उस वर्षा और ठंड में मेरी प्रतिक्षा में सड़क पर खड़े थे। उन्हें भय था कि मुझे शायद उनका फ्लेट खोजने में दिक़्क़त हो। देर के कारण अपने ऊपर लाहट सी हो रही थी, उन्हें इस हालत में देखकर झेप सा गया। यदि न आता तो न जाने कितनी देर तक भीगते रहते।
दोनों बड़े ख़ुश हुए। छोटा-सा दो कमरो का फ़्लैट था। पत्नी की माँ और पहले पति द्वारा एक बच्ची भी साथ रहती थी। पति-पत्नी दोनों काम कर जीवन निर्वाह कर रहे थे। रहन-सहन का स्तर बुरा नहीं था। लड़के की इच्छा देश जाकर पिता से मिलने की थी पर सुयोग नहीं बन पा रहा था।
लड़का ने बताया कि इस मुहल्ले में और भी सैकड़ों भारतीय परिवार है, जिनमें पंजाबी अधिक है। सिक्खों की संख्या भी काफ़ी है। ये नौकरी, दुकानदारी और मज़दूरी करते हैं। इन में बहुतों ने तो भारत से अपने स्त्री-बच्चों को भी यहाँ बुला लिया है और स्थायी रूप में बसते जा रहे है। इनमें शादी विवाह रीति-रस्म अभी तक भारतीय है। कभी-कभी तो इन अवसरों पर ढोलक पर गीत वग़ैरह भी होते रहते है।
मौसम बहुत ख़राब था और रात भी ज़्यादा हो गई थी। इच्छा होते हुए भी यहाँ के भारतीयों से मिल नहीं सका। उन्हें मेरे आने की सूचना पहले ही दे दी थी, उनमें से कुछ मिलना चाहते थे। भागरा नृत्य और गीत का प्रोग्राम भी रखना चाहते थे पर पहले से प्रोग्राम तय नहीं हो सका था।
रात बारह बजे होटल पहुँचा। दबे पाँव कमरे में घुस रहा था, देखा कि प्रभुदयाल जी जाग रहे हैं। सनसनाती ठंडी हवा और ज़ोरों की वर्षा में मुझे बाहर से लौटा न देखकर परेशान हो रहे थे और मेरी राह देख रहे थे। सुबह आठ बजे ही उनके पास में चला गया था। बिस्तर पर पड़ते ही नीद आ गई।
दूसरे दिन सुबह हमें विएना के लिए रवाना होना था। जल्दी ही उठकर नाश्ता इत्यादि कर तैयार हो गए। नौ बजे कमरे के दरवाज़े पर दस्तक हुई। देखा श्री हून ने अपने पुत्र को एयरपोर्ट तक पहुँचाने के लिए भेजा था। हमारे मना करने पर भी स्वयं कर अपनी गाड़ी से उसने एयरपोर्ट पर पहुँचा दिया। एक डब्बा हाथ में देते हुए उसने कहा आप लोगों के लिए माता जी ने मिठाइयाँ भेजी है।
बहुत वर्षों में श्रीमतीहून भारत नहीं जा सकी थी। शायद इसीलिए अपने देश के लोगों के प्रति स्नेह और ममता उड़ेल कर उस की पूर्ति कर रही थी। वैसे इतने व्यस्त नगर में इतनी फ़ुरसत कहाँ और किसे है जब कि साधारण-सी औपचारिकता निबाहनी मुश्किल हो उठती हैं।
मुझे लगा श्रीमती हून की मिठाइयों ने भारतीय तरीके से विदाई को मधुर बना दिया।
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pramukh patron ke sanwaddataon ki baDi izzat hai aur we mehnat bhi khoob karte hain samacharpatr apne sanwaddataon ko khatre ki jaghon par bhi bhejte hain, taki ankhon dekha sachcha haal pathkon tak pahunchaya ja sake patrakar bhi baDe sahasik hote hai yudh ke morchon par jakar wahan ki gatiwidhi ka wiwarn bhejna kam khatre ka kaam nahin kabhi kabhi kaiyon ko jaan se hath dhone paDe hai wishisht sanwaddataon ke pas to apne niji helikoptar ya chhote hawai jahaz rahte hai, jis se ghatnasthal par sheeghr hi pahunchne mein suwidha rahe
yahan pariwar ke sadasy apni apni ruchi ke anusar akhbar kharidte hai yadi ghar mein chh wekti hai to chh patr rozana ayenge hi, kai akhbaron ke to din mein chh sat sanskran tak nikalte hain in mein se kisi kisi ki karoDon rupae ki warshaik aay kewal wigyapnon se hoti hai
aj halanki briten duniya mein pahli shrenai ka rashtra nahin raha, phir bhi akhbari duniya mein phleet street aur uske sanwaddata pratham shrenai mein aate hai bhasha ki chatak, cartoon aur pawan patrakarita mein ab bhi briten se phrans, amerika aur masco ko bahut kuch sikhna hai aur hamein bhi
phleet street se hum british parliyament (sansad bhawan) dekhne gaye hum apne desh ke sansad sadasy the, isliye bahar ke adhikariyon ne hamari achchhi khatir ki, baithne ke liye wishesh sthan diya parliyament aaj jis jagah par hai, wahan pahle bestmistar pailes namak parsad tha wartaman sansad bhawan 15ween shatabdi ke ant mein bana tha beech beech mein kai bar is mein aag lagi phaltah kuch na kuch raddobadal hote rahe angrez zamane ke sath badalte zarur hai, magar apni sanskriti ke kattar premi hote hain apne sansad bhawan ki marammat aur sudhar mein unhonne is baat ka khayal rakha ki us ki maulikta nasht na ho isliye aaj bhi sansad bhawan pahle ke rangDhag mein hai
yon to hum ne pustkon mein british parliyament bhawan ke chitr pahle hi dekhe the, kintu yahan ise pratyaksh dekhkar bite hue zamane ki bate ek bar dimagh mein ghoom gai inhin mein se kisi ek kursi par rabart cliwe aur waren hestigs ne baithkar bharat mein apne kiye gaye kukrityon par bahs suni hogi san 1858 mein isi bhawan mein kanun banakar bharat ko briten ki rani wictoria ki poorn adhinta swikar karne ke liye baadhy kiya gaya tha bharat ke shilpodyog ko kuthit karne ke liye nana prakar ke kanun qayden isi sansad ne banaye aur angrezi wyapar ko bharat mein anek tarah se sanrakshan mile
jo bhi ho, british parliyament ka itihas apne mein anokha hai phrans mein isse bhi pahle sansad ki sthapana ho chuki thi, kintu wahan ke rajaon ne uski satta ko sarwochch nahin mana briten mein rajaon ne samay samay par sansad ke adhikaron ka atikramn karne ke prayatn kiye the, lekin janmat ke samne unhen bhi sir jhukana paDa
1642 mein apne samrat chaarls pratham ke shirachchhed ka adesh sansad ne diya san 1636 mein ek warsh ke andar hi samrat ashtam eDwart ko rajamukut tyagne ke liye baadhy kiya gaya eDwarD sadharan gharane ki talakashuda mahila se wiwah karna chahte the british parliyament ne swikriti nahin di eDwarD ke samne simpsan ya sinhasan donon mein se ek chunna tha
yadyapi widhantah british samrat hi sarwabhaum satta ka adhikari hai, phir bhi parampara ka palan briten ke shasak karte aaye hai sansad ke banaye kanun qayde aur us ke nirnay ko we sadaiw mante aaye hain
hum jin dinon wahan the, un dinon anudar dal ki sarkar thi prdhanmantri the lai maikamilan briten mein hamare yahan ki tarah anek rajnitik dal nahin hai anudar dal aur shramik dal ye do hi mukhy hai shramik dal hai zarur, par ye samyawadi ya marksawadi nahin hai wideshon se nirdesh aur prerna prapt karne wale wekti ya dal ko yahan janta pratham nahin deti, bhale hi wo kyo na bhulok mein swarg utar lane ka patta likh de
wirodhi dal ko bhi shasak dal aur janta, donon ke dwara manyata aur pratishtha milti hai, kyonki unke dwara swasth wirodh ewan alochana hoti hai
hum jis din sansad gaye, wahan profyumon card par bahs ho rahi thi star kafi uncha tha aisa lagta tha ki pratyek sadasy puri jankari karke aata hai wirodhi sadasy is card ki sari jimmedari pure mantrimanDal par thopna chahte the, jab ki sarkari dal ke neta mantrimanDal ko isse mukt rakhna chahte the unka kahna tha ki ek wekti ki kamzori ke liye sare ke sare doshi kyo thahraye jaye?
sansad bhawan dekhkar hum log bus se landan ke us achal ko dekhne gaye, jo east enD ke nam se mashhur hai ye gharibon ki basti hai iske bare mein pahle bhi sun chuka tha, pratyaksh jo kuch bhi dekha wo usse kahin zyada tha aur wicharottejak bhi yahan se qarib paun meel ki duri par hi Dor chestar aur parklen jaise mahnge hotel, bakingham pailes, rijet street wa boD street ki mahngi dukanen hain lagta hai jaise east enD koi abhishapt sthan hai landan badla par ye nahin badal saka
yahan hai kichaD aur gandgi bhare raste, mailephte wastra pahne murjhaye pile chehre aur zindagi ke bojh Dhote hue stripurup, bachche, purani sasti chizon ki dukane, tan ka sauda karti chalti phirti striya khubsurat masum bachchen aur kishor apni man bahnon ke liye gerahak DhunDhane ko taiyar, gaja, afim, chaDu, charas aadi awedh nashon ki puDiya pahunchane ko tatpar mahz isliye ki paise milenge paise chahiye jine ke liye
ajib si ghutan thi wichitr drishya tha isse to sohi kahi behtar tha yahan ki ek dukan mein dekha, kuch log apne saman bandhak rakhkar rupae le rahe the saman mein purane coat, patlun aur kamizen tak thi
east enD bandargah ke nazdik hai yahi iska sab se baDa abhishap hai sabhi bandargahon ke asapas aisi bastiyan hoti hain mahinon ghar se door samudr mein bitane ke baad mallah aur nawik har jagah jutte hain hamare desh kalkatta mein bhi khidirpur isi prakar ka muhalla hai, kintu wahan aisi chhoot aur suwidha nahin hai yahan dekha wideshi mallah aur nawik bhanti bhanti ki poshakon chakkar laga rahe hai sharab ki dukanon mein laDakiyon ko liye baithe hai aur chilla rahe hai nashe mein yahan jhagDe aur marapit hote rahna mamuli baat hai, dainik wardate hai
aisi jagah par chiniyon ki wan aati hai kalkatta ke chini muhalle ke bare mein hum ne suna tha yahan bhi dekha chini chori ke karabar mein daksh hote hain chaDu aur charas ke aDDe yahan bhi unhin ke chalte hai saikDon warshon se har desh mein unka yahi dhandha raha hai hamein pahle hi se sawdhan kar diya gaya tha, isliye in aDDo par main nahin gaya ichha to bahut thi ki khu jakar nazara dekhun magar sootr na tha aur akele jane mein khatra, isliye man ki man mein rah gai
raat das baje hum hotel wapas laute antim do teen ghanton mein jo kuch dekha, usse bahut ashchary nahin hua briten mein kahin zyada sampann desh hai america wahan nyuyark ke harlem muhalle ka bhi nazara east enD jaisa tha farq kewal yahi tha ki itni gharib aur gandgi wahan nahin thi
hamein suchana mili ki shri ghanshyam dam biDla america mein laut aaye hai dusre din subah groswenar hotel mein unsen milne gaye landan ke sabse mahnge hotlon mein ye mana jata hai unke sath boD street ki chamDe ke saman ki ek dukan mein gaya kai tarah ke baks, hainD bag aur portpholiyo dekhe kimat DeDh mein teen hazar tak adhik kimat ka karan puchha to selsmain ne shaista se musakra kar bataya hamari ye dukan lagbhag 250 warshon se aap logon ki khidmat karti aa rahi hai Dijaraili glaiDaston german samrat cancer wiliyam jarj barnaD sha tatha wistan charchil jaise murdhany mahanubhawon ki sewa kar unki prshansayen arjit karne ka hamein saubhagya prapt hua hai hamare yahan bane mal mein shikayat ka mauka shayad hi mile hum behtarin chize kharidte hai aur sudriksh karigron ko achchhi majduri dekar taiyar karte hai isliye hamein aap ko santosh dene ka pura wishwas hain
biDlaji ne qarib do hazar rupae mein ek portpholiyo bag kharida mujhe laga ki molbhaw karne mein shayad kimat kuch kam ho sakti thi par khariddar bhi baDa aur dukan bhi unchi donon hi ise achchha nahin samajhte honge
dusre din akela hi wurlthwarth ke chain stors mein gaya yahan usi tarah ki portpholiyon ke dam 100 wa 125 rupae the shayad kwauliti mein kuch farq tha zarur par kimat ke anupat se nahin ke barabar yahan kimat hai dukan ki sakh par baDi baDi dukanon mein jo phal teen ya chaar rupae paunD mein milte hain bahar saDko par dene walon mein rupae sawa rupye mein mil jayenge hum ne dekha warsha aur thanD ki parwa kiye bina we raat ke das gyarah baje tak thelon mein phal, sukhe mewe ityadi bechte rahte hain
aj prabhudyalji sath nahin the, isliye ghumne phirne mein swtantrta thi cheyring cross mein beri brdarm ki dukan par kyu si ligi dekhi main bhi khaDa ho gaya ye sharab ki prasiddh dukan hai jo pichhle 365 warshon mein landan mein isi jagah par hai iske grahkon mein anek deshon ke raje, maharaje shekh, sultan, minister rajnitigya aur senadhikari rahe hain in logon ke niji hastakshar se yukt taswire dukan ke malik ne saja rakhi hai inka dawa hai ki maharani wictoria ke pardada ke samay ki sharab in ke yahan mil jayegi
lagbhag usi zamane ka ek baiDol sa taraju bhi wahan dekha is par kisi samay angur jau aur guD taule jane the, ajkal grahkon ko is par nihshulk apna wazan lene ki chhoot hain is kote ke bare mein bataya gaya ki 350 warshon ke is purane kate ka wazan tole tak sahi utarta hai ek or purane zamane ke batakhre rakhe the aur dusri or lohe ki sankalo mein jhulte hue palDe par istri purush bari bari mein baithkar apna wazan kar rahe the hansi aur chuhal ka watawarn tha main bhi kyu mein apni bari aane par palDe par baith gaya niche utarte hi wahan ki sels girl ne muskrakar wazan ka sundar card diya aur behtarin qim ki sharab ka ek peg bhi sharab se hame hamesha parhej raha hai, par wahan na nahin kar saka baharhal, pine ke baad urdu ka ek sher zarur yaad aaya
“jahid sharab pine se qafir bana mein kyon,
kya ek chullu pani mein iman wo gaya?”
halanki is wyawastha se pratidin inka bahut kharch hota hoga lekin mera khayal hai, parchar ki drishti nisandeh labhadayak hai pashchimi deshon mein wigyapan ka baDa mahatw hai aadam ke zamane ke kate par niःshulk wazan karne ke baad is ek peg ke muft bantne par unki bikri bahut baDh jati hai hamare yahan chay ka parchar bhi isi tarah se hua tha mainne dekha, wahan jane wale sabhi kuch na kuch kharid karte hi hai meri tarah khali hath to ekadh hi aata hoga
agle din bhi brajmohan biDla se milan Darchestar hautan gaye baDi chahl pahal tha lambe choge pahne arab kafi sankhya mein idhar udhar aa ja rahe the pata chala, kuwait ke koi shekh wahan thahre hai unhone is mahnge hotel ka ek pura talla le rakha hai, kyonki in ke musahibon aur begmon ki ek puri toli in ke sath i hai mujhe pachis warsh pahle ke bharatiy rajaon ki yaad aa gai we bhi to yahan aa kar is tarah beshumar daulat lutate the aish aur mauj mein gharib bharat ke karoDo rupae kharch kar Dalte the kabhi kabhi to lakhon rupae ke kutte hi kharid lete the aur inki sambhal ke nam par sundar laDkiyan bhi le jate the sochne laga, bina mehnat ki kamai par moh kaisa? chahe wo garib praja se li gai ho na tel ki raॉyalti mein mili ho
rawiwar ka din tha shri brajmohan biDla ne samudr tat ke sundar shahr braitan mein picnic ka ayojan kar rakha tha hum aath das wekti rahe honge teen baDi hawar siDli motren theen unmen se do ki Draiwar swasth aur sundar yuwatiyan bhi ladann ne bahar aate hi saDak ke donon bajuon par karine se bane saikDon ek sarikhe makan dikhai paDe beech beech mein hariyali landan ki ghutan mein manon rahat mili
biDla ji ke landan office ke manager shri gambe ne bataya ki ye sare makan pichhle pandrah warshon mein bane hai jinmen adhikansh maddhyam warg ke logon ke hai awas ki samasya ko hal karne ke liye sarkar atyant udar sharton par rn deti hai
abadi dhire dhire pichhe chhutti aur hum khuli jagah par aa gaye hamari karon mein tez raftar ki hoD lag gai laDkiyan bhala kyo haar manti mui 80 meel par ja pahunchi prabhudyal ji ne bahutera samjhane ka prayatn kiya par hamari Draiwar kewal musakrati rahi aur gaDi ki chaal tez karti gai akhir hum logon ne ankhen band kar li kisi tarah baitan pahunche yahan ke ek prasiddh hotel mein lanch liya niramish bhojan ke liye unhen landan se poorw suchana di ja chuki thi shayad biDla ji ki tip ke bare mein hotel ke karmchariyon ko pahle se pata tha, isiliye khatirdari bhi usi tarah jamkar hui
lanch lekar hum samudr ke kinare aaye to aisa laga ki landan uthkar yahan aa gaya ho kinare par teen chaar lambe Dek bane hue the jin par dukanon ke siwa karniwal sa laga tha tarah tarah ke khel aur jue chal rahe the hum logon ne bhi kismat ko ajmaish karni chahi mainne das rupae ki gend kharidi unhen samne khaDe rakshas ke munh mein Dalna tha munh kafi khula tha honthon ka phasla bhi bahut tha par ek bhi gend bhitar na ja saki shayad banawat ki khubi ho, waise nishane achchhe sadhe the prabhudyal ji tatha any sathiyon ne bhi kuch na kuch alag alag khelon par kharch kiya lagbhag ek sau rupae kharch karke inam mein mili do kaghaz ki topiyan aur any do teen mamuli chize stalon mein bahut si qimti chizen saja kar rakhi gai theen, lekin we sab dikhawe ke liye hi thi, kyonki dusre log bhi hamari tarah apne inam dekh dekhkar hans rahe the ek wriddha to buri tarah chiDh gai wo dukandaron ko thag batakar bura bhala kah rahi thi
sham ho rahi thi hum samudr ke kinare ghumne nikle kai meel lamba samudr tat hai juD gopalpur ya puri mein kahi adhik wistar hai sailani shaniwar ko hi manpansad jagah rok lete hai khane pine ka saman sath le aate hai yahan aakar apni wyawasayik athwa naukari ki sari pareshaniyan aur diqqat bhool jate hain kisi ke sath uski istri aur bachche hai, to koi preyasi ke sath hai sabhi joDe mein milenge
europe mein striyon ke samaksh purushon ko pure kapDon mein rahna hi shishtata hai par in sthanon par is ki chhoot hai isliye purush kewal janghiya pahne milenge aur bikni pahne striyan sabhi balu par dhoop sekkar badan ko sanwla banane ki koshish karte rahte hai honolulu ki tarah to yahan nazare nahin dikhai diye par jitna bhi dekha wo bharatiy maryada ki laxman rekha se kahin bahar tha
ek jagah bahut aur shor sharaba ho raha tha kafi bheeD lagi thi aur police wale bhi ikatthe ho gaye the puchhne par pata chala ki chhawon ke do dalon mein marapit ho gai anek ke sir phate hai, kisi ki kalai tuti hai to kisi ki tang ashchary ki baat ye thi ki laDne walo mein laDkiyan bhi thi khoob jamkar haukistik chala rahi thi hamein bataya gaya ki yahan rocket aur maD nam ke do dal widyarthiyon ke hai, jo ek dusre ko nicha dikhane ki koshish mein rahte hai isliye yahan kahi ye ikatthe hue ki jhagDa aur mar peet ho jati hai
main to samajhta tha ki hamare desh mein hi uchchhrikhalta ka rog chhatr samaj mein hai, par yahan aakar dekha ki is ki hawa yahan kahin adhik hai
wapas jab landan aaye, raat ho chuki thi din mein itni zyada aiskrim kha chuka wa ki dinner lene ki tabiyat nahin thi iske alawa, aise maukon par prabhudyal ji yaad dila dete the ki khaye ki na khaye to na khaye bhala, arthat kam bhukha rahne par nahin khana hi achchha rahta hai, is se swasthy par pratikul prabhaw nahin paDta
landan mein hamare itne parichit mitr the ki hotel ya restaran mein khane ka kam hi mauka laga dusre din dopahar mein shri jee० d० winani ke landan karyalay ke wyawasthapak shri bagDi ke yahan gaye we yahan ek phlait se kar sapatni rahte hai bahut hi suswad bharatiy bhojan mila haluwe ke sath bikaneri bhujiye bhi the bahut dinon baad lata mangeshkar mukesh ki surili awaj mein rikaDon par hindi gane bhi sunne ko mile
raat ke bhojan ka nimantran tha—ramakumar ji ke mitr shri hun ke yahan bahut hi sambhrant muhalle mein shri hun ka apna makan hai 15 warsh pahle sadharan sthiti mein yahan aaye the ab to yahan ke wishisht wyapariyon mein inki ganana hai turner morisan namak prasiddh farm ke adhyaksh hai unhonne hamare siwa aur bhi das pandrah mitron ko bulaya tha bhojan ke sath sath wiwidh charchayen—wisheshtah bharatiy arthniti aur rajaniti par chalti rahi pata hi nahin chala ki raat ke barah baj gaye hain bahut mana karne par bhi shirimati hun hamein apni kar se hotel tak pahuncha hi gai
do din baad hamein landan mein wiyena jana tha nashta kar subah ki cheyring cross se train mein baith kar landan se lagbhag teen meel door apne ek purane mitr se milne chala gaya warshon ke lambe arse ke baad hamari mulaqat hui mainne mahsus kiya ki mujhe dekhkar wo kuch jhep sa raha tha main karan theek samajh nahin paya prawizan storm ki apni chhoti si dukan par baitha tha kushal mangal puchhne ke baad bhitar se aati hui ek proDha se parichai karaya—wah is ki patni thi bharat se aane ke baad mitr ne is se wiwah kar liya tha pati ki mirtyu ke baad mahila ko dukan aur kheti sambhalne ke liye ek sathi ki zarurat thi mere mitr ko landan ke wyast jiwan aur naukari ki jhanjhto se kahi achchha ye kaam aur sthan jach gaya ek parichit ke madhyam se paraspar jaan pahchan ho gai aur donon wiwah sootr mein bandh gaye ab mujhe uski jhep ka karan samajh mein aa gaya
patni umr mein mere mitr se qarib das barah sal baDi thi phir bhi mainne use har kaam ko tatparta aur utsah se karte hue paya us din ki dopahar ka bhojan mujhe aaj tak yaad hai thoDi hi der mein kheer, roti, phalon ke murabbe aur na jane kitne tarah ke suswadu wyanjan bane the mainne ye bhi lakshya kiya ki itni khatirashchidmat aur mehnat karne par bhi wo apne pati ka kafi adab karti thi, shayad Darti bhi thi aam taur par pashchimi deshon ki patniyo mein aisa kam hi hota hai mujhe apne yahan ke wriddh patiyon ki yaad i jo jawan biwiyon se jhiDakiya khakar bhi dant niporte rahte hain shayad aayu ke adhik antar se man mein hinta ki bhawna ka sanchar hona swabhawik hai
pure din unhonne mujhe apne yahan roke rakha mujhe bhi yahan baDi shanti mili landan ki bheeD aur wyast jiwan ne dimagh ko bojhil bana diya tha purane dinon ko yaad kar hum donon kabhi khoob hanste to kabhi unhi mein Doob jate the hum donon ne Dhaka, narayanganj aur khulna aadi patsan ke kendro ki bahut bar ek sath yatra ki thi baDi aarju ke baad pati patni donon ne chh baje sham ko nashta karane ke baad landan wapas aane diya station tak apni kar mein pahunchane aaye
landan pahuncha, us samay aath baj chuke the zoro ki barish ho rahi thi apne ek bharatiy mitr ke putr ke wishesh agrah par aath baje uske ghar par bhojan karna swikar kar liya tha wo yahan paDhne ke liye bharat se aaya tha kintu ek spenish widhwa se wiwah kar yahi bus gaya tha uska ghar station se qarib barah chaudah meel par tha zoro ki warsha aur mere pas chhata nahin dusre hi din mujhe landan chhoD dena tha atew, ek dukan mein barsati aur bachchon ke liye kuch uphaar kharidkar jab us ke ghar pahuncha to raat ke nau baje chuke the mainne dekha pati patni donon us warsha aur thanD mein meri prtiksha mein saDak par khaDe the unhen bhay tha ki mujhe shayad unka phlet khojne mein diqqat ho der ke karan apne upar lahat si ho rahi thi, unhen is haalat mein dekhkar jhep sa gaya yadi na aata to na jane kitni der tak bhigte rahte
donon baDe khush hue chhota sa do kamro ka phlet tha patni ki man aur pahle pati dwara ek bachchi bhi sath rahti thi pati patni donon kaam kar jiwan nirwah kar rahe the rahan sahn ka star bura nahin tha laDke ki ichha desh jakar pita se milne ki thi par suyog nahin ban pa raha tha
laDka ne bataya ki is muhalle mein aur bhi saikDon bharatiy pariwar hai, jinmen panjabi adhik hai sikkhon ki sankhya bhi kafi hai ye naukari, dukanadari aur majduri karte hain in mein bahuton ne to bharat se apne istri bachchon ko bhi yahan bula liya hai aur sthayi roop mein baste ja rahe hai inmen shadi wiwah riti rasm abhi tak bharatiy hai kabhi kabhi to in awasro par Dholak par geet waghairah bhi hote rahte hai
mausam bahut kharab tha aur raat bhi zyada ho gai thi ichha hote hue bhi yahan ke bhartiyon se mil nahin saka unhen mere aane ki suchana pahle hi de di thi, unmen se kuch milna chahte the bhagra nrity aur geet ka program bhi rakhna chahte the par pahle se program tay nahin ho saka tha
raat barah baje hotel pahuncha dabe paw kamre mein ghus raha tha, dekha ki prabhudyal ji jag rahe hain sansanati thanDi hawa aur zoron ki warsha mein mujhe bahar se lauta na dekhkar pareshan ho rahe the aur meri rah dekh rahe the subah aath baje hi unke pas mein chala gaya tha bistar par paDte hi need aa gai
dusre din subah hamein wiyena ke liye rawana hona tha jaldi hi uthkar nashta ityadi kar taiyar ho gaye nau baje kamre ke darwaze par dastak hui dekha shri hoon ne apne putr ko airport tak pahunchane ke liye bheja tha hamare mana karne par bhi swayan kar apni gaDi se usne airport par pahuncha diya ek Dabba hath mein dete hue usne kaha aap logon ke liye mata ji ne mithaiya bheji hai
bahut warshon mein shrimtihun bharat nahin ja saki thi shayad isiliye apne desh ke logon ke prati sneh aur mamta uDelkar us ki purti kar rahi thi waise itne wyast nagar mein itni phursat kahan aur kise hai jab ki sadharan si aupacharikta nibahni mushkil ho uthti hain mujhe laga shirimati hoon ki mithaiyon ne bharatiy tarike se widai ko madhur bana diya
san 1664 mein mujhe tisri bar landan jane ka mauka mila bharatiy dutawas ke sahyog ke karan pahle ki yatraon ki apeksha is bar dekhne sunne ki zyada suwidhayen mili logon ke rahan sahn aur dukanon ki sajawat dekhkar adaza hota tha ki pichhle pandrah warshon mein briten ne mahayuddh ke bhishan dhakke se apne ko kitna adhik sambhal liya hai yahan ke hotlon ki haphton ki nahin; mahinon ki agrim buking batati thi ki pichhle warshon mein yudh zarzrit briten ki arthik sthiti kitni adhik majbut ho uthi hai
sabse pahle main bharatiy rajadut shri jiwraj mehta se milne gaya unka niwasasthan bahut hi sundar udyan ke beech hai bharat aur briten ke lambe arse tak parasparik sambandh rahe hai un ke anurup hi hamare dutawas ka bhawan hai
jiwraj bhai aur shirimati hansa mehta se mera poorw parichai tha 80 warsh ki aayu mein bhi wo swasth aur phurtile hai is karan un ke wyaktitw mein sahj akarshan hai wo baDi atmiyata se mile gujarati Dhang ke kalakand, Dosa aur chiwDe ka suswadu jalpan karaya bharat ki rajnitik gatiwidhiyon ke wishay mein bhi unhonne charcha ki
usi din 12 baje dopahar ko unhonne ek press kaunphrens bulai thi briten ki press charcha ke silsile mein unhonne mujhe sawdhan kar diya ki yahan ke patrakar baDe chatur hote hain, shabd aur wakyon par manchahe rang ki kali chaDhane mein patu hote hai, isliye in ke prashnon ka uttar bahut sawadhani se dena chahiye
nirdharit samay par press kaunphrens hui das barah patrakar the sabhi wahan ke pramukh samacharpatron ya news ejensiyon se sabandhit the mehta ji ki salah sachmuch achchhi rahi mainne lakshya kiya ki angrezon ki wakchaturi bhi ek kala hai iske liye anubhaw zor abhyas donon awashyak hai hamne apni or prabhudyal ji ko pardhan bana liya tha sabhi prashnon ka uttar we bahut hi sakshep mein kintu aspasht den rahe the
hamne mahsus kiya ki kashmir ke mamle mein angrezon ke dimagh mein ek wishesh drishtikon baith gaya hai any baton mein to unhen hum santosh dilane mein saphal hue, kintu jahan tak kashmir ka sawal tha, we hamari yukti aur tark ko swikar karne ko hi taiyar nahin the un ki sahanubhuti pakistan ke sath thi un ka ye tark tha ki jab shri nehru ne kashmir mein janmat sangrah swikar kiya aur use pura ashwasan diya tha to ise bharat kyo nahin manata? donon deshon ke beech aapsi samjhaute aur aman kayam rakhne ke liye ye nihayat zaruri hai
prabhudyalji unhe barabar samjha rahe the ki in warshon mein pakistan aur bharat ke aapsi sambandhon mein kafi katuta aa gai hai kashmir aur bharat yugon se ek dusre se bhasha, sanskriti aur bhaugolik drishti se bandhe rahe hain, ant ab janmat ka parashn hi nahin rah jata pakistan kuch dharmandhon ko ubharkar wahan ashanti paida karta rahta hai bharatiy wyawastha ke antargat pratyek kashmiri sukhi hai, us ki arthik dasha bhi sudhri hai dusri or pakistani wyawastha ke niche, kashmiri janta piDit hai, uska daman bhi kiya jata hai
iske alawa jab tak pakistan kashmir ke us achal se hat nahin jata jis par us ne zabardasti kabza jama rakha hai, tab tak nahin yahan janmat sangrah ka koi arth nahin
pata nahin kyo british patrakar ise manne se inkar karte rahe bharat ke wikas aur arthik unnati ke sambandh mein un logon ki dharana thi ki in warshon mein hamare desh ne pragti ki hai awashy, phir bhi yadi hum apni baDhti hui jansakhya ki baDhotri ko nahin rok payenge to hamari yojnayen nishphal siddh hongi unka khayal tha ki is disha mein bharat ka prayas shithil raha hai
dopahar ke baad joot ekschenj dekhne gaya main lambe samay tak patsan ka wyawsayi raha—hun akarshan swabhawik tha joot ke kray wikray ke liye ye ekwez wishw mein sabse baDa kendr mana jata hai prayः sabhi deshon ko apna kachcha pat yahan ke niymon se kharidna paDta hai yahan mere mitr babulal sethiya mil gaye 1635 mein sadharan sthiti mein landan aaye ye or yahin bus gaye ab to karoDo rupae kama liye hai aur yahan ke baDe wyapariyon mein ginti hai wideshon mein purane sathiyon ke milne par baDi khushi hoti hai agle din unke ghar bhojan ka nimantran mila besan ki roti aur kachari ke sag mein pakwanon se kahin adhik swad mila
sham ke baad pikaDili circus pahuncha, ye fashion, roshni aur raisi ki jagah hai landan saj uthta hai rang birge niyon ke parkash indradhnush se khelte rahte hain kalkatta ka park street aur dilli ka kanat ples iski thoDi si jhaki pesh karte hain yahan niyon ke tarah tarah ke wigyapnon ke beech owaltin aur bowril ki wisheshtayen dekhin owaltin mein anDe aur bowril mein gomas ka ras rahta hai hamare yahan sanantni gharo mein bhi in donon ka prayog hota hai
soho ka mahalla pikaDili ke pas hi hai badnam jagah hai duniya ke har shahr mein is prakar ke sthan hote hai, landan koi apwad nahin insan mein kamzoriya hoti hai gham ko khu bulata hai aur ise ghalat karne ke liye ghalatiyan karta jata hai hamare yahan samaj ke bhay se log lukchhip kar karte hai, jabki europe mein ise jiwan ki awashyakta mankar bina jhijhak ke lambechauDe pulisamainon ko chakkar lagate dekha nirwikar se ghoom rahe the shayad unhen hidayat thi ki anejane mein dakhal na den bus itna dhyan rakhe ki dangaphsad, rahajni aur gunDagardi na ho khas taur se kisi wideshi ko aisi pareshani mein na paDna paDe soho mein sab kuch chalta hai waidh awaidh sabhi tarah ki nashili chizon ke aDDe hai, jin ke sachalak zyadatar chini hai chaphlo ki bhi kami nahin kanun se bachne ke liye inhen klbon ke nam par chalaya jata hai gerahak ke pahunchte hi use sadasy bana lete hain aur card de diya jata hai
isi Dhang ke ek club mein ja pahuncha, das rupae de kar sadasy bana sharab aur jue ka daur chal raha tha counter par ek moti si aurat baithi thi grahko mein adhikansh piye hue the ek writ ke charon or teble lagi thi aur unke irdagird kurasiya yuwatiyan sharab lakar grahkon ko de rahi thi karabar bilkul rokDi tha, yani nagad jo laDki jitna pilati thi, commission bhi usi mutabik banta tha roshni dhimi thi kaun aaya aur kaun gaya, asani se jana nahin ja sakta tha is par cigarette ke dhuen ka kuhra
baje ki dhun par ek nangi laDki nach rahi thi angrezon ke alawa any deshon ke log bhi the, kuchhek bharatiy bhi do teen table hatkar do sikh yuwak pikar dhut ho chuke the donon ke samne laDkiyan pyaliyan bharkar latin, we unki kamar mein hath Dalkar pas khinchte aur god mein baitha lete the laDkiyan pyaliyan hontho se laga deti thi aur baDhawa deti ja rahi thi
main herat se ye sab dekh raha tha, na jane kab ek laDki meinre bagal mein i, mujhe pata bhi na chala
“kya pasand karenge, halki ya kaDi,” baDi madhurta se us ne puchha mainne dekha unnis bees sal ki yuwati hai, chharahra badan, khubsurat naknaksha
“pina nahin, dekhana hai” mere munh se nikal gaya phir jagah ka khayal ho aaya mainne kaha mujhe sirf cold Drink mein dilchaspi hai
usne baDi mayusi se meri or dekha aur dusre gerahak ke pas chali gai mainne dekha counter par baithi moti malkin gol gol ankhon ke niche hoth bichkaye mujhe dekh rahi hai thoDi der baad laDki ne laimneD lakar meinre samne rakh diya aur kahne lagi “shayad aap galat jagah aa gaye hai ”
laimneD khat kar main utha dekha donon sikh chitt ho chuke hai laDakhDate hue we laDakiyon ko lekar pas ke kamron mein ja rahe the
club se bahar phatak par aa gaya dekha, laDki bhi pichhe pichhe aa rahi hai mainne us se kaha, tumhara samay nasht hoga koi fayda nahin
baDe dard se us ne kaha, aap mujhe jaisa sochte hain main waisi nahin hoon akhir chhatra hoon usne bataya ki soho mein thoDi si der ke liye aane se us ki achchhi amdani ho jati hai is se uska aur uski man ka rahnewane ka kharch chal jata hai aur kuch paise bacha bhi leti hai aage chalkar wo sammanpurwak achchhi zindagi bitayegi paDhai puri kar astreliya jakar jiwan ka naya adhyay shuru karegi
ek se ek niche star ka manoranjan soho ke klbon mein hai sochne laga, ‘pata nahin angrez kis adhar par bhartiyon ko asabhy kahte the ’
soho ka ek dusra roop bhi hai yahan ke saste restraon mein baithkar lekhak aur wicharkon ne nai wishw prasiddh kritiyon ka srijan kiya hai is yug ka wikhyat chintak aur krantikari karl marx yahin ke ek gande makan mein rahta tha yahin usne apni prasiddh pustak das capital likhi thi, jisne wishw ki adhunik arthniti aur rajaniti ki dhara mein ek aisi uthal puthal ki sirishti ki hai, jis ka parinam anttogatwa kya hoga, ye kahna kathin hai jis andheri kothari mein wo rahta tha aur jis restaran mein chay piya karta tha, use mainne dekha aaj to ye sthan sansar ke kamyunisto ke liye makkamdina hai
soho ki chahl pahal raat ke das baje se teen baje tak rahti hai brushelj aur peris mein bhi ratri club aur is Dhang ke muhalle par yahan ke nazare unse kahin bhadde aur wibhats barah baj rahe the, hotel ke liye laut paDa teen din baad hamein switjarlainD jana tha samay kam tha atew, ghumne ka program bhi simit rakha dusre din petikot street, phleet street aur phauyalj ki dukan dekhne ka nishchay kiya
petikot street kalkatta ke chorabazar ki tarah hai waise na to chorabazar mein hi chori ki chize bikti hain na yahan phir bhi yahan ajiboghrib purani chize beshumar ikatthi hain kabhi kabhi to baDi amuly aur durlabh wastuen bahut saste damo mein hath lag jati hai
har rawiwar ki subah ye bazar khulta hai purane kapDe, chhate, jute, furniture, hathiyar, taswiren, chhaDiyan, gharelu saman yahan ke phutpathon ki dukanon mein milenge
kuch logon ko shauk rahta hai in dukanon ke chakkar lagane ka, kyonki mokebemauke unke pasand ki nayab cheez saste damo mein mil jati hai
yahan ke dukandar baDe batuni or chatur hai kahte hai ki ek bar wishwaprsiddh sahityakar barnaD sha ne purani pustkon ki ek dukan mein rakhi apne hi ek natk ki prati ka dam puchha dukandar ne kaha, “yoon to ye pustak ek bahut baDe adami ki kriti hai lekin kisi bewquf ne iske prishthon par tippaniyan kai jagah likh di hai, isliye mahz chaar shiling mein aapko de dunga sha ne kitab kholkar dekhi to achambhe mein rah gaye kitab ki ye prati unhonne apne hastakshar karke ek mitr ko bhet ki thi wishesh roop se adhyayan ke liye prishthon ke hashiye par khu tippaniyan likhi thi sha ne chaar shiling dekar wo kitab kharid li aaj wo shayad pachas hazar tak mein bik jaye to koi tajjub nahin
cheyrang qas ki nukkaD par phauyalz ki bahut baDi dukan hai pustkon ki aisi dukan shayad hi wishw mein kahin ho iski wisheshata ye hai ki koi zaruri nahin ki aap kitab kharide kursiyan lagi hain, subah se sham tak yahan baithkar manchahi pustak bina shulk diye paDh sakte hain iske liye har tarah ki suwidha hai saikDon warshon se ye dukan yahan hai briten ke baDe baDe kawi aur lekhkon ne yahan baithkar apni pustken likhi hai kitabon ka shok mujhe bhi hai baDe baDe shahron mein bahut si dukanen bhi dekhin hain magar, aisi dukan aur wibhinn wishyon par itni tarah ki pustken mainne ek hi jagah uplabdh kahin nahin dekhi thi isliye kitabon ke dekhne mein kafi samay lag gaya yahan se prakritik chikitsa ki kuch pustken jasiDih ke apne mitr mahawiraprsad pohar ke liye kharidi
dopahar ka bhojan layaj karnar mein kiya layaj ki saikDon restaran landan mein hai inmen amish aur niramish donon prakar ke bhojan bahut kam kharch mein mil jate hai iske alawa, cake, pestri, chocolate aadi ki bhi bahut baDi bikri hai in jalpanagrihon ke munafe ke karan layaj ke malik ki ginti briten ke pramukh dhanikon mein hai
bhojan karke phleet street gaya akhbaron ka muhalla hai, patrkaron ki duniya hai briten mein prati wekti sansar ke any deshon se ostan zyada akhbar paDhe jate hai yahan bhi adhikash samacharpatron par hamare desh ki tarah kuch dhani wyaktiyon ka adhikar hai saikDon akhbar to kewal landan se hi prakashit hote hai inmen se kisi kisi ki chalis pachas lakh pratiyan chhapti hain rawiwar athwa chhutti ke dinon mein dainik patron ki prishth sankhya pachas sath tak pahunch jati hai yadi raddi ke bhaw bhi in akhbaron ko becha jaye to inke dam wasul ho jate hai
dainiko ke alawa, alag alag wishyon par saptahik, pakshik aur masik patr bhi bahut bari sankhya mein nikalte hai balak, kishor, yuwak, wriddh aur isi tarah bhinn bhinn aayu ki mahilaon ke liye alag alag patr prakashit hote hain taims, gajiyan aur new stetsmain jaise gambhirpan to das bees hi honge adhikansh pad baDe baDe haiDing dekar sanasnikhej samachar dete hai jaise miss kolar ke mukadmen ka pramukh gawah aaj dopahar mein halworn ki bus se east beep ki taraf ja raha tha, bakri ke bachche ne kutte ki pille ka kan chaba liya, aadi
in haiDlainon ko mote mote akshron mein card boD par chhapwakar akhbar ke ejenton ko apni apni dukanon ya stalon par tagne ke liye dete hain logon ki nigah paDi ki dauDe khabar paDhne meri samajh mein nahin aa raha ki kilar ka rawah kis bus se kaha gaya aur kutte ke pille ka kaam bakri ke bachche ne kat liya to is mein pathkon ke kaam ki kaun si baat hai magar yahan aise hi patr zyada bikte hain nangi taswiron ke tatha kamoddipak wishyon ke masik ya saptahik patron ke gerahak bahut baDi sankhya se hai
pramukh patron ke sanwaddataon ki baDi izzat hai aur we mehnat bhi khoob karte hain samacharpatr apne sanwaddataon ko khatre ki jaghon par bhi bhejte hain, taki ankhon dekha sachcha haal pathkon tak pahunchaya ja sake patrakar bhi baDe sahasik hote hai yudh ke morchon par jakar wahan ki gatiwidhi ka wiwarn bhejna kam khatre ka kaam nahin kabhi kabhi kaiyon ko jaan se hath dhone paDe hai wishisht sanwaddataon ke pas to apne niji helikoptar ya chhote hawai jahaz rahte hai, jis se ghatnasthal par sheeghr hi pahunchne mein suwidha rahe
yahan pariwar ke sadasy apni apni ruchi ke anusar akhbar kharidte hai yadi ghar mein chh wekti hai to chh patr rozana ayenge hi, kai akhbaron ke to din mein chh sat sanskran tak nikalte hain in mein se kisi kisi ki karoDon rupae ki warshaik aay kewal wigyapnon se hoti hai
aj halanki briten duniya mein pahli shrenai ka rashtra nahin raha, phir bhi akhbari duniya mein phleet street aur uske sanwaddata pratham shrenai mein aate hai bhasha ki chatak, cartoon aur pawan patrakarita mein ab bhi briten se phrans, amerika aur masco ko bahut kuch sikhna hai aur hamein bhi
phleet street se hum british parliyament (sansad bhawan) dekhne gaye hum apne desh ke sansad sadasy the, isliye bahar ke adhikariyon ne hamari achchhi khatir ki, baithne ke liye wishesh sthan diya parliyament aaj jis jagah par hai, wahan pahle bestmistar pailes namak parsad tha wartaman sansad bhawan 15ween shatabdi ke ant mein bana tha beech beech mein kai bar is mein aag lagi phaltah kuch na kuch raddobadal hote rahe angrez zamane ke sath badalte zarur hai, magar apni sanskriti ke kattar premi hote hain apne sansad bhawan ki marammat aur sudhar mein unhonne is baat ka khayal rakha ki us ki maulikta nasht na ho isliye aaj bhi sansad bhawan pahle ke rangDhag mein hai
yon to hum ne pustkon mein british parliyament bhawan ke chitr pahle hi dekhe the, kintu yahan ise pratyaksh dekhkar bite hue zamane ki bate ek bar dimagh mein ghoom gai inhin mein se kisi ek kursi par rabart cliwe aur waren hestigs ne baithkar bharat mein apne kiye gaye kukrityon par bahs suni hogi san 1858 mein isi bhawan mein kanun banakar bharat ko briten ki rani wictoria ki poorn adhinta swikar karne ke liye baadhy kiya gaya tha bharat ke shilpodyog ko kuthit karne ke liye nana prakar ke kanun qayden isi sansad ne banaye aur angrezi wyapar ko bharat mein anek tarah se sanrakshan mile
jo bhi ho, british parliyament ka itihas apne mein anokha hai phrans mein isse bhi pahle sansad ki sthapana ho chuki thi, kintu wahan ke rajaon ne uski satta ko sarwochch nahin mana briten mein rajaon ne samay samay par sansad ke adhikaron ka atikramn karne ke prayatn kiye the, lekin janmat ke samne unhen bhi sir jhukana paDa
1642 mein apne samrat chaarls pratham ke shirachchhed ka adesh sansad ne diya san 1636 mein ek warsh ke andar hi samrat ashtam eDwart ko rajamukut tyagne ke liye baadhy kiya gaya eDwarD sadharan gharane ki talakashuda mahila se wiwah karna chahte the british parliyament ne swikriti nahin di eDwarD ke samne simpsan ya sinhasan donon mein se ek chunna tha
yadyapi widhantah british samrat hi sarwabhaum satta ka adhikari hai, phir bhi parampara ka palan briten ke shasak karte aaye hai sansad ke banaye kanun qayde aur us ke nirnay ko we sadaiw mante aaye hain
hum jin dinon wahan the, un dinon anudar dal ki sarkar thi prdhanmantri the lai maikamilan briten mein hamare yahan ki tarah anek rajnitik dal nahin hai anudar dal aur shramik dal ye do hi mukhy hai shramik dal hai zarur, par ye samyawadi ya marksawadi nahin hai wideshon se nirdesh aur prerna prapt karne wale wekti ya dal ko yahan janta pratham nahin deti, bhale hi wo kyo na bhulok mein swarg utar lane ka patta likh de
wirodhi dal ko bhi shasak dal aur janta, donon ke dwara manyata aur pratishtha milti hai, kyonki unke dwara swasth wirodh ewan alochana hoti hai
hum jis din sansad gaye, wahan profyumon card par bahs ho rahi thi star kafi uncha tha aisa lagta tha ki pratyek sadasy puri jankari karke aata hai wirodhi sadasy is card ki sari jimmedari pure mantrimanDal par thopna chahte the, jab ki sarkari dal ke neta mantrimanDal ko isse mukt rakhna chahte the unka kahna tha ki ek wekti ki kamzori ke liye sare ke sare doshi kyo thahraye jaye?
sansad bhawan dekhkar hum log bus se landan ke us achal ko dekhne gaye, jo east enD ke nam se mashhur hai ye gharibon ki basti hai iske bare mein pahle bhi sun chuka tha, pratyaksh jo kuch bhi dekha wo usse kahin zyada tha aur wicharottejak bhi yahan se qarib paun meel ki duri par hi Dor chestar aur parklen jaise mahnge hotel, bakingham pailes, rijet street wa boD street ki mahngi dukanen hain lagta hai jaise east enD koi abhishapt sthan hai landan badla par ye nahin badal saka
yahan hai kichaD aur gandgi bhare raste, mailephte wastra pahne murjhaye pile chehre aur zindagi ke bojh Dhote hue stripurup, bachche, purani sasti chizon ki dukane, tan ka sauda karti chalti phirti striya khubsurat masum bachchen aur kishor apni man bahnon ke liye gerahak DhunDhane ko taiyar, gaja, afim, chaDu, charas aadi awedh nashon ki puDiya pahunchane ko tatpar mahz isliye ki paise milenge paise chahiye jine ke liye
ajib si ghutan thi wichitr drishya tha isse to sohi kahi behtar tha yahan ki ek dukan mein dekha, kuch log apne saman bandhak rakhkar rupae le rahe the saman mein purane coat, patlun aur kamizen tak thi
east enD bandargah ke nazdik hai yahi iska sab se baDa abhishap hai sabhi bandargahon ke asapas aisi bastiyan hoti hain mahinon ghar se door samudr mein bitane ke baad mallah aur nawik har jagah jutte hain hamare desh kalkatta mein bhi khidirpur isi prakar ka muhalla hai, kintu wahan aisi chhoot aur suwidha nahin hai yahan dekha wideshi mallah aur nawik bhanti bhanti ki poshakon chakkar laga rahe hai sharab ki dukanon mein laDakiyon ko liye baithe hai aur chilla rahe hai nashe mein yahan jhagDe aur marapit hote rahna mamuli baat hai, dainik wardate hai
aisi jagah par chiniyon ki wan aati hai kalkatta ke chini muhalle ke bare mein hum ne suna tha yahan bhi dekha chini chori ke karabar mein daksh hote hain chaDu aur charas ke aDDe yahan bhi unhin ke chalte hai saikDon warshon se har desh mein unka yahi dhandha raha hai hamein pahle hi se sawdhan kar diya gaya tha, isliye in aDDo par main nahin gaya ichha to bahut thi ki khu jakar nazara dekhun magar sootr na tha aur akele jane mein khatra, isliye man ki man mein rah gai
raat das baje hum hotel wapas laute antim do teen ghanton mein jo kuch dekha, usse bahut ashchary nahin hua briten mein kahin zyada sampann desh hai america wahan nyuyark ke harlem muhalle ka bhi nazara east enD jaisa tha farq kewal yahi tha ki itni gharib aur gandgi wahan nahin thi
hamein suchana mili ki shri ghanshyam dam biDla america mein laut aaye hai dusre din subah groswenar hotel mein unsen milne gaye landan ke sabse mahnge hotlon mein ye mana jata hai unke sath boD street ki chamDe ke saman ki ek dukan mein gaya kai tarah ke baks, hainD bag aur portpholiyo dekhe kimat DeDh mein teen hazar tak adhik kimat ka karan puchha to selsmain ne shaista se musakra kar bataya hamari ye dukan lagbhag 250 warshon se aap logon ki khidmat karti aa rahi hai Dijaraili glaiDaston german samrat cancer wiliyam jarj barnaD sha tatha wistan charchil jaise murdhany mahanubhawon ki sewa kar unki prshansayen arjit karne ka hamein saubhagya prapt hua hai hamare yahan bane mal mein shikayat ka mauka shayad hi mile hum behtarin chize kharidte hai aur sudriksh karigron ko achchhi majduri dekar taiyar karte hai isliye hamein aap ko santosh dene ka pura wishwas hain
biDlaji ne qarib do hazar rupae mein ek portpholiyo bag kharida mujhe laga ki molbhaw karne mein shayad kimat kuch kam ho sakti thi par khariddar bhi baDa aur dukan bhi unchi donon hi ise achchha nahin samajhte honge
dusre din akela hi wurlthwarth ke chain stors mein gaya yahan usi tarah ki portpholiyon ke dam 100 wa 125 rupae the shayad kwauliti mein kuch farq tha zarur par kimat ke anupat se nahin ke barabar yahan kimat hai dukan ki sakh par baDi baDi dukanon mein jo phal teen ya chaar rupae paunD mein milte hain bahar saDko par dene walon mein rupae sawa rupye mein mil jayenge hum ne dekha warsha aur thanD ki parwa kiye bina we raat ke das gyarah baje tak thelon mein phal, sukhe mewe ityadi bechte rahte hain
aj prabhudyalji sath nahin the, isliye ghumne phirne mein swtantrta thi cheyring cross mein beri brdarm ki dukan par kyu si ligi dekhi main bhi khaDa ho gaya ye sharab ki prasiddh dukan hai jo pichhle 365 warshon mein landan mein isi jagah par hai iske grahkon mein anek deshon ke raje, maharaje shekh, sultan, minister rajnitigya aur senadhikari rahe hain in logon ke niji hastakshar se yukt taswire dukan ke malik ne saja rakhi hai inka dawa hai ki maharani wictoria ke pardada ke samay ki sharab in ke yahan mil jayegi
lagbhag usi zamane ka ek baiDol sa taraju bhi wahan dekha is par kisi samay angur jau aur guD taule jane the, ajkal grahkon ko is par nihshulk apna wazan lene ki chhoot hain is kote ke bare mein bataya gaya ki 350 warshon ke is purane kate ka wazan tole tak sahi utarta hai ek or purane zamane ke batakhre rakhe the aur dusri or lohe ki sankalo mein jhulte hue palDe par istri purush bari bari mein baithkar apna wazan kar rahe the hansi aur chuhal ka watawarn tha main bhi kyu mein apni bari aane par palDe par baith gaya niche utarte hi wahan ki sels girl ne muskrakar wazan ka sundar card diya aur behtarin qim ki sharab ka ek peg bhi sharab se hame hamesha parhej raha hai, par wahan na nahin kar saka baharhal, pine ke baad urdu ka ek sher zarur yaad aaya
“jahid sharab pine se qafir bana mein kyon,
kya ek chullu pani mein iman wo gaya?”
halanki is wyawastha se pratidin inka bahut kharch hota hoga lekin mera khayal hai, parchar ki drishti nisandeh labhadayak hai pashchimi deshon mein wigyapan ka baDa mahatw hai aadam ke zamane ke kate par niःshulk wazan karne ke baad is ek peg ke muft bantne par unki bikri bahut baDh jati hai hamare yahan chay ka parchar bhi isi tarah se hua tha mainne dekha, wahan jane wale sabhi kuch na kuch kharid karte hi hai meri tarah khali hath to ekadh hi aata hoga
agle din bhi brajmohan biDla se milan Darchestar hautan gaye baDi chahl pahal tha lambe choge pahne arab kafi sankhya mein idhar udhar aa ja rahe the pata chala, kuwait ke koi shekh wahan thahre hai unhone is mahnge hotel ka ek pura talla le rakha hai, kyonki in ke musahibon aur begmon ki ek puri toli in ke sath i hai mujhe pachis warsh pahle ke bharatiy rajaon ki yaad aa gai we bhi to yahan aa kar is tarah beshumar daulat lutate the aish aur mauj mein gharib bharat ke karoDo rupae kharch kar Dalte the kabhi kabhi to lakhon rupae ke kutte hi kharid lete the aur inki sambhal ke nam par sundar laDkiyan bhi le jate the sochne laga, bina mehnat ki kamai par moh kaisa? chahe wo garib praja se li gai ho na tel ki raॉyalti mein mili ho
rawiwar ka din tha shri brajmohan biDla ne samudr tat ke sundar shahr braitan mein picnic ka ayojan kar rakha tha hum aath das wekti rahe honge teen baDi hawar siDli motren theen unmen se do ki Draiwar swasth aur sundar yuwatiyan bhi ladann ne bahar aate hi saDak ke donon bajuon par karine se bane saikDon ek sarikhe makan dikhai paDe beech beech mein hariyali landan ki ghutan mein manon rahat mili
biDla ji ke landan office ke manager shri gambe ne bataya ki ye sare makan pichhle pandrah warshon mein bane hai jinmen adhikansh maddhyam warg ke logon ke hai awas ki samasya ko hal karne ke liye sarkar atyant udar sharton par rn deti hai
abadi dhire dhire pichhe chhutti aur hum khuli jagah par aa gaye hamari karon mein tez raftar ki hoD lag gai laDkiyan bhala kyo haar manti mui 80 meel par ja pahunchi prabhudyal ji ne bahutera samjhane ka prayatn kiya par hamari Draiwar kewal musakrati rahi aur gaDi ki chaal tez karti gai akhir hum logon ne ankhen band kar li kisi tarah baitan pahunche yahan ke ek prasiddh hotel mein lanch liya niramish bhojan ke liye unhen landan se poorw suchana di ja chuki thi shayad biDla ji ki tip ke bare mein hotel ke karmchariyon ko pahle se pata tha, isiliye khatirdari bhi usi tarah jamkar hui
lanch lekar hum samudr ke kinare aaye to aisa laga ki landan uthkar yahan aa gaya ho kinare par teen chaar lambe Dek bane hue the jin par dukanon ke siwa karniwal sa laga tha tarah tarah ke khel aur jue chal rahe the hum logon ne bhi kismat ko ajmaish karni chahi mainne das rupae ki gend kharidi unhen samne khaDe rakshas ke munh mein Dalna tha munh kafi khula tha honthon ka phasla bhi bahut tha par ek bhi gend bhitar na ja saki shayad banawat ki khubi ho, waise nishane achchhe sadhe the prabhudyal ji tatha any sathiyon ne bhi kuch na kuch alag alag khelon par kharch kiya lagbhag ek sau rupae kharch karke inam mein mili do kaghaz ki topiyan aur any do teen mamuli chize stalon mein bahut si qimti chizen saja kar rakhi gai theen, lekin we sab dikhawe ke liye hi thi, kyonki dusre log bhi hamari tarah apne inam dekh dekhkar hans rahe the ek wriddha to buri tarah chiDh gai wo dukandaron ko thag batakar bura bhala kah rahi thi
sham ho rahi thi hum samudr ke kinare ghumne nikle kai meel lamba samudr tat hai juD gopalpur ya puri mein kahi adhik wistar hai sailani shaniwar ko hi manpansad jagah rok lete hai khane pine ka saman sath le aate hai yahan aakar apni wyawasayik athwa naukari ki sari pareshaniyan aur diqqat bhool jate hain kisi ke sath uski istri aur bachche hai, to koi preyasi ke sath hai sabhi joDe mein milenge
europe mein striyon ke samaksh purushon ko pure kapDon mein rahna hi shishtata hai par in sthanon par is ki chhoot hai isliye purush kewal janghiya pahne milenge aur bikni pahne striyan sabhi balu par dhoop sekkar badan ko sanwla banane ki koshish karte rahte hai honolulu ki tarah to yahan nazare nahin dikhai diye par jitna bhi dekha wo bharatiy maryada ki laxman rekha se kahin bahar tha
ek jagah bahut aur shor sharaba ho raha tha kafi bheeD lagi thi aur police wale bhi ikatthe ho gaye the puchhne par pata chala ki chhawon ke do dalon mein marapit ho gai anek ke sir phate hai, kisi ki kalai tuti hai to kisi ki tang ashchary ki baat ye thi ki laDne walo mein laDkiyan bhi thi khoob jamkar haukistik chala rahi thi hamein bataya gaya ki yahan rocket aur maD nam ke do dal widyarthiyon ke hai, jo ek dusre ko nicha dikhane ki koshish mein rahte hai isliye yahan kahi ye ikatthe hue ki jhagDa aur mar peet ho jati hai
main to samajhta tha ki hamare desh mein hi uchchhrikhalta ka rog chhatr samaj mein hai, par yahan aakar dekha ki is ki hawa yahan kahin adhik hai
wapas jab landan aaye, raat ho chuki thi din mein itni zyada aiskrim kha chuka wa ki dinner lene ki tabiyat nahin thi iske alawa, aise maukon par prabhudyal ji yaad dila dete the ki khaye ki na khaye to na khaye bhala, arthat kam bhukha rahne par nahin khana hi achchha rahta hai, is se swasthy par pratikul prabhaw nahin paDta
landan mein hamare itne parichit mitr the ki hotel ya restaran mein khane ka kam hi mauka laga dusre din dopahar mein shri jee० d० winani ke landan karyalay ke wyawasthapak shri bagDi ke yahan gaye we yahan ek phlait se kar sapatni rahte hai bahut hi suswad bharatiy bhojan mila haluwe ke sath bikaneri bhujiye bhi the bahut dinon baad lata mangeshkar mukesh ki surili awaj mein rikaDon par hindi gane bhi sunne ko mile
raat ke bhojan ka nimantran tha—ramakumar ji ke mitr shri hun ke yahan bahut hi sambhrant muhalle mein shri hun ka apna makan hai 15 warsh pahle sadharan sthiti mein yahan aaye the ab to yahan ke wishisht wyapariyon mein inki ganana hai turner morisan namak prasiddh farm ke adhyaksh hai unhonne hamare siwa aur bhi das pandrah mitron ko bulaya tha bhojan ke sath sath wiwidh charchayen—wisheshtah bharatiy arthniti aur rajaniti par chalti rahi pata hi nahin chala ki raat ke barah baj gaye hain bahut mana karne par bhi shirimati hun hamein apni kar se hotel tak pahuncha hi gai
do din baad hamein landan mein wiyena jana tha nashta kar subah ki cheyring cross se train mein baith kar landan se lagbhag teen meel door apne ek purane mitr se milne chala gaya warshon ke lambe arse ke baad hamari mulaqat hui mainne mahsus kiya ki mujhe dekhkar wo kuch jhep sa raha tha main karan theek samajh nahin paya prawizan storm ki apni chhoti si dukan par baitha tha kushal mangal puchhne ke baad bhitar se aati hui ek proDha se parichai karaya—wah is ki patni thi bharat se aane ke baad mitr ne is se wiwah kar liya tha pati ki mirtyu ke baad mahila ko dukan aur kheti sambhalne ke liye ek sathi ki zarurat thi mere mitr ko landan ke wyast jiwan aur naukari ki jhanjhto se kahi achchha ye kaam aur sthan jach gaya ek parichit ke madhyam se paraspar jaan pahchan ho gai aur donon wiwah sootr mein bandh gaye ab mujhe uski jhep ka karan samajh mein aa gaya
patni umr mein mere mitr se qarib das barah sal baDi thi phir bhi mainne use har kaam ko tatparta aur utsah se karte hue paya us din ki dopahar ka bhojan mujhe aaj tak yaad hai thoDi hi der mein kheer, roti, phalon ke murabbe aur na jane kitne tarah ke suswadu wyanjan bane the mainne ye bhi lakshya kiya ki itni khatirashchidmat aur mehnat karne par bhi wo apne pati ka kafi adab karti thi, shayad Darti bhi thi aam taur par pashchimi deshon ki patniyo mein aisa kam hi hota hai mujhe apne yahan ke wriddh patiyon ki yaad i jo jawan biwiyon se jhiDakiya khakar bhi dant niporte rahte hain shayad aayu ke adhik antar se man mein hinta ki bhawna ka sanchar hona swabhawik hai
pure din unhonne mujhe apne yahan roke rakha mujhe bhi yahan baDi shanti mili landan ki bheeD aur wyast jiwan ne dimagh ko bojhil bana diya tha purane dinon ko yaad kar hum donon kabhi khoob hanste to kabhi unhi mein Doob jate the hum donon ne Dhaka, narayanganj aur khulna aadi patsan ke kendro ki bahut bar ek sath yatra ki thi baDi aarju ke baad pati patni donon ne chh baje sham ko nashta karane ke baad landan wapas aane diya station tak apni kar mein pahunchane aaye
landan pahuncha, us samay aath baj chuke the zoro ki barish ho rahi thi apne ek bharatiy mitr ke putr ke wishesh agrah par aath baje uske ghar par bhojan karna swikar kar liya tha wo yahan paDhne ke liye bharat se aaya tha kintu ek spenish widhwa se wiwah kar yahi bus gaya tha uska ghar station se qarib barah chaudah meel par tha zoro ki warsha aur mere pas chhata nahin dusre hi din mujhe landan chhoD dena tha atew, ek dukan mein barsati aur bachchon ke liye kuch uphaar kharidkar jab us ke ghar pahuncha to raat ke nau baje chuke the mainne dekha pati patni donon us warsha aur thanD mein meri prtiksha mein saDak par khaDe the unhen bhay tha ki mujhe shayad unka phlet khojne mein diqqat ho der ke karan apne upar lahat si ho rahi thi, unhen is haalat mein dekhkar jhep sa gaya yadi na aata to na jane kitni der tak bhigte rahte
donon baDe khush hue chhota sa do kamro ka phlet tha patni ki man aur pahle pati dwara ek bachchi bhi sath rahti thi pati patni donon kaam kar jiwan nirwah kar rahe the rahan sahn ka star bura nahin tha laDke ki ichha desh jakar pita se milne ki thi par suyog nahin ban pa raha tha
laDka ne bataya ki is muhalle mein aur bhi saikDon bharatiy pariwar hai, jinmen panjabi adhik hai sikkhon ki sankhya bhi kafi hai ye naukari, dukanadari aur majduri karte hain in mein bahuton ne to bharat se apne istri bachchon ko bhi yahan bula liya hai aur sthayi roop mein baste ja rahe hai inmen shadi wiwah riti rasm abhi tak bharatiy hai kabhi kabhi to in awasro par Dholak par geet waghairah bhi hote rahte hai
mausam bahut kharab tha aur raat bhi zyada ho gai thi ichha hote hue bhi yahan ke bhartiyon se mil nahin saka unhen mere aane ki suchana pahle hi de di thi, unmen se kuch milna chahte the bhagra nrity aur geet ka program bhi rakhna chahte the par pahle se program tay nahin ho saka tha
raat barah baje hotel pahuncha dabe paw kamre mein ghus raha tha, dekha ki prabhudyal ji jag rahe hain sansanati thanDi hawa aur zoron ki warsha mein mujhe bahar se lauta na dekhkar pareshan ho rahe the aur meri rah dekh rahe the subah aath baje hi unke pas mein chala gaya tha bistar par paDte hi need aa gai
dusre din subah hamein wiyena ke liye rawana hona tha jaldi hi uthkar nashta ityadi kar taiyar ho gaye nau baje kamre ke darwaze par dastak hui dekha shri hoon ne apne putr ko airport tak pahunchane ke liye bheja tha hamare mana karne par bhi swayan kar apni gaDi se usne airport par pahuncha diya ek Dabba hath mein dete hue usne kaha aap logon ke liye mata ji ne mithaiya bheji hai
bahut warshon mein shrimtihun bharat nahin ja saki thi shayad isiliye apne desh ke logon ke prati sneh aur mamta uDelkar us ki purti kar rahi thi waise itne wyast nagar mein itni phursat kahan aur kise hai jab ki sadharan si aupacharikta nibahni mushkil ho uthti hain mujhe laga shirimati hoon ki mithaiyon ne bharatiy tarike se widai ko madhur bana diya
हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी
‘हिन्दवी डिक्शनरी’ हिंदी और हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों के शब्दों का व्यापक संग्रह है। इसमें अंगिका, अवधी, कन्नौजी, कुमाउँनी, गढ़वाली, बघेली, बज्जिका, बुंदेली, ब्रज, भोजपुरी, मगही, मैथिली और मालवी शामिल हैं। इस शब्दकोश में शब्दों के विस्तृत अर्थ, पर्यायवाची, विलोम, कहावतें और मुहावरे उपलब्ध हैं।