संसार के सभी बड़े शहरों की अपनी-अपनी विशेषता होती है। कोई ऐतिहासिक है तो कोई आधुनिक। किसी का धार्मिक महत्त्व है तो कही चहल-पहल और चुहल है। लंदन में इन सभी बातों का समावेश है। मुझे ऐसा लगा, मानो इस का अपना एक निजी सौष्ठव है जो न मास्को में देखने में आया न पेरिस में। सेंट पाल्स केयेड्रल कल देख चुका था। आज ब्रिटेन का दूसरा बड़ा गिरजा और मठ वेस्टमिंस्टर एबे देखने गया। हज़ारो वर्ष पहले मठ या विहार के रूप में यह बना था। बाद में इसमें परिवर्तन होते गए। फिर भी लंदन की सब से पुरानी इमारतो में यह है।
ईसाइयों में अपने एबे के प्रति बड़ी श्रद्धा रहती है। दरअसल, हमारे यहाँ के मठ या बौद्ध विहारो की ही तरह यह भी साधुओं का आवास है। अंतर केवल इतना है कि हमारे मठ या विहार ईसाइयों के एबे की तरह भव्य नहीं होते। एबे के बड़े-बड़े ऊँचे कक्ष और यहाँ के ईसाई संन्यासियों या साधुओं के पहनावे और चाल में हमें सहज और सरल भाव नहीं लगा जिस का होना वैरागियों या त्यागियों के लिए अपेक्षित है। फिर भी लगन, निष्ठा और कठोर अनुशासनप्रियता के कारण इन की मान्यता इस वैज्ञानिक युग के जनसमाज में भी है।
वेस्टमिंस्टर एबे का प्रभुत्त्व इंग्लैंड के इतिहास और उस की राजनीति पर मध्य युग तक रहा है। शासकों को सदैव यहाँ के प्रधान धर्मयाजक की स्वीकृति लेकर शासन अथवा संविधान में परिवर्तन करना पड़ता था। उन के व्यक्तिगत जीवन और वैवाहिक संबंधों पर भी यदि एबे के कार्डिनल की सहमति नहीं मिलती थी तो स्थिति बड़ी समस्यापूर्ण हो जाती थी। जनता की दृष्टि में कार्डिनल देश के सर्वोच्च धर्माधिकारी थे। उधर सम्राट देश के शासक थे। सत्ता के लिए आपस में इन के संघर्ष होते रहते थे। हेनरी अष्टम के राज्यकाल में दोनों के आपसी संबंध बहुत कटु हो गए थे पर उस ने तलवार के सहारे समस्या सुलझा ली। कार्डिनल बैकेट की गर्दन उतरवा दी गई थी।
यूरोप में गाइड बहुत महँगे पड़ते हैं इसलिए टोलियो में यात्री दर्शनीय स्थानों को देखने जाते हैं। मैं अकेला था इसलिए गाइड साथ नहीं लिया। फिर भी मुझे असुविधा नहीं हुई क्योंकि वहाँ के सहायक पादरी सब प्रकार की जानकारी दे रहे थे। प्राचीन गोथिक शैली पर बना हुआ यह भवन बहुत ही भव्य है। इस के प्रति ब्रिटेन के लोगों में इतनी श्रद्धा है कि सेंट पाल गिरजे की तरह यहाँ भी राष्ट्र के प्रमुख व्यक्तियों को समाधि देकर उन की स्मृति को गौरवान्वित किया जाता है। पिछले 600 वर्षों में सैकड़ों की संख्या में ब्रिटेन के सम्राट सेनापति, वैज्ञानिक यहाँ दफ़नाए गए है। यहीं मैंने हार्डी, लिटन, थेकरे, विलियम स्काट आदि प्रसिद्ध लेखकों की क़ब्रे देखीं। कवियों में किपलिंग, ब्राउनिंग, टेनिसन भी चिरनिद्रा में यहाँ सोए हुए है। मुझे पढ़ने का शोक वर्षों से रहा है। जिन प्रिय लेखकों को इतने समय से पढ़ता-सुनता आ रहा था, उन सभी की समाधि एक ही स्थान पर देखकर मन नाना प्रकार की भावनाओं से भर गया। श्रद्धांत होकर उन की समाधियों पर अपने साथ लाए फूल चढ़ाए।
मेरा ख़याल था कि ब्रिटेन में सर्वाधिक मान सम्राटों के बाद राजनीतिज्ञों को मिलता रहा है। वेस्टमिंस्टर एबे देखने पर इस भ्रम का निवारण हुआ। राजनीतिज्ञ नेताओं से भी कहीं अधिक प्यार ओर इज़्ज़त ब्रिटेन में लेखकों, कवियों और सैनिकों को दी जाती रही है। यही कारण है कि वहाँ की धरती ने जहा शेक्सपीयर, बर्नार्ड शा जैसे साहित्यकार पैदा किए वही वेलिंग्टन और नेलसन जैसे रणबाकुरे भी।
पार्लियामेंट हाउस वेस्टमिंस्टर के पास ही है। उन दिनों सब चल नहीं रहा था इसलिए यहाँ बैठक देखने की इच्छा दबी रह गई। बहरहाल, इस पर लगी विश्वविख्यात विशाल बड़ी 'बिगबेन' को देखकर ही संतोष कर लेना पड़ा। पार्लियामेंट भवन भी गोथिक वास्तु शेली पर बना है। आकर्षक और प्रभावपूर्ण लगता है पर हमारे भारतीय संसद भवन की तरह बड़ा और शानदार नहीं।
दोपहर हो आई थी। लंच के लिए इंडिया हाऊस चला गया। यो तो लंदन में भारतीय ढंग का निरामिप भोजन कई जगह मिल जाता है, पर सस्ते और बढ़िया भोजन की व्यवस्था इंडिया हाऊस (भारतीय दूतावास) में ही है। लंच के समय भारतीय यहाँ काफ़ी संख्या में मिल जाते है। इन की संख्या इतनी अधिक है कि मिलने पर एक-दूसरे के प्रति उतने आकृष्ट नहीं होते जितने कि विदेशो में दूसरी जगह।
इन दिनों उत्तर भारत में जिस तरह इडली, डोसे के प्रति लोगों की रुचि बढ़ती जा रही है उसी तरह यहाँ भी दक्षिण भारतीय इडली, डोसे को मैंने प्रचलित पाया। भारतीयों के अलावा यूरोपीय भी स्वाद बदलने के लिए यहाँ आते है। मिरचों के झाल से उन का 'शीशी' करना देखते ही बनता है। सांभर और रसम के साथ मैंने कई दिनों बाद पेटभर खाया। बिल बना लगभग दस रुपए का स्वदेश के हिसाब से यह ऊँचा ज़रूर था मगर यहाँ के कोहिनूर, ताज आदि रेस्टोरेटों के मुक़ाबले बहुत कम था।
लंदन में तीन दिन रहने का प्रोग्राम था। अतएव इस छोटा-सा अवधि में इस महानगरी के दर्शनीय स्थान देखना चाहता था। खाना खाकर टेम्स के किनारे 700 वर्ष पहले बने हुए टावर ऑफ़ लंदन को देखने गया। टेम्स का नाम स्कूली जीवन से ही सुनता आ रहा था। अँग्रेज़ मित्रों से भी इसकी चर्चा सुनी थी। गंगा, गोदावरी या यमुना के प्रति हमारी जो भक्ति भावना है, भले ही उस प्रकार की भक्ति टेम्स के प्रति अँग्रेज़ों में न हो फिर भी उन में पंजाबियों के दिल का जैसा यही प्यार है जो झेलम के जल में मुसकराता है। यूँ औसत भारतीय इसे देख कर ज़रूर कह देगा, 'नाम बड़े दर्शन छोटे।' हमारी गंगा से इस की लंबाई तो बहुत कम है ही, चौड़ाई भी चौथाई से अधिक न होगी। शायद गहराई ज़्यादा है क्योंकि सैकड़ों छोटे-बड़े जहाज़ इस में चल रहे थे।
टावर ऑफ़ लंदन के बारे में ब्रिटिश इतिहास तथा उपन्यासों में इतनी बार ज़िक्र आ चुका था कि देखने पर कुछ नयापन नहीं लगा। फिर भी टेढ़े-मेढ़े पत्थरों की बनी मोटी दीवारें, ज़ंग खाए लोहे से जड़े लकड़ी के बड़े-बड़े फाटकों से अंदर गुज़रते समय ऐसा लगता है कि बीते इतिहास की कहानी कहने के लिए ये दोनों ओर खड़े है। अंदर के सीलनभरे कमरों से आती हुई हवा कानों में न जाने कितनी आहे, चीख़-पुकार भरने लग जाती है। इसी एक स्थान पर ब्रिटेन के सैकड़ों बड़े-बड़े सामंतों के सिर काटे गए। सर टॉमस मूर, सम्राट अष्टम हेनरी की दो रानिया, महारानी एलिजाबेथ के प्रेमी एसेक्स के अर्ल, न जाने और भी कितने ही। राजद्रोह और देशद्रोह के अपराधी दंडित हो तो कारण समझ में आ सकता है पर आज जो राजारानी का कृपाभाजन है वही कल कोपभाजन बनकर सूली पर चढ़ा दिया जाए तो उन की कृपा से दूर रहने में ही कल्याण है। शाही मुहब्बत की क़ीमत बहुत ही महँगी पड़ी है, हर देश और हर समय में जनता की निंदा के बिना परवा किए जिस सिर को गोद में रखकर न जाने कितनी राते महारानी एलिजाबेथ ने गुज़ारी थी, उसी लार्ड एसेक्स के सिर को प्रेयसी रानी ने कुल्हाड़ी से कटवा दिया। वही कुल्हाड़ी और सिर रखने की अर्ध चंद्राकार लकड़ी की वेदी कितनी जाने लेकर भी वहाँ निर्जीव पड़ी है। न जाने क्यों मुझे भय और कपकपी सी हो आई। मैं उस स्थान से हट आया।
यहाँ दूसरे बहुत सारे तरह-तरह के औज़ार भी देखे जिन से अपराधियों को दंड दिया जाता था। बहुत-सी कालकोठरियाँ भी देखीं, जिन में क़ैदी न तो बैठ सकता है और न लेट ही सकता है। यहाँ तक कि सीधे खड़ा होना भी संभव नहीं। इन्हें देखकर रोमांच हो आता है। मैं यही सोचने लगा कि संसार के सामने आख़िर किस बूते पर अँग्रेज़ अपने को सभ्य कहते रहे हैं। बड़ा ताज्जुब इस बात पर होता है कि अपने आराध्य ईसा मसीह को वे सूली पर बिधा हुआ पूजते रहे है। शारीरिक यातना देना बहुत बड़ा पाप है, इसका बड़ी-बड़ी तस्वीरों, साहित्य और रंगमच द्वारा हज़ारों वर्षों से ये प्रचार करते आ रहे है। फिर क्रॉस से भी कहीं अधिक यंत्रणादायक इन अस्त्रों का वे भला किस प्रकार प्रयोग करते होंगे।
उन अँधेरी, सड़ी कोठरियों से बाहर आया। पास ही एक स्टॉल पर जल्दी से जाकर एक लमनेड लिया। यहीं के एक बुर्ज़ुगनुमा कक्ष में ब्रिटेन के सम्राटो के राजमुकुट, आभूषण और जवाहरात संग्रहीत हैं। इन्हें देखकर अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि सदियों तक ब्रिटेन किस तरह भारत, एशिया और अफ़्रीका से बेशुमार धनदौलत लूटता रहा है। जिस ग्रेट ब्रिटेन की ज़मीन अपने बेटों के मुँह में भरपेट दाना तक देने में असमर्थ है, वहाँ यह बेशुमार दौलत कैसे आई होगी? इस का अंदाज़ तो भारत, बर्मा और अफ़्रीका के देशों की कराहती जर्जर काया से ही लग सकता है।
ब्रिटिश ताज में लगाया गया विश्व का सबसे बड़ा और वजनी हीरा 'स्टार ऑफ़ अफ़्रीका' देखा। इस का वज़न 516 कैरेट है। इसके पास ही हमारा चिर-परिचित कोहनूर भी दमक रहा था जिसकी चमक के सामने दूसरे हीरो की आबरू फीकी पड़ रह थी। वहाँ तरह-तरह के छोटे-बड़े मुकुट रखे थे जिन में नाना प्रकार के अनमोल रत्न लगे थे। मगर कोहेनूर देखते ही मेरा मन अपने देश की 150 वर्ष पहले की बातों पर चला गया।
पंजाबकेसरी महाराजा रणजीतसिंह की सद्य विधवा रानी झिंदा और उसके मासूम बच्चें से दिलीपसिंह की तस्वीर आँखों के सामने आ गई। बेबसी की हालत में इन से जबरन कोहिनूर छीना गया था। महाराजा रणजीतसिंह ने ईस्ट इंडिया कंपनी को उसके बुरे दिनों में सहायता की थी। इस उपकार का उत्तर दिया गया उन का राज्य हड़पकर, कोहिनूर लूटकर और उनके अबोध बच्चे को लंदन ले जाकर शिक्षित करने के बहाने ईसाई बनाकर बाहर निकल आया और टावर ब्रिज पर बड़ा होकर टेम्स का दृश्य देखने लगा। पुल के नीचे मालवाही छोटे-छोटे बोट खड़े थे। इनमें मैले कपड़े पहने हुए मल्लाह शोरबे, मछलियाँ और मांस के बड़े-बड़े टुकड़ों के साथ मोटी-मोटी रोटिया खा रहे थे। मैं मन ही मन इस विडंबना पर मुस्कुरा उठा कि पास ही टावर ऑफ़ लंदन में बेशुमार दौलत को क़ैद कर अँग्रेज़ अपने गौरव को बढ़ा कोशिश कर रहे हैं जबकि क़रीब में उन्हीं के दर्शवासी इस अभावपूर्ण ज़िंदगी के लिए मजबूर है। विषमता सारे संसार में है, भ्रातृत्व और समता का दम तो ज़माने के फ़ैशन के मुताबिक भरा जाता है। इसके झूठे प्रचार की होड़ में जो जीतता है वही सबसे अधिक सभ्य, उदार या समाजवादी समझा जाता है।
दिनभर पैदल घूमता रहा। पैर दुखने लगे। टावर देखने पर मन कुछ खिन्न हो गया सोचा, 'भारत' में अंग्रेज़ी फ़िल्मे तो आती रहती है, क्यो न यहाँ का रंगमच देख लिया जाए। गाइड बुक में देख कर एक थिएटर के साढ़े छः बजे वाले शो में जा बैठा। कॉमिक ड्रामा था। काफ़ी चहलबाज़ी थी, जिसे हमारी भारतीय दृष्टि से अश्लील कहा जाएगा। दर्शक मज़ा ले रहे थे, तालिया बज रही थी, पहले अंक का दृश्य सामने आया। पत्नी के प्रेमी को पति ने संदूक में छिपा पकड़ा है और उसे पीट रहा है। पत्नी पास में सहमी सी खड़ी है। अधिकांश दर्शक महिलाएँ उस प्रेमी के पक्ष में आहे भरने लगी। उनमें से कुछ के पति उनके पास ही बैठे चुपचाप देख रहे थे। मै लक्ष्य कर रहा था कि आज के यूरोपीय समाज में स्वच्छंदता किस हद तक जा पहुँची है। अभिनय रंगमच की सज्जा और आरकेस्ट्रा का स्तर अच्छा था, इस पर संदेह नहीं।
दूसरा दिन लंदन के म्यूज़ियम देखने के लिए सुरक्षित रखा। यहाँ बहुत से संग्रहालय है। इसलिए सुबह जल्दी ही नाश्ता कर सबसे पहले ब्रिटिश म्यूज़ियम गया। यह विश्व के चार बड़े संग्रहालयों में माना जाता है। प्राचीनकाल से अब तक के इतिहास के नाना प्रकार के साक्षी यहाँ बहुत ही करीने से रखे गए है। सर हैस सैलोने नाम के एक करोड़पति डॉक्टर का सन् 1753 में देहांत हुआ। मृत्यु से पूर्व उसने अपनी सारी चल-अचल संपत्ति, ऐतिहासिक संग्रह और पचास हज़ार पुस्तकों को देश के इस शर्त पर दे दिया कि एक बड़ा म्यूज़ियम स्थापित किया जाए।
अपनी संतान के भरण पोषण के लिए उसने केवल दो लाख रुपए सरकार से लिए। यहीं से ब्रिटिश म्यूज़ियम की नीव पड़ी है। आगे चलकर यह विश्व का सर्व मान्य संग्रहालय बन गया। यहाँ हज़ारों व्यक्ति प्रतिदिन शिक्षा और ज्ञानवर्धन के लिए आते रहते है। पृथ्वी के प्रागैतिहासिक युग से आज तक मानव ने किस प्रकार अपना विकास किया है, इसका सिलसिलेवार दिग्दर्शन मूर्तियों और यत्नों के माध्यम से प्रस्तुत किया गया है। जिज्ञासुओं व अवशेषकों की तो यह एक प्रकार से तीर्थ स्थली है। दिन के साढ़े ग्यारह बजे से तीन बजे तक विद्वान प्रोफ़ेसरों द्वारा विभिन्न विषयों पर प्रतिदिन व्याख्यान होते है। इसे अच्छी तरह देखने के लिए महीनों का समय चाहिए। मेरे पास कम समय था, फिर भी दो एक घंटे में जो कुछ देख पाया उससे मुझे कुछ जानकारी मिली।
प्राकृतिक इतिहास संग्रहालय (नेचुरल हिस्ट्री म्यूज़ियम) में कीट-पंतग, पशु-पक्षी आदि को उनके आकार का बनाकर स्वभाविक परिवेश में रखा गया है। प्रागैतिहासिक युग विशालकाय डिनोसोरस, ब्रांटोसोरस नाना प्रकार के प्राणी यहाँ देखने में आए। उसी काल के वृक्ष और पौधे भी देखे। कितना परिश्रम और धैर्य इनके अन्वेषण में लगा होगा। इसमें संदेह नहीं कि परिश्रम अँग्रेज़ों का जातीय गुण है। आज अमरीका या रूस अथवा विश्व के अन्य देश भले ही ब्रिटेन से शक्ति और क्षमता में आगे बढ़ जाए, फिर भी यह मानना पड़ेगा कि ज्ञानवर्धन की प्रेरणा उन्हें बहुत अरसों में अँग्रेज़ों से ही मिली है। पृथ्वी के प्रागैतिहासिक युग का, गिरिकंदराओं का आदिमानव किस प्रकार आत्मरक्षा और संघर्ष करता हुआ आज टेलीविज़न सैट के सामने बैठ सका है, इसका सिलसिलेवार दिग्दर्शन यत्नों और मूर्तियों के माध्यम से कराया गया है। राहुल जी की 'विस्मृति के गर्भ में' पुस्तक में दैत्याकार डिनोसोरसों के बारे में पढ़ा था, आज उनके कंकालों को यहाँ प्रत्यक्ष देखा।
विक्टोरिया अलबर्ट म्यूज़ियम में विश्व के सारे देशों की तरह-तरह की पोशाकें, बर्तन, गहने आदि रखे है। यहाँ मैंने भारतीय मुग़ल बादशाहों, नवाबों और बेग़मों की शाही पोशाकें व आभूषण देखे। औरंगज़ेब के हाथों से स्वर्णाक्षरों में लिखी कुरान देखी। कहना न होगा ये सब यहाँ कैसे पहुँचें होंगे, क़ीमत तो इंग्लैंड ने शायद ही अदा की होगी। वारेन हेस्टिंग्स और क्लाइव की लूट ऐतिहासिक प्रमाण है। रही-सही कसर लार्ड कर्ज़न ने पूरी कर दी।
भूगर्भ ट्रेन से डाटी स्ट्रीट पर आया। मुझे प्रसिद्ध उपन्यासकार चार्ल्स डिकेस का मकान देखना था। इसे उसकी स्मृति में संग्रहालय बना दिया गया है। अब तक जिन बड़े-बड़े म्यूज़ियमों को देखकर आ रहा था, उन की तुलना में यह बहुत ही छोटा है। फिर भी इसका अपना आकर्षण और महत्त्व है। इस महान लेखक ने अपनी क़लम से लोगों के दिल को छूआ था। उसके पाठकों में अँग्रेज़ ही नहीं बल्कि विभिन्न देशों के लोग है। आज भी शरत और प्रेमचंद की तरह चार्ल्स डिकेस यूरोपीय जनसमाज की श्रद्धा और स्नेह का भाव है। इसीलिए यह छोटा सा भवन साहित्यकों का तीर्थ बन गया है। शेक्सपीयर के स्टाफ़र्ड एवेन के स्मारक के बाद विदेशी पर्यटक और साहित्यिक इसे निश्चित रूप से देखते है। यहाँ डिकेस कुछ काल तक रहा था। उसके उपन्यासों की पांडुलिपियाँ भी यहाँ रखी है।
मुझे ख़याल आ गया 'डेविड कापरफ़ील्ड' पढ़ते समय मेरी आँखें भीग गई थीं। किसी मित्र ने कहा कि ऐसी किताबें क्यों पढ़ी जाए जिन से मन में दुख हो। पर आज भी जब दूसरे कामों में मन नहीं लगता तो शरत की 'शेष प्रश्न' अथवा डिकेस को 'डेविड कापरफ़ील्ड' पढ़ने लग जाता हूँ। वे मुझे हमेशा नई लगती है। दिल की गहराई को वे छू लेती है। ग़ज़ब का जादू है डिकेस की क़लम में। खड़ा हुआ उसकी पांडुलिपि देख रहा था, एकएक करके डेविड, मर्डस्टोन, एमिली, मिकावर आदि चरित्र जैसे सामने आकर मेरे परिचित वाक्य बोलते से लगे।
सोचने लगा, हमारे यहाँ भी तो वाल्मीकि, कालिदास, तुलसी, भूषण आदि महान कवि हो गए हैं। हम ने उन के स्मारक क्यों नहीं बनाए? शायद पठन-पाठन से ही उनकी स्मृति बनाए रखने की परंपरा हमारे यहाँ रही हो या नश्वरता के प्रति हम सदैव उदासीन रहे हैं। इसी कारण से ब्रिटिश काल के पूर्व तक के व्यक्तियों के स्मारक नहीं बनाए गए मुग़ल बादशाहों या नवाबों और फ़क़ीरपीरों की क़ब्रों या क़िलों के रूप में ज़रूर कुछ स्मारक मिल जाते है। जो भी हो, स्मारकों का भी अपना महत्व कम नहीं है।
दोपहर का भोजन किया भारतीय विद्यार्थी क्लब में ब्रिटेन में हज़ारों की संख्या में भारतीय विद्यार्थी पढ़ रहे है। अपनी सुविधा के लिए इन्होंने लंदन में कोआपरेटिव के तौर पर यह कैंटीन चला रखी है। चीज़ें अच्छी मिलती है और दाम बहुत ही कम। भीड़ इतनी रहती है कि बैठने की जगह आसानी से नहीं मिलती।
भोजन के बाद ट्राफ़ल्गर स्क्वायर की नेशनल आर्ट गैलरी देखने गया। बहुत विशाल भवन है। इस में पिछले 500 वर्षों के बड़े-छोटे चित्रों का सुंदर-संग्रह है। ये चित्र विश्व के प्रसिद्ध चित्रकारों के बनाए हुए है। चित्रों के संकलन का शौक़ सभी देशों को है। इसके लिए बड़ी-बड़ी धनराशियाँ ख़र्च की जाती है। रोम के वेटिकन और फ़्रांस के लुब्रे के संग्रह के बाद बाक़ी बचे हुए नामी चित्रों के लिए विश्व के देशों में होड़ सी लगी रहती है। इस दिशा में अमरीका से टक्कर लेना कठिन है।
फिर भी ब्रिटेन के धनी और संपन्न व्यक्ति उदारतापूर्वक अलभ्य चित्रों को ख़रीदते रहते हैं और अपने अमूल्य संग्रह इस गैलरी को भेंट कर देते हैं। यही कारण है कि यह विश्व की चुनी हुई आर्ट गैलरियों में मानी जाती है।
ब्रिटेन में मृत्यु कर की दर बहुत अधिक है, पर कला की वस्तुओं पर छूट है। इसलिए यहाँ के धनी मरने से पहले अपनी संपत्ति से दुर्लभ चित्रों को ख़रीद लेते है। समय पाकर उनके उत्तराधिकारियों द्वारा वे चित्र इस गैलरी को भेंटकर दिए जाते हैं। इससे उन की स्मृति बनी रहती है और राष्ट्र का गौरव भी बढ़ता है।
इस गैलरी के एक कक्ष में भारत के कागड़ा, किशनगढ़, राजपूत, मुग़ल और पटना शैली के अलभ्य चित्र देखे। मैं चित्रकला का पारखी तो नहीं हूँ पर देखने में ये मुझे बहुत ही बेहतरीन लगे। अन्य देशों से इन में बारीक़ी और रंगों के संतुलन का सम्मिश्रण अधिक स्पष्ट लगा। अधिकाश चित्र कृष्ण और राधा की पौराणिक कथाओं पर आधारित है ऋतु और रागमालाओं के चित्रों का भी अच्छा संग्रह है। क्यूरेटर से बातें करने पर पता चला कि भारतीय तूलिका के संबंध में उनको यथेष्ट ज्ञान है। उनसे यह भी पता चला कि बहुत से चित्र भारत से ख़रीदकर मँगाए गए है कुछ भेट स्वरूप भी आए है।
मैंने सुना था कि बहुत से चित्र तो हमारे राजे-महाराजों ने बहुत सस्ते दामों पर बेच दिए थे या फिर अँग्रेज़ों को ख़ुश करने के लिए भेट में दिए थे। अपने देश के गौरव की बुद्धि के प्रति हमारे यहाँ की उदासीन मनोवृति का परिचय पाकर ग्लानि सी हुई। आज भी बहुत से चित्र मंदिरों में पड़े हैं या रईसों, राजेरजवाड़ों के पास बेकार पड़े हैं। उन्हें यदि काशी विश्वविद्यालय के भारत कला भवन या दिल्ली की नेशनल गैलरी को दे दिया जाए तो भारतीय चित्रकला के प्रति बहुत बड़ा उपकार हो सकता है।
गैलरी देखकर फाटक के बाहर आया सामने ही एडमिरल लाई नेलमन की बहुत ही बडी मूर्ति ऊँचे चबूतरे पर खड़ी है। सन् 1792 में 1805 ईसवी तक सारा यूरोप नेपोलियन के युद्धों से आतंकित हो उठा था। उस की सेनाएँ यूरोप के प्रायः सभी देशों को रौंद चुकी थी। केवल ब्रिटेन अपनी भौगोलिक स्थिति के कारण बचा हुआ था। नेपोलियन ने बड़ी ज़बरदस्त तैयारी से ब्रिटेन की चौतरफ़ा नाकेबंदी की। सन् 1805 में एक बहुत बड़े जहाज़ी बेड़े को लेकर उस ने ट्राफ़ल्गर की खाड़ी में ब्रिटेन की नौशक्ति को ख़त्म करने के लिए हमला कर दिया। ब्रिटेन का जहाज़ी बेडा छोटा था, पर नेलसन की निपुण रणचातुरी के कारण फ्रांस की अजेय सेना को हार खानी पड़ी। उस की हिम्मत पूरी तौर से पस्त हो गई।
इतिहासकारों का कहना है कि इतनी बड़ी समुद्री लड़ाई पहले कभी नहीं हुई थी। इस युद्ध में ब्रिटेन जीता ज़रूर मगर उसे नेलसन को खोना पड़ा। नेलसन के मुँह में मृत्यु के समय निकले ये शब्द अमर हो गए, 'हे प्रभु, तुम्हारी कृपा से अपने कर्तव्य का पालन पूरी तौर पर कर सका।' इसी युद्ध का परिणाम था कि पिछले महायुद्ध तक ब्रिटेन की नौशक्ति का लोहा दुनिया में सभी मानते थे।
कलकत्ता की तरह सदन में टैक्सियों की कमी नहीं है। फिर भी यहाँ आमतौर पर लोग बसों या भूगर्भ ट्रेनों से यात्रा करते है। यहाँ के टैक्सी ड्राइवर मुझे रूखे से लगे। किराए के अलावा टिप देने की परिपाटी यहाँ है। इस वज़ह से विदेशियों को बड़ी परेशानी होती है क्योंकि उन्हें मालूम नहीं रहता कि किस हिसाब से देना चाहिए। अधिकांश टैक्सी वाले ऐसी स्थिति में रूखा सा व्यवहार करते हैं, ख़ास तौर से उनके साथ जो गोरे रंग के नहीं होते। मुझे एक बार इस प्रकार का व्यक्तिगत अनुभव हो चुका था। इसलिए मैंने सदन में दोबारा टैक्सी नहीं की।
शाम हो रही थी। मै लंदन का प्रसिद्ध बाग हाइड पार्क देखने निकल गया। बीच में सरपेंटाइन झील है। पृथ्वी के दूसरे किसी भी शहर में इतना बड़ा मैदान शहर के बीच में नहीं होगा। कलकत्ते के क़िले का मैदान काफ़ी विस्तृत माना जाता है पर वह भी इस के मुक़ाबले में छोटा है। वैसे तो लंदन में रीजेंट, सेट जेम्स, कैसिंगटन आदि अन्यान्य पार्क भी है पर हाइड पार्क की तो बात ही न्यारी है। शाम के समय बीसियों सिरफिरे स्टूल पर खड़े होकर व्याख्यान देते यहाँ मिल जाएँगे। श्रोता भी जुट जाते हैं। मनोरंजन के सिवा कुछ ध्यान देकर सुनने वाले भी रहते है। बीच-बीच में हँसी-मज़ाक कर लेते है। वक्ता जिस विषय पर चाहे बोल सकता है, कोई रोकटोक या कानूनी पाबंदी नहीं है। एक जगह में भी खड़ा होकर सुनने लगा। श्रोताओं की संख्या लगभग साठ-सत्तर रही होगी। वक्ता कह रहा था स्त्रियाँ बदतमीज़ होती जा रही है। इनको यदि समय रहते नहीं संभाला गया तो ब्रिटिश जाति का पतन हो जाएगा। आप मुझ जैसा फटेहाल देख रहे हैं उस का कारण है स्त्रियों की स्वच्छंदता। मेरी एक प्रेयसी है, ख़ूबसूरत है, लाजवाब है।
मुसीबत आ पड़ी है कि उस की बुढ़िया चाची मेरे ऊपर डोरे डाल रही है। बुढ़िया दौलतमद है। नाना प्रकार के उपहार रोज़ मेरे पास भेज देती है। नतीज़ा क्या हो सकता है, इसे आप ख़ुद समझ सकते है। यानी मै बदनसीबी का मारा उस खूँसट बुढ़िया के चंगुल में फस गया हूँ। इधर मेरी प्रेयसी मुझ से रूठ गई है। अब आप ही बताए मैं क्या करूँ।
मैंने देखा वहाँ खड़ी औरते उसकी बातों में हँस-हँसकर रस ले रही थी। दो-एक ने उससे कहा, महाशय, आप उन दोनों का पता बताएँ। हम बुढ़िया को समझाकर आप की प्रेमिका को मना लेंगी।
कुछ दूर आगे बढ़कर देखा, एक व्यक्ति भारत के विरोध में अनर्गल प्रचार कर रहे है। बड़ा आश्चर्य हुआ और ख़ेद भी। बाद में पता चला कि पाकिस्तान ने अपने कई विद्यार्थियों तथा अन्य व्यक्तियों को नियमित रूप से इस ढंग के प्रचार के लिए लगा रखा है।
कहीं एक कोने में अणुबम विरोधी भाषण सुनने में आया तो कहीं इंग्लैंड की विदेश नीति की कटु आलोचना भाषण सुनते-सुनते लगभग आठ बज गए लौटने लगा तो देखा पिंप (औरतों के दलाल) चक्कर लगा रहे है। इन की चाल और हावभाव से पता चल जाता है कि वे दलाल हैं। इन के इर्द-गिर्द दो-एक लड़कियाँ घूमती-फिरती या बैठी रहती है। यो तो लंदन में कानूनन वेश्यावृत्ति बंद है पर ग्राहक को अपने साथ घर ले जाने की छूट है।
पार्क में एक जगह बैंच पर जाकर बैठ गया। आस-पास की बैंचों पर पुरुषों और लड़कियों की उपस्थिति का अर्थ स्पष्ट हो गया। सोचने लगा, हमारे यहाँ अत्यधिक गरीबी से अधिकतर स्त्रियाँ मजबूर होकर अपने तन का सौदा करती है, मगर इस प्रकार सार्वजनिक पार्कों में ऐसी हरकते नहीं होती। ब्रिटेन के लोग अपनी सभ्यता और शालीनता की डींग एशियाई मुल्कों में हाँकते रहते है पर उनकी असलियत की कलई तो हाइड पार्क में ही खुलती है। चुंबन और आलिंगन में आगे के दृश्य भी यहाँ देखने में आए। रूम को छोड़कर यूरोप के प्रायः सभी देशों में यह है।
थोड़ी देर वहाँ विश्राम कर अपने होटल वापस आया। दिनभर की थकान का बोझ था। नींद नहीं आ रही थी। तरह-तरह के विचार मन में आते गए। हमारे देश में विदेशी यात्री कम क्यों आते हैं? इसका एक बड़ा कारण शायद यह भी हो सकता है कि विदेशियों को मौजबहार की वह छूट हमारे यहाँ नहीं मिलती जो अन्यान्य देशों में है। पर हम ख़ुश हैं कि पेरिस, वेनिम और लंदन की तरह-तरह अनैतिक और कामोत्तेजक मनोरजनों द्वारा पैसे बटोरना हम ने या हमारी सरकार ने अच्छा नहीं माना है।
मैं जिस होटल में ठहरा था वह साधारण ढंग का था। यहाँ नाश्ते के लिए क्यों में खड़ा होना पड़ता है वैसे तो लंदन में रेस्तराँ बहुत है। पर होटल के किराए में नाश्ता भी शामिल था इसलिए पेटभर नाश्ता कर सारे दिन के लिए छुट्टी पा जाता था। विदेशों में पैसों की बचत का यदि विशेष ध्यान रखा जाए तो बहुत कम ख़र्च में काम चल सकता है।
नाश्ते के बाद सब में पहले बकिंघम महल देखने गया। महल के प्रति मेरा कोई विशेष आकर्षण नहीं या पर यहाँ प्रहरियों के पानी बदली का दृश्य बड़ा शानदार रहता है, उसे देखना था। मेरी तरह वहाँ बहुत से लोग उस विशेष समय की प्रतिक्षा में खड़े थे।
ब्रिटेन की विशेषता यह रही है कि वहाँ अपनी परंपरा के प्रति श्रद्धा है। अँग्रेज़ों ने समाज के ढाँचे का बहुत कुछ बदल दिया है पर ऐतिहासिक परंपरा को आज भी सावधानी से संजोए हुए हैं। सैकड़ों वर्ष पहले जिस ढंग की पोशाक में राजा के महलों में प्रहरी तैनात रहते थे, आज भी उसी प्रकार तैनात रहते है। रात के पहरेदार सुबह जब बदलते हैं तो एक ख़ास कवायद के साथ। बड़ा प्रभावपूर्ण दृश्य लगता है। सब की पोशाक एक सी, एक से अस्त्र-शस्त्र में लैस, एक से घोड़े, एक सी चाल, चेहरे पर गंभीर निर्विकार भाव। बच्चों को देखा, बड़ी उत्सुकता से मगर आँखों में कुछ डर लिए, पहरेदारी की बदली देख रहे थे।
यहाँ से थोड़ी दूरी पर इंग्लैंड के प्रधान मंत्री का 10 डाईनिंग स्ट्रीट नाम का सरकारी निवास है। तीन मंज़िलों का छोटा-सा पुराने ढंग का मकान है। इस में न बाग है, न लॉन है। वर्षों से यहाँ इंग्लैंड के प्रधानमंत्री रहते आए हैं। देखकर आश्चर्य होता है कि इतने संपन्न और विशाल ब्रिटिश साम्राज्य के प्रधानमंत्री का घर भी यहीं और दफ़्तर भी। और हमारे यहाँ? हम गरीब हैं, दुनिया के सामने हाथ भी पसारते है। मगर हमारे मंत्रियों के सरकारी निवास। वे तो कहीं शानदार और सजीले है। वैसे, हम गाँधीजी के आदर्शों की दुहाई देते रहते है।
मैडम तुसान के संग्रहों का उल्लेख स्वर्गीय राहुल जी ने एक बार मुझ में किया था। लंदन पर लिखी गई अन्य पुस्तकों में भी इस का ज़िक्र पढ़ा या वास्तव में अपने का यह एक नायाब संग्रह है। मोम की बनी 300 आदमकद प्रतिमाएँ यहाँ है। उतनी स्वाभाविक है कि मानों जीवित व्यक्ति के सामने हम बड़े हैं और ऐसा लगता है कि अब ये कुछ बोलेंगे। विश्व के प्रायः सभी देशों के शीर्ष लेखक, कलाकार, वैज्ञानिक, राजारानी और राजनीतिक नेताओं की मूर्तियाँ यहाँ देखीं।
महात्मा गाँधी और नेहरू जी की मूर्तियों को देखकर लगा कि चलो अँग्रेज़ों ने इसे माना तो सही कि विश्व को दिशादान देने में भारत का भी योग रहा है।
टावर ऑफ़ लंदन में जिन दंडशालाओं और दंड देने के औज़ारो का ज़िक्र आया है, उन की झाँकी यहाँ देखने में आई। कही जीवित व्यक्तियों को जलाया जा रहा है तो कहीं लाल तपी सलाखों में उनकी आँखें फोड़ी जा रही है। कहीं सिर तोड़ा जा रहा है तो कहीं काटे गड़ाए जा रहे है। बड़े भयकर और वीभत्स दृश्य देखने में आए।
मध्यकालीन यूरोप के इतिहास में पढ़ने में आता है कि उन दिनों बड़े अमानुषिक तरीकों में वध किया जाता था और लोग इसे देखने के लिए इकट्ठे होते थे। पेरिस और रोम में तो वध के स्थान पर हज़ारों की भीड़ लग जाती थी। स्त्री-पुरुष सज-धजकर देखने आते थे। बैठने के स्थानों के आरक्षण का चार्ज रहता था। ड्यूमा के 'काउंट ऑफ़ माटेक्रिस्टों' में इसका अच्छा वर्णन है। भारत में मुग़लकाल में क्रूरता के साथ वध करने के दृष्टांत है, पर जनता की रुचि मनोरंजन के लिए ऐसे नज़ारे देखने की रही है, यह कहीं भी नहीं मिलता, पता नहीं सभ्य यूरोप और हमारे यहाँ यह अंतर कैसे रह गया?
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mainne dekha wahan khaDi aurte uski baton mein hans hansakar ras le rahi thi do ek ne usse kaha, “mahashay, aap un donon ka pata batayen hum buDhiya ko samjhakar aap ki premika ko mana lengi ”
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kahin ek kone mein anaubam wirodhi bhashan sunne mein aaya to kahin inglainD ki widesh niti ki katu alochana bhashan sunte sunte lagbhag aath baj gaye lautne laga to dekha pimp (aurton ke dalal) chakkar laga rahe hai in ki chaal aur hawbhaw se pata chal jata hai ki we dalal hai in ke irdagird do ek laDakiyan ghumti phirti ya baithi rahti hai yo to landan mein kanunan weshyawritti band hai par gerahak ko apne sath ghar le jane ki chhoot hai
park mein ek jagah bainch par jakar baith gaya aas pas ki bainchon par purushon aur laDakiyon ki upasthiti ka arth aspasht ho gaya sochne laga, hamare yahan atyadhik garibi se adhiktar striyan majbur hokar apne tan ka sauda karti hai, magar is prakar sarwajnik parkon mein aisi harakte nahin hoti briten ke log apni sabhyata aur shalinata ki Deeng asiai mulkon mein hankte rahte hai par unki asliyat ki kali to haiD park mein hi khulti hai chumban aur alingan mein aage ke drishya bhi yahan dekhne mein aaye room ko chhoDkar europe ke prayः sabhi deshon mein ye hai
thoDi der wahan wishram kar apne hotel wapas aaya dinbhar ki thakan ka bojh tha neend nahin aa rahi thi tarah tarah ke wichar man mein aate gaye hamare desh mein wideshi yatri kam kyon aate hain? iska ek baDa karan shayad ye bhi ho sakta hai ki wideshiyon ko maujabhar ki wo chhoot hamare yahan nahin milti jo anyany deshon mein hai par hum khush hain ki peris, wenim aur landan ki tarah tarah anaitik aur kamottejak manorajnon dwara paise batorna hum ne ya hamari sarkar ne achchha nahin mana hai
main jis hotel mein thahra tha wo sadharan Dhang ka tha yahan nashte ke liye kyu mein khaDa hona paDta hai waise to landan mein restra bahut hai par hotel ke kiraye mein nashta bhi shamil tha isliye petbhar nashta kar sare din ke liye chhutti pa jata tha wideshon mein paison ki bachat ka yadi wishesh dhyan rakha jaye to bahut kam kharch mein kaam chal sakta hai
nashte ke baad sab mein pahle bakingham mahl dekhne gaya mahl ke prati mera koi wishesh akarshan nahin ya par yahan prahariyon ke pani badli ka drishya baDa shanadar rahta hai, use dekhana tha meri tarah wahan bahut se log us wishesh samay ki prtiksha mein khaDe the
briten ki wisheshata ye rahi hai ki wahan apni parampara ke prati shardha hai angrezo ne samaj ke Dhanche ka bahut kuch badal diya hai par aitihasik parampara ko aaj bhi sawadhani se sanjoe hue hain saikDon warsh pahle jis Dhang ki poshak mein raja ke mahlon mein prahri tainat rahte the, aaj bhi usi prakar tainat rahte hai raat ke pahredar subah jab badalte hain to ek khas kawayad ke sath baDa prabhawapurn drishya lagta hai sab ki poshak ek si, ek se astrshastr mein lais, ek se ghoDe, ek si chaal, chehre par gambhir nirwikar bhaw bachchon ko dekha, baDi utsukta se magar ankhon mein kuch Dar liye, pahredari ki badli dekh rahe the
yahan se thoDi duri par inglainD ke pardhan mantri ka 10 Dauning street nam ka sarkari niwas hai teen manjilon ka chhota sa purane Dhang ka makan hai is mein na bag hai, na lawn hai warshon se yahan inglainD ke prdhanmantri rahte aaye hain dekhkar ashchary hota hai ki itne sampann aur wishal british samrajy ke prdhanmantri ka ghar bhi yahin aur daftar bhi aur hamare yahan hum garib hai, duniya ke samne hath bhi pasarte hai magar hamare mantriyon ke sarkari niwas we to kahin shanadar aur sajile hai waise, hum gandhiji ke adarshon ki duhai dete rahte hai
maiDam tusan ke sangrhon ka ullekh saurgiyah rahul ji ne ek bar mujh mein kiya tha landan par likhi gai any pustkon mein bhi is ka zikr paDha ya wastaw mein apne ka ye ek nayab sangrah hai mom ki bani 300 adamkam pratimayen yahan hai utni swabhawik hai ki manon jiwit wekti ke samne hum baDe hain aur aisa lagta hai ki ab ye kuch bolenge wishw ke prayः sabhi deshon ke sheersh lekhak, kalakar, waigyanik, rajarani aur rajnitik netao ki murtiya yahan dekhin
mahatma gandhi aur nehru ji ki murtiyon ko dekhkar laga ki chalo angrezon ne ise mana to sahi ki wishw ko dishadan dene mein bharat ka bhi yog raha hai
tower auph landan mein jin danDshalaon aur danD dene ke auzaro ka zikr aaya hai, un ki jhanki yahan dekhne mein i kahi jiwit wyaktiyon ko jalaya ja raha hai to kahin lal tapi salakhon mein unki ankhen phoDi ja rahi hai kahin sir toDa ja raha hai to kahin kate gaDaye ja rahe hai baDe bhaykar aur wibhats drishya dekhne mein aaye
madhyakalin europe ke itihas mein paDhne mein aata hai ki un dinon baDe amanushaik tarikon mein wadh kiya jata tha aur log ise dekhne ke liye ikatthe hote the peris aur rom mein to wadh ke sthan par hazaron ki bheeD lag jati thi istri purush saj dhajkar dekhne aate the baithne ke sthanon ke arakshan ka charge rahta tha Dyuma ke kaut auph matekriston mein iska achchha warnan hai bharat mein mughalkal mein krurata ke sath wadh karne ke drishtant hai, par janta ki ruchi manoranjan ke liye aise nazare dekhne ki rahi hai, ye kahin bhi nahin milta, pata nahin sabhy europe aur hamare yahan ye antar kaise rah gaya?
sansar ke sabhi baDe shahron ki apni apni wisheshata hoti hai koi aitihasik hai to koi adhunik kisi ka dharmik mahattw hai to kahi chahl pahal aur chuhal hai landan mein in sabhi baton ka samawesh hai mujhe aisa laga, mano is ka apna ek niji saushthaw hai jo na masco mein dekhne mein aaya na peris mein set pals keyeDral kal dekh chuka tha aaj briten ka dusra baDa girja aur math westminstar ebe dekhne gaya hazaro warsh pahle math ya wihar ke roop mein ye bana tha baad mein ismen pariwartan hote gaye phir bhi landan ki sab se purani imarto mein ye hai
isaiyon mein apne ebe ke prati baDi shardha rahti hai darasal, hamare yahan ke math ya bauddh wiharo ki hi tarah ye bhi sadhuon ka awas hai antar kewal itna hai ki hamare math ya wihar isaiyon ke ebe ki tarah bhawy nahin hote ebe ke baDe baDe unche kaksh aur yahan ke isai sannyasiyon ya sadhuon ke pahnawe aur chaal mein hamein sahj aur saral bhaw nahin laga jis ka hona wairagiyo ya tyagiyon ke liye apekshait hai phir bhi lagan, nishtha aur kathor anushasnapriyta ke karan in ki manyata is waigyanik yug ke janasmaj mein bhi hai
westaministar ebe ka prbhuttw inglainD ke itihas aur us ki rajaniti par madhya yug tak raha hai shasko ko sadaiw yahan ke pardhan dharmyajak ki swikriti lekar shasan athwa sanwidhan mein pariwartan karna paDta tha un ke wyaktigat jiwan aur waiwahik sambandhon par bhi yadi ebe ke karDinal ki sahamti nahin milti thi to sthiti baDi samasyapurn ho jati thi janta ki drishti mein karDinal desh ke sarwochch dharmadhikari the udhar samrat desh ke shasak the satta ke liye aapas mein in ke sangharsh hote rahte the henri ashtam ke rajykal mein donon ke aapsi sambandh bahut katu ho gaye the par us ne talwar ke sahare samasya suljha li karDinal waiket ki gardan utarwa di gai thi
europe mein guide bahut mahnge paDte hain isliye toliyo mein yatri darshaniy sthanon ko dekhne jate hain main akela tha isliye guide sath nahin liya phir bhi mujhe asuwidha nahin hui kyonki wahan ke sahayak padari sab prakar ki jankari de rahe the prachin gothik shaili par bana hua ye bhawan bahut hi bhawy hai is ke prati briten ke logon mein itni shardha hai ki sent pal girje ki tarah yahan bhi rashtra ke pramukh wyaktiyon ko samadhi dekar un ki smriti ko gaurawanwit kiya jata hai pichhle 600 warshon mein saikDon ki sankhya mein briten ke samrat senapati, waigyanik yahan dafnaye gaye hai yahin mainne harDi, litan, thekre, wiliyam skat aadi prasiddh lekhkon ki qabre dekhin kawiyon mein kipling, braunig, tenisan bhi chirnidra mein yahan soe hue hai mujhe paDhne ka shok warshon se raha hai jin priy lekhkon ko itne samay se paDhta sunta aa raha tha, un sabhi ki samadhi ek hi sthan par dekhkar man nana prakar ki bhawnaon se bhar gaya shraddhant hokar un ki samadhiyon par apne sath laye phool chaDhaye
mera khayal tha ki briten mein sarwadhik man samrato ke baad rajnitigyon ko milta raha hai westminstar ebe dekhne par is bhram ka niwaran hua rajnitigya netaon se bhi kahin adhik pyar or izzat briten mein lekhkon, kawiyon aur sainikon ko di jati rahi hai yahi karan hai ki wahan ki dharti ne jaha shekspiyar, barnarD sha jaise sahityakar paida kiye wahi welingtan aur nelsan jaise ranbakure bhi
parliyament house westmistar ke pas hi hai un dinon sab chal nahin raha tha isliye yahan baithak dekhne ki ichha dabi rah gai baharhal, is par lagi wishwwikhyat wishal baDi bigben ko dekhkar hi santosh kar lena paDa parliyament bhawan bhi gothik wastu sheli par bana hai akarshak aur prabhawapurn lagta hai par hamare bharatiy sansad bhawan ki tarah baDa aur shanadar nahin
dopahar ho i thi lanch ke liye inDiya house chala gaya yo to landan mein bharatiy Dhang ka niramip bhojan kai jagah mil jata hai, par saste aur baDhiya bhojan ki wyawastha inDiya haus (bharatiy dutawas) mein hi hai lanch ke samay bharatiy yahan kafi sankhya mein mil jate hai in ki sakhya itni adhik hai ki milne par ekdusre ke prati utne akrisht nahin hote jitne ki widesho mein dusri jagah
in dinon uttar bharat mein jis tarah iDli, Dose ke prati logon ki ruchi baDhti ja rahi hai usi tarah yahan bhi dakshain bharatiy iDli, Dose ko mainne prachalit paya bhartiyon ke alawa yuropiy bhi swad badalne ke liye yahan aate hai mircho ke jhaal se un ka shishi karna dekhte hi banta hai sambhar aur rasam ke sath mainne kai dinon baad petbhar khaya bil bana lagbhag das rupae ka swadesh ke hisab se ye uncha zarur tha magar yahan ke kohinur, taj aadi restoreton ke muqable bahut kam tha
landan mein teen din rahne ka program tha atew is chhota sa awadhi mein is mahanagri ke darshaniy sthan dekhana chahta tha khana khakar tems ke kinare 700 warsh pahle bane hue tower auph landan ko dekhne gaya tems ka nam skuli jiwan se hi sunta aa raha tha angrez mitron se bhi iski charcha suni thi ganga, godawari ya yamuna ke prati hamari jo bhakti bhawna hai, bhale hi us prakar ki bhakti tems ke prati angrezon mein na ho phir bhi un mein panjabiyon ke dil jaisa wahi pyar hai jo jhelam ke jal mein musakrata hai yu, ausat bharatiy ise dekh kar zarur kah dega, nam baDe darshan chhote hamari ganga se is ki labai to bahut kam hai hi, chauDai bhi chauthai se adhik na hogi shayad gahrai zyada hai kyonki saikDon chhote baDe jahaz is mein chal rahe the
tower auph landan ke bare mein british itihas tatha upanyason mein itni bar zikr aa chuka tha ki dekhne par kuch nayapan nahin laga phir bhi teDhe meinDhe patthron ki bani moti diwaren, jang khaye lohe se jaDe lakDi ke baDe baDe phatkon se andar guzarte samay aisa lagta hai ki bite itihas ki kahani kahne ke liye ye donon or khaDe hai andar ke silanabhre kamron se aati hui hawa kano mein na jane kitni aahe, chikhapukar bharne lag jati hai isi ek sthan par briten ke saikDo baDe baDe samanton ke sir kate gaye sar taumas moor, samrat ashtam henri ki do raniya, maharani elijabeth ke premi eseks ke arl, na jane aur bhi kitne hi rajadroh aur deshadroh ke apradhi danDit ho to karan samajh mein aa sakta hai par aaj jo rajarani ka krinabhajan hai wahi kal kopbhajan bankar suli par chaDha diya jaye to un ki kripa se door rahne mein hi kalyan hai shahi muhabbat ki qimat bahut hi mahngi paDi hai, har desh aur har samay mein janta ki ninda ke bina parwa kiye jis sir ko god mein rakhkar na jane kitni rate maharani elijabeth ne gujari thi, usi lord eseks ke sir ko preyasi rani ne kulhaDi se katwa diya wahi kulhaDi aur sir rakhne ki ardh chandrakar lakDi ki wedi kitni jane lekar bhi wahan nirjiw paDi hai na jane kyon mujhe bhay aur kapkapi si ho i main us sthan se hat aaya
yahan dusre bahut sare tarah tarah ke auzar bhi dekhe jin se apradhiyon ko danD diya jata tha bahut si kalkothariyan bhi dekhin, jin mein qaidi na to baith sakta hai aur na let hi sakta hai yahan tak ki sidhe khaDa hona bhi sambhaw nahin inhen dekhkar romanch ho aata hai main yahi sochne laga ki sansar ke samne akhir kis bute par angrez apne ko sabhy kahte rahe hain baDa tajjub is baat par hota hai ki apne aradhy isa masih ko we suli par bidha hua pujte rahe hai sharirik yatana dena bahut baDa pap hai, iska baDi baDi taswiron, sahity aur rangmach dwara hazaron warshon se ye parchar karte aa rahe hai phir cross se bhi kahin adhik yantrnadayak in astron ka we bhala kis prakar prayog karte honge
un andheri, saDi kothariyon se bahar aaya pas hi ek stall par jaldi se jakar ek lamneD liya yahin ke ek burzuganuma kaksh mein briten ke samrato ke rajamukut, abhushan aur jawaharat sangrhit hain inhen dekhkar andaza lagaya ja sakta hai ki sadiyon tak briten kis tarah bharat, asia aur afrika se beshumar dhandaulat lutta raha hai jis great briten ki zamin apne beton ke munh mein bharpet dana tak dene mein asmarth hai, wahan ye beshumar daulat kaise i hogi? is ka andaz to bharat, barma aur afrika ke deshon ki karahti jarzar kaya se hi lag sakta hai
british taj mein lagaya gaya wishw ka sabse baDa aur wajni hira star auph afrika dekha is ka wazan 516 kairet hai iske pas hi hamara chiraprichit kohnur bhi damak raha tha jiski chamak ke samne dusre hero ki aabru phiki paD rah thi wahan tarah tarah ke chhote baDe mukut rakhe the jin mein nana prakar ke anmol ratn lage the magar kohenur dekhte hi mera man apne desh ki 150 warsh pahle ki baton par chala gaya
panjabkesri maharaja ranjitsinh ki sady widhwa rani jhinda aur uske masum bachchen se dilipsinh ki taswir ankhon ke samne aa gai bebasi ki haalat mein in se jabran kohinur chhina gaya tha maharaja ranjitsinh ne east inDiya kampni ko uske bure dinon mein sahayata ki thi is upkar ka uttar diya gaya un ka rajy haDapkar, kohinur lutkar aur unke abodh bachche ko landan le jakar shikshait karne ke bahane isai banakar bahar nikal aaya aur tower bridge par baDa hokar tems ka drishya dekhne laga pul ke niche malawahi chhote chhote bote khaDe the inmen maile kapDe pahne hue mallah shorbe, machhliyan aur mans ke baDe baDe tukDon ke sath moti moti rotiya kha rahe the main man hi man is wiDabna par musakra utha ki pas hi tower auph landan mein beshumar daulat ko qaid kar angrez apne gauraw ko baDha koshish kar rahe hain jabki qarib mein unhin ke darshwasi is abhawpurn zindagi ke liye majbur hai wishamata sare sansar mein hai, bhratritw aur samta ka dam to zamane ke faishan ke mutabik bhara jata hai iske jhuthe parchar ki hoD mein jo jitta hai wahi sabse adhik sabhy, udar ya samajwadi samjha jata hai
dinbhar paidal ghumta raha pair dukhne lage tower dekhne par man kuch khinn ho gaya socha, bharat mein angrezi philme to aati rahti hai, kyo na yahan ka rangmach dekh liya jaye guide buk mein dekh kar ek thiyetar ke saDhe chh baje wale sho mein ja baitha kamik Drama tha kafi chahalbazi thi, jise hamari bharatiy drishti se ashlil kaha jayega darshak maza le rahe the, taliya baj rahi thi, pahle ank ka drishya samne aaya patni ke premi ko pati ne sanduk mein chhipa pakDa hai aur use peet raha hai patni pas mein sahmi si khaDi hai adhikansh darshak mahilaye us premi ke paksh mein aahe bharne lagi unmen se kuch ke pati unke pas hi baithe chupchap dekh rahe the mai lakshya kar raha tha ki aaj ke yuropiy samaj mein swachchhadta kis had tak ja pahunchi hai abhinay rangmach ki sajja aur arkestra ka star achchha tha, ismamp sandeh nahin
dusra din landan ke myuziyam dekhne ke liye surakshait rakha yahan bahut se sangrhalay hai isliye subah jaldi hi nashta kar sabse pahle british myuziyam gaya ye wishw ke chaar baDe sangrhalyon mein mana jata hai prachin kal se ab tak ke itihas ke nana prakar ke
sakshi yahan bahut hi karine se rakhe gaye hai sar hais sailone nam ke ek karoDapati doctor ka san 1753 mein dehant hua mirtyu se poorw usne apni sari chal achal sampatti, aitihasik sangrah aur pachas hazar pustkon ko desh ke is shart par de diya ki ek baDa myuziyam sthapit kiya jaye
apni santan ke bharn poshan ke liye usne kewal do lakh rupae sarkar se liye yahin se british myuziyam ki neew paDi hai aage chalkar ye wishw ka sarw many sangrhalay ban gaya yahan hazaron wekti pratidin shiksha aur gyanwardhan ke liye aate rahte hai prithwi ke pragaitihasik yug se aaj tak manaw ne kis prakar apna wikas kiya hai, iska silsilewar digdarshan murtiyon aur yatnon ke madhyam se prastut kiya gaya hai jigyasuo wa awsheshkon ki to ye ek prakar se teerth sthali hai din ke saDhe gyarah baje se teen baje tak widwan profesro dwara wibhinn wishyon par pratidin wyakhyan hote hai ise achchhi tarah dekhne ke liye mahinon ka samay chahiye mere pas kam samay tha, phir bhi do ek ghante mein jo kuch dekh paya usse mujhe kuch jankari mili
prakritik itihas sangrhalay (natural history myuziyam) mein kitpantag, pashupakshi aadi ko unke akar ka banakar swabhawik pariwesh mein rakha gaya hai pragaitihasik yug wishalakay Dinosoras, bratosoras nana prakar ke parani yahan dekhne mein aaye usi kal ke wriksh aur paudhe bhi dekhe kitna parishram aur dhairya inke anweshan mein laga hoga ismen sandeh nahin ki parishram angrezon ka jatiy gun hai aaj america ya roos athwa wishw ke any desh bhale hi briten se shakti aur kshamata mein aage baDh jaye, phir bhi ye manna paDega ki gyanwardhan ki prerna unhen bahut arson mein angrezon se hi mili hai prithwi ke pragaitihasik yug ka, girikadraon ka adimanaw kis prakar atmaraksha aur sangharsh karta hua aaj teliwizan sait ke samne baith saka hai, iska silsilewar digdarshan yatnon aur murtiyon ke madhyam se karaya gaya hai rahul ji ki wismriti ke garbh mein pustak mein daityakar Dinosorson ke bare mein paDha tha, aaj unke kankalon ko yahan pratyaksh dekha
wictoria albart myuziyam mein wishw ke sare deshon ki tarah tarah ki poshaken, bartan, gahne aadi rakhe hai yahan mainne bharatiy mughal badshahon, nawabo aur beghmon ki shahi poshaken wa abhushan dekhe aurangzeb ke hathon se swarnakshron mein likhi kuran dekhi kahna na hoga ye sab yahan kaise pahunchen honge, qimat to inglainD ne shayad hi ada ki hogi waren hestigs aur cliwe ki loot aitihasik praman hai rahi sahi kasar lord corzon ne puri kar di
bhugarbh train se Dati street par aaya mujhe prasiddh upanyasakar chaarls Dikes ka makan dekhana tha ise uski smriti mein sangrhalay bana diya gaya hai ab tak jin baDe baDe myuziymon ko dekhkar aa raha tha, un ki tulna mein ye bahut hi chhota hai phir bhi iska apna akarshan aur mahattw hai is mahan lekhak ne apni qalam se logon ke dil ko chhua tha uske pathkon mein angrez hi nahin balki wibhinn deshon ke log hai aaj bhi sharat aur premchand ki tarah chaarls Dikes yuropiy janasmaj ki shardha aur sneh ka bhaw hai isiliye ye chhota sa bhawan sahitykon ka teerth ban gaya hai shekspiyar ke stapharD ewen ke smarak ke baad wideshi paryatak aur sahityik ise nishchit roop se dekhte hai yahan Dikes kuch kal tak raha tha uske upanyaso ki panDulipiyan bhi yahan rakhi hai
mujhe khayal aa gaya ‘DewiD kaparphilD’ paDhte samay meinri ankhen bheeg gai theen kisi mitr ne kaha ki aisi kitabe kyon paDhi jaye jin se man mein dukh ho par aaj bhi jab dusre kamon mein man nahin lagta to sharat ki shesh parashn athwa Dikes ko DewiD kaparphilD paDhne lag jata hoon we mujhe hamesha nai lagti hai dil ki gahrai ko we chhu leti hai ghajab ka jadu hai Dikes ki qalam mein khaDa hua uski panDulipi dekh raha tha, ekek karke DewiD, marDaston, emili, mikawar aadi charitr jaise samne aakar mere parichit waky bolte se lage
sochne laga, hamare yahan bhi to walmiki, kalidas, tulsi, bhushan aadi mahan kawi ho gaye hain hum ne un ke smarak kyon nahin banaye? shayad pathanpathan se hi unki smriti banaye rakhne ki parampara hamare yahan rahi ho ya nashwarta ke prati hum sadaiw udasin rahe hain isi karan se british kal ke poorw tak ke wyaktiyon ke smarak nahin banaye gaye mughal badshahon ya nawabon aur faqirpiron ki qabron ya qilon ke roop mein zarur kuch smarak mil jate hai jo bhi ho, smarkon ka bhi apna mahatw kam nahin hai
dopahar ka bhojan kiya bharatiy widyarthi club mein briten mein hazaron ki sankhya mein bharatiy widyarthi paDh rahe hai apni suwidha ke liye inhonne sadan mein koapretiw ke taur par ye kaitin chala rakhi hai chize achchhi milti hai aur dam bahut hi kam bheeD itni rahti hai ki baithne ki jagah asani se nahin milti
bhojan ke baad traphalgar skwayar ki neshnal art gallery dekhne gaya bahut wishal bhawan hai is mein pichhle 500 warshon ke baDe chhote chitron ka sundar sangrah hai ye chitr wishw ke prasiddh chitrkaron ke banaye hue hai chitron ke sanklan ka shauk sabhi deshon ko hai iske liye baDi baDi dhanrashiyan kharch ki jati hai rom ke wetikan aur phrans ke lubre ke sangrah ke baad baqi bache hue nami chitron ke liye wishw ke deshon mein hoD si lagi rahti hai is disha mein america se takkar lena kathin hai
phir bhi briten ke dhani aur sampann wekti udaratapurwak alabhy chitron ko kharidte rahte hain, aur apne amuly sangrah is gallery ko bhent kar dete hain yahi karan hai ki ye wishw ki chuni hui art gailariyo mein mani jati hai
briten mein mirtyu kar ki dar bahut adhik hai, par kala ki wastuon par chhoot hai isliye yahan ke dhani marne se pahle apni sampatti se durlabh chitron ko kharid lete hai samay pakar unke uttradhikariyon dwara we chitr is gallery ko bhentkar diye jate hain isse un ki smriti bani rahti hai aur rashtra ka gauraw bhi baDhta hai
is gallery ke ek kaksh mein bharat ke kagDa, kishangaDh, rajput, mughal aur patna shaili ke alabhy chitr dekhe mai chitrakla ka parkhi to nahin hoon par dekhne mein ye mujhe bahut hi behtarin
lage any deshon se in mein bariqi aur rangon ke santulan ka sammishran adhik aspasht laga adhikash chitr krishn aur radha ki pauranaik kathaon par adharit hai ritu aur ragmalaon ke chitron ka bhi achchha sangrah hai kyuretar se baten karne par pata chala ki bharatiy tulika ke sambandh mein unko yathesht gyan hai unse ye bhi pata chala ki bahut se chitr bharat se kharidkar mangaye gaye hai kuch bhet swarup bhi aaye hai
mainne suna tha ki bahut se chitr to hamare rajemharajon ne bahut saste damon par bech diye the ya phir angrezon ko khush karne ke liye bhet mein diye the apne desh ke gauraw ki buddhi ke prati hamare yahan ki udasin manowriti ka parichai pakar glani si hui aaj bhi bahut se chitr mandiron mein paDe hain ya raison, rajerajwaDon ke pas bekar paDe hain unhen yadi kashi wishwawidyalay ke bharat kala bhawan ya dilli ki neshnal gallery ko de diya jaye to bharatiy chitrakla ke prati bahut baDa upkar ho sakta hai
gallery dekhkar phatak ke bahar aaya samne hi eDamiral lai nelman ki bahut hi baDi murti unche chabutre par khaDi hai san 1792 mein 1805 isawi tak sara europe napoleon ke yuddhon se atankit ho utha tha us ki senaye europe ke prayः sabhi deshon ko raund chuki thi kewal briten apni bhaugolik sthiti ke karan bacha hua tha napoleon ne baDi zabardast taiyari se briten ki chautarafa nakebandi ki san 1805 mein ek bahut baDe jahazi beDe ko lekar us ne traphalgar ki khaDi mein briten ki naushakti ko khatm karne ke liye hamla kar diya briten ka jahazi beDa chhota tha, par nelsan ki nipun ranchaturi ke karan phrans ki ajey sena ko haar khani paDi us ki himmat puri taur se past ho gai
itihaskaron ka kahna hai ki itni baDi samudri laDai pahle kabhi nahin hui thi is yudh mein briten jita zarur magar use nelsan ko khona paDa nelsan ke munh mein mirtyu ke samay nikle ye shabd amar ho gaye, he prabhu, tumhari kripa se apne kartawya ka palan puri taur par kar saka isi yudh ka parinam tha ki pichhle mahayuddh tak briten ki naushakti ka loha duniya mein sabhi mante the
kalkatta ki tarah sadan mein taiksiyon ki kami nahin hai phir bhi yahan aam taur par log bason ya bhugarbh trenon se yatra karte hai yahan ke taxi Draiwar mujhe rukhe se lage kiraye ke alawa tip dene ki paripati yahan hai is wazah se wideshiyon ko baDi pareshani hoti hai kyonki unhen malum nahin rahta ki kis hisab se dena chahiye adhikansh taxi wale aisi sthiti mein rukha sa wywahar karte hain, khas taur se unke sath jo gore rang ke nahin hote mujhe ek bar is prakar ka wyaktigat anubhaw ho chuka tha isliye mainne sadan mein dobara taxi nahin ki
sham ho rahi thi mai landan ka prasiddh bag haiD park dekhne nikal gaya beech mein sarpetain jheel hai prithwi ke dusre kisi bhi shahr mein itna baDa maidan shahr ke beech mein nahin hoga kalkatte ke qile ka maidan kafi wistrit mana jata hai par wo bhi is ke muqable mein chhota hai waise to landan mein rijent, set jems, kaisingtan aadi anyany park bhi hai par haiD park ki to baat hi nyari hai sham ke samay bisiyon siraphire stool par khaDe hokar wyakhyan dete yahan mil jainge shrota bhi jut jate hain manoranjan ke siwa kuch dhyan dekar sunne wale bhi rahte hai beech beech mein hasimzak kar lete hai wakta jis wishay par chahe bol sakta hai, koi roktok ya kanuni pabandi nahin hai ek jagah mein bhi khaDa hokar sunne laga shrotaon ki sankhya lagbhag sathsattar rahi hogi wakta kah raha tha striyan badtamiz hoti ja rahi hai inko yadi samay rahte nahin sambhala gaya to british jati ka patan ho jayega aap mujh jaisa phatehal dekh rahe hain us ka karan hai striyon ki swachchhandta meri ek preyasi hai, khubsurat hai, lajawab hai
musibat aa paDi hai ki us ki buDhiya chachi mere upar Dore Dal rahi hai buDhiya daulatmad hai nana prakar ke uphaar roz mere pas bhej deti hai natiza kya ho sakta hai, ise aap khu samajh sakte hai yani mai badansibi ka mara us khasat buDhiya ke changul mein phas gaya hoon idhar meri preyasi mujh se rooth gai hai ab aap hi bataye main kya karun
mainne dekha wahan khaDi aurte uski baton mein hans hansakar ras le rahi thi do ek ne usse kaha, “mahashay, aap un donon ka pata batayen hum buDhiya ko samjhakar aap ki premika ko mana lengi ”
kuch door aage baDhkar dekha, ek wekti bharat ke wirodh mein anargal parchar kar rahe hai baDa ashchary hua aur khed bhi baad mein pata chala ki pakistan ne apne kai widyarthiyo tatha any wyaktiyon ko niymit roop se is Dhang ke parchar ke liye laga rakha hai
kahin ek kone mein anaubam wirodhi bhashan sunne mein aaya to kahin inglainD ki widesh niti ki katu alochana bhashan sunte sunte lagbhag aath baj gaye lautne laga to dekha pimp (aurton ke dalal) chakkar laga rahe hai in ki chaal aur hawbhaw se pata chal jata hai ki we dalal hai in ke irdagird do ek laDakiyan ghumti phirti ya baithi rahti hai yo to landan mein kanunan weshyawritti band hai par gerahak ko apne sath ghar le jane ki chhoot hai
park mein ek jagah bainch par jakar baith gaya aas pas ki bainchon par purushon aur laDakiyon ki upasthiti ka arth aspasht ho gaya sochne laga, hamare yahan atyadhik garibi se adhiktar striyan majbur hokar apne tan ka sauda karti hai, magar is prakar sarwajnik parkon mein aisi harakte nahin hoti briten ke log apni sabhyata aur shalinata ki Deeng asiai mulkon mein hankte rahte hai par unki asliyat ki kali to haiD park mein hi khulti hai chumban aur alingan mein aage ke drishya bhi yahan dekhne mein aaye room ko chhoDkar europe ke prayः sabhi deshon mein ye hai
thoDi der wahan wishram kar apne hotel wapas aaya dinbhar ki thakan ka bojh tha neend nahin aa rahi thi tarah tarah ke wichar man mein aate gaye hamare desh mein wideshi yatri kam kyon aate hain? iska ek baDa karan shayad ye bhi ho sakta hai ki wideshiyon ko maujabhar ki wo chhoot hamare yahan nahin milti jo anyany deshon mein hai par hum khush hain ki peris, wenim aur landan ki tarah tarah anaitik aur kamottejak manorajnon dwara paise batorna hum ne ya hamari sarkar ne achchha nahin mana hai
main jis hotel mein thahra tha wo sadharan Dhang ka tha yahan nashte ke liye kyu mein khaDa hona paDta hai waise to landan mein restra bahut hai par hotel ke kiraye mein nashta bhi shamil tha isliye petbhar nashta kar sare din ke liye chhutti pa jata tha wideshon mein paison ki bachat ka yadi wishesh dhyan rakha jaye to bahut kam kharch mein kaam chal sakta hai
nashte ke baad sab mein pahle bakingham mahl dekhne gaya mahl ke prati mera koi wishesh akarshan nahin ya par yahan prahariyon ke pani badli ka drishya baDa shanadar rahta hai, use dekhana tha meri tarah wahan bahut se log us wishesh samay ki prtiksha mein khaDe the
briten ki wisheshata ye rahi hai ki wahan apni parampara ke prati shardha hai angrezo ne samaj ke Dhanche ka bahut kuch badal diya hai par aitihasik parampara ko aaj bhi sawadhani se sanjoe hue hain saikDon warsh pahle jis Dhang ki poshak mein raja ke mahlon mein prahri tainat rahte the, aaj bhi usi prakar tainat rahte hai raat ke pahredar subah jab badalte hain to ek khas kawayad ke sath baDa prabhawapurn drishya lagta hai sab ki poshak ek si, ek se astrshastr mein lais, ek se ghoDe, ek si chaal, chehre par gambhir nirwikar bhaw bachchon ko dekha, baDi utsukta se magar ankhon mein kuch Dar liye, pahredari ki badli dekh rahe the
yahan se thoDi duri par inglainD ke pardhan mantri ka 10 Dauning street nam ka sarkari niwas hai teen manjilon ka chhota sa purane Dhang ka makan hai is mein na bag hai, na lawn hai warshon se yahan inglainD ke prdhanmantri rahte aaye hain dekhkar ashchary hota hai ki itne sampann aur wishal british samrajy ke prdhanmantri ka ghar bhi yahin aur daftar bhi aur hamare yahan hum garib hai, duniya ke samne hath bhi pasarte hai magar hamare mantriyon ke sarkari niwas we to kahin shanadar aur sajile hai waise, hum gandhiji ke adarshon ki duhai dete rahte hai
maiDam tusan ke sangrhon ka ullekh saurgiyah rahul ji ne ek bar mujh mein kiya tha landan par likhi gai any pustkon mein bhi is ka zikr paDha ya wastaw mein apne ka ye ek nayab sangrah hai mom ki bani 300 adamkam pratimayen yahan hai utni swabhawik hai ki manon jiwit wekti ke samne hum baDe hain aur aisa lagta hai ki ab ye kuch bolenge wishw ke prayः sabhi deshon ke sheersh lekhak, kalakar, waigyanik, rajarani aur rajnitik netao ki murtiya yahan dekhin
mahatma gandhi aur nehru ji ki murtiyon ko dekhkar laga ki chalo angrezon ne ise mana to sahi ki wishw ko dishadan dene mein bharat ka bhi yog raha hai
tower auph landan mein jin danDshalaon aur danD dene ke auzaro ka zikr aaya hai, un ki jhanki yahan dekhne mein i kahi jiwit wyaktiyon ko jalaya ja raha hai to kahin lal tapi salakhon mein unki ankhen phoDi ja rahi hai kahin sir toDa ja raha hai to kahin kate gaDaye ja rahe hai baDe bhaykar aur wibhats drishya dekhne mein aaye
madhyakalin europe ke itihas mein paDhne mein aata hai ki un dinon baDe amanushaik tarikon mein wadh kiya jata tha aur log ise dekhne ke liye ikatthe hote the peris aur rom mein to wadh ke sthan par hazaron ki bheeD lag jati thi istri purush saj dhajkar dekhne aate the baithne ke sthanon ke arakshan ka charge rahta tha Dyuma ke kaut auph matekriston mein iska achchha warnan hai bharat mein mughalkal mein krurata ke sath wadh karne ke drishtant hai, par janta ki ruchi manoranjan ke liye aise nazare dekhne ki rahi hai, ye kahin bhi nahin milta, pata nahin sabhy europe aur hamare yahan ye antar kaise rah gaya?
हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी
‘हिन्दवी डिक्शनरी’ हिंदी और हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों के शब्दों का व्यापक संग्रह है। इसमें अंगिका, अवधी, कन्नौजी, कुमाउँनी, गढ़वाली, बघेली, बज्जिका, बुंदेली, ब्रज, भोजपुरी, मगही, मैथिली और मालवी शामिल हैं। इस शब्दकोश में शब्दों के विस्तृत अर्थ, पर्यायवाची, विलोम, कहावतें और मुहावरे उपलब्ध हैं।