रैदास के 10 प्रसिद्ध और सर्वश्रेष्ठ दोहे
माथे तिलक हाथ जपमाला, जग ठगने कूं स्वांग बनाया।
मारग छाड़ि कुमारग उहकै, सांची प्रीत बिनु राम न पाया॥
ईश्वर को पाने के लिए माथे पर तिलक लगाना और माला जपना केवल संसार को ठगने का स्वांग है। प्रेम का मार्ग छोड़कर स्वांग करने से ईश्वर की प्राप्ति नहीं होगी। सच्चे प्रेम के बिना परमात्मा को पाना असंभव है।
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टैग्ज़ : प्रेमऔर 1 अन्य
हिंदू पूजइ देहरा मुसलमान मसीति।
रैदास पूजइ उस राम कूं, जिह निरंतर प्रीति॥
हिंदू मंदिरों में पूजा करने के लिए जाते हैं और मुसलमान ख़ुदा की इबादत करने के लिए मस्जिदों में जाते हैं। दोनों ही अज्ञानी हैं। दोनों को ही ईश्वर के प्रति सच्चा प्रेम नहीं है। रैदास कहते हैं कि मैं जिस राम की आराधना करता हूँ, उसके प्रति मेरी सच्ची प्रीति है।
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टैग्ज़ : भक्तिऔर 3 अन्य
मुसलमान सों दोस्ती, हिंदुअन सों कर प्रीत।
रैदास जोति सभ राम की, सभ हैं अपने मीत॥
हमें मुसलमान और हिंदुओं दोनों से समान रूप से दोस्ती और प्रेम करना चाहिए। दोनों के भीतर एक ही ईश्वर की ज्योति प्रकाशित हो रही है। सभी हमारे−अपने मित्र हैं।
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टैग्ज़ : धर्मनिरपेक्षताऔर 1 अन्य
रैदास इक ही बूंद सो, सब ही भयो वित्थार।
मुरखि हैं तो करत हैं, बरन अवरन विचार॥
रैदास कहते हैं कि यह सृष्टि एक ही बूँद का विस्तार है अर्थात् एक ही ईश्वर से सभी प्राणियों का विकास हुआ है; फिर भी जो लोग जात-कुजात का विचार अर्थात् जातिगत भेद−विचार करते हैं, वे नितांत मूर्ख हैं।
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टैग्ज़ : जातिवादऔर 1 अन्य
aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere