विषय रचाय साखी रहे सामिल, व्यष्टि भरमन भूल्या।
समष्टि समझ सांसो नहीं व्यापै, सो पड़पंच है ऊँचा॥
भगति कीयां भरम सब भागै, जो कोई भेदज पावै।
एकादश भगति है भाई, करतब कौण बतावै॥
भूल्या जकै भेद नहीं पावै, मन सूं साथ कहावै।
इंद्रिय पांचूं लख आपौ नहीं खोजै, भूल्या भेद नहीं पावै॥
पांचूं खण परचै कर लीजै, छठौ चेतन पावै।
सप्त धात रौ बण्यौ पींजरौ, सातूं सुरत मिळावै॥
पूछ गुरु नै गोविंद गति पावै, साखी सामिल रहावै।
ऐड़ी जांण गुरां सूं जांणौ, जद चौथै पद पावै॥
निर्बंधन सोहि निरंजण पावै, निर्बंधन होय रहणा।
एको जांण दुतिया कर दूरी, अणभव अंदर लेणा॥
गावै सुळट आप रहे उळटा, सांची सैन नहीं पावै।
देखा-देखी करै गत गूंगा, भूल्या जग भरमावै॥
बिना ग्यान तो गम नी पावै, झुक-झुक सीस निवावै।
ग्यानी गुरु नीं करे गुमानी, मन का पता चलावै॥
गीता शास्त्र गम कर देखो, वेद वेदांत बतावै।
पूंजी बिना नहीं होत पसारा, विरथा जलम गमावै॥
समझै श्वास उश्वासा मांही, अजपा जाप जपावै।
सोहं तार हजूरी हाजिर, सभी एक में पावै॥
ऐड़ी रीत कोई बिरळा जांणै, पूरब अंकुर उगावै।
कहे रामदे बेगा चेतो, प्रांण निकळ जावै॥
जो व्यक्ति अपने कर्मों में भी अनासक्त भाव से रहे, और भूल से भी अपने आप को कर्ता नहीं, अपितु केवल साक्षी माने। किसी भी कार्य को समष्टि का ही अंग समझकर उसमें आसक्ति न रखे तो किसी प्रकार का संशय नहीं रहेगा। आसक्ति ही बंधनकारी प्रपंच है।
जो भक्ति करता है उसके समस्त भ्रम नष्ट हो जाते हैं। यही कर्म बंधन से मुक्ति प्राप्त करने का रहस्य है। भक्ति ग्यारह प्रकार की मानी गई है, किंतु उनका अलग-अलग विधान कौन बताए।
जो लोग भ्रमित हैं, भक्ति का रहस्य प्राप्त नहीं कर सकते। वस्तुतः वे केवल अपने मन से ही साधु कहलाते हैं। जो पंच ज्ञानेंद्रियों को वश में करके अपना निज स्वरूप नहीं खोजते हैं, ऐसे भूले भटके लोग भक्ति का रहस्य प्राप्त नहीं कर सकते हैं।
पांचों तत्त्व जड़ हैं, उनसे परिचित होकर छठे तत्त्व निज स्वरूप चेतन को प्राप्त करो। सप्त धातु से निर्मित इस शरीर से अपनी जीवात्मा को अलग समझो, समाधि योग द्वारा अपना ध्यान चेतन से मिलाओ।
गुरु द्वारा बतायी साधना से जीवात्मा ब्रह्म के स्वरूप को प्राप्त हो जाती है। योग-साधना भी अनासक्त भाव से करे। इस प्रकार का ज्ञान गुरु से प्राप्त करो, तो मोक्ष पद की प्राप्ति हो सकती है।
जो कर्मों के बंधन से मुक्त हो गया है, वही निरंजन-निराकार परब्रह्म की प्राप्ति कर सकता है, अतः ज्ञानयोग द्वारा कर्म के बंधनों से मुक्त होकर रहो, द्वैत भाव का परित्याग करो और एकत्व भाव धारण करो।
जिन लोगों की कथनी व करनी में अंतर है, वे मोक्ष की सही दिशा प्राप्त नहीं कर सकते। ऐसे भ्रमित लोग जगत् को भी भ्रमित कर रहे हैं, क्योंकि अन्य कई अज्ञानी इनका अनुकरण करते हैं।
सच्चे ज्ञान के अभाव में अपना आत्म तत्त्व तो नहीं जानते व्यर्थ ही झुक-झुककर दंडवत करते हैं। अहंकारी लोग ज्ञानी व्यक्ति को गुरु धारण नहीं करके केवल मन का ही अनुसरण करते हैं।
गीता को ध्यानपूर्वक देखो तथा वेद-वेदांत आदि सभी पढ़ लो, सब में यही ज्ञान मिलेगा कि सच्ची कमाई के बिना भवसागर से पार नहीं हुआ जा सकता है। कमाई के अभाव में मानव जीवन व्यर्थ जा रहा है।
प्राणायाम की विधि समझकर अजपा जाप जपो। ॐ सोऽहम् का मंत्र परब्रह्म से मिलने का तार है, इसी से जीवात्मा परमात्मा में मिलकर एक रूप हो जाती है।
रामदेवजी कहते हैं कि इस विधि को कोई विरला ही जानता है जिसमें पूर्व जन्म के संस्कार अंकुरित हो। मोक्ष प्राप्ति के लिए शीघ्र ही सचेत हो जाओ, न जाने कब प्राण निकल जाएँगे।
- पुस्तक : बाबै की वांणी (पृष्ठ 128)
- संपादक : सोनाराम बिश्नोई
- रचनाकार : बाबा रामदेव
- प्रकाशन : राजस्थानी ग्रंथागार
- संस्करण : 2015
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