उण दिन आलम आवसी, इसड़ा मंडेला मंडांण भाई।
स्वेत घोड़े श्याम चढ़सी, आप लेसी अवतार निकलंक राम भाई॥
नव लाख नखतर माळ सजिया, किया ससि अर भांण।
सात सायर मेरु पर्वत, नव सो नदी निवांण॥
धवळ सिर धारा ठाणी, कंवळ बासंग नाग।
थंभ बिन आकास थाम्यौ, सोई सदर दीवांण॥
नव किरोड़ कुंजर घुरै, थरहरै घर असमांन।
अमी धारा इंदर बरसै, भरसी नीर निवांण॥
षट रस अन्न उपजाविया, जड़ उद्बुद खांण।
अठारभार बणराय, फूलै फळे निरवांण॥
आप कंवर नाग नाथ्यौ, थाग्यौ जळ प्रमांण।
गूजरी रै घर आणंद बरतियौ, कळाधारी आंण॥
सात सायर महण मथियो, कियो मेरु मथांण।
मार रावण लंका लीनी, मंदोदरी सिर हांण॥
बीज थावर पूनम पड़वा, तीज लेसी मलांण।
वासंग राजा रौ नेतरो कियौ, रतन चवदा मांण॥
जति लिछमण बांण साँधियौ, मारियौ मेघनाद सिर तांण।
पांचू पांडू करण साथै, धूजसी धरा पाषांण॥
पांचां सूं पहळाद आवसी, सातां हरचंद रांण।
नौवां सूं युधिष्ठर आवसी, बारां बाबो आप प्रमाण॥
नव पद माया मैंगी पड़े, पाखर हस्ती किरोड़ पच्चास।
तेतीस किरोड़ रथ आवसी, पैदल रौ नहीं पार॥
आलम रा दळ आवसी, छायो गिरदां भांण।
संत सूरा लड़े सनमुख, कालिंगड़ा सिर हांण॥
हडूमांन बायक झेलसी, फिरै नवखंडां आंण।
उत्तर दिखण पूरब पिछम, सेंस दळ प्रमाण॥
सिद्ध चौरासी बावन भेरू, आवसी नवनाथ।
अगम निगम जंगम जोगी, श्याम रै दळ साथ॥
कोप सायब रौ दुष्ट दळसी, मारसी महसांण।
काढ़ तिलक पाट बैठे, फिरै नवखंडां आंण॥
स्वेत घोड़ा स्वेत गुरजां, स्वेत ही पिलांण।
सायब रा दळ सही होसी, कळू रे दळ हांण॥
चित्तौड़ चंवरी दिल्ली डेरा, बाजसी सुर तांत।
हिंदू तुरक एक पियालै, बाबो भांगसी भ्रांत॥
इळा अंबर पळटसी, पळटै ससि अ’र भांण।
बोलिया सिद्ध रांमदे आगम रा अहनांण॥
जिस दिन इस संसार का स्रष्टा आएगा; उस दिन इस प्रकार का आयोजन होगा- भगवान् स्वयं निष्कलंकी (कल्की) अवतार लेकर श्वेत अश्व पर आरूढ़ होंगे। जिसने नौ लाख नक्षत्र माल तथा सूर्य और चंद्रमा सृजित किए। सात समुद्र, नौ सौ नदियाँ, जलाशय और पर्वतादि बनाए। पृथ्वी की रचना करके उसे बैल के सींग पर स्थिर किया, वासुकि नाग के सिर-कमल पर रखा। बिना स्तंभ के आकाश ठहराया; वही संसार का कर्ता-धरता इस रूप में अवतार लेगा। नौ करोड़ हाथी गर्जना करेंगे, धरती और आकाश कंपित होंगे। इंद्र वृष्टि करेंगे जिससे सभी जलाशय भर जाएंगे। जिसने षट रस युक्त विविध प्रकार का अन्न पैदा किया। चौरासी लाख योनियाँ उत्पन्न कीं। अठारह कोटि वनस्पति का निर्माण उसी ने किया। (यह कल्कि वही कृष्ण है) जिसने जल की थाह ली तथा कालिय नाग को नाथा। सोलह कला कृष्ण ने गूजरी (राधा) के घर प्रेम क्रीड़ाओं का आनंद लिया। यह अवतार उसी (विष्णु) का है, जिसने सुमेरु पर्वत को मंथनदंड बनाकर सात समुद्रों का मंथन किया। लक्ष्मण ने बाण संधान करके महापराक्रमी मेघनाद का वध किया। (राम ने) लंकापति रावण को मार कर लंका छीन ली; मंदोदरी का सुहाग छिन गया। कृष्ण पक्ष की पहली तिथि अथवा उभयपक्ष की तृतीया के दिन भगवान् आकर पड़ाव लेंगे। कर्ण सहित पांचों पांडव भगवान के साथ होंगे; पृथ्वी और पहाड़ कंपित होंगे। अपने साथ मोक्ष प्राप्त पाँच करोड़ साथियों को लेकर प्रह्लाद आएगा, सात करोड़ साथियों को लेकर राजा हरीशचंद्र आएगा और नौ करोड़ साथियों को लेकर युधिष्ठिर आएगा। कलियुग के बारह करोड़ 'बाबो आप' साथ लेंगे। अनंत अपार माया लगेगी, इस सेना में पच्चास करोड़ हाथी तथा पच्चास करोड़ ही घोड़े, तैंतीस करोड़ रथ होंगे तथा असंख्य पैदल सैनिक होंगे। आलम का ऐसा सैन्य दल आएगा, जिसकी पग धूलि से सूर्य आच्छादित हो जाएगा। कालिंगा के विनाश के लिए संत और शूरवीर उसके सम्मुख जाकर उससे युद्ध करेंगे। हनुमानजी भी इस युद्ध का निमंत्रण स्वीकार करके आएँगे, जिनकी 'आण दुहाई' नव खंडों में फिरती है। सहस्रों विशाल दल एकत्रित होंगे जिनसे चारों दिशाएं व्याप्त हो जाएँगी। चौरासी सिद्ध, बावन भेरू और नौ नाथ आएँगे। कल्कि की सेना में वेदशास्त्री, निर्गुणोपासक, योगी, संन्यासी आदि समस्त मत-मतांतरों के लोग एकत्रित होंगे। दीनबंधु का क्रोध दुष्ट कालिंगा को पीस डालेगा, उस म्लेच्छ (यवन) का संहार कर दिया जाएगा। भगवान् का अभिषेक होगा, वे सिंहासनारूढ़ होंगे, नव खंडों में उनकी 'आण दुहाई' फिरेगी। कल्कि का घोड़ा श्वेत वर्ण का होगा, उनके घोड़े की साज-सज्जा काठी आदि भी श्वेत होगी। उनके हाथ में श्वेत गदा धारण की हुई होगी। स्वामी का सैन्य दल सुरक्षित रहेगा, और कलिंगा (जो कलि-काल का प्रतीक होगा) के सैन्य दल की हानि होगी। चित्तौड़गढ़ में मंडप रचा जाएगा तथा कल्कि प्रभु की बरात का डेरा दिल्ली में होगा। मांगलिक पंच वाद्यों की स्वर लहरी उठेगी, हिंदू-मुस्लिम साथ बैठकर खान-पान करेंगे, भगवान कल्कि दोनों का भेद भाव मिटा देंगे। रामदेवजी कहते हैं कि इसके बाद पृथ्वी और आकाश, सूर्य और चंद्र सभी बदल जाएँगे और सत्ययुग का प्रारंभ होगा।
- पुस्तक : बाबै की वांणी (पृष्ठ 76)
- संपादक : सोनाराम बिश्नोई
- रचनाकार : बाबा रामदेव
- प्रकाशन : राजस्थानी ग्रंथागार
- संस्करण : 2015
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