साधौ भाई जगत देख बौरायो।
भीतर थो जद साँस उसाँसा, तू ही तू दोहरायो।
बाहर आतां जगत रूप लख, माया वस बौरायो॥
तू-तू करतां दरसन करतो, मैं-मैं नजर नी आयो।
बाहर को जग सुंदर देख्यो, माया बस बिलमायो॥
गर्भवास की जातना भूल्यो, ऊँचे माथ लटकायो।
मल-मूतर में भयो लपेटो, रगत कीच लपटायो॥
लख चौरासी पार करी जद, मनख जमारो पायो।
सैन भगत गुरु शरण गयां बिन, सुरत ज्ञान नहीं आयो॥
साधौ भाई! तू संसार की माया देखकर बौरा गया है। जब तू भीतर था, तब तेरे मुँह से तू ही तू की ध्वनि निकलती थी। माँ के उदर से बाहर आते ही संसार की लुभावनी छवि देख कर तू माया के भ्रम में वशीभूत हो गया। तू गर्भवास की वह यातना भूल गया, जब तू उल्टे सिर लटका हुआ था। मल-मूत्र और रक्त में लिपटा हुआ था। सैन कहते हैं—लख चौरासी भोगने के बाद मनुष्य जन्म मिलता है। तूने ईश्वर को भुलाकर 'मैं-मैं' कहना शुरू कर दिया। भगवान को भूलकर अहंकार में लिप्त हो गया। सैन भगत फिर कहते हैं—गुरू की शरण गए बिना तुझे सुरति नहीं आएगी।
- पुस्तक : संत सैन भगत (पृष्ठ 309)
- संपादक : अशोेक मिश्र
- रचनाकार : संत सैन भगत
- प्रकाशन : आदिवासी लोक कला एवं बोली विकास अकादमी, मध्यप्रदेश
- संस्करण : 2013
Additional information available
Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.
About this sher
Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit. Morbi volutpat porttitor tortor, varius dignissim.
rare Unpublished content
This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.