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साधो भरमा यह संसारा

sadho bharma ye sansara

चरनदास

चरनदास

साधो भरमा यह संसारा

चरनदास

और अधिकचरनदास

    साधो भरमा यह संसारा।

    गति मति लोक बड़ाई, उरझे कैसे हो छटकारा॥

    मर्म पड़े नाना विधि सेती, तीरथु बर्त अचारा।

    देह पड़े कर्म अभिमानी भूले, छूँछ पकरि तत डारा॥

    जोगी जोग जुक्ति करिं हारे, पंडित बेद पुराना।

    षट दरसन पग आप पुजावैं, पहिरि-पहिरि रंग बाना॥

    जानत नाहिं आप हमको हैं, को है वह भगवाना।

    को यह जगत कौन गति लागै, संभलैं ना अज्ञाना॥

    जा कारन तुम इत उत डोलो, ताको पावत नाहीं।

    चरनदास सुकदेव बतायो, हरि हैं अंतर माहीं॥

    स्रोत :
    • पुस्तक : हिंदी के जनपद संत (पृष्ठ 174)
    • रचनाकार : चरनदास
    • प्रकाशन : मोेतीलाल बनारसी, दिल्ली
    • संस्करण : 1963

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