नाथ निकळंक देव कुण है
nath nikळnk dew kun hai
रोचक तथ्य
इस वाणी में योग साधना की दृष्टि से संपूर्ण ज्ञान-तत्त्व मानव शरीर में ही समझाते हुए परब्रह्म को ही सार तत्त्व बताया गया है; जिसकी विद्यमानता भी शरीर में बताई गई है। पूरी वाणी प्रश्नवाचक शैली में है जिसका उत्तर भावार्थ में दिया गया है।
नाथ निकळंक देव कुण है?
पूछो जूना जोगियां नै, पूरा पंडितां नैं,
नेम मंडप छावीया तो नेम रा गुरु कुण है?
इण्ड रा सरूप कुण है,
पृथ्वी रा रूप कुण है?
अनाद री स्तुति कुण है,
वेद री जात कुण है?
रणुकार रौ रूप कुण है,
ओंकारी अजर कुण है?
अजर जोगी बजर कुण है,
संत री तो सार कुण है?
संत री तो पार कुण है,
धर्म री तो धार कुण है?
तत्त्व री तार कुण है,
ब्रह्म रो विचार कुण है?
आकाश रौ तो मूळ कुण है,
पवन रौ तोल कुण है?
रवी रौ डोळ कुण है,
अवाची रौ वाच कुण है?
प्रमांण रौ सूत कुण है,
बांजड़ी रौ पूत कुण है?
घट मांईलौ भूत कुण है,
जोग में अवधूत कुण है?
चले ध्रुव जिकी राह कुण है,
बीजळी रौ बियाव कुण है?
सागर रौ थिराव कुण है,
शिखर चढ़े बिन पावै कुण है?
नाथजी रौ लिंग कुण है,
भवानी रौ भग कुण है?
ईश री अर्धागिणी कुण है,
भग में जोत जागी जिकी देवी कुण है?
नाथजी रौ नाद कुण है,
जुगां पेली जात कुण है?
संन्यासी री साख कुण है,
परमपद प्रमांण कुण है?
पांच पेड़ी पाठ कुण है,
पाठ रा प्रमाण कुण है?
परवांणा रौ प्रेम कुण है,
हरि डाळी हेम कुण है?
दरवेशां रौ दास कुण है,
ईश रा उपकार कुण है?
साखियां री साख कुण है,
प्रेम बायक पड़दे मेळा जिका मिळणी कुण है?
अमर क्रिया कळस कुण है,
कळस री करतूत कुण है?
जोगियां री जुगत कुण है,
जुगत मायली मुगत कुण है?
साध ज्यां री सुरत कुण है,
सुरत मायली नुरत कुण है?
देवतां री दिष्टी कुण है,
दिष्टी में दिदार कुण है?
पड़दे भेळा पाँच कुण है,
पांचां रा आचार कुण है?
धरम रौ विचार कुण है,
संत सेनी मुगती लावै जिको सेनी कुण है?
जग रा नेम व्रत कुण है,
पड़दे वायक प्रेम कुण है?
तेतीसां री साख कुण है, राय झालने तिरीया कुण है?
तिरीया जिको क्रिया कुण है?
पड़दे रा दस दोष कुण है,
पायळ मांही पोख कुण है।
अजर प्याले मोख कुण है,
सोळा बेड़ी सेंस मंत्र कुण है?
अड़सठ तीरथ काया में कुण है,
असंग जुगां री माया कुण है?
अटळ विरख री छाया कुण है,
अजर प्याला पीया कुण है?
सती रौ सत धर्म कुण है,
अजपा रौ मरम कुण है?
ओंकारी आद कुण है,
आद रौ अनाद कुण है?
साध ज्यां री रीत कुण है,
प्रजा री परीत कुण है?
प्रेम री प्रतीत कुण है,
अखै धरम ले पाट मिळसी, ज्यांरी मिळणी कुण है॥
पाट रा परवांण पूरा,
बांचसी कोई संत सूरा।
अजमाल नंद समझ छांण,
बोलिया अवतार बाणी, गुरु गम सूं निरवांण है॥
मानव शरीर में निष्कलंक देव आत्मा है, प्रकृति के नियमानुसार शरीर के निर्माण काल में सबसे पहले ब्रह्मरंध्र निर्मित होता है, इस ब्रह्मरंध्र रूपी मंडप निर्माण के उक्त विधान का गुरु परमशिव है। पिंड का स्वरूप जीवात्मा है, पृथ्वी का वर्ण पीत है और आकार गोल है तथा अनाद की स्तुति ओम् है। वेद की जाति अंतःकरण है; शरीर में चार वेद- मन, बुद्धि, चित्त और अहंकार है। रणुकार का अभिप्राय अनाहत नाद है जिसका रूप चंद्र बिंदु है। परब्रह्म ही अजर ओम् कारी है। वही परमशिव अजर-अमर योगी है तथा वही संतों का सार तत्त्व है। संत का पार गुरु है, धर्म की धार भावना है। 'तत्त्व की तार' तीन (शिवतत्त्व, विद्यातत्त्व और आत्मतत्त्व हैं। ईश्वर चिंतन ही ब्रह्म का विचार है। आकाश का मूल शब्द है, और पवन के गुण शब्द और स्पर्श हैं। रवि के गुण-शब्द, स्पर्श और रूप हैं। अवाची का वाच परब्रह्म है। प्रमाण का सूत्र ब्रह्म है। बांझड़ी का अभिप्राय काया है, जब तक इसमें जीव नहीं हो, यह बांझ है और इसका पुत्र जीव है। घट (हृदय) में भूत जीवात्मा है। योग अवधूत परमशिव है। ध्रुव का अर्थ यहाँ लक्ष्य से है और राह अर्थात् माध्यम। योग-साधना में लक्ष्य सहस्रदलकमल है और उस तक पहुँचने का मार्ग सुषुम्ना नाड़ी है। विद्युत की चमक आज्ञा चक्र है। 'सागर रौ थिराव' स्वाधिष्ठान चक्र है; जिसमें जल तत्त्व है। बिना पाँव शिखर (गगन मंडल) तक चढ़ने वाली कुंडलिनी शक्ति है। कुंडलिनी से आवेष्ठित स्वयंभू लिंग ही नाथजी का लिंग है। स्वयंभू लिंग का त्रिकोणाकार आधार ही भवानी (पराशक्ति) का भग है। ईश की अर्द्धांगिनी जीवात्मा है। भग में से शक्ति जागृत हुई, जो देवी कुंडलिनी शक्ति है। नाथजी का नाद अनाहत नाद है। युगों पहले की जात अनादि है। संन्यासी की साख उसकी आत्मा है। परम पद का प्रमाण मोक्ष है। पाँच पेड़ी पाठ-पंच तत्त्व का शुद्धिकरण है और उस पाठ का प्रमाण आत्मानुभव है। परवाणा का प्रेम साधना है। हरि टहनी अर्थात् सुषुम्ना नाड़ी (द्वारा प्राप्त) सोना परब्रह्म है। दरवेशों का दास वही परब्रह्म है। ईश का उपकार कृपा है। साखियों की साख उनका मन है। जीवात्मा और परमात्मा की एकता ही प्रेम साधक के परदे (शरीर) में मिलन है। अमर क्रिया द्वारा प्राप्त कलश सहस्रदलकमल है। कुंडलिनी को सहस्रदलकमल (कलश) में पहुँचाने की क्रिया ही 'कळश री करतूत' है। वही योग साधना योगियों की युक्ति है। आत्म-साक्षात्कार ही मुक्ति है।
साधक की सुरत आत्मानुभव है। 'सुरत मायली नुरत’ प्रकाश है। देव-दृष्टि ज्ञान है, इस दृष्टि में दीदार ब्रह्म का है। पड़दे भेळा (शरीर में) पाँच प्राण वायु हैं, जिनके आचार क्रमशः श्वास-उच्छवास, मल-मूत्र विसर्जन, संधि-संचालन, पाचन और अन्न-जल विभाजन है। धर्म का विचार बुद्धि से होता है। गुरु मंत्र ही वह संकेत (सैनी) है जिससे शिष्य मोक्ष प्राप्ति करता है।
जगत के नियम छः हैं, यथा- जन्म, अस्तित्व, वृद्धि, यौवन, क्षय, मृत्यु। पड़दे वायक अर्थात् जीव का बुलावा मृत्यु है। तैंतीस की साख आत्मा है। (गुरु की) राय मानकर पार उतरने वाले साधक हैं। पार उतरने की क्रिया योग-साधना है। पड़दा (नर तन) के दस दोष दस इंद्रियों (पाँच ज्ञानेन्द्रियों और पाँच कर्मेन्द्रियों) द्वारा जनित दस दोष हैं। पायळ (गुरु कृपा से प्राप्त ज्ञानामृत) का पोख (पोषण) मोक्ष प्राप्ति है। मोक्ष प्रदान करने वाला अजर-अमर प्याला ज्ञानामृत (आत्मज्ञान) का है। सोळा बेड़ी (विशुद्धि चक्र की सोलह पंखुड़ियाँ) सेंस (सहस्रदलकमल) योग-साधना की सिद्धि का मंत्र 'हंसः सोहम्' है। काया में अड़सठ तीर्थ इस प्रकार हैं- छह चक्रों की पचास पंखुड़ियाँ, नौ प्रकार की देह तथा नौ प्रकार की अवस्थाएं। असंख्य युगों की माया पराशक्ति है। अटल वृक्ष परमात्मा है जिसकी छाया जीवात्मा है। अजर प्याला पीने वाले सदाशिव हैं। सती का अर्थ यहाँ पर जीवात्मा है, जिसका धर्म मोक्ष प्राप्ति है। अजपा का रहस्य परब्रह्म है। परब्रह्म ही आदि ओंकार है। आद से अनाद वही परब्रह्म है। योग-साधना ही साध की रीति है और भक्ति ही प्रजा की प्रीत है। इसका आधार विश्वास है। पाट में मिलना, जीवात्मा व परब्रह्म का एक्य है। अजमल-पुत्र रामदेव ने सहस्रदलकमल में योग-साधना की विधि सोच-विचार कर कही है, इसे कोई ज्ञान वीर संत ही पढ़ेगा। रामदेव जी कहते हैं कि इस वाणी में वर्णित योग-साधना और शरीर विज्ञान के तत्त्वों का ज्ञान सद्गुरु की कृपा से ही संभव है, और इसी ज्ञान से मोक्ष प्राप्ति होगी।
- पुस्तक : बाबै की वांणी (पृष्ठ 91)
- संपादक : सोनाराम बिश्नोई
- रचनाकार : बाबा रामदेव
- प्रकाशन : राजस्थानी ग्रंथागार
- संस्करण : 2015
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