मुझ पे सद्गुरु कृपा करी।
सूधो हाट बताओ सद्गुरु सूधी गेल करी॥
ना कोई ऊबड़ ना कोई खाबड़, ना टेड़ी-संकरी।
ना कोई साँस रोकणी होई, ना कोई षट्चकरी॥
सीधो नाम बताओ सद्गुरु, साँस-साँस सतरी।
रामानंद गुरु पूरा पाया, मनख देह उघरी॥
राम ती बड़ो नाम बताओ, गेल नहीं वकरी।
सैन भगत साहिब दरवाजे, राम नाम छकरी॥
सद्गुरू ने मुझ पर बहुत कृपा की है। सद्गुरू ने मुझे सत्संग का संग बताया और वहाँ का सहज मार्ग भी प्रशस्त किया। वह मार्ग न तो ऊबड़-खाबड़ है, न टेढ़ा- मेढ़ा और न सँकरा है, अर्थात् निर्बाध है। न तो साँस रोककर समाधी लगाने का मार्ग है, न षट्साधना। उन्होंने सहज रूप से नाम का ज्ञान बता दिया है। मेरी साँस-साँस सकारथ हो गई है। मेरा मनुष्य जन्म सफल कर दिया है। सद्गुरू रामानन्द मुझे समर्थ एवं पूरे सद्गुरू के रूप में मिल गए। उन्होंने मुझे ज्ञान दिया और सुझा दिया कि राम से भी बड़ा उनका नाम है। उनका मार्ग कठिन भी नहीं है। मैं राम नाम के छकड़े में बैठकर साहिब के द्वार पर पहुँचने में सफल हो गया हूँ।
- पुस्तक : संत सैन भगत (पृष्ठ 293)
- संपादक : अशोेक मिश्र
- रचनाकार : संत सैन भगत
- प्रकाशन : आदिवासी लोक कला एवं बोली विकास अकादमी, मध्यप्रदेश
- संस्करण : 2013
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