Font by Mehr Nastaliq Web

जोगी अंदरि जोगीआ

jogii a.ndri jogiià

गुरु नानक

गुरु नानक

जोगी अंदरि जोगीआ

गुरु नानक

और अधिकगुरु नानक

    जोगी अंदरि जोगीआ। तूं भोगी अंदरि भोगीआ।

    तेरा अंतु पाइआ सुरगि मछि पइआलि जीउ॥

    हउ वारी हउ वारणै कुरबाणु तेरे नाव नो॥ ॥रहाउ॥

    तुधु संसारु उपाइआ। सिरे सिरि धंधे लाइआ॥

    वेखहि कीता आपणा करि कुदरति पासा ढालि जीउ॥

    परगटि पाहारै जापदा। सभु नावै नो परताप दा॥

    सतिगुर बाझु पाइओ सभ मोही माइआ जालि जीउ॥

    सतिगुर कउ बलि जाईऐ। जितु मिलिऐ परमगति पाईऐ॥

    सुरि नर मुनि जन लोचदे सो सतिगुर दोआ बुझाइ जीउ॥

    सतसंगति कैसी जाणीऐ। जिथै एको नामु वखाणिऐ॥

    एको नामु हुकमु है नानक सतिगुरि दीआ बुझाइ जीउ॥

    (हे प्रभु,) तुम योगियों में योगी हो (और) भोगियों में भोगी। तुम्हारा अत नहीं पाया जा सकता; स्वर्गलोक, मर्त्यलोक और पाताललोक—(सभी जगह) तुम (विराज मान हो)।

    मैं तुम पर बलिहारी हूँ, मैं तुम बलिहारी हूँ, मैं तुम्हारे नाम पर न्यौछावर हूँ।

    (सृष्टि के) प्रसार में तुम्ही प्रकट हो रहे हो (और तुम्ही प्रत्यक्ष) दीख रहे हो। सभी लोग (तुम्हारे) नाम को को चाहते है, (किंतु) सद्गुरु के बिना (वह) नहीं पाया जाता; (संसार के) सभी (प्राणी) माया के जाल में मोहे पड़े है।

    सद्गुरु के ऊपर बलिदान हो जाया जाए जिसके मिलने से परम गति की प्राप्ति होती है। देवता, मनुष्य, मुनिगण (जिस वस्तु की) इच्छा करते है, सद्गुरु ने (मुझे उसका) बोध करा दिया है।

    सत्संगतति को किस प्रकार जाना जाए? जिस स्थल पर एक नाम की व्याख्या हो, (वही सत्संगति है) नानक कहते है कि एक नाम (का जपना ही) हुक्म है, (इसका रहस्य) सद्गुरु ने (मुझे भलीभाँति) बता दिया है।

    यह जगत भ्रम में भूल गया है। ‘अपनेपन’ (और) ‘तेरेपन’ में नष्ट हो गया है। (इस प्रकार) दुहागिनी (स्त्री) को परिताप लगा है, जी, (परमात्मा) उनके भाग्य में तुम नहीं हो।

    दुहागिनियो के क्या चिह्र (निशान) है? पति से विलग होकर, वे मान-विहीन होकर (इधर-उधर) भटकती फिरती है। जी, (प्रभु), उन स्त्रियों के वेश मैले होते हैं, (इससे) उनकी रात दुःख-भरी बीतती है।

    सोहागिनियों ने क्या कर्म किए हैं, (जिससे वे तुमसे मिलती है)? (तुम द्वारा) पूर्व का लिखा हुआ फल (उन्हें) प्राप्त हुआ है। जी, (प्रभु, तुमने) उनके ऊपर कृपा करके अपने मिला लिया है।

    (हे प्रभु) जिन्हे हुक्म मनवाये हो, उनके अंतर्गत (तुम गुरु का) शब्द बसा दिए हो। जी, (प्रभु) वे ही सहेलियाँ सुहागिनी है, जिनका पति के साथ प्यार है।

    (हे परमात्मा) जिन्हे (तुम्हारी) आज्ञा का रस मिल गया है, उनके अंतःकरण से भ्रम दूर हो जाता है। नानक कहते हैं, जी (प्रभु) सद्गुरु उसे समझना चाहिए, जो सभी को मिला लेता है।

    सद्गुरु के मिलने से (साधको को उनके पूर्व जन्म के शुभ कर्मों का) फल प्राप्त हो गए है, (जिन्होंने) भीतर से अहकार समाप्त कर दिया है। जी, (प्रभु) उनकी दुर्मति का दुःख कट गया है, उनके मस्तक से भाग्य आकर बैठ गया है।

    तुम्हारी वागियाँ अमृत है। (वे) तेर भक्त के हृदय में समा गई हैं। जी (परमात्मा) सुख देनेवाली सेवा की हृदय में रखने से (तुम) अपनी कृपा करते हो और उद्धार कर देते हो।

    सद्गुरु के मिलने पर हो, (परम तत्व) जाना जाता है, जिस (सद्गुरु) के मिलने पर हो, नाम की प्रशंसा होती है। जी, (प्रभु), सारी (दुनिया) कर्म करते करते थक गई है, (किंतु) सद्गुरु के बिना (परमात्मा) नहीं प्राप्त हुआ।

    मैं सद्गुरु के ऊपर न्यौछावर है, जिसने (मुझे) भ्रम में भटकते हुए को मार्ग में लगा दिया। हे प्रभु, यदि तुम अपनी कृपा करो, तो अपने में मिला लेते हो।

    (ऐ प्रभु) तू सभी में समाया है (व्याप्त है)। पर उस कुर्त्ता ने अपने आप को छिपा लिया है। नानक कहते हैं, कि जो, यह वह (छिपा हुआ कुर्त्ता) गुरु की शिक्षा द्वारा प्रकट हुआ है, (उस गुरु द्वारा)—जिस गुरु में कर्त्तार ने अपनी ज्योति स्थापित कर दी है।

    खसम (पति, परमात्मा) ने स्वयं ही अपने आपको बडाई प्रदान की है। उसी ने जीव और शरीर देकर (सबका) निर्माण किया है। जी (प्रभु), वह दोनो हाथ उसके मस्तक पर रख कर अपने सेवक की पेज (प्रतिक्षा, मान, प्रतिष्ठा) रखता है।

    सारे संयम और चतुराइयाँ समाप्त हो गई है। मेरा प्रभु सब कुछ जानता है। जी, वह अपना प्रताप प्रकट रूप से बरत रहा है; सारे लोक (उसकी) जय जयकार करते है।

    (प्रभु ने) मेरे गुणों-अवगुणों पर विचार नहीं किया है। प्रभु ने अपने विरद (यश) को रख लिया है। जी, उन्होंने मुझे (अपने) कंठ से लगाकर रखा है, मुझे तत्ती वायु नहीं लगती।

    मैंने तन-मन से प्रभु का ध्यान किया है और मनोवांच्छित फल को पा लिया है। जी, (प्रभु) तुम शाहो-बादशाहो के सिर के भी स्वामी (खसमु, पति) हो; नानक तो नाम-जप कर हो जी रहा है।

    स्रोत :
    • पुस्तक : गुरु नानकदेव वाणी और विचार (पृष्ठ 164)
    • संपादक : रमेशचंद्र मिश्र
    • रचनाकार : गुरु नानक
    • प्रकाशन : संत साहित्य संस्थान
    • संस्करण : 2003

    संबंधित विषय

    हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

    हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

    ‘हिन्दवी डिक्शनरी’ हिंदी और हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों के शब्दों का व्यापक संग्रह है। इसमें अंगिका, अवधी, कन्नौजी, कुमाउँनी, गढ़वाली, बघेली, बज्जिका, बुंदेली, ब्रज, भोजपुरी, मगही, मैथिली और मालवी शामिल हैं। इस शब्दकोश में शब्दों के विस्तृत अर्थ, पर्यायवाची, विलोम, कहावतें और मुहावरे उपलब्ध हैं।

    Additional information available

    Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

    OKAY

    About this sher

    Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit. Morbi volutpat porttitor tortor, varius dignissim.

    Close

    rare Unpublished content

    This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

    OKAY

    जश्न-ए-रेख़्ता | 13-14-15 दिसम्बर 2024 - जवाहरलाल नेहरू स्टेडियम, गेट नंबर 1, नई दिल्ली

    टिकट ख़रीदिए