अवधू मैं मेरा मन समझया
awdhu main mera man samajhya
अवधू मैं मेरा मन समझाया।
मन जाइ थो पणि जांणि न दीया, फेरि सहज घरि लाया॥
के बपधरि बैकुंठ बिचारै, म्रत लोक का मार्या।
जो बैकुंठ धर्या सो बिनसै, हम कछु अगल बिचार्या॥
नरक सुरग दोऊ हम तोल्या, ग्यांन तराजू मांही।
दोन्यू बिथा बराबरि दीसै, इन में घटै बधै कछु नांही॥
तीरथ व्रत जोग जिग तपस्या, बड़ी बिथा जुग मांही।
जन हरीदास ए मलकरि देख्या, इन कूँ परसै नांही॥
- पुस्तक : महाराज हरिदासजी की वाणी (पृष्ठ 203)
- संपादक : मंगलदास स्वामी
- प्रकाशन : निखिल भारतीय निरंजनी महासभा
- संस्करण : 1962
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