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जीवड़ा जागि न देखे लाई वे

jiwDa jagi na dekhe lai we

हरिदास निरंजनी

हरिदास निरंजनी

जीवड़ा जागि न देखे लाई वे

हरिदास निरंजनी

जीवड़ा जागि देखे लाई वे!

जम जागत है तूँ क्या सोवे, राम सुमरि मेरा भाई वे॥

निसदिन आव घटै तन छीजै, ज्यूँ अँजली का पांणी वे।

तजि अलसाक अलप है जीवण, समझि देष अभिमांनी वे॥

मात पिता सुत वित भी नारी, संगि चालै कोइ वे।

तासूँ लागि विकट मति बौरा, मनषि जनम निधि खोइ वे॥

वांसै बाहर छिप्या छूटै, देही जुरा बुढ़ांणी वे।

पंडर केस हाथ नैंणा परि, काल धजा फहराणी वे॥

औघट घटा बिचाले दिरया, तहाँ मेंरा नांव मुरारी वे।

तहाँ लागि तैं पार किया, परदेसी अहंकारी वे॥

जहाँ उदै अस्त काल नहिं काया, सोइ परम सनेही तेरा वे।

हरीदास जन टेरि कहत हूँ, तहाँ चलो जीव मेरा वे॥

स्रोत :
  • पुस्तक : महाराज हरिदासजी की वाणी (पृष्ठ 188)
  • संपादक : मंगलदास स्वामी
  • प्रकाशन : निखिल भारतीय निरंजनी महासभा
  • संस्करण : 1962

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