भांगो भ्रांत भाव नै पाळौ, भजन बिना दिन अहळा जाय।
अन्न देव री केवूं बारता, सुणजी साधो कान लगाय॥
सिंवरूं सगति मुगति री दाता, मदद करो मोटी माय।
गुण रौ देव बिनायक सिंवरूं, ध्यान धरे ज्यानै ग्यान बताय॥
दरसण आय देवता ऊभा, करता रै मन आवै नहीं दाय।
थे आवो प्रभु बोल्या, अंग सूं मिळिया अंग लगाय॥
सुर तेतीस रीस कर बोल्या, दिल में कीन्हौ किरोध अपार।
सगळा ई देव एक कर मानी, अैड़ी दीठ धरौ किरतार॥
गुण अर ग्यांन रची रचना, आदि अनादि श्रीपत राव।
इण विध अन्न अधिकेरो मानौ, सब रावां में कहिये राव॥
पड़ियौ चुगल हलचल कीन्ही, कारी लागे नीं किरोड़ उपाय।
पड़ियौ वाद-विवाद विकारा, बिन आदर बैठ्यौ नी जाय॥
करियौ सोच मन में माधू, आप बड़ा श्रीपत राव।
अन्न देव दरसण मत आवी, दिन दस दूर बसो थे जाय॥
अन्न देव सती घर आया, राहू केतू उठ लाग्या पाँव।
सांची कहो सुरां रा नायक, आया हो हर किण भाव॥
सुर तैतीसां करी म्हारी निंदा, देव सभा में आयौ नहीं दाय।
गुप्त करौ पाताळां मांहीं, जग रा जीव देखण नहीं पाय॥
आप परम गुरु आसी, अन्न देव मांगेला आय।
जोर कियां जावण नीं देस्याँ, अैड़ौ कौल करौ सुर राय॥
आप परम गुरु दीनी म्हाने आग्या, सती सुणो बचन समाय।
केवौ वचन आप रै चालूं, आप केवौ जठै बैठूं जाय॥
धरती रेलमपेल कर बोई, इमरत नीर सींचियौ मांय।
पसरी बेल इमरत फळ लाग्या, जोजन लग रही है छाय॥
तूंबा केर अर बेर बंद दीन्हो, अन्न देव बैठायो मांय।
सत री कार दीवी सतवंती, सप्त पीयाळां गाडियौ जाय॥
जोत बिना सुर नर बिलखावै, सौरम बिना नहीं आवै दाय।
अन्न देव बैगौ लावौ, अन्न देव बिन काया जाय॥
जळ रा जीव रच्या जग जाचण, नदियाँ सौध समुंदरां में जाय।
नीर तीर सारै फिर आया, अन्न देवता कठै नीं पाया॥
आप परम गुरु किया पंखेरू, पंछी गगन पूगौ थै जाय।
गगन मंडळ सारे फिर आया, अन्न रौ पतो कठै नीं थाय॥
करता नाथ उपाई कीड़ी, पग नेवर हरि बांधी जाय।
थळ भीतर सारै फिर आई, अन्न देव री खबर न लाई॥
कीड़ी सोध बोध ले आई, तन में दीन्ही गांठ घुळाय।
अन्न देव सती घर देख्या, वारै होय रह्या आणंद उछाव॥
चढ़ियौ स्याम सकळ ले साथै, नौपत निसांण धजा फहराई।
सत गुरु पूगा सती द्वारे, डेरा दिया पौळियां मांय॥
तेड़ी सती सुहागण नार, कुंभ कळस भर सिर पर ठहराय।
सात सखी मिळ मंगळ गावै, सतगुरुजी नै लिया बधाय॥
सती कहै स्याम सुण लीजी, कर जोड़े पिरथी रा राय।
भांत भांत रा भोजन बणाऊं, सलाह देवो मन भाय॥
केवै स्याम सुणो सतवंती, हूँ पिरथी रच करतार।
भोजन थांरे जद जीमां, अन्न देवण रौ करौ करार॥
आया राज नाज म्हे देस्यां, तोल मोल बिकाय।
लिखिया दांम सवाया लेस्यां, अवर केवी तो नीं आवै दाय॥
अन्न देव दरसण ले आऔ, मन में सती मत घबराय।
चाँद सूरज जामन ले ले, रिषीजन ऊभा साख भरे॥
ब्रह्मा, विष्णु महेश अर करता, सब देव जीमण बैठा आय।
भांत भांत रा भोजन पुरस्या, रुचि रुचि जीमी श्रीपत राय॥
केवै स्याम सती सुण लीज्यौ, थोड़ी आगी उरे री लाय।
चंगा चीर कांचळी दीनी, आप परम गुरु मन हरषाय॥
सरिया काज नाज ले आया, सुर नर देवां घर आणंद उछाव।
अन्न प्रमाण सांभळौ साधो, गंगा में दीनी ज्यूं दूजती गाय॥
गुरु ग्यान कर सुणजौ, आया संतां रै लागी पांय।
अजमल सुत रांमदेव बोलै, अन्न प्रमांण सुणो चित्त लाय॥
हे साधुओ! समस्त प्रकार की संशयों का निवारण करके, भाव निर्वाह करते हुए भगवद् भजन करो। भजन के बिना आयु व्यर्थ जा रही है। मैं अन्नदेव की वार्ता कह रहा हूँ, ध्यान से सुनिए।
मुक्ति की दात्री महाशक्ति का स्मरण करता हूँ। हे माँ! मेरी सहायता करो। गुण व बुद्धि के दाता गणेशजी का स्मरण करता हूँ, जो कोई गणेशजी का ध्यान करता है, उसे वे ज्ञान प्रदान करते हैं।
एक दिन समस्त देवता ईश्वर के दरबार में पहुँचे। ईश्वर अपने सिंहासन से उठे और अन्न देवता से आलिंगनबद्ध होकर मिले। दूसरे देवताओं को ईश्वर ने इतना सम्मान नहीं दिया।
इससे तैतीस करोड़ देवताओं ने क्रुद्ध होकर कहा हे ईश्वर! आप हम सभी देवताओं को एक समान मानो, हम सब को समान दृष्टि से देखो।
ईश्वर ने कहा कि परब्रह्म ने गुण और ज्ञान की दृष्टि से ही संपूर्ण सृष्टि का सर्जन किया है। अन्न में सर्वाधिक गुण हैं, इसलिए अन्न देवता विशेष सम्मान के अधिकारी हैं। अन्न देवता सभी देवों के देव कहे जाते हैं।
देवताओं में हलचल मची कि किसी ने हमारे विरुद्ध ईश्वर के कान भर दिए हैं; अब करोड़ों उपाय करने से भी कुछ नहीं हो सकता। ईश्वर व देवताओं में वाद-विवाद उत्पन्न हो गया। देवताओं ने निर्णय लिया कि ईश्वर के दरबार में हमारा आदर नहीं है और बिना आदर के हमें यहाँ नहीं बैठना।
देवताओं की नाराज़गी देखकर भगवान् के मन में भी चिंता लगी और उन्होंने देवताओं को यथार्थ से अवगत कराने का एक उपाय सोचा। भगवान् ने अन्न देवता से कहा कि हे अन्न देवता ! दस दिनों तक आप कहीं जाकर छिप जाओ, किसी को भी दिखाई मत दो।
अन्न देवता चलकर सती के घर आए, वहाँ राहु और केतु ने उठकर उनके चरण स्पर्श किए। सती ने भी उनका आतिथ्य सत्कार किया तथा आने का प्रयोजन पूछा।
अन्न देवता ने कहा कि तैतीस करोड़ देवताओं ने मेरी निंदा की है, मैं देव-सभा द्वारा पसंद नहीं किया गया। आप मुझे पाताल में छिपा दो, जगत् का कोई भी प्राणी मुझे देख नहीं सके।
सती ने कहा कि यदि मैं आप को छिपा दूँगी तो ईश्वर स्वयं आपकी याचना करने के लिए आएँगे, अन्य देवता भी आएँगे, तब आप जाना भी चाहो तो मैं नहीं जाने दूँगी। हे अन्न देवता, यदि आप को यह शर्त स्वीकार है तो मैं आपको छिपाने के लिए तैयार हूँ।
अन्न देवता ने कहा कि मुझे स्वयं परमात्मा ने ही आदेश दिया है। हे सती! आप मेरा प्रण सुनिए, मैं आपकी हर बात का पालन करूँगा, आपकी आज्ञा होगी वहीं जाकर बैठ जाऊँगा।
सती ने सारी पृथ्वी को उथल-पुथल करके अन्न देवता को उसमें बो दिया तथा अमृत वृष्टि करके धरती को सिंचित किया। बड़ी-बड़ी लताएँ फैलीं और अमृत फल लगे। ये लताएँ बहुत व्यापक रूप में फैलीं।
इंद्रायण, केर, बेर आदि फल लगे जिनके अंदर अन्न देवता को बैठाकर छिपा दिया गया और सात पाताल के नीचे ये फल रखकर सती ने सीमा से बाहर न आने के लिए अन्न देवता के चारों ओर कार खींच दी।
कुछ दिन व्यतीत हुए, अन्न के भोग बिना देवतागण बिलखने लगे, अन्न देवता की सुगंध के अभाव में विकल हो गए और परस्पर कहने लगे कि अन्न देवता को खोजकर शीघ्र लाया जाए। अन्न देवता के बिना शरीर जा रहा है।
देवताओं को संदेह हुआ कि अन्न देवता कहीं जल में जाकर छिपे होंगे इसलिए इस ब्रह्मांड में समस्त जलाशय, नदियों और समुद्रों में उन्हें ढूंढ़ने के लिए जल-जीवों की रचना की गई, जो जलाशयों, नदियों और समुद्रों की थाह ले आए, परंतु अन्न देवता कहीं नहीं मिले।
तब गगनमंडल में अन्न देवता को ढूंढ़ने के लिए ईश्वर ने नभचर प्राणियों की उत्पत्ति की, वे संपूर्ण आकाश में उड़कर आए किंतु अन्न देवता का कहीं पता नहीं लगा।
तब सृष्टिकर्ता ने चींटी की उत्पत्ति की और उसके पैरों में नूपुर बांधे अर्थात् उसका शृंगार भी किया तथा अन्न देवता को ढूंढ़ने के लिए उसे संपूर्ण थल (भू लोक) में भेजा। वह संपूर्ण भू लोक में फिरकर आई परंतु अन्नदेव का पता नहीं लगा।
अंततोगत्वा चींटी अपने पेट के गांठ देकर (जिससे कि उसे भूख न लगे और स्वयं को अन्न के अभाव में भी जीवित रख सके) घूमने लगी और अन्न देव की खबर ले आई। उसने आकर कहा कि मैंने सती के घर अन्न देवता को देखा है जहाँ आनंदोत्सव मनाया जा रहा है।
समस्त देवताओं को साथ ले ईश्वर ने प्रस्थान किया, नौबत नगारे बजाए गए, ध्वज फहराए गए। समस्त देवताओं सहित ईश्वर सती के द्वार पर पहुँचे। सती के भवन के मुख्य द्वार पर जाकर रुक गए।
सती को अपने आगमन की सूचना देकर बुलाया, अमर सुहागिन सती जल का कलश भरकर अपने सर पर रखकर, अपनी सात सखियों को साथ लेकर स्वागत गान करती हुई पहुँची और ईश्वर की वंदना की।
तथा प्रार्थना करने लगी कि हे पृथ्वीपालक! जगत् के सृजनकर्ता! आज्ञा दीजिए, आपको कैसा भोजन रुचिकर लगेगा? मैं आपकी रुचि के अनुरूप विविध प्रकार के व्यंजन बनाऊँगी।
ईश्वर ने कहा कि हे सती! मैं इस संपूर्ण सृष्टि का सृजनकर्ता हूँ। इसलिए मैं आपके यहाँ भोजन तभी कर सकता हूँ जब आप मुझे अन्न देवता प्रदान करने का वचन दें।
सती ने कहा कि आप मेरे घर आए हैं इसलिए मैं आपको अन्न अवश्य दूँगी परंतु एक साथ नहीं दूँगी, आवश्यकतानुसार तौल करके मूल्य प्राप्त करके दूँगी। मूल्य भी सवाया लूँगी, इस विषय में आपकी अन्य कोई बात नहीं मानूँगी।
ईश्वर ने कहा कि मुझे आपकी यह शर्त स्वीकार है, आप मन में मत घबराओ और मुझे अन्न देवता के दर्शन करवा दो। मैं आपकी शर्त पूरी करूँगा, आप चंद्र और सूर्य की जमानत ले लें, समस्त ऋषि मुनि भी इसकी साक्षी दे रहे हैं।
सती के घर ब्रह्मा, विष्णु, महेश तथा उनके साथ समस्त देवगण भोजन के लिए आए। विविध प्रकार के भोज्य पदार्थों का भोग लगाया।
ईश्वर ने आग्रहपूर्वक सती को निकट बुलाया तथा वेशभूषा (चीर, कंचुकि) भेंट करके हर्षित हुए।
ईश्वर का कार्य सिद्ध हुआ, वे अन्न देवता को ले आए। अन्न देवता को प्राप्त करके देवताओं के घरों में आनंदोत्सव मनाया जाने लगा। साधो! अन्न की महिमा सुनो, गंगा में स्नान करके दूधारू गाय दान देने का जो पुण्य है उससे भी अधिक पुण्य किसी भूखे व्यक्ति को अन्न दान देने का है।
अजमल पुत्र रामदेवजी कहते हैं कि अन्न का महत्त्व चित्त लगाकर सुनो, यही गुरु ज्ञान है, इसका मनन करो तथा घर आए संतों का चरण स्पर्श करके उनका सत्कार करो तथा भोजन करवाओ। अन्न की महिमा असीम है।
- पुस्तक : बाबै की वांणी (पृष्ठ 122)
- संपादक : सोनाराम बिश्नोई
- रचनाकार : बाबा रामदेव
- प्रकाशन : राजस्थानी ग्रंथागार
- संस्करण : 2015
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