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देखो भाव भगति री बातां

dekho bhaw bhagti ri batan

बाबा रामदेव

बाबा रामदेव

देखो भाव भगति री बातां

बाबा रामदेव

और अधिकबाबा रामदेव

    देखो भाव भगति री बातां।

    भाव विचारो भूल मत राखौ,मेटौ दिल री सांसा॥

    अपणा भाव जांणौ थारै जैड़ा,दुतिया दूर हटावी।

    अपणा भाव सफळ कर लीजौ,गुरु रौ वचन निभावौ॥

    धारण धरम सही कर लीजौ,कपट दूर रखावौ।

    भाव भगति भूल मत जाइजौ,जद थे मुगति पावौ॥

    अपणै भाव सूं चेतन दरसे,अैड़ो भाव लगावौ।

    अपणै भाव सूं माया दरसे,जैड़ो मन फळ पावी॥

    अपणै भाव सूं बंधन दरसै,गुण गोविन्द रा गावौ।

    अपणै भाव सूं भगति कीजै,इण विध सूरत लगावौ॥

    अपणै भाव सूं गुरु अर चेला,तन मन सेवा करावौ।

    मन में सदा शान्ति राखी,जद भगति पद पावौ॥

    अपणै भाव सूं भगति कीजै,पंच कळेश मिटावौ।

    तन मन धन गुरु नै अरपौ,सतसंगत में जावौ॥

    अपणै भाव सूं सब जुग त्यागौ,ममता मार हटावौ।

    गुरु री सेवा निज मन कीजै, तीनूं ताप मिटावौ॥

    अपणै भाव सूं जड़ चेतन में, चेतन चौगस करावौ।

    तीरथ व्रत भाव सूं मेटौ, जनम मरण नई आवौ॥

    अपणै भाव सूं ग्यान ध्यान सब, हिरदे प्रीत लगावौ।

    अपणौ धरम अखै कर जाणौ, निज मन गुण गावौ॥

    संवत चतुरदस साल नवमें, श्रीमुख आप जगायौ।

    भणै रांमदेव चैत सुद पांचम्, अजमल घर में आयौ॥

    भक्ति भाव का विचार सुनिए, भ्रम और संशय दूर करके एकात्म भाव धारण करो। समत्व भाव को अपनाकर द्वैत भाव का परित्याग करो। सद्गुरु का आदेश निभाते हुए एकात्म भाव को सफल बनाओ। आत्म भाव ही सही धर्म है, इसी भाव से रहते हुए सभी कपट दूर रखो। आत्म भाव से ही मोक्ष प्राप्ति होगी, इसे मत भूलिए। आत्म भाव से ही ब्रह्म के दर्शन होंगे, अपने हृदय में इसी भाव को धारण करो। इसी से यह सारा संसार माया का खेल लगेगा और मनवांछित फल की प्राप्ति होगी। आत्म भाव से ही बंधन का भेद दिख जाएगा जिससे आप स्वयं बंधन से मुक्त हो जाओगे। इसी भाव से भगवत् का यशोगान करो। इसी भाव में अपना ध्यान लगाना ही मोक्ष है। गुरु-शिष्य में भी एकात्म भाव रखो, तब तन-मन से की हुई गुरु की सेवा स्वयं अपनी सेवा होगी। मन सदा शांत अवस्था रहेगा तो भक्ति पद की प्राप्ति होगी। एकात्म भाव से भक्ति करने से पंच कलेश अपने आप नष्ट हो जाएँगे। इसी भाव से गुरु के प्रति समर्पित हो जाओ; इसी भाव से सत्संग करो। इसी एकात्म भाव से माया जनित जगत् का त्याग करो और आसक्ति का त्याग करो। एकात्म भाव से ही गुरु सेवा करते हुए त्रयताप मिटाओ। जड़-चेतन सभी में आत्म भाव देखो, समस्त प्राणियों और पदार्थों में एक ही चेतन आत्मा देखो। फिर तीर्थ व्रत आदि की कोई आवश्यकता नहीं रहेगी, क्योंकि आत्म भाव से भक्ति करने पर आवागमन से छुटकारा मिल जाएगा। एकात्म भाव से ही ध्यान धरो, इसी भाव से ही ज्ञान प्राप्ति करो, इसी भाव को प्रीतपूर्वक हृदय में धारण करो। आत्म भाव ही स्वधर्म है, आत्म धर्म है, जो अक्षय है, शास्वत है। इसी से निज स्वरूप की प्राप्ति करके भगवत् का गुणगान करो। वि. सं. 1409 चैत्र शुक्ला पंचमी को अजमाल जी के घर अवतरित हो कर रामदेव ने इस प्रकार लोगों को आत्म भाव के प्रति जागृत किया।

    स्रोत :
    • पुस्तक : बाबै की वांणी (पृष्ठ 114)
    • संपादक : सोनाराम बिश्नोई
    • रचनाकार : बाबा रामदेव
    • प्रकाशन : राजस्थानी ग्रंथागार
    • संस्करण : 2015

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