Font by Mehr Nastaliq Web
noImage

यारी साहब

रीतिकालीन निर्गुण संत। वर्णन शैली रोचक और भाषा में अरबी-फ़ारसी का प्रयोग। बावरी संप्रदाय से संबद्ध।

रीतिकालीन निर्गुण संत। वर्णन शैली रोचक और भाषा में अरबी-फ़ारसी का प्रयोग। बावरी संप्रदाय से संबद्ध।

यारी साहब के दोहे

7
Favorite

श्रेणीबद्ध करें

आठ पहर निरखत रहौ, सन्मुख सदा हज़ूर।

कह यारी घरहीं मिलै, काहे जाते दूर॥

बाजत अनहद बाँसुरी, तिरबेनी के तीर।

राग छतीसो होइ रहे, गरजत गगन गंभीर॥

तारनहार समर्थ है, अवर दूजा कोय।

कह यारी सत्तगुरु मिलै, अचल अरु अम्मर होय॥

दछिन दिसा मोर नइहरो, उत्तर पंथ ससुराल।

मानसरोवर ताल है, तहँ कामिनि करत सिंगार॥

रूप रेख बरनौं कहा, कोटि सूर परगास।

अगम अगोचर रूप है, पावै हरि को दास॥

बेला फूलां गगन में, बंकनाल गहि मूल।

नहिं उपजै नहिं बीनसै, सदा फूल कै फूल॥

धरति अकास के बाहरे, यारी पिय दीदार।

सेत छत्र तहँ जगमगै, सेत फटिक उँजियार॥

आतम नारि सुहागिनी, सुंदर आपु सँवारि।

पिय मिलवे को उठि चली, चौमुख दियना बारि॥

नैन आगे देखिये, तेज पुंज जगदीस।

बाहर भीतर रमि रह्यो, सो घरि राखो सीस॥

  • संबंधित विषय : राम

जोति सरूपी आतमा, घट-घट रहो समाय।

परम तत्त मन भावनो, नेक इत-उत जाय॥

aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

Recitation

जश्न-ए-रेख़्ता | 13-14-15 दिसम्बर 2024 - जवाहरलाल नेहरू स्टेडियम, गेट नंबर 1, नई दिल्ली

टिकट ख़रीदिए