यारी साहब के दोहे
आठ पहर निरखत रहौ, सन्मुख सदा हज़ूर।
कह यारी घरहीं मिलै, काहे जाते दूर॥
-
संबंधित विषय : भक्ति
-
शेयर
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
बाजत अनहद बाँसुरी, तिरबेनी के तीर।
राग छतीसो होइ रहे, गरजत गगन गंभीर॥
-
संबंधित विषय : अनहद
-
शेयर
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
तारनहार समर्थ है, अवर न दूजा कोय।
कह यारी सत्तगुरु मिलै, अचल अरु अम्मर होय॥
-
शेयर
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
दछिन दिसा मोर नइहरो, उत्तर पंथ ससुराल।
मानसरोवर ताल है, तहँ कामिनि करत सिंगार॥
-
शेयर
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
रूप रेख बरनौं कहा, कोटि सूर परगास।
अगम अगोचर रूप है, पावै हरि को दास॥
-
संबंधित विषय : भक्ति
-
शेयर
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
बेला फूलां गगन में, बंकनाल गहि मूल।
नहिं उपजै नहिं बीनसै, सदा फूल कै फूल॥
-
शेयर
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
धरति अकास के बाहरे, यारी पिय दीदार।
सेत छत्र तहँ जगमगै, सेत फटिक उँजियार॥
-
शेयर
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
आतम नारि सुहागिनी, सुंदर आपु सँवारि।
पिय मिलवे को उठि चली, चौमुख दियना बारि॥
-
शेयर
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
नैन आगे देखिये, तेज पुंज जगदीस।
बाहर भीतर रमि रह्यो, सो घरि राखो सीस॥
-
संबंधित विषय : राम
-
शेयर
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
जोति सरूपी आतमा, घट-घट रहो समाय।
परम तत्त मन भावनो, नेक न इत-उत जाय॥
-
शेयर
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere