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फ़सलों के त्योहार
सारा दिन बोरसी के आगे बैठकर हाथ तापते हुए गुज़र जाता है। कहाँ तो खिचड़ी के समय धूप में गरमाहट की शुरआत होनी चाहिए और यहाँ हम सूरज के इंतज़ार में आस लगाए बैठे हुए हैं। पूरे दस दिन हो गए सूरज लापता है। आज सुबह तो रज़ाई से निकलने की हिम्मत नहीं हो रही थी। बाहर