स्वरूपदास के दोहे
शरण युधिष्ठिर कृष्ण की, अथवा भजि नहिं जाय।
जो इंद्रादि सहाय तोहूँ, पितॄन दैहूँ मिलाय॥
-
शेयर
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
प्रात अस्त लों ना रहे, जयद्रथ वा मम प्रान।
दोउ रहै तो होहु भल, मोकों नरक निदान॥
-
शेयर
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere