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श्रीकांत वर्मा

1931 - 1986 | बिलासपुर, मध्य प्रदेश

समादृत कवि-कथाकार-अनुवादक और संपादक। साहित्य अकादेमी पुरस्कार से सम्मानित।

समादृत कवि-कथाकार-अनुवादक और संपादक। साहित्य अकादेमी पुरस्कार से सम्मानित।

श्रीकांत वर्मा की संपूर्ण रचनाएँ

कविता 26

उद्धरण 17

प्रेम अकेले होने का एक ढंग है।

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मैंने अपनी कविता में लिखा है 'मैं अब घर जाना चाहता हूँ', लेकिन घर लौटना नामुकिन है; क्योंकि घर कहीं नहीं है।

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जब इंसान अपने दर्द को ढो सकने में असमर्थ हो जाता है तब उसे एक कवि की ज़रूरत होती है, जो उसके दर्द को ढोए अन्यथा वह व्यक्ति आत्महत्या कर लेगा।

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प्रेम में सिर्फ़ चुम्बन और सहवास और सुख-शैया ही नहीं, सब कुछ है, नरक है, स्वर्ग है, दर्प है, घृणा है, क्रोध है, द्वेष है, आनंद है, लिप्सा है, कुत्सा है, उल्लास है, प्रतीक्षा है, कुंठा है, हत्या है।

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जो मुझसे नहीं हुआ, वह मेरा संसार नहीं।

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