श्रीभट्ट के दोहे
तनिक न धीरज धरि सकै, सुनि धुनि होत अधीन।
बंसी बंसीलाल की, बंधन कों मन-मीन॥
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जनम-जनम जिनके सदा, हम चक्कर निसि-भोर।
त्रिभुवन-पोषन सुधाकर, ठाकुर जुगल-किशोर॥
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मोहन दन ब्रजभूमि सब, मोहन सहज समाज।
मोहन जमुना कुंज तहँ, बिहरत श्रीब्रजराज॥
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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere